Monday, 3 February 2025

भूल जाओ

रात गई बात गई 
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
रात भी गई 
बात भी गई 
जिस पर बीती 
उसका क्या
उस अपमान का
उस दर्द का 
उस बात का असर का 
उस याद का 
जो जेहन में ताजा हो उठती है
सुषुप्त अवस्था में हैं 
जरा सा छेड़ने पर सारे पल आँखों के समक्ष
उसने जिसने इसे जीया है
उसने जिसे इसे भोगा है
हर दंश को झेला है 
हर उपेक्षा को महसूस करा है 
कह दिया और हो गया
अरे जीकर तो देखो वह जिंदगी 
फिर कहना कि 
भूल जाओ

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