Thursday, 31 October 2024

जय सिया राम

सीता के प्रेम ने लंका पहुँचाया
भरत के प्रेम ने फिर अयोध्या पहुँचाया 
पिता के प्रेम ने वनगमन कराया
मातृभूमि के प्रेम ने लंका विजय के पश्चात भी त्याग दिया 
सखा सुग्रीव के प्रेम ने बालि वध कराया
शबरी के प्रेम ने जूठे बेर खिलाया
लखन के प्रेम ने खूब रुलाया
प्रजा प्रेम ने प्राण प्रिया का त्याग कराया 

राम तो थे ही प्रेम से परिपूर्ण 
हर दीन- दुखी को गले लगाया 
माता कैकयी को भी कभी न कोसा 
बाल्मीकि के राम
बाबा तुलसी के राम 
कबीर के राम
हमारे सबके राम 
राम जैसा तो बनना आसान नहीं
त्याग और क्षमा 
वीरता और मर्यादा 
दयालुता और समानता 
कुछ तो सीखो राम से
मत भगवान बनो 
इंसान बने रहो 
बस इतना ही काफी है 
राम नाम ही एक सहारा
नहीं कोई दूजा आधारा 
        प्रेम से बोलो 
जय सिया राम  जय सिया राम 

No comments:

Post a Comment