बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
रात भी गई
बात भी गई
जिस पर बीती
उसका क्या
उस अपमान का
उस दर्द का
उस बात का असर का
उस याद का
जो जेहन में ताजा हो उठती है
सुषुप्त अवस्था में हैं
जरा सा छेड़ने पर सारे पल आँखों के समक्ष
उसने जिसने इसे जीया है
उसने जिसे इसे भोगा है
हर दंश को झेला है
हर उपेक्षा को महसूस करा है
कह दिया और हो गया
अरे जीकर तो देखो वह जिंदगी
फिर कहना कि
भूल जाओ
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