रिटायर है
बेकार है
बस रोटियाँ तोड़ना है
बैठे बैठे टोकना है
हर बात में दखलंदाजी करना है
हर बात जानना है
क्या करोगे
यह सब करकर
बहुत हो चुका
अब छोड़ दो सब
माया मोह में क्यों फंसे हो
आराम करो
चुपचाप पडे रहो
यही तो नहीं होता भाई
इसी माया मोह में फंस कर जिंदगी बिता दी
हर जोड तोड़ और जद्दोजहद की
तब आज इस मुकाम पर
मन का वह कीडा जो है न
कुलबुलाता है
गलत होते देख नहीं सकता
सब जानना चाहता है
सचेत करना चाहता है
अपने अनुभव साझा करना चाहता है
सबके साथ मिलकर हंसना और बतियाना चाहता है
अलग थलग और चुपचाप पडे रहना नहीं चाहता
सहभागी होना चाहता है
वह पत्थर की मूर्ति नहीं है
जिसे एक जगह बिठा दिया जाएं
भावनाओं से ओतप्रोत जीता - जागता हाड - मांस का इंसान है
बूढा हो गया है
कमजोर हो गया है
सांस नहीं रुकी है
वह गतिमान है
नौकरी से रिटायर है जिदंगी से नहीं
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