Friday, 4 November 2022

कोई गिला - शिकवा नहीं

वह उम्र गुजर गयी 
बहुत आगे बढ गई
याद फिर भी उसी उम्र की है
जो इस समय है उसकी नहीं 
गुजरते जमाने की
उसी उम्र के सहारे आज भी मन जिंदा दिल है
वह सुनहरा समय
वह स्वर्णिम वक्त 
साथ - साथ चल रहा है
कभी मन विचलित हुआ
उस समय में झांक लिया
तब लगा 
अभी सब कुछ खत्म नहीं 
बहुत कुछ बाकी है
जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं 
बहुत कुछ मिला है
कुछ कमी रह गई 
कोई बात नहीं 
जो हमारे हिस्से में था वह तो भरपूर मिला
ऐसा नहीं कि झोली खाली ही रही
हीरे - मोती भी मिले
सोने - चांदी भी मिले 
पीतल - तांबे भी मिले
लोहे - पत्थर भी मिले
कुछ न कुछ मिला ही है
कोई गिला - शिकवा नहीं 
नसीब अपना - अपना

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