डर लगता है आजकल
खबरों की भरमार
बस बीमारी और मृत्यु
इसके सिवा कुछ खबर ही नहीं
अखबार उठा लो
पूरा अखबार इसी से पटा - भरा
टेलीविजन खोल लो
वही सब एक के बाद एक
सोशल मीडिया पर देख लो
लगता है जीवन कहीं गुम है
भय और निराशा
उदासी और घबराहट
ऐसा तो है नहीं
हम मृत्यु से परिचित नहीं
बीमारी से परिचित नहीं
पर ऐसा डर कभी नहीं लगा
यह तो अचानक आ रही है
कब और कहाँ से
यह भी खबर नहीं
डर और खौफ के साये में जीवन
ऐसा तो कभी नहीं रहा
फिर भी आशा है विश्वास है
यह भी जाएंगी
यहाँ कोई स्थायी नहीं
बीमारी भी नहीं
तब सकरात्मक बने रहना हर किसी की जिम्मेदारी
लोग ठीक भी हो रहे हैं
घर भी जा रहे हैं
पहले जैसा सामान्य जीवन भी जी रहे हैं
सब साथ खडे हैं
डाॅक्टर - नर्स , पुलिस - प्रशासन
समाजिक कार्यकर्ता , समाज सेवी संस्थानें
हिम्मत बनाए रखना है
आज नहीं तो कल हमारा ही है
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Friday, 30 April 2021
आज नहीं तो कल हमारा ही है
मिठास की बात ही कुछ और है
शहद की मिठास
बोली की मिठास
दोनों ही मिठास से भरी
दिल दिमाग पर छायी
सुना है कितना भी पुराना शहद हो
वह खराब नहीं होता
दिन प्रतिदिन वह और मिठास में पगता जाता है
वही बात तो वाणी के संदर्भ में भी है
इसका प्रभाव भी सालों साल रहता है
वह मिठास से भरा हो या कटुता से
कटु वाणी ने तो महाभारत तक करा दिया है
सुमधुर वाणी ने दिल पर ऐसा प्रभाव डाला है
वह सालों साल कायम है
अपने वश में करना हो तब वाणी से बडा कोई प्रभाव शाली अस्त्र - शस्त्र नहीं
मिठास और कडवाहट
दोनों की अपनी - अपनी तासीर
पर मिठास की बात ही कुछ और है।
संगीत बिना सब नीरस
गीत गुनगुनाती हूँ मैं
जब भी मन उदास होता है तब भी
खुश होता है तब भी
कहीं न कहीं मन को सुकून मिलता है
इन गीतों में कुछ ऐसी बात तो हैं
जो अपने से लगते हैं
सुख में भी दुख में भी
सोचती हूँ
यह भी शायद किसी के दिल से निकली होगी
कोई साथी हो या न हो
गीत हमारे साथी हमेशा के हैं
इसलिए तो ये सदाबहार होते हैं
बरसों पहले भी जो गीत लिखा गया
आज भी वह समसामयिक है
कानों को भाते हैं
मन में प्रेम के फूल खिलाते हैं
ऑखों में ऑसू ला देते हैं
कभी-कभी मस्ती के मूड में भी ले आते हैं
अकेलापन हो
भीड़ में हो
पिकनिक में हो
बस में हो
ट्रेन में हो
ऑटो में हो
रेडियो पर हो
टेलीविजन पर हो
आज तो इयरफोन और मोबाइल का जमाना है
सुमधुर संगीत तो हर दिल को भाता है
संगीत में इतनी बड़ी शक्ति
वह सबको अपने वश में कर लेता है
उसके बिना तो दुनिया नीरस
Wednesday, 28 April 2021
प्यार तो प्यार है
हर कोई ताजमहल बनाना चाहता है
अपनी प्रियतमा के लिए
पर हर कोई शाहजहाँ नहीं होता न
वह प्यार तो करता है जी जान से
पर वह बादशाह तो नहीं है न
वह भी चाहता है अपनी मुमताज के लिए कुछ करना
पर उसकी उतनी औकात तो नहीं न
शाहजहाँ न बने मांझी ही बने
जिसने पहाड़ खोद रास्ता बना दिया
किसी मजदूर और कारीगर के दम पर नहीं
पैसों - रुपयों के दम पर नहीं
अपनी मेहनत के बल पर
एक ने न जाने कितनों के हाथ कटवा दिए
एक ने सबके लिए रास्ता बना दिया
एक केवल सौंदर्य की धरोहर रह गया
दूसरा रोजमर्रा के उपयोग का हो गया
प्यार तो प्यार ही होता है
अमीरी-गरीबी से उसका नापतौल नहीं हो सकता
राजा हो या मजदूर
उसका प्यार तो प्यार ही होता है
एक हीरो के हार देता है
दूसरा दो जून रोटी का इंतजाम करता है
दोनों ही अपनी प्रियतमा के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं
प्यार कोई व्यापार नहीं
उसका कोई मोल तोल नहीं
किसका कम किसका ज्यादा
प्यार तो बस प्यार है
वसुधैव कुटुंबकम
मुझे मेरा देश प्यारा लगता है
मुझे मेरा प्रान्त प्यारा लगता है
मुझे मेरा गाँव प्यारा लगता है
मुझे मेरा शहर प्यारा लगता है
मुझे मेरी गली प्यारी लगती है
मुझे उस गली के छोर पर बना घर प्यारा लगता है
इन सबसे एक लगाव है दिल से
जहाँ एक अपनेपन की खुशबू बसती है
एक सुकून सा मिलता है
लगता है यह अपना है
पडोसी , रिश्तेदार , पाठशाला , बनिये की दुकान
यह सब परिचित है
यहाँ तक कि दूधवाला , फूलवाला माली , पाव और ब्रेड वाला , वाॅचमैन , सब्जी वाला
सबसे एक लगाव सा है
कहीं न कहीं अपने लगते हैं
सही भी है
ये वह सहयात्री हैं जो जीवन को आसान बनाते हैं
हर जरुरते पूरी करते हैं
इनके बिना काम नहीं चल सकता
देखा जाए तो हम मानव हैं
सब एक - दूसरे से जुड़े हुए हैं
पूरा विश्व ही हमारा है
कोई किसी से अलग नहीं रह सकता
सब एक - दूसरे से बंधे हुए हैं
कोई किसी से तो कोई किसी से
कितने भी आत्मनिर्भर बन जाएं
फिर भी कहीं न कहीं
कुछ हद तक दूसरों पर रहना ही पडेगा
वैसे भी हमारा स्वभाव है
अकेला रहना हमें भाता नहीं
जो मजा सबके साथ है वह अकेले में कहाँ??
वसुधैव कुटुंबकम
Tuesday, 27 April 2021
कब वह पहले जैसी बात हो
कैसी है मजबूरियाँ
नजदीकी बन गई दूरियाँ
न जाने किसकी नजर लगी
अजनबी हो गई दुनियां
धर कर गई एक अंजान बीमारी
सबकी हो गई हालात पतली
हर मन में बैठा डर
जो आदमी को कर रहा आदमी से दूर
हवा के रास्ते करती प्रवेश
और हवा को ही कर देती अवरुद्ध
सांस लेना मुश्किल कर देती
सीधे गले और फेफड़ों पर करती प्रहार
जानलेवा बन जाती
सब एक - दूसरे को सचेत कर रहें
मुख पर मास्क लगा रहे
दो गज दुरी भी रख रहे
तब भी कुछ फर्क नहीं पड़ रहा
यह तो फैलता ही जा रहा ।
अब तो बहुत हो चुका
कब इस बीमारी से निजात मिले
कब यह मास्क हटे और खिलखिलाते चेहरे दिखे
कब अपने अपनों के गले मिले
कब हाथ में हाथ ले बातें हो
कब बच्चों से पाठशाला गुलजार हो
कब बाजार पटे रहे
कब ग्राहक निश्चिंत हो घूमें
कब दोस्तों और रिश्तेदारों संग पार्टियाँ और जश्न हो
कब सिनेमा हाॅल सीटियों से गूंजे
कब युवा जिम में अपना पसीना बहाए
कब समुंदर किनारे युगल हाथों में हाथ डाल घूमें
ऐसा बहुत कुछ जो बंद है
सब बीमारी की गुलामी के डर में है
कब निजात हो
कब जिंदगी पहले जैसी पटरी पर लौटे
बस अब बडी शिद्दत से इंतजार है
मेरा आज मेरा कल
मैं गिरता रहा
उठता रहा
गिरता रहा
लडखडाता रहा
संभलता रहा
उठने की कोशिश करता रहा
बैठा नहीं न बैठने की कोशिश की
पहुंचना था कहीं ऊंचाई पर
हार कैसे मानता
आखिर पहुँच ही गया
मंजिल मिल ही गई
ऊंचाई से जब नीचे की ओर देखता हूँ
तब देखता ही रह जाता हूँ
अपने पर ही मंत्र मुग्ध
यकीन नहीं होता
यह मैं ही हूँ
सब पिछले दृश्य मानस पटल पर
एक - एक घटनाएं जेहन में
फिल्म की पूरी रील सी घूमती हैं
सारे संघर्ष
सारी जद्दोजहद
सारी परेशानी
सारी उपेक्षा
सब कुछ ऑखों के सामने
विचलित हो जाता है मन कुछ क्षण भर
पर दूसरे ही क्षण छू मंतर
गिरता नहीं तो उठता कैसे
लडखडाता नहीं तो संभलता कैसे
सपने नहीं देखता तो साकार करता कैसे
उपेक्षित नहीं होता तो कामयाब कैसे
आज उन सबका शुक्रिया
जिन्होने मुझे गिराया
मेरी उपेक्षा की
मुझे कमतर समझा
मेरे पग पग पर रोडे अटकाए
अगर ये लोग नहीं होते
तब मैं भी शायद वह नहीं होता जो आज हूँ ।
जब तक सांस तब तक आस
बहुत कुछ देखा
बहुत कुछ सुना
बहुत कुछ समझा
बहुत कुछ सहा
फिर भी जंग जारी रहा
हार माना नहीं
जो करना था वह किया
जो होना था वह हुआ
हर फैसला सही हो
यह जरूरी तो नहीं
फैसला हमारा है
तब परिणाम के जिम्मेदार भी हम ही
क्या गिला और शिकवा
और किससे
भाग्य से भगवान से
क्या हासिल होगा
डरे तो नहीं
डटकर खडे रहें
मैदान छोड़ भागे तो नहीं
कायराना हरकत तो नहीं की
जिंदगी के हर मुकाम का मुकाबला
यह कला हर किसी के पास नहीं होती
युद्ध लडो या मैदान छोड़ भागों
असली योद्धा वह जो रणभूमी में डटकर खडा रहें
वह तो हमने किया
आज भी डटे हैं जिंदगी के मैदान में
अंतिम सांस तक
क्योंकि जब तक सांस तब तक आस
फिर भी है जीने की आस
सांसों में अटकी जिंदगी
फिर भी है जीने की आस
जिंदगी का ताना - बाना बुनना
भविष्य के सपने देखना
कुछ कर गुजरने का जज्बा
हार नहीं मानना
माथे पर शिकन नहीं
आशा रखना
सब कुछ ठीक हो जाएगा
यह वक्त भी गुजर जाएंगा
अंधेरा कितना भी घना हो
उसकी सुबह तो निश्चित है
तूफान कितना भी प्रलयंकारी हो
उसका रूकना तो निश्चित है
यह हमेंशा के लिए नहीं
हाँ अपना प्रभाव अवश्य छोड़ जाते हैं
पर जिंदगी भी कहाँ हार मानती है
वह भी तो गजब की जिद्दी है
गिरती है संभलती है
फिर उसी जज्बे के साथ उठ खड़ी होती है
कोई उसे डिगा नहीं सकता
इतिहास गवाह है
जिंदगी ने कभी हार नहीं मानी
न जाने कितने और कैसे कैसे पतझड़ देखे हैं
फिर भी वसंत का इंतजार किया है
फिर मुस्कराई है
फिर खिलखिलाई है
सांसों की डोर को कस कर थामे रखी है
कहीं फिसल न जाए
सांसों में अटकी जिंदगी
फिर भी है जीने की आस
Monday, 26 April 2021
हमारे यहाँ तो सब ठीक-ठाक है
अरे । बीमारी - वीमारी कुछ नहीं
हमारे यहाँ तो सब ठीक-ठाक है
यह सब फालतू की बातें हो गई है
सब टेलीविजन और मीडिया की कारस्तानी है
न जाने क्या - क्या दिखाते हैं
बस इनको अपनी दुकान चलानी है
अगर स्कूल बंद है तो क्या हो गया
कौन सी पढाई खराब हो रही है
साल बर्बाद हो रहा है तो होने दो
जान से बडा तो कुछ भी नहीं है
पढ - लिखकर क्या होता है
कलेक्टर तो बनना नहीं है
बेकारी के आलम में घर में ही तो बैठना है
चुनाव है तो प्रचार तो करना ही पडेगा
नेताजी का साथ तो देना ही पडेगा
रैली और सभा में शामिल होना पडेगा
तभी तो मुर्गा और शराब का जुगाड़ होगा
थोड़ा सा पास पास आ गये
तो क्या फर्क पडता है
कौन सी आफत आने वाली है
अब पाप बढ गये हैं
तब गंगा में धोना ही पडेगा
कुंभ में डुबकी लगानी ही पडेगी
आस्था के समंदर में बीमारी की क्या बिसात
एक साथ लाखों लोग लगाएंगे
सब गंगा में विसर्जित करेंगे
बीमारी तो आप ही भीड़ देख भाग जाएंगी
किसान आंदोलन चल रहा है
चलने दो
देश का अन्नदाता सडकों पर है
उसकी मांग क्यों मानें
वह तो ऐसे ही मरता रहता है
अगर बीमारी से मर गया
तो क्या बिगड़ जाएंगा
कुछ दिन रो कर सब चुप हो जाएंगे
ऑक्सीजन की किल्लत है
सरकार क्या करें
अस्पताल में बेड की कमी है
सरकार क्या करें
दवाईयों की दुकान पर दवाई नदारद है
सरकार क्या करें
यही तो कमाने का समय है
कालाबाजारी की बाढ है
भ्रष्टाचार की ऐसी की तैसी
सब कुछ यथावत चल रहा है
कब तक घर में बैठे
मास्क लगाएं
नियमों का पालन करें
दूरी बनाकर रखें
जीए की नहीं
सब पगला गये हैं
दिमाग फिर गया है
मजे से घूमो - फिरो
मिलना - मिलाना छोड़ दे
रिश्तेदारों के यहाँ न जाएं
शादी - ब्याह में धमा - चौकडी न करें
त्यौहार और उत्सव न मनाएं
तब करें तो क्या करें
बस घर में बंद हो
सोशल डीशस्टिंग का पालन करें
सब ढकोसले हैं
सबकी मिली भगत है
अरे । बीमारी - वीमारी कुछ नहीं
हमारे यहाँ तो सब ठीक-ठाक है
रह गए हम और तुम
आज चेहरे पर हाथ फेरा
चेहरा खुरदरा सा लगा
सोचा कुछ लग गया है
शीशे में देखा तो झुर्रिया
बालों में पहले ही सफेदी
चलने में भी लाचार
लगा कितना परिवर्तन
सब बदलता रहता है
जिस शरीर पर नाज था
वह दिन प्रतिदिन क्षीण होता जा रहा
आगे क्या होगा
यह तो कोई नहीं जानता
सब बदला पर कुछ कुछ नहीं बदला
वह था तुम्हारा प्यार
तुम्हें तो आज भी मैं वैसी ही लगती हूँ
कोई फर्क नहीं पड़ता
आज भी वही हो जो बरसों पहले थे
परिवर्तन तो तुममें भी
बालों में सफेदी
दांतों का टूटना
पहले जैसा जोश नहीं
क्रोध भी कम पड रहा
पहले मेरी बातों को नहीं सुनते थे
अब तो मेरे ही इर्द-गिर्द
साथी छूट रहें
अब तो मैं और तुम एक ही धरातल पर खडे
तुम्हें मेरी और मुझे तुम्हारी जरूरत
सब बदल गया है
रिश्ते - नाते अपने मे मशगूल
रह गए हम और तुम ।
Sunday, 25 April 2021
अब तो कृपा करों हे पालनहार
अब तो कृपा करों हे पालनहार
सब जगह मचा है हाहाकार
नहीं सूझ रहा किसी को कुछ
सब है डरे डरे से
सबका मन है सहमा - सहमा
कब क्या हो
यही सोच मन घबराता
रहेंगे - बचेंगे
बिछुडेगे - खोएंगे
जान आफत में है
सांस पर बन आई है
सरकार लाचार
शासन - व्यवस्था लाचार
डाॅक्टर लाचार
सब हैं मायूस
है संकट की घड़ी बडी
सब है किंकर्तव्यविमूढ़
आज हैं कल का कोई पता नहीं
मरीजों से अस्पताल भरे पडे हैं
श्मसान पर लाशों के ढेर लगे हैं
सारी बुद्धिमानी सारा ज्ञान
सब धरा का धरा
विज्ञान भी है असहाय
मृत्यु के मुहाने पर खडा हर व्यक्ति
डर से घर में बंद है
फिर भी वायरस का प्रकोप जारी है
कहीं न कहीं से
प्रवेश कर रहा है
लोगों की जान लील रहा है
कब तक यह मौत का तांडव चलेंगा
हे तारणहार अब तो
नहीं दिखता कोई सहारा
इतना बेबस इतना लाचार
हो गया है इंसान
अब तो दया करों
आओ देवदूत बनकर
पृथ्वी के जीवों का दुख दूर करों
तुम्हारी कृपा अपरम्पार
जिस पर हो जाएं
सब संकट दूर हो जाएं
बालक संकट में है हे परमपिता
अब तो इससे उबारो
इस करोना से मुक्ति दिलाओ
भक्तों की मदद करों
सब पुकार रहे हैं त्राहिमाम त्राहिमाम
इस त्रासदी को दूर करों
अपना वरदहस्त सब पर रखों
यह जग फिर मुस्कराए - खिलखिलाएं
जिंदगी की डोर तुम्हारे हाथ में हे दीनानाथ
दुखियों का दुख दूर करों
हाथ जोड़ कर कर बद्ध प्रार्थना है तुमसे
अब तो अपनी कृपा बरसाओ
सभी को इससे मुक्ति दिलाओ
जीवन एक इंद्रधनुष है
आज गम कल खुशी है
जीवन एक इंद्रधनुष है
न जाने कितने रंग समाए
हर रंग की अपनी एक कहानी है
कभी हंसता कभी रोता
यह समय के साथ बहता जाता
इसका न कोई ओर छोर
यह अपने आप एक पहेली है
कल क्या हो
यह कोई नहीं जानता
कब और कैसे
यह भी खबर नहीं
कब आसमान पर बादल छा जाय
कब छंट जाय
यह भी तो पता नहीं
घना कोहरा छाया हो
उसमें भी आशा की एक किरण
कब रंग धूमिल पड जाय
कब झिलमिल झिलमिल करने लगे
कब तारों की बारात निकले
कब चंदा की चाँदनी दूधिया रंग बिखेरे
कब सूरज की लालिमा जीवन को रास आ जाएं
कब बरखा रानी फुहारो की बरसात करें
तपती धरती को तृप्त करें
कब जीवन में इंद्रधनुषी छटा निखरे
यह कोई नहीं जानता
आज गम कल खुशी है
जीवन एक इंद्रधनुष है
आ गए आम
आ गए आम । अब तो हर रोज होगा इसका इस्तेमाल
कभी चटनी कभी लौंजी खट्टी- मीठी
कभी दाल में कभी कढी में
अभी कच्चा है कुछ दिन में पक जाएंगा
रहता है चार महीने
खट्टी - मीठी यादें छोड़ जाता है साल भर
तभी तो इसका इंतजार रहता है
आम आया कि चेहरा खिला
ऐसे ही फलों का राजा नहीं कहलाता यह ।
एक पौधा
आंधी - तूफान , जोरदार हवा के थपेडे
न जाने कितनी बार गिरा
फिर सीधा किया गया
बच्चों से बचा , पशुओं से बचा
किसी तरह धीरे-धीरे खडा हुआ
अपनी जड को नहीं छोड़ा
जमा रहा उसी का परिणाम है
आज मैं खिला - खिला
एक फूल फूला है , कल हो सकता है अनगिनत
मैं और बढू- फैलू
यह तभी संभव जब मैं अपनी जड से जुड़ा रहूँ।
जीवन एक कहानी
जिंदगी एक कहानी है
कहाँ से शुरू कहाँ पर खत्म ??
हर दिन कहानी का एक नया अध्याय
एक खत्म तो दूसरा शुरू
हर कथा कहानी के कुछ अध्याय
इसके बाद कथा समाप्त
सब अपने - अपने घर प्रस्थान
फिर वह भगवान की हो
फिल्मों की हो
टेलीविजन मलिका की हो
कभी न कभी खत्म होना ही है
कोई एक घंटे
कोई तीन घंटे
कोई दो साल
पर यह कहानी तो साथ - साथ चलती है
कब कौन सा रूप लेंगी
कब करवट बदलेगी
कब देखते देखते खत्म करेंगी
इसका अंत कोई नहीं जानता
सुखांत या दुखांत
बस एक प्रश्न चिन्ह
क्यों कि यह कहानी हमने नहीं लिखी है
भाग्य ने लिखी है
ऊपर वाले भाग्य-विधाता ने लिखी है
तब तो आरम्भ और अंत उसी के हाथ में
हम तो बस पात्र है
वह भूमिका दे रहा है हम निभा रहे हैं
कितना अच्छा अभिनय हम कर पाते हैं
कितने अच्छे कलाकार हम
सुख - दुख , गम और खुशी
वह किस तरह निभाते हैं
यह हम पर निर्भर है
कहानी भी उम्र भर की है
जब तक जीवन है , आखिरी सांस है तब तक
अन्न का अपमान यानि अन्नदाता का अपमान
एक तरूण जो थाली चाट डालता था खाते वक्त। एक भी अन्न का दाना नहीं रहता था उसकी थाली में। खाना कैसा भी हो कभी मीन मेख नहीं निकालता था । सब आश्चर्य थे उसकी इस आदत पर ।घरवाले और बाहर वाले भी ।
कोई कोई तो उसे भुक्खड भी समझ लेते थे ।
एक दिन किसी दोस्त ने मजाक मजाक में पूछ लिया
उत्तर जो मिला उससे वह अनुत्तरित हो गया ।
पहला कारण मेरे पिता बहुत मेहनत से हमारे लिए भोजन जुटाते हैं। दिन रात मेहनत करते हैं। उनके पसीने की कमाई है ।उसे मैं जाया नहीं कर सकता । नसीब वाला हूँ कि उनके कारण हमें दो वक्त का भोजन नसीब होता है।
दूसरा कारण मेरी माँ बहुत प्यार से भोजन बनाती है परोसती है ।दिन रात इसी चिंता में रहती है कि मेरे बच्चों का पेट भरा या नहीं ।अपनी नींद और सुख चैन त्याग करती है तब यह स्वादिष्ट भोजन मिलता है।
तीसरा कारण है हमारे देश के किसान । दिन - रात एक कर , खेतों में पसीना बहा , मौसम की मार सहकर अन्न उपजाता है इस अनमोल अन्न का अपमान मैं कैसे कर सकता हूँ ।
उनसे पूछो जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती ।पशु से भी बदतर जीवन जीते हैं ।ईश्वर की कृपा से भोजन मिल रहा है वह भी प्यार , अपनेपन और सम्मान से । वह भोजन मैं कैसे छोड़ सकता हूँ जिसमें
मेरे पिता की मेहनत और माँ का प्यार समाया हो ।
Saturday, 24 April 2021
दिनकर जी की कविता
*राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर*
*।। कोई अर्थ नहीं।।*
नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
तब सुख के मिले समन्दर का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं*।।
जब फसल सूख कर जल के बिन
तिनका -तिनका बन गिर जाये,
फिर होने वाली वर्षा का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*
सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*
छोटी-छोटी खुशियों के क्षण
निकले जाते हैं रोज़ जहाँ,
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*
मन कटुवाणी से आहत हो
भीतर तक छलनी हो जाये,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*
सुख-साधन चाहे जितने हों
पर काया रोगों का घर हो,
फिर उन अगनित सुविधाओं का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*
:::बहुत सुंदर मार्मिक ह्रदयस्पर्शी कविता
एक तेजाब पीडित लडकी की व्यथा
तुम मुझसे मोहब्बत करते थे
यह मैं तो नहीं जानती थी
पर तुम तो जानते थे
एकतरफा प्यार था तुम्हारा
मुझे तो पता भी नहीं था
पता तो तब चला
जब तुमने इजहार किया
मैंने भी इन्कार किया
प्यार कोई खेल तो नहीं होता
वह जबरन भी नहीं होता
तुम मैसेज करते थे
तुमको मेरी ऑखे अच्छी लगती थी
तुमको मेरे कान के बूंदे अच्छे लगते थे
तुमको मेरे माथे पर की लट अच्छी लगती थी
मेरे लहराते बाल अच्छे लगते थे
मेरा सांवला सा रंग अच्छा लगता था
मेरे ओठ अच्छे लगते थे
मेरी हर अदा अच्छी लगती थी
मैंने भी तुम्हे तवज्जों नहीं दी
सोचा कोई सिर फिरा आशिक है
अपने आप ही बदल जाएं गा
पर यह क्या ??
तुमने तो मेरी पूरी दुनिया ही बदल दी
मुझ पर तेजाब डाल दिया
मेरा चेहरा वीभत्स कर दिया
आज ऑखे धंस गई हैं
ओठ टेढे हो गए हैं
नाक दब गई है
त्वचा जल गई है
केश झुलस गए हैं
पूरे शरीर में जलन ही जलन
तुम्हें मेरे जिस रूप से प्यार था
उसको ही खत्म कर दिया
प्यार तो त्याग का नाम है
उसमें जान ली नहीं जाती
दी जाती है
पर इतना घिनौना कृत्य
जेल की सलाखों के पीछे हो
एक न एक दिन बाहर आ ही जाओगे
मैं तो पडोस में ही हूँ न
हर रोज तुम्हें अपना चेहरा दिखाऊंगी
तुमको याद दिलाऊगी
पल - पल सोचने पर मजबूर करूंगी
पूछूगी
क्या अब भी प्यार है मुझसे
अब तो मुझसे इस रूप के साथ कोई प्यार करने से रहा
तुम सचमुच प्यार करते थे तो अब भी करों गे
प्यार तो आत्मा से होता है न शरीर से नहीं
पर पता है तुम यह नहीं कर पाओगे
मेरी जिंदगी तबाह की है न
तुम्हारी भी कभी आबाद नहीं होगी
यह एक धधकती आत्मा की बददुआ है
जो कभी पीछा न छोड़ेगी
लाख यतन करों
जेल से मुक्त हो जाओगे
पर इस अपराध बोध से नहीं
अगर मानव होंगे तो ??
इंसान अब समझदार हो गया है
कितना अकेला हो गया है
इंसान अब समझदार हो गया है
दो गज की दूरी बना रहा है
मास्क से चेहरा ढक रहा है
पल - पल पर हाथ धो रहा है
सेनेटाइज कर रहा है
जिस अल्कोहल से घृणा थी
अब वही हाथ पर मल रहा है
गले मिलना और हाथ मिलाने से कतराने लगा है
पार्टी और मौज मजा
दोस्तों संग गपशप
अब भूली बिसरी याद बन गए हैं
शादी - समारोह में अब गिन कर शामिल करना है
अंतिम बिदाई में भी दूर ही रहना है
भगवान के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं
भगवान तो स्वयं कपाटों में बंद हो गए हैं
कैसे और कब उनसे दुआ मांगे
वे तो ऑख से स्वयं ही ओझल हैं
पडोसी - रिश्तेदार से अब दूर ही रहना है
क्योंकि जान का खतरा है
अपनी जान सलामत और दूसरों की भी सलामत
यह बात ध्यान रखना है
जीना है तो सब कुछ करना पडेगा
वक्त के साथ चलना पडेगा
जान है तो जहान है
यह बात हर किसी को पता है
तभी तो
कितना अकेला हो गया है
इंसान अब समझदार हो गया है
Saturday, 17 April 2021
प्रधान जी प्रधान जी करेंगी
आ गया पंचायत चुनाव
सरगर्मी तेज
हर दूसरे दिन फेरी
उम्मीद वार के साथ चलता रेला
जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे गूंज रहे
सब बहलाने - फुसलाने में लगे
बांटा भी जा रहा खिलाया भी जा रहा
मुर्गा और शराब
यह इनके हथियार
इन्हीं से लुभाया जा रहा
कोई अभी खर्च कर रहा
कोई आश्वासन दे रहा
जीतने पर खर्च
जनता का क्या है
कभी इसके कभी उसके
आभास नहीं होने देती
कौन किसके साथ
कौन जीतेगा
हर टोले- मोहल्ले में जाना
हाथ जोड़ कर भीख मांगना वोटों की
तय करती है हार- जीत
जातियाँ और धर्म
चमरवटी , पसिअवटी , बंटोला
ठुकराना , धरकारा
और न जाने कौन - कौन
आज ये हाथ जोड़ रहे हैं
कल जब जीत जाएं गे
नेता बन जाएंगे
तब जनता हाथ जोड़ेगी
आज दरवाजे पर इंतजार
कल इनके लिए इंतजार
कब शराब प्रभाव दिखाएं
कौन कब झुक जाएं
कह नहीं सकते
लालच है नैतिकता नहीं
जहाँ की जनता शराब और मुर्गे में बिक जाती हो
वहाँ क्या अपेक्षा की जाएं
जहाँ व्यक्ति नहीं उसकी जात देखी जाती हो
फिर नेता को दोष देने से कुछ नहीं हासिल
पहले नहीं सोचा
बहकावे में आ जाते हैं
बाद में पछताने से क्या फायदा
पांच साल तक तो वह राजा बना रहेगा
अपनी जेब भरेंगा
दया कर कुछ टुकड़े फेंक देगा
अपने ऐश करेंगा
जब तक अगला चुनाव
जनता भी भूली रहेंगी
प्रधान जी प्रधान जी करेंगी