Saturday, 13 November 2021

अंततोगत्वा प्रेम तो प्रेम ही है

सीता को निर्वासित किया
क्या राम का दिल नहीं रोया होगा
जिस प्राणप्रिया के लिए रावण से युद्ध ठाना
उसी को वन गमन जाते हुए कितने टूटे हुए होंगे
तभी तो अश्वमेघ में जानकी की मूर्ति के साथ बैठे थे

राधा को गोकुल में छोड गए
विरह में जलती रही
क्या उनके कान्हा को याद नहीं आती होगी
वह प्रेम की पराकाष्ठा को जानते थे
तभी तो उद्धवजी को भेजा था

यशोधरा,  राहुल के साथ महलों में रहीं
उन्हें छोड़ जाना इतना आसान नहीं था सिद्धार्थ के लिए
वह यशोधरा का दर्द महसूस करते थे
तभी तो वापस लौट कर आए तो उसके द्वार पर गए
उनके दर्शन को नहीं आने पर अपने प्रिय शिष्य
आनंद को कहा
सारे संसार के लिए मैं भगवान बुद्ध हूँ पर यशोधरा के लिए तो उसका पति हूँ

द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था
पांडवों के लिए यह इतना आसान नहीं
न वह गांडीव धारी अर्जुन भूले थे
न वह गदाधारी भीम भूले  थे
उस समय तो विवश थे
अगर कृष्ण नहीं होते तो शायद कुछ और भी परिणाम हो सकता था
कर्ण वध और दुःशासन की जंघा पर प्रहार उसका गवाह
महाभारत का कारण एक तो यह भी था

कभी-कभी व्यक्ति विवश हो जाता है
कर्तव्य वश ,सामाजिक बंधनों वश
अंततोगत्वा प्रेम तो प्रेम ही है

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