यह कुर्सी है साहब
सबको अपने चारो तरफ गोल- गोल नचाती है
क्या राजा- महाराजा क्या आम क्या खास
हॉ ,इसके रूप बदलते गए
पहले लकडी की फिर लोहे की , प्लास्टिक की
बेंत की चमडे की और न जाने किस- किसकी
जमाने के साथ नए- नए रूप में
नई- नई डिजाइन में
अलग- अलग तरह से सजाया - संवारा जाता है
राजा- महाराजा का सिंहासन के रूप में.
दूल्हा- दूल्हन शादी के मंडप में
वहॉ तो इसका रूप देखने लायक होता है
यही से उसके नए जीवन की शुरूवात होती है
किसी कंपनी में बडे पद पर हो या विद्यालय में
जज इसी कुर्सी पर बैठकर न्याय करता है
पर केवल यह एक निर्जिव कुर्सी ही है क्या???
न जाने कितने लोग इसके पीछे कट- मर गए
अपने ही लोगों को मौत के घाट उतार दिया
झूठ बोले ,चापलूसी की
लोगों के सामने हाथ जोडे
सबसे ज्यादा कमाल तो नेता की कुर्सी का है
इसे न जाने क्या- क्या उपक्रम कर हासिल करता है
और मिलने पर तो वारे- न्यारे कर डालता है
अपना और अपने रिश्तेदारों को
यह एक बार जिसे हासिल हो गई
वह फिर छोडना नहीं चाहता है
चाहे इसके लिए कुछ भी करना पडा
इस पर बैठ कर लोग हुक्म चलाते है
पर यह भूल जाते है कि कद्र व्यक्ति की नहीं
कुर्सी की होती है
सारी पद प्रतिष्ठा इससे ही प्राप्त होती है
यह जब छूट जाती है तो कोई मुडकर भी नहीं देखता
यह साधारण नहीं है
इसके पास अर्श से फर्श और फर्श से अर्श तक पहुंचा देने की शक्ति है
लोग यह भूल जाते हैं
सम्मान उनको नहीं उनकी कुर्सी को मिल रहा है
इसलिए यह ध्यान रखिए साहब
यह कुर्सी है यह किसी की सगी नहीं
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Tuesday, 6 June 2017
किस्सा कुर्सी का
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