Tuesday, 25 February 2025

अल्बम की दांस्ता

एक पुराना अल्बम देख रही थी 
हर पर हाथ रख सहला रही थी 
कभी मुस्कराती कभी ऑखों में पानी भरती 
बच्चें यह देख हैरान 
ऐसा क्या है इसमें 
उन्हें कैसे बताऊ 
तुम्हारा बचपन और मेरी जवानी 
सब है इनमें 
हर फोटों की अपनी एक कहानी 
उन लम्हों की याद 
वे खुशी के पल
कैसे भूले हम 
यादें थोड़ा धुंधली हो गई है 
इन्हें देख फिर ताजा हो उठती है
हम अतीत में सैर करने लगते हैं
फिर से वह जीवन जी लेते हैं
बच्चें बड़े हो गए 
उनका अपना संसार 
मेरा भी अपना संसार 
जो इस अल्बम में समाया 
वो भूली दास्तां 
         लो फिर याद आ गई 
नजर के सामने घटा सी छा गई 

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