समय ही नहीं बीत रहा था
बार - बार ध्यान घडी की सुइयों पर
कितने मिनट हुए
कितने घंटे हुए
यह सब हिसाब रख रही थी
सेकंड की तरफ तो ध्यान ही नहीं जा रहा था
अचानक सोचने लगी
यह सेकंड का भी क्या नसीब है
इसे ज्यादा तवज्जों नहीं दी जाती
कल्पना कर ले
अगर सेकंड नहीं होता तब
हमारी गणना गडबडा जाती
ऐसा ही होता है
हम अपने जीवन में आने वाले हर शख्स को याद रखते हैं
उनको भूल जाते हैं
जिनकी वजह से हमारा काम आसान हो जाता है
वह नजर नहीं आते पर सोच कर देखो तब
घर - परिवार , दफ्तर इत्यादि में न जाने ऐसे कितने लोग होंगे
जो सेकंड की सुइयों की तरह हैं
वे हट जाए तब
छोटा हो या बडा
सब अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण
उनको नजरअंदाज न करें
कुछ खुशियाँ
कुछ आसानी
कुछ मुमकिन
यह सब उनकी वजह से
घंटे, मिनट और सेकंड यह साथ साथ चलते हैं
सब एक - दूसरे पर निर्भर।
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