Thursday, 9 December 2021

जिंदगी का गणित

बचपन में डरते थे गणित से
पकाऊ और उबाऊ लगता था
लिटरेचर अच्छा लगता था
मन को भाता था
सपनों और कल्पनाओं में विचरण करना
कितना सुखद था
यथार्थ के धरातल पर जब कदम पडे
गणित ही करते रहे
गुणा - भाग
जोड- घटाना
यही जिंदगी बन गई
कल्पनाएं छू मंतर हो गई
जिस गणित से भागते थे
जिसे पसंद नहीं करते थे
वही आज करना पड रहा है
अब पता चला है
जिंदगी कल्पना और सपनों के सहारे नहीं
गुणा- भाग , जोड़- घटाना के सहारे चलती है
बडी मेहनत और मशक्कत से जिंदगी का गणित बैठाना पडता है

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