जो अपने से लगते थे
बिना हिचक उनसे कुछ भी बोल सकते थे
कोई दिखावा नहीं
कोई बनावट नहीं
अब तो वह समय है
जब मुखौटे ओढने पडते हैं
बहुत संभल कर रहना पडता है
कौन जाने कौन सी बात बुरी लग जाएं
जब मन में भेदभाव न हो
तब बडी से बडी बात भी टाल दी जाती है हंसकर
अगर मन में ही भेद हो
तब छोटी सी बात को भी दिल से लगा लिया जाता है
बात का बतंगड बना दिया जाता है
दूसरों के सामने तो दिल खोल लो
अपनों के सामने सांस भी संभल कर लो
अब तो डर लगता है अपनों से
लगता हैं बेगानो में अपनापन
वह अपन पन ही क्या
जो डर और खौफ में जीए
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