राम नाम अंकित मुद्रिका हनुमानजी के हाथ मे आयी।हनुमानजी सोचने लगे यह मुद्रिका कहाँ रखूँ।क्योकि स्वामी की मुद्रिका,स्वामी की अंगूठी अपनी अंगुली में पहनना मर्यादा का उलंघन है।हनुमानजी ने सोचा कि कहाँ रखूँ।यह अंगुली का आभूषण अंगुली में रखना मुश्किल है।हनुमानजी ऐसे कपड़े पहनते नहीं थे जिसमें जेब हो।वे तो केवल लँगोट पहना करते थे।हनुमानजी ने सोचा कि रामनाम वाली मुद्रिका है तो सर पर रखूँ लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि कही कूदने में,छलांग लगाने में,नमने में मुद्रिका नीचे गिर गयी तो रामनाम का गिरना अच्छा नहीं है।तब क्या करूँ?हनुमानजी ने सोचा मुट्ठी में रख लूँ?फिर सोचा कि यदि मुट्ठी में रखूँगा तो किसीके साथ युद्ध करने में मुष्टिका का प्रहार करना पड़े,तो रामनाम वाली मुट्ठी तो मारती नहीं, तारती है।बाए हाथ मे रखना उचित नहीं।हनुमानजी सोचने लगे मुद्रिका कहाँ रखूँ?हनुमानजी को आजकल के रिवाज का पता नही था ,वरना वे मुद्रिका वे अपने जनेऊ के साथ बांध लेते,जैसे हम चाभी बांध लेते हैं।उस समय यह रिवाज नहीं था।हनुमानजी बहुत सोच में पड़ गए कि मुद्रिका कहाँ रखे।बाद में उन्होंने अपने पूरे शरीर का बिचार किया कि शरीर के किस अंग को आभूषण मिलता है।उन्होंने पैरों से शुरू किया।पैरों को लाली मिलती है।पैरों को नूपुर मिलता है,कटि को करधनी मिलती है,पुरुष को घड़ी मिलती है, हथेली को मेंहदी मिलती है, नख को रंग मिलता है, अंगुलियों को अँगूठी मिलती है,बाजू को बाजूबंद मिलता है,कंठ को हार मिलता है, शरीर को वस्त्र मिलता है, कान को कुंडल मिलता है, अच्छी बातें सुनने को मिलती है,कभी कभी गालियाँ भी सुनने को मिलती हैं, आँख को काजल मिलता है, चश्मा मिलता है,दांत को मंजन मिलता है, सबको कुछ न कुछ मिलता है, बाल को शिखा को संध्या के मन्त्र मिल जाते हैं, तो पूरे शरीर को कुछ न कुछ भोग मिलता है, लेकिन हनुमानजी ने सोचा जीभ बेचारी भीतर रहती है,इसलिए उसको कोई आभूषण नहीं पहनाता।तो लाओ रामनाम की मुद्रिका मुख में रख लूँ।रामनाम जीभ का भूषण है इसलिए हनुमानजी ने मुद्रिका मुख में डाल दी ।क्योंकि रामनाम मुँह में होना चाहिए।जबान का भूषण रामनाम है।हनुमानजी मुद्रिका मुख में रख लेते हैं
जय श्री राम। COPY PEST
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