मेरे कंधे बोझिल हो रहे हैं
मैं बरसों से दुखी हो रही हूं
क्योंकि मैं उन्हें छोड़ नहीं रही हूं
समस्या आई और चली भी गई
पर मैं उसी मोड़ पर खड़ी हूँ
अपनी उसी सोच के साथ
ऐसा क्यों हुआ
उसका जिम्मेदार कौन
यह भूल गई
कि सब तो हमारे अनुसार नहीं चलता
हम घर से बाहर निकले हैं
अचानक बरसात
तब तो हम भीगेंगे ही
छाता भी तान लिया
तब भी
रेनकोट भी पहन लिया
तब भी
तब क्या करें
घर से बाहर न निकले
यह भी संभव नहीं
बारिश हमारी इच्छा से तो नहीं
तब तो जो होना है वह होगा ही
हमारी इच्छा हो या नहो
परिस्थितियों के दास हम
तब जीवन है तब समस्या भी
चाहा या अनचाहा
उसमें तो हम भीगेंगे ही
तब बोझिल क्यों
भाग्य या स्वयं को दोष क्यों??
पल को जी ले
बुरा हो या अच्छा
अतीत से क्या हासिल
भविष्य का ठिकाना कहाँ??
बचा वर्तमान
वही साथ है
वही सत्य है
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Tuesday, 4 December 2018
वर्तमान ही सत्य
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