Wednesday, 14 June 2017

स्कूल की एक डॉक्टर छात्रा

अस्पताल ,ऑपरेशन थियेटर,मशीने
इंजेक्शन ,डॉक्टर ,नर्स ,वार्डब्वाय
इन सबके बीच ,मैं स्वयं को भूल गई
आज इन सबसे दूर जब विद्यालय के गेट पर कदम रखा तो पुरानी स्मृतियॉ मन में कौंध गई
यह हरियाली ,दगडी बिल्डिंग ,मैदान ,पेड ,घास देख मन प्रफुल्लित हो उठा
मन हिलोरे लेने लगा
बचपन फिर साकार हो उठा
मुख्य अतिथि बन कर जाना वही
जहॉ कभी डाट पडी होगी
सहेलियों से रूठना - झगडना हुआ
जब बोलने को उठी तो सब कुछ भूल गई
लगा वही बालिका अपना अनुभव बता रही है
बडे- बडे बच्चों की मॉ
उम्र पचास के पार
हॉ लगती नहीं ,डॉक्टर जो हूँ
व्यवस्थित खानपान ,दिनचर्या
पर आज तो मन सचमुच बच्चा बन गया
मॉ न बननेवाली औरतों को मॉ बनने का सौगात देनेवाली
न जाने कितने माओं की गोद भरना
बच्चा जनवाना
लेकिन आज मैं स्वयं बच्ची बन गई
यह मौका तो बिरलों को मिलता है
   

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