Thursday, 13 June 2024

बदलाव

तुम आई थी मेरे घर
मैं खुश थी बेहद खुश
सोचा जी भर कर बतियाएगे 
पुरानी यादों को दोहराएंगे 
हंसेगे खिलखिलाएगे 
जी भर मस्ती करेंगे 
फिर से जवान बन जाएंगे 
हाॅ सोचा वह हुआ नहीं 
समय बदल गया है
तुम भी तो बदल गयी
अब वह पहले बात रही नहीं 
एक रौब सा है दिखता 
संपन्नता का घमंड भी 
सुख - दुख साझा करना तो दूर 
कुरेद कुरेद कर परेशान कर डाला 
जख्मों पर नमक छिड़का  
हंसते हंसते न जाने क्या-क्या व्यंग्य कर डाला 
इतना बदलाव कैसे 
यह समझ नहीं आया 
तुम भी वही
मैं भी वही
यह कैसा हुआ दुराव 
समय बदलता है
अब लगता है
आदमी भी बदल जाता है 

No comments:

Post a Comment