Sunday, 10 March 2019

मानव ,मानव ही रहे यंत्र नहीं

आज फिजा मे बहुत उमस है
गर्मी का मौसम आ रहा है
लेकिन रिश्तों मे गरमाहट खत्म हो रही है
वह तो ठंडी पड़ रही है
अब वह पहले जैसी बात कहाँ रही??
एक समय था जब लोग खुलकर दिल से मिलते थे
आज तो सामने देख कर आँख चुराते हैं
किसी अपनों के घर कभी भी चले जाते थे
आज परमीशन लेनी पड़ती है
समय तय करना पड़ता है
पहले घंटों बैठ कर गप्पे मारा करते थे
अब तो घड़ी के हिसाब से चलना पड़ता है
तब लोग जाने पर कहते थे
आओ आओ ,आइए आइए
आज पूछते हैं
कैसे आना हुआ ??
कुछ काम था क्या??
अतिथि को भगवान माना जाता था
आज अतिथि बोझ बन गया है
सब अपने मे मग्न
किसी को फुरसत नहीं
न किसी से प्रेम
बस मतलब का रिश्ता रह गया है
काम है तो ठीक है
नहीं तो तुम कौन और मैं कौन ??
रिश्तों मे गरमाहट तो जरूरी है
नहीं तो मानव मशीन बन जाएगा
यंत्र मानव जिसमें कोई भावना नहीं
बस बटन से संचालित होता है
घड़ी की सुइयों के अनुसार चलता है
मौसम तो बदलते रहते हैं
पर वह स्थिर हो गया है
वह व्यक्ति निष्ठ हो गया है
जो किसी भी सूरतेहाल मे मानवता के लिए घातक है

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