बहुत कुछ खोया है
बहुत कुछ पाया है
इस पाने और खोने के चक्कर में
अपने को भी भूला दिया है
अपने लिए ही सब कुछ किया
तब भी हासिल क्या हुआ
हम तो हम न रहें
समय की धारा में बह गए
कभी इस किनारे
कभी उस किनारे
डोलते रहें
फंसे रहे हमेशा मझधार में
किनारा कोई भी न मिला
फिर भी न रहा कोई गिला
अब बस
अब न डोलना है
न तैरना है
जो हैं सो हैं
जैसा है वैसा है
इसी सोच को अपनाना है
ज्यादा हाथ पैर नहीं मारना है
क्या होगा
ज्यादा से ज्यादा
बूडेगे या उतरेगे
जो होगा वह होगा
खोने - पाने के चक्कर में
अब और चक्कर नहीं लगाना है
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Saturday, 6 February 2021
खोना - पाना
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