दो गुणा दो यानि चार
जिंदगी का गणित कुछ अलग है
वहाँ हर सवाल का हल नहीं मिलता
कुछ अधूरे रह जाते हैं
कुछ अधर में लटके रह जाते हैं
कुछ का जवाब कुछ समय उपरांत
कुछ का जीवनपर्यन्त नहीं
यहाँ दो और दो चार नहीं
कभी-कभी पांच
कभी-कभी एक
कभी-कभी तो शून्य
जीवन वह अंकगणित है जहाँ बडे से बडा धुरंधर भी असफल हो जाता है
कितना भी प्रयत्न करों
कितना भी हाथ - पैर मारों
रात - दिन एक कर दो
सर खफा डालो
फिर भी हल नहीं निकलता
यह जीवन है अंकों का खेल नहीं
इसका गणित तो विधाता की लेखनी के हिसाब से चलता है
सवाल भी उसका
जवाब भी उसका
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