कभी-कभी लगता है
मेरा वजूद क्या है
कहाँ खडा हूँ
क्या खोया क्या पाया
कौन अपना कौन पराया
मैं तो सबके साथ खडा था
आज कोई नहीं
अकेले हूँ
कहाँ कमी रह गई
कौन सी जिम्मेदारी नहीं उठाई
यह भी प्रश्नचिन्ह
जिम्मेदार भी मैं ही
कुछ किया भी नहीं
यही मानना
पर मैं इसे कैसे मान लू
हिसाब किताब भले न रखा हो
ईमानदारी व्यवहार में जरूर रखा
सबसे अच्छा बनने की कोशिश में
आज किसी का भी नहीं
समझ आ रहा है
मैं पूर्ण समर्पित कभी नहीं रहा
स्वार्थी था मैं
सब मुझे अच्छा कहे
इस अच्छाई के चक्कर मे
अपनापन छूट गया
अपने पास न आ सके
पराए हो गए
मैं अकेला रह गया
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Wednesday, 19 June 2019
अकेला
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