शोभा बढा रहे थे ड्राइंग रूम की
कहीं कहीं बेले लटक रही थी
कहीं गुलदानी में फूल सजा था
मनमोहक रंगों में
लाल , पीले , हरे , गुलाबी
काबू न रख पाई मन को
पास गई निहारने को
सहलाने को उठा हाथ
अरे यह क्या
इसमें तो फूलों जैसी कोमलता नहीं
कुछ अलग सी नरमी लगी
शायद किसी और चीज का
हाथ खींच लिया
अब वह भावना न रही
बनावट की बू आने लगी
सही भी है
ऊपर से कैसा भी हो
समझ तो नजदीक आने पर ही पता चलती है
खुशबू भी तो असली फूलों से आती है
नकली से नहीं
नकली तो नकली ही है
असली तो असली ही है
चमकने के कारण पीतल , सोना नहीं बन जाता
No comments:
Post a Comment