एक बार एक भक्त वृन्दावन गया उसने एक पेड़
की डाल भूल वश तोड़ दी, उससे रक्त का प्रवाह
होने लगा।
यह देख... कर वो भयभीत हो गया उसने ठाकुर
जी को पुकारा की प्रभु यह क्या है?
रात्रि के पहर उसको स्वप्न में ठाकुर जी के
दर्शन हुए।
ठाकुर जी उससे बोले की भयभीत न हो वो मेरे
ही मित्र है जो उस बगिया में पेड़ के रूप में
विद्यमान है, उनकी आसक्ति मेरे प्रति इतनी है
की वो वृन्दावन धाम छोड़ कर जाना ही नहीं चाहते
थे सो मैंने उनको वहा पर स्थान दिया ।
ठाकुर जी बोले:- यहाँ का प्रत्येक पेड़ मेरा ही अंग
है, प्रत्येक कण मेरा ही स्वरुप है ।
और तुमने
जो डाल तोड़ दी है इसके लिए उस पेड़ ने
विनती की है अगले जन्माष्टमी में
मेरा झूला उसी पेड़ की डाल का बनवा देना,
क्योकि वो पूर्ण रूप से मुझको समर्पित है इसलिए
उनका प्रत्येक भाग मुझको ही अर्पित है।
वो भक्त ठाकुर जी की वाणी सुन कर धन्य
हो गया।
आज भी वृन्दावन में कोई भी पेड़
काटा नहीं जाता क्योकि इससे ठाकुर जी के
भक्तो को दुःख होता है, और भक्तो के दुःख से
पालनहार प्रभु भी दुखित हो जाते है ।
वास्तव में प्रकृति की संकल्पना ही प्रभु के पास
जाने का सर्वोत्तम साधन है, आप प्रकृति के
जितना समीप होगे
. COPY PEST
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