उन रास्तों पर चलना अब गंवारा नहीं
अब उन गलियों को पीछे मुड़कर देखने का जी नहीं करता
जिनसे जिंदगी होकर गुजरी है
हम छोड़ आए उन रास्तों को
जिस पर कभी हम चले थे
ख्वाब देखे थे
उन ख्वाबों को सच करने की कोशिश में न जाने क्या-कुछ छूट गया
कितनी बार जलालत सही
कितनी बार आत्मसम्मान की धज्जियाँ उड़ाई
आत्मविश्वास आहत हुआ
हंसने की वजह न होने पर भी हंसना पड़ा
कितनी बार अपनी हंसी उड़ते देखी
झूठ को सच मानना पड़ा
बिना कारण भी दबना पड़ा
गल्ती न होते हुए भी अपने को ही गलत बताना पड़ा
जहाँ अपनी बात को रखने का हक नहीं मिला
मन से न बात समझा पाए न भावना
न किसी ने समझा
दोष भी लिया
माफी भी मांगा
लेकिन धारणा किसी की न बदली
हम चक्रव्यूह में उलझ कर रह गए
बहुत कुछ पाने के चक्कर में बहुत कुछ खो बैठे
अब किसी चक्रव्यूह में उलझने का मन नहीं
अब पीछे मुड़कर देखना गंवारा नहीं
अब पीछे लौटने को जी नहीं चाहता
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