Sunday, 21 August 2022

श्रीमद्भगवद्गीता को समझना इतना आसान नहीं

घर में श्रीमद्भगवद्गीता रखी है
हर हिंदू के घर में रामायण और गीता रहती ही है
अब रिटायरमेंट ले लिया है , सोचा हर रोज गीता के कुछ अध्याय पढूगी
पहले भी कभी-कभी पढा है कुछ कुछ 
अब नियमित और समझकर 
शुरू किया अध्याय पढना
गहरे जाकर समझ रही थी , तब तो विरक्ति और माया - मोह 
यही सब दिखाई दे रहा था
मन उलझन में रहता
श्री कृष्ण ने जो भी कहा है अगर वह समझ आ जाएं और उसका अनुसरण कर लिया जाएं 
तब जीवन कितना आसान 
सब उस पर छोड़ दिया जाए 
वैसे भी इंसान कुछ नहीं कर सकता
विधि का विधान ही सब कुछ कराती है
तब भी तो वह हाथ - पैर मारता ही है , सोचता है , चिंता करता है
यहाँ तक कि कृष्ण जी की सखी भी चीरहरण के समय जद्दोजहद कर रही थी
पितामह और सगे - संबंधी पर भरोसा था
पतियों पर भरोसा था
बाद में अपने हाथों से छुपाना अंगों को
जब लगा अब कुछ नहीं हो सकता
तब जाकर उनको पुकारा
यह सभी के साथ होता है
अगर सोच ले और गीता का अनुसरण कर ले तब जीवन वैसा नहीं रह जाएंगा
हम तो भावनाओं के पुतले हैं 
माया - मोह में फंसे हैं और फंसे रहना भी चाहते हैं 
अब समझ में आया 
अर्जुन को क्यों जल्दी समझ नहीं  आ रहा था
गीता ईश्वर की वाणी है और उसे समझने और आत्मसात करने के लिए वैसा बनना पडेगा 
पढना बंद कर दिया और बस श्रीमद्भगवद्गीता के सामने हाथ जोड़ लेती हूँ 
उस दिन के इंतजार में 
जब मन गीता को समझने लायक हो जाएंगा
    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी 
हे नाथ नारायण वासुदेव  ।

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