मन द्रवित हो गया
एक मां का इकलौता बेटा चला गया
वह फुड ब्लागर है
प्यार से बेटे को कभी-कभार लड्डू भी बुलाती थी
उसे लड्डू बहुत पसंद थे
कंजूसी भी करती थी
आज अफसोस कर रही है
मैं बचत कर रही थी जिसके लिए
वह ही इस दुनिया में नहीं रहा
माता - पिता न जाने क्या-कुछ नहीं करते हैं
बच्चों के भविष्य के लिए बचाकर रखते है
अपनी इच्छाओं को मारते हैं
बच्चें की इच्छाओं का भी गला घोटते हैं
ऐसा नहीं है कि इच्छा पूरा नहीं करना चाहते
हर पालक अपनी सामर्थ्य नुसार अच्छा से अच्छा देने की कोशिश करते हैं
सबकी स्थिति अलग- अलग होती है
मन माफिक तो हर पालक नहीं दे सकता
कभी-कभार बच्चे शिकायत भी करते हैं
आपने यह नहीं किया वह नहीं किया
उसके तो इतना करते हैं
वह बुरा नहीं लगता
जायज ही है
ईश्वर से भी हम शिकायत करते ही हैं हम
बच्चें भी किससे करें
रिश्ता वह अटूट रहता है
अपनी ही मां सर्वश्रेष्ठ लगती है
कर्तव्य कठोर निर्णय कराता है
जिस बच्चें की मांग पूरी नहीं की
उसके लिए ही
वहीं अब नहीं है
तब तो स्वाभाविक है
यह सब किसके लिए
जीना ही बोझ लगता है
तब धन - संपत्ति का क्या
जीना तो फिर भी पड़ता है
बचत भी करनी पड़ती है
कल किसी प्राकृतिक आपदा में भले सब खत्म हो जाए
लेकिन घर तो बनाना पड़ेगा
किसके आगे हाथ फैलाएंगा
क्या विडंबना जीवन की
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