Thursday, 19 November 2020

मेरी पहचान

मेरी पहचान
मैं कौन हूँ
भ्रम में थी
आज तक जो समझा
वह तो मैं हूँ ही नहीं
कुछ और ही हूँ
क्योंकि मैं अपने नजरिये से स्वयं को देखती थी
आंकती थी
यह न सोचा कि
और क्या सोचते हैं
और मतलब वे जो मेरे अपने हैं
जिनकी बातों को कभी गंभीरता से नहीं लिया
बुरा भी नहीं माना
टाल दिया
कभी हंसकर कभी नाराजगी से
अब उनके नजरिये से देखा
औकात समझ आ गई
स्वयं की
धडाम से जमीन पर आ गिरी
अपने हो या पराए
अपनी कीमत कम नहीं होने देना चाहिए
हम जो है वह है
स्वीकार है तो करो
अन्यथा छोड़ो
जबरदस्ती का नाता नहीं निभाना
तब उनके नजरिये से भी देख लें
अपने को तौल ले
बोझिल और दवाब की अपेक्षा
दूरी बना ले
अपने को ऐसा मत बना ले
हंसी और मजाक का पात्र बन कर रह जाए
जहाँ सम्मान नहीं
वहाँ रहना क्यों
संबंध निभाए
एहसानों के तले नहीं
एहसास दिला कर
जितना तुम्हारी अहमियत
उतनी हमारी भी
ज्यादा न सही
थोड़ी भागीदारी तो हमारी भी
आज जो सब इस मुकाम पर है
कुछ योगदान तो हमारा भी

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