हम सतर्क रहते है
होशियार रहते है
जानते - समझते हैं
फिर भी कोई बेवकूफ बना जाता है
हम ठगे से देखते रह जाते हैं
यह अमूनन हर किसी के साथ होता है
तब क्या करें
समझ नहीं आता
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार देते हैं
फिर उसका दर्द और तकलीफ सहते हैं
कभी यह धोखा बडा कभी छोटा
कुछ भूला दिए जाते हैं
कुछ जिंदगी बदल डालते हैं
हम मन मसोसकर रह जाते है
पता था अच्छी तरह से
फिर भी
मंथरा की बातों में कैकयी आ गई थी
जिसकी कीमत बहुत भारी पडी
तब इसे विधि का विधान कहें
या और कुछ
हाँ लेकिन दोषी तो हम होते ही हैं
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