Wednesday, 17 August 2022

यह कैसा अमृत

स्वर्णिम दिन आया है 
अमृत महोत्सव मना रहा है
जाति - पांति का दंश अभी भी
कब यह खत्म होगा
कब इंसान को इंसान समझा जाएगा 
पानी तो सबका
नदी और बरखा तो भेदभाव नहीं करती
वही पानी जब मटके में आया
तब किसी के हाथ लगाने से अपवित्र 
यहाँ तक कि जान भी तुच्छ हो गया
एक मासूम इस बलिवेदी पर चढ गया
तब यह कैसा अमृत महोत्सव 
जब मन में  विष घुला हुआ है
तब यह दिखावा ही है
हो तो ऐसा
अमृत काल में सबके दिल में 
प्यार औ सौहार्द का अमृत लहराए
सब उसका छक कर पान करें 
इंसानियत ही सर्वोपरि है
उससे ज्यादा मौल्यवान कुछ नहीं 

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