पता ही नहीं चला
वैसे ही जैसे मौसम बदल गया
ऋतुओं का क्या है
आती और जाती रहेंगी
कभी कुछ तो कभी कुछ देती रहेंगी
कहाँ तक हिसाब रखें
सोच सोच क्यों डरे
कल क्या होगा
आने वाले कल का तो पता नहीं
बीता हुआ कल तो देखा है
वह तो गुजर गया
यह भी गुजर ही जाएंगा
चिंता कर होगा क्या
वही होगा जो होना होगा
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