Monday, 3 February 2025

आँसू

आँसू ही नहीं आते यार
रोने के वक्त जैसे सूख जाते हैं
मौके पर नहीं आते 
बाद में आते हैं
रात को आते हैं नीरव शांति में
जहाँ कोई देख न सके 
चुपके से रो सके 
आँसू को भी प्रदर्शन अच्छा नहीं लगता 
उनकी भी अपनी भाषा होती है
बहुत मजबूत होते हैं 
विडंबना तो देखो इसकी 
कोमल और कमजोर को आते हैं
जहाँ शब्द असमर्थ 
वहां ये काम आते हैं
बड़े - बड़े चट्टानों को पिघला देते हैं
इनका कोई रंग नहीं 
इनका कोई रुप नहीं
फिर भी सबसे बड़ा हथियार 

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