Tuesday, 25 February 2025

कुंभ स्नान और मां गंगे का आशीर्वाद

चल पड़े सब कुंभ नगरी की ओर
हर परेशानी का सामना करते
कभी बस कभी रेल कभी पैदल
हर तरफ भीड़ ही भीड़ 
चले जा रहे हैं लोग
दब रहे हैं 
मर रहे हैं 
बिछुड़ रहे हैं 
पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 
एक जुनून जो सवार है 
अमृत स्नान का 
स्वर्ग प्राप्ति का 
पाप धुलने का 
अब समझ में आ रहा है 
राहु और केतु क्यों घड़ा लेकर भागे थे 
शीश कटाना पड़ा था
यहाँ तक कि सूर्य और चंद्रमा को भी भोगना पड़ रहा है 
आज तक उन पर ग्रहण लगता है 
अमरता का वरदान सब चाहते हैं 
चाहे कर्म कैसे भी हो 
गंगा जी भी अपने पुत्र भीष्म को कर्म फल से मुक्त नहीं कर पाई 
भगीरथ का कुल तारने वाली
मां गंगा यहीं पर रहने वाली हैं 
वे हमेशा से पूज्य रही हैं 
माता हैं वे हमारी 
स्नान के नाम पर बहुत कुछ हो रहा है 
पता नहीं क्या - क्या विसर्जन हो रहा है 
माता इतना बोझ कैसे संभाल रही हैं वे ही जाने 
वह गए तो हम क्यों नहीं
यह तो वही बात हुई तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद क्यों??
भक्ति दिखावा नहीं अंतरात्मा की आवाज है 
पता नहीं कितने सालों बाद आएगा 
इसकी अपेक्षा यह सोचे 
मां गंगा की गोद में आराम से और निश्चिंत हो स्नान- ध्यान करेंगे 
होड़ नहीं और भीड़ का हिस्सा नहीं बनना है 
जान है तो जहान है 
अपना भी सामर्थ्य देखना है 
देखा-देखी नहीं 
कर्म पवित्र रहें
गंगे का आशीर्वाद बना रहेगा 
न जा पाए कोई अफसोस नहीं 

No comments:

Post a Comment