क्या पहनू क्या न पहनू
छोटे कपडे या बदन को ढकने वाले
कपडे
घर से बाहर निकलू या न निकलू
कितनी देर बाहर रहू
कब घर आऊ
बडे बाल रखू या छोटे
सब समाज तय करता
अब सरकार तय कर रही है
क्या खाऊ क्या पीऊ
फिर कौन - सी और कैसी आजादी
सबकी ईच्छाओं का ध्यान रखना
किसी की भावना न दुखे
पर हमारी ईच्छा और भावना का क्या
अंग्रजों ने तो हिन्दू - मुस्लिम को पशु के नाम पर अलगाया ही था
कारतूसों में उनकी चर्बी का इस्तेमाल कर
पर अब देश में क्या हो रहा है
कहीं छात्र बीफ फेसिटिवल मना रहे हैं
तो कहीं सरेआम गाय का बछडा काटा जा रहा है
यह आपस में वैमनस्य फैलाने के लिए
हिन्दू धर्म में गाय पूजनीय है पर सब धर्मों में नही
यहॉ तक कि दलित और पिछडी जातियों में उसका इस्तेमाल होता रहा है
नई पीढी को तो कोई फर्क नहीं पडता है
उनको स्वाद और खाने से मतलब है
गाय पूजनीय है पर इस मॉ को बुढापे में क्यों छोड दिया जाता है या बेच दिया जाता है
हम इतने निर्मम क्यों हो रहे हैं
गौ रक्षा हमको करनी है
हर धर्म से इसकी अपेक्षा क्यों करे
मवेशियों का कत्ल कोई नई बात नही है
हिन्दू धर्म में पशुओं की बलि देने का प्रथा रही
सृष्टि का भी यह नियम रहा है
सब प्राणी एक - दूसरे पर आधारित है
फिर इतना विवाद क्यों??
देश को सौह्द्रता के माहौल को बिगाडने की कोशिश
कहीं धर्म के नाम पर लोगों को लडाकर पार्टियॉ अपना वोटबैंक बनाने की कोशिश में तो नही लगी है????
पहले तो धर्म के नाम पर दंगे - फसाद होते थे
अब तो जातियों को भी लडाया जा रहा है
कब तक इस असुरक्षा के साये में आम इंसान रहेगा
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Wednesday, 31 May 2017
यह कैसी आजादी - खाने पर भी कानून का साया
हम भी कभी बच्चे थे
आ गया सुहावना मौसम
रिमझिम की सौगात के साथ
तन - मन को आह्लादित करता
बीते लम्हें याद आ गए
वह बारीश में भीगना
वह गढ्ढों में छप- छप करना
कीचड में लोटना
घंटों भीगना
पेड की टहनियों पर लटकना
गिरे हुए आमों को बटोरना
मुंह ऊपर कर बारीश के पानी को गटकना
पानी में नाव चलाना
आगे बढने की दौड लगाना
गिरना ,फिसलना और फिर हँसते हुए उठना
एक - दूसरे पर कीचड फेकना
न जावे कितनी शैतानियॉ
पर मन नहीं भरता था
घंटो मस्ती करना
साईकिल चलाना
फुटबाल खेलना
तैराकी और कुश्ती भी करना
आज बस याद रह गई है
खिडकी से बैठ कर निहार सकते है
बचपन के दिन तो कब के बीत गए
अब तो बच्चों के बच्चों को भीगता देखना
ऑखों में फिर नए ख्वाब उमडना
तमाम खुशियों को इनकी हँसी में तलाशना
मन ही मन मुस्कराना और सोचना
हम भी कभी बच्चे थे
Tuesday, 30 May 2017
जीवन अनमोल है
जीवन अनमोल है
परीक्षा तो पूर्ण जीवन पर्यंत चलती रहती है
हर बार सफल होगे या मनमुताबिक परिणाम मिलेगा
यह जरूरी तो नही
यह तो जीवन का पहलापायदान है
अभी तो बहुत सी सीढियॉ चढनी बाकी है
ऊपर की सीढी तक पहुंचना है
कभी पैर लडखडाएगे
कभी कुछ अडचन आएगी
पर ऊपर तो पहुंचना ही है
मंजिल को तो पाना ही है
पर वह कब???
जब यह अमूल्य जीवन रहेगा तब
हॉ प्र्रयत्न नही छोडना है
जो गिरेगा ,वही तो उठेगा
जो हारेगा ,वही तो जीतेगा
गिरना बडी बात नही है
इंसान है ईश्वर तो नही
रिजल्ट तो एक महज कागज का टूकडा है
पर यह याद रखना तुम किसी के कलेजे के टूकडे हो
तुम न रहोगे तो उनका क्या हाल होगा
वह तो जिंदा लाश बन जाएगे
तुम्हारे साथ ही हँसना- रोना
तुममे अपनी खुशी देखना
अपनी ईच्छाओं को तुम पर कुर्बान करना
तुममें ही जागना - तुममें ही सोना
तुम्हारी एक आवाज पर न्योछावर हो जाना
तुम न रहोगो तो किसके लिए जीएगे
जीवन का उद्देश्य क्या बचेगा
उनको मम्मी - पापा कौन कहेगा
अपने लिए नही अपने जन्मदात्री के लिए जीना है
जिसकी हर धडकन तुम हो
कुछ भी ऐसा न करना कि उनको चोट पहुंचे
तुम उनकी ऑखों के तारे हो
इस तारे को टूटने मत देना
हमेशा टिमटिमाते रहना
फिर परीक्षा दे लेना
उसका क्या है
पर उनके प्रेम की परीक्षा मत लेना
हर हाल में तुम ही उनके जीवन हो
यह बात कभी न भूलना
मैं जो चाहू ,वो करू मेरी मर्जी
मैं जो चाहू वह करू , मेरी मर्जी
सडक पर थूकू या मल- मूत्र विसर्जन करू
जितने चाहे उतने बच्चे पैदा करू
जोर- शोर से गाने लगाऊ
पत्नी को पीटू या सडक पर गाली- गलौज तरू
घर का कचरा बाहर नाली में डालू
पानी को जी खोल बहाऊ
बिजली को बिना कारण जलाऊ
अन्न को रास्ते पर फेकू
जानवरों को सताऊ
पेड- पौधे काटू
चाहे जो मन में आए ,वह करू
दिल्ली में देखा न पेशाब करने पर मना करने पर किस तरह रिक्शा चालक को मार डाला
लडकियों को छेडना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
जो विरोध करेगा
उसको बख्शा नहीं जाएगा
एक निर्भया क्या
यहॉ हर रोज निर्भया कांड होता है
कौन क्या कर लेगा
फुटपाथ पर धंदा तो हमको करना है
फुटपाथ किसी के बाप की है क्या??
सडक पर थुकू या गंदगी फैलाउ
यातायात के नियमों को धता देकर
तेज फर्राटे से गाडी चलाउ
मैं तो स्वंतत्र देश का नागरिक हूँ
स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है
इसे कोई नहीं रोक सकता
प्रधानमंत्री हो या दूसरा कोई
जो भी हमारे रास्ते में आएगा
उसको बख्शेगे नहीं
मौत के घाट उतार देगे
हम तो नही बदलेगे
सरकार जरूर बदल देंगे
सरकार तो हमारे ही रहमों करम पर चलती है
हम भ्रष्टाचार करेगे
लूटपाट करेंगे
अपराध करेंगे
बच्चों को नकल करवाएगे
घूस देंगे ,झूठ बोलेंगे
दादागिरी करेंगे ,माफिया राज चलाएगे
किसी की जमीन पर कब्जा करेंगे
कोई हमारा कुछ नही बिगाड सकता
पुलिस ,सरकार सब हमारी मुठ्ठी में है
ज्यादा किया तो हुलिया बिगाड देगे
क्योंकि मैं स्वतंत्र देश का स्वतंत्र नागरिक हूँ
Sunday, 28 May 2017
मैं कहॉ जाऊ
मैं महानगर में रहती हूँ
जंगल छोड यहॉ आई और यही की रह गई
पहले - पहल तो सब अंजान लगा
पर बाद में यही मुझे जान से भी प्यारा लगने लगा
झोपडपट्टियॉ ,गंदे नाले ,धुऑ उडाती गाडियॉ
सबसे घबराहट होती थी
कहॉ जंगल की स्वच्छ हवा ,साथी ,मनमौज
और कहॉ यह मुंबई
पर नाम सुना था तो खींची चली आई
बहुत ढूढते - ढढते सडक के किनारे एक विशाल पेड पर ठिकाना मिला
यहॉ मुझे बहुत से साथी भी मिले
मेरे बच्चों को भी छत मिली
हमारा परिवार मजे से रहता था
खाने - पीने की कमी न थी
बहुत से पूजा करने वाले पेड के नीचे चढा जाते थे
हमारा छोटा सा पेट भर जाता था
संग्रह करना तो था नहीं
कभी- कभी आसपास की इमारतों और छत पर भी फेरी लगती थी
हॉ दीपावली मेम फटाके फूटने और मकर संक्रात में मांझे नें फंसने के डर से हम पेड की डालियों में दुबके रहते थे
कभी कोई थका हारा मुसाफिर या साईकल चालक भी आकर सुस्ताते थे
बेघर लोगों का तो यही पेड घरबार था
समय गुजारते थे ,बच्चों के झूले बॉध कर रखते थे
पर आज इस पेड पर आफत आई है
सुना है मेट्रों की लाईन बिछाने के लिए इसे काटा जाएगा
हम तो बेघरबार हो जाएगे
और हमारा संरक्षक यह पेड काट डाला जाएगा
इसने कितना कुछ किया है
यही पर निवास किया , बीट किया
एक डाली से दूयरे डाली पर उछले
गर्मी ,वर्षा या ठंड
हर समय हमारी मदद की
हमें अपने पत्तों में छिपाया
हम तो इसके लिए कुछ नहीं कर सकते
विकास करना है तो कुछ का बलिदान भी होगा
उसमें तो यह शामिल है
पर काटते समय यह ध्यान रखना
इसी ने लोगों को छाया दी है
प्राणवायु दी है
ज्यादा निर्मम मत होना
मैं तो छोटी सी
कुछ कर भी नहीं सकती
सिवाय अपने घरौंदे को कटते और उजडते देख
Saturday, 27 May 2017
बचपन छूट गया
कहॉ गए वो दिन जब साईकिल के टायर से होड लगाते थे
उसी में खुश हो लेते थे
कभी कोई तो कभी कोई
पर आज न वे दोस्त रहे न हम
जिंदगी की आपाधापी में बचपन छूट गया
कुछ सपने खो गए कुछ धरे रह गए
नौकरी और गृहस्थी के चक्कर में इस कदर उलझे कि सब भूल गए
आज गाडी भी है और बाईक भी
पर समय नहीं है
सुकुन नहीं है
बस जीवनशैली को आगे बनाने की होड लगी है
उसक् पास इतना तो नेरे पास कितना
जिंदगी चक्रव्यूह बन गई
न समय है न दोस्त है न वह भोलापन है
बस काम है और पैसा है
आगे बढने की और पैसै कमाने नें सारी मासूमियत अलविदा कह गई
न वह लट्टू है बल्कि हमारा जीवन ही लट्टू बन गया
गोल- गोल घूम रहे हैं और जिंदगी घूमा रही है
अब तो कागा भी नहीं दिखता .
इंसान की बिसात ही क्या
सब अपने में मस्त है और व्यस्त है
हम वक्त की रस्सी के आगे नाचवे को मजबूर है
सरकार भी उत्सव की कतार में
आजकल हर उत्सव जोर- शोर से मनाने की प्रथा चल निकसी है
टेलीविजन सीरियल तो एक उत्सव हप्तों तक मनाती है
जैसे पहले लोग त्योहार नहीं मनाते थे ????
शादी- ब्याह पर भी संगीत और मेंहदी के नाम पर रूपये बहाए जाते हैं
द्रोण कैमरे से तश्वीरे ली जाती है
देवी- देवताओ के आलीशान पंडाल बनाए जाते है
मुर्तियॉ किसकी ,कितनी बडी हो
उसकी होड लग जाती है
रखरखाव और दिखावे में बिजली - पानी और पैसा खूब इस्तेमाल होता है
लाउडस्पीकर बजते रहते है
ध्वनि प्रदूषण होता रहता है
अब तो सरकारे भी इसमें पीछे नही रही है
कोई विकास रथ निकाल रहा है तो कोई सरकार के कार्यकाल के तीन वर्ष होने का उत्सव मना रहा है
यह सब बिना पैसों के तो होगा नहीं
विज्ञापन पर तो पैसे लगेगे ही
जहॉ लोगों को बिजली नहीं मिल रही हो
पीने का पानी न मयस्सर हो
किसान आत्महत्या कर रहे हो
माल न्यूट्रिशन की समस्या
भूखमरी की समस्या
बेकारी ,अपराध ,लूटपाट, बलात्कार
और वहॉ उत्सव
जनता के लिए वह पैसा खर्च हो
समय दिया जाय उनकी समस्या को सुलझाने में
न कि उनको घूम- घूमकर बताया जाय
क्या वह इतनी अनभिज्ञ है के वह काम करने वालों को न पहचान सके
पर बात भी सही है विज्ञापन का जमाना है
विज्ञापन भरमाता भी है
पर वह भी कितनी बार???
सत्य तो बदलेगा नहीं
हिसाब कौन मांग रहा है
अभी तो पॉच साल पूरे भी नहीं हुए
काम कीजिए जनता सर ऑखों पर बिठाएगी
जनता तो ऐसा ही नेता चाहती है
जो उनको दशा और दिशा दोनों दे
Friday, 26 May 2017
इतना आक्रोश कि मॉ की जान ले ली
मुंबई में एक पुलिस इंस्पेक्टर के बेटे ने मॉ की हत्या कर दी
रक्त से लिख भी दिया कि मैं त्रस्त हो गया था
मॉ से इतनी घृणा
पश्चाताप तक नहीं
क्रोध में हो जाता है हाथापाई में
पर जानबूझ कर
क्या हो गया है हमारी इस पीढी को
इतनी असहनशील
अपनी जान लेंगे या दूसरों की जान
दूसरा कोई वितल्प नहीं बचा इनके पास???
अपना जीवन या किसी और का जीवन मिटाने का अधिकार तो किसी के पास नहीं है
नहीं पढना था मत पढता
घर छोड कर चला जाता
अपने को साबित करता
पर वह कैसे करता
एकलौता बेटा था मॉ- बाप का.
मेहनत- मजदूरी कर नहीं सकते
बाप की कमाई पर ऐश करना
मिटना और मिटाना आसान है
जीवन को खडा करना मुश्किल
यह वारदात पहली भी नहीं है
आए दिन हो रहा है
मारने की सोच- समझ कर रणनीति बनाई जा रही है
और वह भी अपनो की
कभी जायदाद के लिए तो कभी टोकाटोकी के कारण
कोई भी रिश्ता भरोसे के काबिल नही रह गया है
दुश्मन से तो बचा जा सकता है पर अपनों से
घर में भी सुरक्षित नही है
कहॉ जा रहा हौ समाज
नैतिकता का पतन हो रहा है
तब तो यह सब होगा ही
राम का देश है जहॉ मॉ कैकई के कहने पर भाई के लिए गद्दी छोड दी
और भाई भरत ने भी उसे नहीं स्वीकारा
लडाईयॉ हो सकती थी पर नहीं हुई
कब किससे क्या अपेक्षा की जाय
बच्चे आत्मकेंन्द्रित हो रहे हैं
उनको ना सुनना और टोकाटोकी पसन्द नहीं है
वह स्वार्थी हो रहे हैं.
परिवार खत्म हो रहे हैं
जब समाज व्यक्ति केन्द्रित होगा तो ऐसी घटनाएं भी होगी
भ्रष्टाचार की गोद में बैठ गई ईमानदारी
भ्रष्टाचार जहॉ देखो वहॉ इसका बोलबोला
फिर वह घर में हो या बाहर
विद्या का मंदिर हो या फिर कानून व्यवस्था
सब उसकी भेट चढ गए हैं
ईमानदारी को जीने नहीं दिया जाता
उसका पहले ही गला घोट दिया जाता है
ईमानदार को या तो बेईमान बना दो
या फिर मौत के घाट उतार दो
यहॉ तक कि भ्रष्टाचार के विरोध में आए नेता आज सबसे बडे भ्रष्टाचारी बने बैठे है
सत्ता का सुख भोग रहे हैं
अब मुँह से आवाज नहीं निकलती
पहले धरना देते थे आज घर में छुप कर बैठ गए
पहले सडक पर लेट जाते थे
आज सडको पर जाम करा देते हैं
क्या कहा जाय
कौन सही कौन गलत
शेर के मुंह में खून लगने पर वह आदमखोर हो जाता है
वैसे ही सत्ता प्राप्त होने पर पैसे की खुशबू आने लगती है
इतना बना कर रख देते हैं कि कई पीढिया बैठ कर खाए
समाजवाद के नाम पर ,भ्रष्टाचार के नाम पर
सेवा के नाम पर ,सुधार के नाम पर
भेदभाव के नाम पर जनता को ठगना इनका पेशा बन गया है
यहॉ तक कि भगवान को भी नहीं छोडा
भगवान के नाम पर सत्ता हासिल कर अपना घर बना लिया पर भगवान अभी तक निर्वासित है
दलितो और पिछडो की राजनीति
अल्पसंख्यकों और धर्म की राजनीति
उसके बाद अपना घर भरना शुरू
और तब तक शोषण जब तक कि सब कुछ न भर जाय
जनता ठगी देखती रह जाती है और यह मजे से जीते हैं
तुम ही हो सर्वशक्तिमान
हम तो नादान है प्रभु
सफलता की उँचाई पर पहुँचे तो लगा यह तो हमने हासिल की है
जायदाद और संपत्ति हमारी मेहनत का फल
अच्छी औलाद हमारे कर्मों का फल
हर खुशी और प्यार के पीछे हमारे अपने
पर इसमें तुम कहॉ थे??
हॉ , जब- जब दुख आया तो तुमको दोष दिया
तुमको कोसा
हमारे साथ ही ऐसा क्यों???
पर आज उम्र के इस पडाव पर आकर लग रहा है
हम तो कहीं है ही नहीं
चलाने वाले तो तुम ही हो
अगर तुम चाहो तो पहाड गिरने पर भी जान बच जाय
और न चाहो तो एक कंकड भी जान ले ले
जो कुछ मिला है वह तुम्हारी कृपा से
याद है जब मॉ हार- फूलों की सेवा में नियमित मंदिर जाती थी तो वह बात नागवार गुजरती थी
चाहे घर में कुछ भी हो जाय पर यह मंदिर जाना नहीं छोडती
इतनी शिद्दत से तो हम नौकरी पर भी नहीं जाते जहॉ पैसा मिलता है घर चलाने के लिए
पर यह भूल जाती थी कि यह नौकरी हो या घर
यह तो परमात्मा की ही कृपा है
हम इंसानों की बात पर ध्यान देते हैं पर जिसने उसे बनाया है उसी को भूल जाते हैं
ईश्वर तेरी लीला अपरंपार है
तू न जाने क्या कराये
पर यह जरूर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना
हम तो तुम्हारे ही है , हमको मत भूलना
अपनी भक्ति देना तो शक्ति तो अपने आप मिल जाएगी
अब तो आ जाओ बरखा रानी
बढ रही गर्मी की तपन
छा गई चारो ओर उमस
अब तो सहना हो गया असह्य़
सब हो गए है पसीने से तरबतर
कब तक करे इंतजार
अब तो आ जाओ झमक- झमक
रिमझिम- रिमझिम करती
प्रेमल बूंदे बरसाती
सबको तृप्त करती
हरियाली लाती
पेड- पौधे सबकी आस जगाती
क्यों इतना तडपाती हो
हम तो स्वागत में ऑख बिछाए
हर बूंद पर खुशी जताते
भीगी फुहारों पर जान छिडकते
मदमस्त होकर नाचते
तुम्हारी काली घटाओं में डूब जाते
तुम्हारे इंद्रधनुषी रंगों पर न्योछावर हो जाते
आओ तो ,बरसो तो
फिर देखो सबके चेहरे पर खुशी
जल देकर जीवन दो
सबको प्रसन्न करो
ज्यादा मनुहार मत करो
अब तो आ जाओ बरखा रानी
Thursday, 25 May 2017
इंडिया बदल रहा है ,हमारी सोच भी बदलनी होगी
स्वच्छ्ता का नारा गॉधी जी ने भी दिया था
सुलभ शौचालय पहले भी बने थे
बेटियों को पढाने पर पहले से ही जोर दिया जा रहा था
भूण्र हत्या की मनाही थी
परिवार नियोजन कार्यक्रम चल रहा था
विज्ञान औ तकनीकी क्षेत्र में तरक्की भी की
बम ,रॉकेट और पनडुब्बी बनाई
युद्ध भी लडे और दुश्मन को मात भी दी
आई टी में अपना परचम फहराया
हर दलित और पिछडो को सबके समान बनाने काप्रयास हुआ
सडके बनी ,रेलगाडी चली और हवाई जहाज उडे
वोट का अधिकार हर व्यक्ति को मिला
शिक्षा घर- घर तक पहुँची
औरते घर से बाहर निकली
आज हर क्षेत्र में अपना परचम फहरा रही है
बराबरी का हक मांग रही है
बहुत कुछ बदला है
आज हर हाथ में मोबाईल है
कार और घर अब सपना नही है
हर व्यक्ति अपने अधिकार से वाकिफ है
अब पुलिस और कानून हौआ नहीं है
औऱ यह सब हुआ है
उसको तो झुठलाया नहीं जा सकता
भ्रष्टाचार भी बढा साथ में
पर उसका जिम्मेदार कौन ,क्या केवल नेता???
गंदगी फैलाने वाले कौन ???
बलात्कार और अपराध को अंजाम देनेवाले कौन??
यह तो हममें से ही लोग है
व्यवस्था को दोष देना और अपना पल्ला झाड लेना
यह तो सरासर गलत है
बहुत कुछ पहले भी हुआ और बहुत कुछ आज भी हो रहा है
इंडिया बदल रहा है
तो हमारी भी सोच बदलनी होगी
वाणी की स्वतंत्रता ???पप्पू संबोधन पर चुनाव आयोग
हम स्वतंत्र है
बोलना हमारा मौलिक अधिकार है
पर हम क्या कुछ भी बोल सकते है?
किसी पर भी टिप्पणी कर सकते है?
किसी भी हद तक
क्या इसे स्वीकार करना चाहिए?
प्रजातंत्र है
अपनी बात को रख सकते है?
क्या हम दूसरे की आवाज को दबाकर उसके अधिकार का हनन नहीं कर रहे हैं
शब्दों और वाक्यों को तोड- मरोड कर पेश करना यह भी एक पेशा बन गया है
पक्षपात सरेआम दिखाई दे रहा है
दूरदर्शन पर पार्टी के प्रवक्ता आते है वहॉ पर भी यह दिखाई देता है
हम राष्ट्र भक्त है और दूसरे सब देशद्रोही है यह मानसिकता चल रही है
क्या राष्ट्र भक्ति का प्रमाणपत्र देना होगा और वह भी हर बार
हर कोई अपने नजरिये से देखता है और अपनी बात रखता है पर इसका मतलब यह नहीं कि वह देशद्रोही है
ऐसा भी नहीं है कि देश का विकास नहीं हुआ
केवल तीन साल में तो यह सब नहीं हो गया
विपक्ष को दबा देना ,उसे खत्म करना
यह तो देश के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही होगा
व्यक्ति और उसके काम को शब्दों और वाक्यों से मत आका जाय
बडबोलापन का मतलब काम नहीं होता
हम ही श्रेष्ठ है बाकी सब बेकार
किसी पार्टी के नेता को पप्पू कहकर बुलाना
हॉ मतभेद है वह सभा वगैरह में जिकर कर दे पर एक को बुद्धू बनाने में कोई कसर न छोडे
मजाक उडाना यह तो स्वस्थ राजनीति का लक्षण तो नहीं
बात की जगह काम करे.
काम की ही कद्र होती है
बोलना चाहिए पर वह भी हद में रहकर
श्रोता इतना मूर्ख नहीं है.
और फिर वक्त तो किसी को नहीं बख्शता
अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर लाना तो इसकी फितरत है
ज्यादा गुमान करना भी अच्छा नहीं
कम से कम व्यक्ति की उम्र - तजुर्बे और काबीलियत का तो सम्मान करना चाहिए
चाहे वह कोई भी क्यों न हो
पहले अपने गिरेबान में झॉककर देखे कि हम क्या है
और यह बात हमारे राजनेताओं को भलिभॉति समझ लेना चाहिए.
Friday, 19 May 2017
नहीं रही चित्रपट जगत की खूबसूरत मॉ
रीमा लागू का निधन
विश्वास नहीं हुआ
दिल के दौरे से मृत्यु
अभी इतनी भी उम्र नहीं थी जाने की
६० को भी पार नहीं किया था
एक समय मॉ मतलब बूढी होना
रीमा ने इसे बदल दिया
वह उर्जावान ,खूबसूरत और जवान मॉ बनी
पर क्या पता था कि यह सदाबहार अभिनेत्री
ऐसे ही चली जाएगी
अभिनय में वह पडाव पार कर लिया कि लोग इनके कायल हो गये
मॉ का नाम आते ही जेहन में निरूपा रॉय के बाद अब यह छा गई थी.
लोगों के दिलों पर राज करने वाली यह नायिका अपने अभिनय और एक मॉ के रूप में सदा जानी जाएगी
उनकी जगह कोई नहीं ले सकता
शायद उनकी भगवान के दरबार में भी युवा और हँसती - मुस्कराती मॉ की दरकार होगी
ईश्वर उनकी आत्मा को शॉति प्रदान करे
Wednesday, 17 May 2017
बदल रही है इंडिया की सोच
आजकल दूरदर्शन पर एक विज्ञापन आ रहा है जो है तो शीत पेय का पर काफी कुछ कह जाता है
लडके वाले अपनी मांग रखे उसके पहले ही लडकी बोल उठती है -- पचास लाख रूपये ,एक फ्लेट और एक लंबी सी गाडी
लडके वाले मुँह ताकते रह जाते हैं
बदल रहा है इंडिया का स्वाद
पर क्या सचमुच बदल रहा है शायद हॉ
कुछ लोग भी बदले तो देखादेखी और लोग भी बदलेगे
लडकियॉ अब पहल कर रही है
दब नहीं रही है
अपनी शर्तों पर विवाह कर रही है
पर यह कुछ ही है पर सब जगह होना चाहिए
लडकों को भी साथ देना चाहिए