Tuesday, 29 September 2020

लेन देन में चोखा

वह दोस्त था मेरा
सबसे जिगरी दोस्त
दो जिस्म एक जान
खाना पीना
उठना बैठना
घूमना फिरना
मौज मजा
सब साथ साथ
एक वाकया ऐसा
सब बदला बदला सा
पैसे मांगे
जरूरत थी
दे दिया
आज मुझे जरूरत
पैसे मांगे अपने
लगा कोई अपराध कर दिया
उधार चुकाना तो दूर
चार बात सुना दिया
बात करना बंद कर दिया
अब तो साथ क्या
देख कर ऑखे फेर लेता है
मिलना क्या
रास्ता बदल लेता है
एक सीख मिली
दोस्ती करो
उधारी नहीं
रिश्तों में पैसे का व्यवहार नहीं
कब किसकी नियत बदल जाय
कब कोई धोखा दे जाय
तभी पुराने कह गए हैं
हिसाब-किताब बराबर रखो
उधारी से बचो
लेन देन में चोखा
नहीं मिलेगा धोखा

परछाई

सब साथ छोड़ देते हैं
परछाई नहीं
वह साथ साथ चलती है
वह कभी झूठ नहीं बोलती
कभी लंबी
कभी छोटी
पर साथ हमेशा
वह आपसे अलग हो ही नहीं सकती
जो आप है
वही तो वह भी है
तब आप अंजान क्यों है

अपने आप में खुश रहें

सब कुछ है
तब भी खुश नहीं
आखिर ऐसा क्यों होता है
आदमी स्वयं से नाराज रहता है
खुशियाँ जमाने में तलाशता है
जमाना है कि खुश रहने देता नहीं
हर चाल को उल्टा बताता है
हर राह में रोड़े अटकाता है
हर बात में मीन मेख निकालता है
उसका अगर सुन लिया
तब तो खुशी आपसे कोसों दूर
अपने मन की सुने
अपनी दिल की सुने
आपका दिल जो चाहता है
वह करें
अपने लिए भी जीए
खुलकर हंसते रहिए
गम को दूर भगाओ
गमगीन होकर क्या हासिल
सहानुभूति
ऐसी सहानुभूति को ठेंगा
ऐसा करो लोग देखे
ईर्ष्या करें करने दो
आप खुश रहो
यह अधिकार है आपका
किसी की बातों से
किसी के कारण छोड़ना
यह तो आप अपना ही अपमान कर रहें हैं
जिंदगी को शर्मसार कर रहे हैं
गर्व से सर उठा कर चलें
अपने आप में खुश रहें

एहसान का एहसास

एहसान का एहसास
बार बार
भीतर - बाहर
कचोटता
किसी का एहसान जिंदगी आसान बना सकता है
उसका एहसास ताउम्र आपको याद दिलाता है
आपकी कमजोरियों का
आपकी मजबूरियों का
कहीं न कहीं आपकी विवशता का
किसी के सामने हाथ फैलाना
उसकी मेहरबानियो पर जीना
आपकी ऑखे हमेशा नीची कर देता है
उसकी हर बात को सर ऑखों पर लो
तब तो आप अच्छा कहलाओगे
अन्यथा विरोध किया
तब आप एहसान फरामोश हो जाओगे
एहसान एक बार होता है
एहसास हमेशा याद दिलाया जाता है
कुछ लोग कोई मौका नहीं छोड़ते
जताने का दिखाने के
वह रिश्तेदार हो
पडोसी हो
मित्र हो
जिंदगी भर को झुका देता है यह एहसान
आपकी काबिलियत को रोडा बना देता है
भले गाडी आपने चलाई
धक्का लगा दिया किसी ने
तब वह एहसान तो हो ही गया
जिंदगी की गाडी स्वयं चलानी है
धक्का भी स्वयं लगाना है
अपना आत्मसम्मान बरकरार रखना है
सही  ही कहा है किसी ने
सबसे बडा एहसान यह होगा
कोई मुझ पर एहसान न करें
मुश्किलों में भी रास्ता निकल ही जाएंगा
एहसान करने वाला
एक बार आपको उठाएंगा
जिंदगी भर के लिए झुका देगा
जीना है तो
अपने बाहुबल
अपने आत्मविश्वास
किसी की दया , कृपा और एहसान पर नहीं

Sunday, 27 September 2020

बेटी तो हमेशा रहेंगी

बेटी पापा की हो
   या
दादा की हो
बेटी तो बेटी ही होती है
वह घर उसका होता है
उसके पापा का
उसके भाई का
एक की बेटी
एक की बहन
कभी-कभी दादा की बेटी को अनदेखा
उतना मान और प्यार नहीं
जो पहले होता था
पापा की बेटी को हाथो हाथ लेना
उसकी हर इच्छा पूरी करना
पहले वाली बेटी अब बुआ है
उसके पापा अब दादा है
उसका भाई किसी का पापा है
समय के साथ बदलाव
लेकिन एक चीज जो नहीं बदला
वह इस घर की बेटी
पहले भी थी
अब भी है
तब नजरिया क्यों बदला
उसका भी इतना ही ध्यान रखना है
जैसे अपनी  बेटी का
उसको एहसास कराना है
यह घर उनका भी है
हर बेटी बुआ बनेंगी
पर वह बेटी हमेशा रहेंगी

करोना काल का बचपन

करोना काल का बचपन
घर में रह गया बंद
न उछल कूद
न खेल कूद
न धमाल और मस्ती
न दोस्तों संग मटरगश्ती
न इधर-उधर भटकंती
न झूला न कबड्डी
न क्रिकेट न गिल्ली डंडा
न गोला न पाठशाला
न शिक्षक की डांट
न पनिशमेंट न सवाल
न शैतानियां न चहलकदमिया
बस घर में कैद
माँ पापा हर वक्त सर पर सवार
नहीं कोई बहाना न लफ्फेबाजी
सबकी पैनी निगाहें
नजरें गडाए
अब जाएं तो जाएं कहाँ
मुख पर लगा है मास्क
हरदम हाथ धोओ
परेशान है इन सबसे बचपन
इतनी पाबंदियां
लील जाएंगी मासूमियत
चंचलता है गायब
बचपना है नदारद
यह है करोना का प्रताप
जिसके कारण बचपन है बेकार
जीना है दुश्वार

This is buried History

The first ruler of the Slave Dynasty in Delhi Sultanate, Qutubuddin Aibak, died due to falling off from a running horse.

But is it really possible that an army general who first rode a horse at the age of 11 and fought countless battles riding horses, could die from falling off a running horse?

Real history vs false concocted story

When Qutubuddin Aibak looted Rajputana, he killed the King of Mewad and captured prince Karan Singh. Along with the looted wealth and the prince, he also took the prince's horse *Shubhrak* to Lahore.

In Lahore, Karan Singh tried to escape and got caught in the process. Qutubuddin gave an order to behead him, and to increase the disgrace, to play a polo match, using the dead prince's head as a ball.

On the day of the beheading, Qutubuddin arrived at the venue riding Shubhrak. The horse, on seeing his master Karan Singh, started prancing uncontrollably, resulting in Qutubuddin falling off the horse and Shubhrak fiercely kicking the fallen Qutubuddin. The powerful blows on the chest and head with the deadly hooves proved fatal. Qutubuddin Aibak died on the spot.

Everybody was stunned. Shubhrak ran towards Karan Singh and taking advantage of the chaos that followed, the prince jumped and mounted his gallant horse, who immediately took off, starting to run the most difficult race of his life.

It was almost a continuos run for a good 3 days, finally stopping at the gates of the kingdom of Mewad. When the prince dismounted from the saddle, Shubhrak stood still like a statue. Karan Singh lovingly rubbed his hands on the horse's head, but he was shocked when Shubhrak fell to the ground.

The mighty horse was successful in saving his master and escorting him safely to his kingdom before dying. We have read about Chetak, but Shubhrak's story is beyond faithfulness! Facts like these never become a part of syllabus in our modern education system. Most of us haven't even heard this name. Have we?

THIS IS BURIED HISTORY. TIME TO SHARE OUR GLORY

Courtesy Commodore Amrendra Nath Awasthi
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Happy Daughter's day

मेरी बेटी मेरी शक्ति
मेरा मान मेरा अभिमान
मेरी छाया मेरा प्रतिरूप
मेरा सहारा मेरा आधार
वह है बेमिसाल
नाज है उस पर
इससे नहीं कि वह मेरी बेटी है
बल्कि इससे कि मैं उसकी माँ हूँ
मेरी उससे पहचान है

माँ - बेटी का रिश्ता
सबसे है अनोखा
सबसे है अनमोल
सबसे समझदार
माँ की ममता
बेटी का प्यार
इसमें नहीं किसी और का काम
नहीं किसी का मोहताज
यह संग है बेमिसाल

बिन कहे बिन सुने
मन की भाषा पढ ले
एक दूसरे को जान समझ ले
कितना भी हो गिला शिकवा
एक पल में हो जाय काफूर
माँ बेटी पर जान छिड़कती
उसको पाकर धन्य समझती
वह सपने जो उसने देखें
बेटी के माध्यम से पूरा करती
दोनों एक-दूसरे की बात दिल पर नहीं लेती
मन मिलता है
दिल खुलता है
वह तो बस उसके समक्ष
उसका भरोसा उस पर
जितना नहीं और किस पर
माॅ को तो जितना समझती है बेटी
उतना दूसरा कोई नहीं

बेटा अपना होकर भी पराया
बेटी पराया होकर भी अपनी
यही सच है जीवन का
संबंधों को जोड़ने वाली बेटी ही होती है
वह कैसी भी हो
पर अपनी ही होती है
माता-पिता के जिगर का टुकड़ा होती है
वह पराई नहीं ताउम्र हमारी होती है
बेटी तो बेटी ही होती है
हमेशा दिल के करीब होती है
हर रिश्ते की जान होती है
सही है
बेटी तो बहुत प्यारी होती है

Krishna and karna

In Mahabharat, Karna asks Lord Krishna - "My mother left me the moment I was born. Is it my fault I was born an illegitimate child?

I did not get the education from Dhronacharya because I was considered not a Kshatriya.

Parsuraam taught me but then gave me the curse to forget everything when he came to know I was  Son of Kunthi belong to Kshatriya.

A cow was accidentally hit by my arrow & its owner cursed me for no fault of mine.

I was disgraced in Draupadi's Swayamvar.

Even Kunthi finally told me the truth only to save her other sons.

Whatever I received was through Duryodhana's charity.

So how am I wrong in taking his side ???"

**Lord Krishna replies, "Karna, I was born in a jail.

Death was waiting for me even before my birth.

The night I was born I was separated from my birth parents.

From childhood, you grew up hearing the noise of swords, chariots, horses, bow, and arrows. I got only cow herd's shed, dung, and multiple attempts on my life even before I could walk!

No Army, No Education. I could hear people saying I am the reason for all their problems.

When all of you were being appreciated for your valour by your teachers I had not even received any education. I joined Gurukula of Rishi Sandipani only at the age of 16!

You are married to a girl of your choice. I didn't get the girl I loved & rather ended up marrying those who wanted me or the ones I rescued from demons.

I had to move my whole community from the banks of Yamuna to far off Sea shore to save them from Jarasandh. I was called a coward for running away!!

If Duryodhana wins the war you will get a lot of credit. What do I get if Dharmaraja wins the war? Only the blame for the war and all related problems...

Remember one thing, Karna. Everybody has Challenges in life to face.

LIFE IS NOT FAIR & EASY ON ANYBODY!!!

But what is Right (Dharma) is known to your Mind (conscience). No matter how much unfairness we got, how many times we were Disgraced, how many times we Fall, what is important is how you REACTED at that time.

Life's unfairness does not give you license to walk the wrong path...

Always remember, Life may be tough at few points, but DESTINY is not created by the SHOES we wear but by the STEPS we take...

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Thursday, 24 September 2020

Beautiful story

SHARING A BEAUTIFUL STORY WHICH MOVED ME !

It was getting dark.  Someone was calling from behind the locked iron gate.  Wondering who it could be I came out.  An elderly person was standing behind the gate. The clothes wrinkled and with a small bag in his hand he appeared to have travelled some distance coming here.  Looking into a small piece of paper in his hands he enquired, “Isn’t this Anand, Number8, Yogananda Street, my son?”  “Yes, I am Anand and this is the address.  And you…”, I mumbled.  Slightly shivering and moistening his dry lips with the tongue he replied, handing over the letter, “Babu, I am your father’s friend.  I am coming from your village.  Your father gave me this letter and advised that I seek help from you”.
Taking that letter from him, exclaiming “father?”, I eagerly read that letter. “Dear Anand, blessings to you.  The person carrying this letter is my friend. His name is Ramayya.  Works hard. A few days ago, his only son died in an accident. He is running around seeking compensation.  That would help him and his wife to pull along with the other meagre income.  I am sending the police reports after the accident, the compensation affidavits given by the Travel Agents and other relevant papers.  He was told that the final payment may be collected in the Head Office.  This is his first visit to Hyderabad and he is a stranger.  I am hoping that you would be able to help him.  Take care of your health.  Visit us at your earliest convenience.  Your loving father”.
Ramayyagaru was standing watching me.  I thought for a moment and invited him inside.  Giving him some water to drink, I enquired, “did you have anything to eat?”.  He replied, “No, my son.  As the journey got delayed, I ate the two fruits that I brought with me.”
Going inside I prepared four dosas and served them with pickles.  Saying, “you please eat”, I went out and made a couple of calls and returned.  When I returned, I found that he had finished the tiffin and was sitting with a few papers in his hand.  There was a photo of his deceased son.  The boy was handsome and young.  May be 22 years.  My eyes moistened.
“He is my only son.  Those who were born before him died due to various other causes. He was the only one we have.  Mahesh was his name. He studied well and got a job.  Assuring us that he will take care of us and we would get over all hardships he took up the job.  On the fateful day he was involved in a road accident while crossing the road. Died on the spot.  Not wishing to take compensation in the name of the deceased son we were initially reluctant.  But day by day, I am becoming weak and my wife too is not doing well.  With your father’s insistence I came here. Saying my son will help, he sent me with this letter”, he concluded.
“Fine. It’s late now. Take rest”.  Saying this I too slept.
Next morning, we got ready, had coffee at home and started. Finishing breakfast on the way, we reached the Office address mentioned in the documents. “Anand, I will take care of the rest.  You attend to your office work” said Ramayyagaru. “No issue.  I have taken leave for today”, I replied. Being with him I got the compensation paid to him. “Thank you, dear son.  My wife is alone at home and I will go back home”, said the old man.  “Come, I will drop you at the bus-stand and see you off.”  I took him to the bus-stand, got him a ticket, bought a few fruits to eat on the way.
He said with joy in his eyes, he said, “Anandbabu, taking leave for my sake you helped me a lot.  Soon after going home I will narrate everything to your father and thank him too.”
Smiling and holding his hands I explained, “I am not your friend’s son Anand. I am Tilakraj. You came to the wrong address.  That Anand’s house is another 2 km away.  You were already tired and I didn’t have the heart to tell you the truth.  I called the number in your letter and enquired.  His wife said that Anand had gone out of town on some work.  I called your friend and told him too.  He felt very sad.  Once I assured him that I will take care he felt good.  The loss you have suffered is irreparable.  But I felt that I should help you.  That I did it gives me greatest pleasure.”  As the bus moved, holding my hands Ramayya left with tears of gratitude in his eyes.  “God bless you, my child”, were his parting words.  That is enough for me, I thought.  My father passed away fifteen years earlier.  Now looking at Ramayyagaru I felt my father has returned.
Looking up at the sky I thought my father must be somewhere there. “Dad, did you come in this form to check my progress in life!  Sending me a letter, were you testing me whether I would help or not?  Born to a great father like you, as a son I have performed by duty.  Are you happy?” 
Tears of joy flooded my eyes.

*Have an intention to help.  Nature will work out the way*

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यह साथ बरकरार रहें

बरसों पहले पकड़ा था यह हाथ
कभी न छूटे यह साथ
अकेले हो तब भी एक साथ है काफी
भीड़ हो तब भी यह सहारा है काफी
पहले कुछ शिकवा शिकायते थी
आज समय के साथ वह सब खत्म हो गई
बरखा जैसे झर झर जल के साथ
सब कुछ धो डालती है
उसी तरह इस मन में भी
जो कुछ था सब धुल गया
समय के साथ विचार बदल गए
पहले तुलना करती थी औरों से
मीन मेख निकालती थी
कमतर आंकती थी
वह सब खत्म हो गया
तुम भी बदल गए
मैं भी बदल गई
एक दूसरे के लिए हुआ यह बदलाव
काफी हद तक
पूर्ण रूप से तो यह संभव भी नहीं
अब हाथ पकड़ने का शौक नहीं
अब यह सहारा है
महसूस होता है
कोई अपना है
जो सुख दुःख का साथी है
निश्चिंत होकर साथ चलती हूँ
गिरू तो संभाल ही लेंगे यह हाथ
विश्वास है अपने से ज्यादा
यही तो होता है जीवनसाथी का रिश्ता
जो बिन बोले
सब समझ जाएं
तुम्हारी पीडा को हर ले
जरूरतो को समझे
वह अमीर है
वह गरीब है
पढा लिखा है
अनपढ़ है
सुंदर और सुदर्शन है
काला - गोरा है
यह सब बेमानी
बस एक बात है मानना
उसके दिल में तुम्हारे लिए प्यार है कितना
वह शाहजहाँ भले न हो
ताजमहल भले न बनवा सके
पर तुम्हारे लिए चट्टान खोद कर सडक बना दे
मांझीराम ही सही
है तो कोई तुम्हारा
जो तुम पर जान छिड़कता हो
अपने से पहले तुमको मानता हो
तब क्या गिला शिकवा
सब भूल जाओ
यह हाथ थामे रहो
मुस्कराते रहो
बस यही प्रार्थना करते रहो
यह हाथ कभी न छूटे
यह साथ बरकरार रहे

Wednesday, 23 September 2020

फिल्म इंडस्ट्री को साफ किया जाय

आज मेरी जान परेशान है
वह मेरी मुंबई
कर्मठ मुंबई आज चर्चा में है
नशा और बॉलीवुड
ऐसी तो नहीं थी
हमारी फिल्म इंडस्ट्री
राज कपूर और दिलीप कुमार
दादा साहब फाल्के से लेकर आज की पीढ़ी
कितना बदल आ गया है
आदर्शों की धज्जियां उड़ाई जा रही है
यह नहीं पता कि
उनकी पिछली पीढ़ी ने कितनी मेहनत की है
आज उन्हीं के बच्चे
सब ऐसे नहीं है
फिर भी
चलन तो चल निकला है
आज सुशांत जैसा होनहार और उभरता हुआ सितारा
ड्रग की भेंट चढ गया
न जाने ऐसे कितने होनहार लिप्त है इसमे
यह सब बंद होना चाहिए
हमारे पहले वाले सितारे
गुरुदत्त और मीना कुमारी को शराब ने छीन लिया
आज समय शराब से ड्रग तक पहुंच गया है
यह सिलसिला कब रूकेगा
कुछ मछलियाँ सारे तालाब को गंदा कर रही है
इन सब मछलियों को जाल में लेना ही पडेगा
पूरा सफाई अभियान छेड़ देना है
फिल्म इंडस्ट्री को तो साफ करना ही पडेगा
ये नायक और नायिका हैं
हमारे बच्चे इनका अनुकरण करते हैं
समाज इनको आदर्श मानता है
तब तो इनको भी स्वच्छ होना पडेगा
परदे पर कुछ
असल जिंदगी में कुछ
यह दोहरा चरित्र
अब नहीं चलेंगा
ढूंढ ढूंढ कर साफ किया जाय
नाला , तालाब , नदी और समुंदर
किसी को भी बख्शा न जाय
अगर राजनेताओं पर ऊंगली उठ सकती है
तब तो यह तो अभिनेता है
जननायक है
अपने पर अंकुश लगाने की जरूरत है
डरना होगा
नहीं तो समाज इन्हें छोड़ देगा
अगर यह इंडस्ट्री साफ नहीं होगी
तब इसका सफाया हो जाएगा

शिकारी ताक में

कहना तो बहुत कुछ था
मन की बाते थी
मन में ही मुसमुसाकर रह गई
हमेशा फुसफुसाती रहती थी
बाहर आने को बेताब
पर कोई मिल न सका
इन्हें कोई सुन न सका
समय की कमी थी कुछ के पास
कुछ पर विश्वास न था
भय था अंदर
अगर बाहर आई
तो सार्वजनिक न बन जाए
गुप्त रहना चाहती थी
वह कहाँ संभव था
बहुत लोग बेताब थे
सुनने को उत्सुक थे
एक टाॅपिक मिल जाता गाॅसिप का
जो उनके लिए सबसे बडा टॉनिक
उसके बिना भोजन पचता नहीं इनका
इनकी मानसिक खुराक है यह
कुरेदते रहते हैं
कुछ तो मिले जो मन को भाए
ऐसे में कहना सुनना सब बेमानी
मन की बात मन में रखना ही सबसे बडी समझदारी
सुन इठलैहे बाँट न लैहे कोय
मन की मन में रखे
सावधान रहें
यहाँ शिकारी ताक में है
खुराक की फिराक में है
मनोरंजन का जरिया ढूंढने में लगे
तब सतर्कता भी जरूरी

बरखा रानी आई है

झर झर बरसे बरखा
झन झन करता मन
डोलता है चहुँ ओर
बोलता है कुहू कुहू
नाचता है झनन झनन
यह किसके कारण
बरखा रानी जो कृपा बरसा रही
जाते जाते भी उपकार कर रही
तपती धूप के बीच आकर
सबको तृप्त कर रही
अपेक्षा न थी
पर बरस रही है
झरझरा कर गिर रही है
घरघरा और हरहरा रही है
पेड़ पौधे पर हरियाली ला रही है
पशु-पक्षियों को भी तृप्त कर रही है
घर में हम कैद है
बाहर से नजारा दिखा रही है
मौसम सुहाना कर रही है
सदाबहार है बरखा रानी
जब भी आए
जब भी बरसे
हरदम स्वागत है
जल देती है
जीवन देती है
सृष्टि का संचालन इनके बिना नहीं
सबको जीवनदान
जीवनदायिनी का उपकार जितना माने उतना कम
बरखा रानी आई है
सारी खुशियाँ लाई है

Tuesday, 22 September 2020

Your Happiness

*Copied but important*

A  strong message to all the *Ladies* : 

A few years ago, my friend had just crossed age 50. Just about 8 days later she was struck with an ailment ... And she died swiftly.
In the group we received a condolence message  that  ..."Sad .. she is no more with us"...  *RIP* 🙏

Two months later I called her husband. A thought crossed my mind ..he must be devastated as he had a travelling job. Till her death she would oversee everything.. home.. education of their children... Taking care of the aged in-laws.. their sickness.. managing relatives..   _*everything,  everything, everything*_

She would express at times.." my house needs my time, my hubby cant even make coffee tea, my family needs me for everything, but no one cares or appreciates the efforts  i put in. I feel they all take me for granted ".

I called her husband to see if the family needed any support, as, i felt her  hubby must be feeling lost.. to suddenly have to handle  all the  responsibilities, for evetything.. aging parents, Kids, his travelling job, loneliness at this age.. how must he be managing?

The cell phone rang for some time..no response... After an hour he returned the call.. He apologised that he could not answer my call..as he  had started playing tennis for an hour at his club and meeting friends etc. To ensure he had a good time.

He even took a transfer to Pune. So as not to travel anymore.

"All well at home? " I asked,

He replied, he had appointed a cook .. he paid her a little more and she would buy the groceries and provisions. He had appointed *full time caretakers* for his aging parents.

"Managing well...kids are fine. Life is returning to normalcy...he said.

I barely managed to say a couple of sentences and we hung up.
Tears welled up my eyes.
My friend remained in my thoughts... She had missed the school reunion for a minor ailment of her mother in law. She had miss her nieces wedding because she had to supervise the repair  work in her house.
She had missed so many  fun parties and movies because her children had exams she had to cook she had to take care of her husband's needs...
She had Always looked for some appreciation and some recognition.. which she never got.

Today I feel like telling her..
No one is indispensable.
And no one will be missed.. it is just the play of our mind.

Perhaps it is the consolation.. A symbol of our understanding if you would like to call it that... That's the problem of putting others first.
You have taught them that YOU COME SECOND

*Reality bites* :
_After her death *two more maids* were hired and the house was in order_

We only measure our respect and our value.. ain't that true?

Then do enjoy life.. Remove the frame of mind that I am indispensable and without me the house will suffer..🙏

My message to all Ladies :
Most importantly make time for *yourself* .. the *ME* time.. the time for the self..🏃🏼‍♀️ 🚶🏻‍♀️
❤️ Get in touch with your friends... Talk, laugh and enjoy
🧡 Live your passion, live your life  🎧🎻 💃🏻🚲 🎤🎼🎶 🚴🏻‍♀️🎨

💛 Once in a while do things that love to do ...

🏃🏽‍♀️🧎🏻‍♀️🤳🏼🧘🏻‍♀️🎼 🛀🏾 📝 🎨🖌️ 🎸🎹♟️🎲🎳

💙 Don't look for your happiness in others, *you too deserve some happiness* because if you are not happy you cannot make others happy 🤩😃

💚 Everyone needs you, and you too need your own care and love 🙇🏻‍♀️💆🏻‍♀️💅🏼👯🏻‍♀️ 🧎🏻‍♀️🚶🏻‍♀️🏃🏽‍♀️

💜 Women should come forward to help and guide other women who are unable to handle their personal stress and give them a hand to uplift their confidence 🤗👩🏻‍🦱

🤎 Let us HELP Ourselves and make this *LIFE WORTHWHILE*

Monday, 21 September 2020

मानव बने

कोमल रहे फूल की तरह
कठोर रहे पानी की तरह
अडिग रहे चट्टान की तरह
धीरज रहे समुंदर की तरह
लचीला रहे बेल लता की तरह
दानवीर बने पेड़ की तरह
विशाल बने आकाश की तरह
सहनशील बने पृथ्वी की तरह
प्रकाश बने सूर्य की तरह
शीतल बने च॔द्र की तरह
गतिशील बने हवा की तरह
उडान भरे पंछी की तरह

यह सब गुण तो हो
साथ में पांव जमीन पर हो
अंहकार और घमंड का यहाँ नहीं कोई काम
अंत में सबकी एक ही राह
जाना तो वहीं है
कोई आज तो कोई कल
तब इंसान बने
इंसानियत की राह चलें
पशुता पशु को ही शोभती है
खूंखार जानवर हो सकता है
मानव नहीं
बल और बुद्धि का जिसमें है समावेश
करूणा और दया जिसमें विद्यमान
क्षमा का बल सबसे बडा

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जो विष गरल हो
उसको क्या जो विषरहित सरल हो

विभव की आत्महत्या

दिल को शूट करू या दिमाग को
चलो दिमाग को ही शूट कर लेता हूँ
उत्तराखंड के युवा विभव ने यही किया
यहाँ कौन हावी हुआ
दिल पर दिमाग
या दिमाग पर दिल
दिमाग से भी सोचता तो यह नहीं करता
दिल से भी सोचता तो यह नहीं करता
दिल और दिमाग दोनों ब्लाक
आत्महत्या बढता जा रहा है
नैराश्य के गर्त में युवा सबसे ज्यादा डूब रहा है
प्रेम में असफल
बेकारी की समस्या
यह सब तो पहले भी था पर यह हाल नहीं था
अब तो दिल और दिमाग दोनों काम नहीं कर रहा है
छोटी छोटी बातों का बुरा मान जाना
आत्महत्या जैसा कदम उठाना
इतना बडा संगीन अपराध
अपने लोगों को जीते जी मार डालना
संघर्ष का सामना न कर पाना
जीवन से भागना
यह तो निरा स्वार्थ है
कायरता है
एक जीवन को झटके में खत्म करना
आत्महत्या जैसे फैशन बन गया है
उसने किया तो हमने भी कर लिया
अनमोल जीवन
माता-पिता की परवरिश
उनका प्यार - देखभाल
परिजनों का कुछ सोचा होता
तब दिल भी यही कहता
दिमाग भी यही कहता
ऐसा मत करो
ऐसा मत करो
जीवन का अंत तो इस तरह मत करो
अपने माता-पिता को जीते जी मत मारों
संघर्षो का सामना करों

करोना का खौफ हावी न होने दें

वह कोई गुनाहगार नहीं थी
न उसने कोई क्राइम किया था
तब उसके साथ ऐसा बर्ताव
कारण था
वह कोविड पाजिटिव पाई गई
कब और कैसे हुआ
यह तो वह स्वयं जान न पाई
सारे जतन किए
गर्म पानी का गरगरा
मास्क लगाना
सेनिटाइज करना
फिर भी आ ही गया
ग्रस ही लिया
जानलेवा है यह ज्ञात था
नया नया है
तभी सब अंजान

अस्पताल में अडमिट
ठीक-ठाक हो घर वापस
ईश्वर को धन्यवाद
जीवन मिला दोबारा
खुश थी सोच सोचकर
बच गए

पर यह क्या
सबका नजरिया बदला हुआ
आस पडोस का
देखकर मुख फेर लेना
उपेक्षा से देखना
जिनके चेहरे पर मुस्कान थी
आज वह घृणा से देख रहे
जो पहले गले लगते थे
गर्मजोशी से हाथ मिलाते थे
आज वह दूर से ही मुड जाते हैं
सही है
जान तो सबको प्यारी है
अपना ख्याल रखना चाहिए

साथ में यह भी ख्याल रखें
यह बीमारी है अपराध नहीं
किसी को भी गिरफ्त में ले सकता है
आज हमारी बारी तो कल तुम्हारी बारी हो सकती है
वह हो न ईश्वर करें
इतना मत नीचे गिर जाय
कि सारी संवेदना मर जाएं
सहानुभूति तो रख ही सकते हैं
अपने जैसा ही समझ सकते हैं
घृणा और उपेक्षा न करें
भगवान से डरे
अपने और अपने परिवार का ख्याल रखें
सोशल डीशस्टिंग का पालन करें
मानसिक डीशस्टिंग नहीं
मास्क बेशक पहने
उसके पीछे मुस्कान को बरकरार रखें
हाथ मत मिलाओ
दिल से तो दूर मत करों
सेनिटाइज करते रहो
मन पर मैल मत जमने दो
अनमोल संबंधों पर परत न जमने दो
करोना तो चला जाएंगा
पर वह ऐसी छाप छोड़ जाएंगा
कि फिर कभी मन न मिल जाएंगा
सबको एक दूसरे से दूर कर जाएंगा
करोना का खौफ हावी न होने दें

वह माँ थी

वह माँ थी
कैसे जाए
कहाँ जाएं
अपने जिगर के टुकड़े को छोड़कर
सहती रही
मार खाती रही
मन को घायल करती रही
ऑखों में ऑसू पीती रही
चुपचाप रही
वह माँ थी
केवल स्वयं का सोचती
तब तो कब का सब छोड़छाड चल देती
कभी-कभी मन में आया भी
इस शैतान का त्याग कर दो
इसके बच्चों से मुझे क्या लेना देना
उसका सरनेम है इनके साथ
पर वह कर नहीं पाई
अपने ही रक्त और मांस से जिसे सींचा
उसका त्याग नहीं कर सकती
पत्नी ही नहीं
माँ हूँ मै
इसके खातिर तो सब सहना है
नाम किसी का भी मिले
मुझमें ही तो समाया है वह
यही तो फर्क है
माता और पिता में
माँ छोड़ नहीं सकती
अलग नहीं हो सकती
वह सहन कर सकती है
करती भी है
पिता का सीना गर्व से चौडा होता है
उन्नति देखकर
माँ को फिक्र रहती
कुछ खाया कि नहीं
कोई परेशानी तो नहीं
उसके चेहरे के भावों को पढ सकती
अपनी वेदना को छुपा सकती
इतनी बडी अभिनेत्री
बेटा कुछ समझ ही न पाया
अंदर ऑसू बाहर मुस्कान
यही खेल खेलती रही जीवन में

Sunday, 20 September 2020

यही अनवरत प्रक्रिया मानव की

सुबह हुई
खुशगवार मौसम
फिर तेज दोपहर
तपता हुआ शक्तिशाली
धीरे-धीरे संध्या की तरफ प्रस्थान
सुकून और शांति
इसके बाद तो रात होनी है
गहरी और निस्तब्ध
घना अंधेरा छाया
यही तो जिंदगी का फलसफा है

बचपन खुशगवार
चिंतामुक्त और निश्छल
जवानी तपती हुई उर्जा से भरपूर
उसके बाद धीरे-धीरे उम्र की ढलान
अधेडावस्था जहाँ कुछ उर्जा बाकी
अंत में जीवन की रात्रि
घना अंधेरा
शरीर अशक्त
दूसरों पर निर्भर
रात्रि खत्म होने का इंतजार
चिर निद्रा में सो जाने को इच्छुक
बस बहुत हुआ
अब चलो
जग छोड़ो
सबका साथ छूट गया
स्वयं के शरीर का भी
तब अंतिम प्रस्थान की बाट जोहना
यही अनवरत प्रक्रिया मानव की

मैं तुम्हारा प्यारा चांद हूँ

मैं चांद हूँ
नीरव और शांत
शुभ्र और चलायमान
मेरी रोशनी मद्धिम-मद्धिम
किसी की ऑखों में चुभती नहीं
मुझमें सूर्य जैसा तेज नहीं
वह प्रकाश नहीं
फिर भी मैं हूँ
मेरा अस्तित्व है
मैं गतिशील हूँ
मेरी भी प्रतीक्षा होती है
मैं सुकून देता हूँ
कोई भी मुझसे नाराज नहीं होता
सबको साथ लेकर चलता हूँ
छोटे छोटे तारों को भी टिमटिमाने देता हूँ
मुझमें भी दाग है
फिर भी सौदर्य की बात हो
तब मेरी ही उपमा दी जाती है
कोई भी परिपूर्ण नहीं
तब मैं कैसे
कभी घटता हूँ
कभी बढता हूँ
कभी संभलता हूँ
मैं जो हूँ
जैसा हूँ
सबका प्यारा हूँ
बच्चों का मामा हूँ
सुहागिनो का प्यारा हूँ
प्रेमियों का साथी हूँ
कवियों का दुलारा हूँ
शिवजी की जटा पर विराजमान हूँ
ईद की छटा में शोभायमान हूँ
मेरे बिना तो तारे भी अधूरे
मैं अंधकार में सहारा हूँ

मैं तुम्हारा प्यारा चांद हूँ

बस पात्र बदल गए हैं

क्या आपको सुनाई नहीं पड रहा
आपकी तबियत तो हमेशा खराब ही रहती है
जब देखो फालतू प्रश्न पूछती रहती हो
चुपचाप बैठो एक जगह
कुछ काम धंधा तो है नहीं
क्या मीन मेख निकालती रहती हो
क्या इधर-उधर डोलती हो
हर बात जानना है
क्या करना है जानकर
बूढे हो गए हैं
जो खाना मिल रहा है
जो साथ में रख रहे हैं
यह उपकार कर रहे हैं

यह हर घर में सुनाई देता है
जहाँ बुजुर्ग हो
अचानक घर अंजान हो जाता है
सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं
जो उनके आसपास डोलते रहते थे
अब पास भी फटकना नहीं चाहते
जो नित नये खाने की फरमाइश करते थे
आज खाना देना भी एक उपकार समान समझते हैं
जिसने देखभाल की
इस लायक बनाया
उसी की देखभाल करना बोझ समझते हैं

समय कितनी तीव्रता से बदलता है
प्रकृति का यही नियम है
आज वे हैं
कल हम उनकी जगह होंगे
सदियों से यही चला आ रहा है
उदयाचल के सूर्य को संझा समय अस्तांचल का रास्ता दिखा दिया जाता है
सुबह प्रणाम और जल
और संझा को अनदेखा
उसकी प्रतीक्षा कब ये जाए
पहले वानप्रस्थ था
आज वृद्धाआश्रम है
बात वही है जो उस समय थी
दोष तो किसी का नहीं
बस समय का है
समय न किसके लिए रूकता है
मता है
उसे भी तो आगे बढना है
शिशु का स्वागत
वृद्ध का अनदेखा
यह तो स्वाभाविक है
न तुम दोषी न हम दोषी
कभी उस जगह पर आप थे आज हम है
बस पात्र बदल गए हैं

दान भी करें तो सम्मान से

कौआ कांव कांव कर रहा था खिड़की पर
मन विचलित हो रहा था
कुछ दे दूं इसको खाने के लिए तो उड जाएंगा
रात की रोटी थी वह फेंक दिया
उसने देखा तक नहीं और उड गया
मानो बोल रहा हो
मैं बासी और फेकी हुई चीज नहीं लेता
मेरा भी अपना स्वाभिमान है

बात भी सही है
हमारे घर में जब कुछ बच जाता है
या खराब हो रहा होता है
या कीडे लग रहे होते हैं
तब कभी-कभी हम किसी गरीब को दे देते हैं
यह समझे बिना
जो हम नहीं खा सकते वह कैसे खाएंगा

देना है तो अच्छा दो
मान सम्मान से दो
उपेक्षा से और कमतर समझ कर नहीं
उसका फोटो निकालना
एहसान जताना
एहसास कराना उसकी तुच्छता का
वह भले ही गरीब हो
भिखारी हो
पर है तो इंसान ही
आप और हम जैसे
तब वही व्यवहार करें
जो एक इंसान को इंसान से करना चाहिए