मेरी पहचान
मैं कौन हूँ
भ्रम में थी
आज तक जो समझा
वह तो मैं हूँ ही नहीं
कुछ और ही हूँ
क्योंकि मैं अपने नजरिये से स्वयं को देखती थी
आंकती थी
यह न सोचा कि
और क्या सोचते हैं
और मतलब वे जो मेरे अपने हैं
जिनकी बातों को कभी गंभीरता से नहीं लिया
बुरा भी नहीं माना
टाल दिया
कभी हंसकर कभी नाराजगी से
अब उनके नजरिये से देखा
औकात समझ आ गई
स्वयं की
धडाम से जमीन पर आ गिरी
अपने हो या पराए
अपनी कीमत कम नहीं होने देना चाहिए
हम जो है वह है
स्वीकार है तो करो
अन्यथा छोड़ो
जबरदस्ती का नाता नहीं निभाना
तब उनके नजरिये से भी देख लें
अपने को तौल ले
बोझिल और दवाब की अपेक्षा
दूरी बना ले
अपने को ऐसा मत बना ले
हंसी और मजाक का पात्र बन कर रह जाए
जहाँ सम्मान नहीं
वहाँ रहना क्यों
संबंध निभाए
एहसानों के तले नहीं
एहसास दिला कर
जितना तुम्हारी अहमियत
उतनी हमारी भी
ज्यादा न सही
थोड़ी भागीदारी तो हमारी भी
आज जो सब इस मुकाम पर है
कुछ योगदान तो हमारा भी
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Thursday, 19 November 2020
मेरी पहचान
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment