Wednesday, 6 February 2019

ईश्वर की शरण

हर सांस है आती जाती
सांस है तब तक जिंदगनी
सांसो की डोर से बंधा जीवन
उसकी डोर ऊपर वाले के हाथ
सांस बंद सब खत्म
यह हमारे हाथ में नहीं
फिर भी हम बैचेन
हम तो कुछ भी नहीं
डाँक्टर हो वैज्ञानिक हो
किसी का बस नहीं
उनका अपना जीवन भी नहीं
वह कोशिश कर सकते हैं
गारंटी तो नहीं दे सकते
आपरेशन सफल हो तब भी
अगले क्षण क्या हो
वह तो ऊपरवाले के हाथ मे
जब सांस ही अपने वश मे नहीं
तब और का क्या??
सब छोडकर उसकी शरण मे जाओ

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