Monday, 3 October 2022

मैं वैदेही

मैं वैदेही 
धरती माता की गोद से जन्मी
धरती में ही समा गई 
बहुत कुछ सहा मैंने 
राजा बनने का अधिकार राम से छीना गया था
पत्नी होने का धर्म निभाना था
उस महल में कैसे रहती जहाँ से उनको वनवास मिला था
जनक की बेटी सुकुमारी
नंगे पैर चली 
कुटिया में रही
दर - दर पति के साथ भटकी
कंद मूल ग्रहण किया
बुहारने ,पानी भरने और रसोई का भी काम किया
यह सब खुशी-खुशी किया
क्योंकि पति के साथ जाने का निर्णय मेरा था
रावण द्वारा अपहरण हुआ 
तब भी मैं टूटी नहीं थी
अग्नि परीक्षा ली गई तब भी नहीं 
हाँ जब चरित्र पर लांछन लगा और गर्भवती अवस्था में वन में छोडी गई 
तब दिल दुखा था
कर्तव्य पालन करना था 
गर्भ में पल रहे बच्चों के प्रति भी कर्तव्य बनता था
पत्नी का तो निभाया अब माँ की बारी थी
लव - कुश को बडा किया और उनको उनके पिता से मिला दिया
फर्ज पूरा हो गया था
लंका से तो अयोध्या आई पर वन से वापस अयोध्या नहीं जाना था
स्वाभिमानी भी तो थी
एक बात अवश्य अखर रही थी
मैंने तो राम के लिए अयोध्या छोड़ दी थी और वन गमन कर लिया
राजा राम क्यों नहीं मेरे साथ वन में हो लिए
एक राजा पति पर भारी पड गया
अब तो माता की गोद ही बची थी
उसी से जन्मी उसी में विलीन 
माँ कभी इनकार नहीं करेगी यह पता था
उसकी गोद ही है जिस पर संतान का पूरा हक है
और तो रिश्ते बने बनाए ।

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