तेरह साल जिसे बनाने में लगा
ध्वस्त करते तेरह मिनट भी नहीं लगा
कहीं न कहीं अच्छा नहीं लगा
न जाने कितनों के पैसे लगे थे
निर्माण में कितने करोड़ लगे होंगे
जबकि कितने ऐसे है कि बेघर हैं
पतरा डालने के लिए पैसा नहीं है
तब फिर यह क्या सही हुआ ??
क्यों नहीं माफ कर दिया गया बिल्डर को
तब भ्रष्टचार तो और बढता
सब यही सोचते कि बन जाने के बाद क्या होगा ??
कितनी न जाने अनधिकृत इमारतें हैं
वह ऐसे ही मान्य हो गई है
वह अब रूके
बिल्डर लाॅबी ग्राहकों के साथ खिलवाड़ न करें
साथ ही यह प्रश्न भी है
जब यह बन रहा था
तब सरकारी महकमा सो रहा था क्या ?
या सब मिले जुले हैं
तुम भी खाओ हम भी खाएंगे
सब भ्रष्ट है ऊपर से नीचे तक
इस घटना से शायद सब सचेत हो जाएंगे
सबको सबक मिलेगा
तब जो हुआ वह सही हुआ
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