कभी दुर्योधन को किया था कटाक्ष
वह वैसे तो था मजाक
उसको वैसे ही हंसकर उड़ा दिया जाता
तब तो महाभारत तो न होता
बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी थी दुपद्र सुता को
भरे दरबार में नग्न करने की कोशिश
सब मूक दर्शक बने थे
बड़े बड़े महारथी योद्धा
राजा धृतराष्ट्र अंधे थे यह तो सत्य
उस दिन तो सब अंधे हुए थे
नहीं किसी की गांडीव बोली न किसी का गदा उठा
न किसी की तलवार उठी
धर्मराज का धर्म भी द्रष्टा बना रहा
नीति न काम आई विदुर की
भीष्म की तो छोड़ दो
वे हस्तिनापुर की रक्षा के लिए वचन बद्ध थे
एक नारी की रक्षा कैसे करते
होते न कृष्ण यदि
व्यास जी का महाभारत कुछ और होता
युग बदला लोग बदले
द्रौपदी जहाँ खड़ी थी
आज भी वहीं खड़ी है
आज भी जो होता है
दोष पहले उसका होता है
उसने ढंग के कपड़े नहीं पहने
वह रात में घर से बाहर क्यों निकली
उसने लड़को से दोस्ती क्यों की
वह पार्टी में क्यों गई
उसने चुन्नी क्यों ली
पढ़ाई की क्या जरूरत
घर में भी जब अन्याय हो
सब चुपचाप सहो
नहीं तो दोषारोपण उसी पर
विधवा , तलाकशुदा और कुंवारी रहना भी अपराध
वह करें तो क्या करें
गुलाम बन कर रहें
अपने हक के लिए आवाज न उठाएं
आत्मनिर्भर न बने
शिक्षा से वंचित रहें
सेविका बन सबकी सेवा करें
अब जमाना बदल रहा है
द्रौपदी को भी बदलना पड़ेगा
उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ
अब श्याम बचाने नहीं आएंगे
नहीं कोई साड़ी देगा
चीर हरण को बैठे हैं
दुश्शासन और दुर्योधन पग - पग पर
नहीं सुनना है किसकी
फिर हो वह माता गांधारी या कुंती
सगा हो या पराया
छोड़ना नहीं किसी को
दंड तो मिलना है सबको उनके कर्मों का
एक कर्म बनता तुम्हारा भी
आगे बढ़ो
सब पीछे छोड़
स्वयं को बनाओ समर्थ
देवी नहीं बनना है
व्यक्ति बन अपने को स्थापित करना है
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