Monday, 31 March 2025

एहसास

जो बिछड़े वो बिछड़े 
वापस कहाँ मिले 
मन में ख्वाहिश थी 
फिर कभी मिलेगे 
वह कभी न पूरी हुई 
जो बादल बरस गये 
जो बरसात बीत गई 
वह वापस कहाँ लौटी 
राह में न जाने कितने साथी मिले 
कुछ बोला - बतियाया 
फिर उनसे मुलाकात कहाँ हुई 
न जाने कितने लोगों से मिलवाती यह जिंदगी 
रिश्तें - नाते बनते 
यारी - दोस्ती होती 
सब छूट जाते हैं 
बारिश की बूंदें फिर नहीं आती 
वह बरसात याद जरूर रहती है 
वह भीगना और मस्ती भी 
ऐसे ही छूट जाते हैं 
दूर चले जाते हैं 
मिलने की आस होती है मिल नहीं पाते 
बस उनके साथ बिताए पल याद रहते हैं 
वह एहसास याद रहता है 

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