काल है करोना का
जश्न है नए साल का
डर डर के जीना है
जिंदगी को फिर वैसा ही खुशहाल देखना है
आशा और उम्मीद का दामन पकड़ रखना है
पतझड़ आने से बहार थम नहीं जाती
घनघोर अंधेरा छा जाता है
बिजली कडकती है
तब भी सुबह ही सूर्योंदय होना ही है
उसका प्रकाश तो रोका नहीं जा सकता
आंधी- तूफान में घोसले उजड जाते हैं
तिनका-तिनका हो बिखर जाते हैं
नव निर्माण की प्रक्रिया तब भी नहीं रूकती
जीवन क्षणभंगुर हैं
तब भी भविष्य का ताना बाना बुनने से कोई रोक नहीं सकता
माता का शरीर बेढब हो जाता है
तब भी संतान को जन्म देने को तत्पर रहती है
केला , बिच्छू , बांस अपने अपने ही वंश को जन्म देते ही खत्म हो जाते हैं
नव निर्माण की प्रक्रिया कभी रूकती नहीं है
कितना भी विध्वंस हो
कितना भी बडा आघात हो
जीवन खत्म नहीं होता है
यह महामारी भी खत्म होनी है
यहाँ स्थायी तो कुछ भी नहीं
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