अजगर करें न चाकरी, पंछी करें न काम
दास मलूका कह गए सबके दाता राम
एक व्यक्ति था वह बहुत आलसी था । अगर उसे खाना मिल जाता पेट भर तो वह पडा ही रहता दिन भर ।
घरवालों को नागवार गुजरता था कि पडे - पडे रोटी तोडने के सिवाय कुछ काम नहीं है ।
एक दिन वह ऊब कर घर से निकल पडा । जंगल के रास्ते से जा रहा था शाम हो गई थी ।अचानक एक शेर की दहाड़ सुनाई पडी ।सब जानवर यहाँ- वहाँ भागने लगे ।
बंदर उछल कूद करने लगे । हिरन कुलांचे भर भागने लगे । पूरा दहशत का माहौल हो गया था ।यह व्यक्ति भी एक पेड़ पर चढ छिप कर बैठ गया
जंगल का राजा आया उसके मुख में शिकार था वह खाने लगा । थोड़ी दूर पर एक बूढा सियार बैठा था । शेर ने अपना खाना पूरा किया और कुछ छोड़ दिया। वह वहाँ से चला गया । सियार आया बचा हुआ मांस खा लिया। वह व्यक्ति वही जंगल में एक झोपड़ी बनाकर रहने लगा ।
रोज शेर उस जगह आता और सियार के लिए छोड़ जाता सोचा भगवान तो खाने का इंतजाम कर ही देंगे। फिर मेहनत क्यों करूँ। वह इंतजार में रहता पर खाना नहीं मिलता । कुछ फल वगैरह खाकर गुजारा कर रहा था पर यह कितने दिनों तक चलता । वह कमजोर होता गया ।एक दिन वहाँ से एक महात्मा गुजरे और झोपड़ी के सामने खडे हो आवाज लगाई। जिसके खुद ही लाले पडे हो वह किसी को क्या भिक्षा देगा । वह बाहर आया और महात्मा जी से अपना दुखडा कहने लगा ।भगवान को कोसने लगा । कहने लगा भगवान मेरे साथ नाइंसाफ़ी कर रहे हैं
वह मेरी कोई मदद नहीं करते।
उसने उन्हें शेर और सियार की बात बताई
महात्मा ठठाकर हंस पडे
कहने लगे भगवान चाहते हैं तुम भी शेर बनो
इतना करों कि तुम दूसरों का पेट भर सको
न बूढे हो न अपाहिज हो
तब काम करों
शेर जैसे अपना शिकार सियार के लिए रख जाता है वैसे ही तुम भी किसी भूखे का पेट भरो
ईश्वर न करें मांगने की नौबत आए
यह हाथ देने वाला हो लेने वाला नहीं
इतना काबिल स्वयं को बनाना है
किसी की दी हुई भी भीख पर आश्रित रहना ,यह तो बहुत लज्जास्पद है ।
व्यक्ति महात्मा जी के चरणों पर गिर पडा
वापस अपने गांव लौट आया
मेहनत से खेती करने लगा
अन्न उपजता । परिवार भी खुश रहता
द्वार पर से किसी भिक्षुक को खाली हाथ न जाने देता
अब उसे लग रहा था काम का महत्व
आदर - सम्मान भी मिल रहा था
घर और बाहर दोनों
तो मित्रों पेट तो भर ही जाता है किसी न किसी तरह
पर हम केवल पेट भरने के लिए ही नहीं जन्में हैं।
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Tuesday, 29 June 2021
कर्म किए बिना गति नहीं
Monday, 28 June 2021
काम न काज
मैं काम क्यों करूँ
जब दाल - रोटी का जुगाड़ हो ही जाता है
खेत में मेहनत करूँ
पसीना बहाऊ
थोड़े से अनाज के लिए
वह तो बटाई से हासिल
राशन के कोटे से भी सस्ता अनाज
एक - दो रूपए किलो
दवा - दारू के लिए अस्पताल हैं ही
न जाने कितनी सरकारी योजना
संयुक्त परिवार है कहने के लिए
सबका अलग-अलग दिखा फायदा लिया जाता है
मनरेगा में भी फावडा कुदाल के साथ फोटों खिंचा लिया
अब इतना सब है
तब खेत - खलिहान में काम क्यों किया जाएं
मस्त हो खाया जाएं
मोटरसाइकिल पर घूमा जाएं
मोबाइल चलाया जाएं
नये - नये कपड़े पहन इठलाया जाएं
भला हो सरकार का जिसकी कृपा बरस रही है।
वह कहावत अब मायने नहीं रखती
काम न काज का
दुश्मन अनाज का ।
तब महाभारत अवश्यभांवी था
पत्नी मैं पांच पांडवों की
महाबलशाली, महावीरों की
हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ की महारानी
राजा दुपद्र की बेटी
फिर भी रही मैं हारी
अगर सखा कृष्ण न होते तब
भरी सभा में निर्वस्त्र करने का प्रयत्न
मेरा क्या दोष था
हमेशा मेरे साथ ही अन्याय क्यों ??
पांच पतियों की पत्नी बना दिया गया
स्वयंवर किसी एक ने जीता
बनी सबकी पत्नी
औरत नहीं मुझे वस्तु समझा गया
तभी तो दांव पर लगाया था धर्मराज युधिष्ठिर ने
तब उनका धर्म कहाँ गया था
चुपचाप सर झुकाएं सुन रहा थे
जब मुझे जंघा पर बिठाने की बात हो रही थी
मुझे वेश्या कहा जा रहा था
ऐसा धर्म पालक पति
क्या पत्नी के प्रति धर्म नहीं था
ऊपर से मुझे कहा जाता है
मैंने भेद किया पतियों में
मैं पत्नी तो थी सबकी
पर मनसा प्रिया हमेशा पार्थ की ही रही
तभी पहाड़ चढते समय सबसे पहले मैं बर्फ में समाई
क्योंकि यह पाप तो मैंने भी किया था
कर्तव्य तो मैंने पत्नी धर्म का निभाया
पर मन पर तो किसी का अधिकार नहीं
मुझे तो कभी समझा ही नहीं गया
न मेरी पीडा को महसूस किया गया
पांच पतियों की पत्नी होने का दंश मैंने सहा है
कभी व्यंग्य कभी अपमान स्वरूप
मेरी स्थिति क्या थी
वन वन भटकना
खाने - पीने और सुख - सुविधा का ख्याल रखना
एक सूत्र में बांधे रखना
यह मैंने बखूबी निभाया
मैं तो शक्ति थी पांडवों की
यह मुझे पता था
इसलिए मुझे लेकर कभी विवाद नहीं हुआ
हाँ मैं हर बार मरी
फिर वह चाहे
जयद्रथ प्रसंग हो
चीर हरण हो
मर तो मन उसी दिन गया था
जब स्वयंवर में मछली की ऑख फोडी गई थी
पांचों भाईयों में बांटी गई थी
दोष मुझे दिया जाता है
महाभारत का कारण मैं थी
न मैं थी न दुर्योधन था
बीज तो तब पडा था
जब देवव्रत भीष्म का अधिकार छीना गया था
माता सत्यवती के कारण
जब काशी नरेश की कन्याओं को जबरन लाया गया था
जब महाराज धृतराष्ट्र का ब्याह माता गांधारी से हुआ था
दुर्योधन तो उसी वृक्ष का फल था
हस्तिनापुर में नारियों का अधिकार छीना गया था
अन्याय हुआ था
वह कहाँ जाता
उसकी एक कडी तो मैं भी बनी
कोई हर कर आया
किसी का चीरहरण
तब महाभारत अवश्यभांवी था ।
तब महाभारत अवश्यभांवी था
पत्नी मैं पांच पांडवों की
महाबलशाली, महावीरों की
हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ की महारानी
राजा दुपद्र की बेटी
फिर भी रही मैं हारी
अगर सखा कृष्ण न होते तब
भरी सभा में निर्वस्त्र करने का प्रयत्न
मेरा क्या दोष था
हमेशा मेरे साथ ही अन्याय क्यों ??
पांच पतियों की पत्नी बना दिया गया
स्वयंवर किसी एक ने जीता
बनी सबकी पत्नी
औरत नहीं मुझे वस्तु समझा गया
तभी तो दांव पर लगाया था धर्मराज युधिष्ठिर ने
तब उनका धर्म कहाँ गया था
चुपचाप सर झुकाएं सुन रहा थे
जब मुझे जंघा पर बिठाने की बात हो रही थी
मुझे वेश्या कहा जा रहा था
ऐसा धर्म पालक पति
क्या पत्नी के प्रति धर्म नहीं था
ऊपर से मुझे कहा जाता है
मैंने भेद किया पतियों में
मैं पत्नी तो थी सबकी
पर मनसा प्रिया हमेशा पार्थ की ही रही
तभी पहाड़ चढते समय सबसे पहले मैं बर्फ में समाई
क्योंकि यह पाप तो मैंने भी किया था
कर्तव्य तो मैंने पत्नी धर्म का निभाया
पर मन पर तो किसी का अधिकार नहीं
मुझे तो कभी समझा ही नहीं गया
न मेरी पीडा को महसूस किया गया
पांच पतियों की पत्नी होने का दंश मैंने सहा है
कभी व्यंग्य कभी अपमान स्वरूप
मेरी स्थिति क्या थी
वन वन भटकना
खाने - पीने और सुख - सुविधा का ख्याल रखना
एक सूत्र में बांधे रखना
यह मैंने बखूबी निभाया
मैं तो शक्ति थी पांडवों की
यह मुझे पता था
इसलिए मुझे लेकर कभी विवाद नहीं हुआ
हाँ मैं हर बार मरी
फिर वह चाहे
जयद्रथ प्रसंग हो
चीर हरण हो
मर तो मन उसी दिन गया था
जब स्वयंवर में मछली की ऑख फोडी गई थी
पांचों भाईयों में बांटी गई थी
दोष मुझे दिया जाता है
महाभारत का कारण मैं थी
न मैं थी न दुर्योधन था
बीज तो तब पडा था
जब देवव्रत भीष्म का अधिकार छीना गया था
माता सत्यवती के कारण
जब काशी नरेश की कन्याओं को जबरन लाया गया था
जब महाराज धृतराष्ट्र का ब्याह माता गांधारी से हुआ था
दुर्योधन तो उसी वृक्ष का फल था
हस्तिनापुर में नारियों का अधिकार छीना गया था
अन्याय हुआ था
वह कहाँ जाता
उसकी एक कडी तो मैं भी बनी
कोई हर कर आया
किसी का चीरहरण
तब महाभारत अवश्यभांवी था ।
Sunday, 27 June 2021
धन और मन
धन और मन
यह एक दूसरे से जुड़े
धन रहे तो मन प्रसन्न
यह जरूरी नहीं
न रहने पर भी प्रसन्न रह सकता है
प्रसन्नता की डोर धन से बंधी हो
यह तो भ्रम है
धन आता - जाता है
मन तो बस अपना ही है
वह कही नहीं जाने वाला
प्रसन्न रहे
धन हो तब भी
न हो तब भी .
Friday, 25 June 2021
एक औरत की दास्ताँ
बहुत असमंजस में हूँ
क्या करू क्या न करूं
किसका पक्ष लू किसका नहीं
लगता है मैं ब॔ट गई हूँ
माॅ हूँ तो बच्चों के प्रति ममत्व
पत्नी हूँ तो पति के प्रति प्रेम
प्रेम दोनों से
एक से मेरा अस्तित्व
मेरी पहचान
उस अस्तित्व से है बच्चों का असतित्व
अब उसकी आज्ञा मानू
बच्चों की बात मानू
गलत तो कोई नहीं
दोनों अपनी-अपनी जगह सही
पर जनरेशन गैप तो है ही
जो टकराव उत्पन्न करता है
जबकि प्यार दोनों में हैं
एक - दूसरे के अजीज है
फिर भी देखना गंवारा नहीं
साथ बतियाना और हंसना - खिलखिलाना तो दूर की बात
दोनों को पास लाने की कोशिश हर बार असफल
अपने बच्चों को बोल देना या समझा देना
वही बात बच्चों का भी पापा के लिए
जबकि समझता कोई नहीं
मैं तो बस माध्यम हूँ संवाद साधने का
जब तक छोटे थे तब तक गनीमत थी
अब वे भी बडे हो गए हैं
टोका टोकी पसंद नहीं
बाप को अभी भी बच्चे ही नजर आते हैं
वैसे यह बाप - बच्चों का लुकाछिपी सदियों पुराना है
माॅ तो कहीँ है ही नहीं
उसमें की औरत तो कहीँ हैं ही नहीं
वह बस पत्नी और माँ बन कर रह गई है
Thursday, 24 June 2021
बडा दिल
पुरानी बातें मत करो
गडे मुर्दे मत उखाड़ो
जो बीत गया वह बीत गया
यह अमूनन सुना जाता है
जिसने सुना है
जिसने सहा है
वह कैसे भूल जाए
दर्द देनेवाला भले भूल जाए
दर्द सहने वाला कैसे ??
हाँ अगर वह संन्यासी हो महात्मा हो तब संभव है
वह ईश्वर नहीं है न
मानव है जिसके पास दिल है
वह टूटता है घायल होता है
आसानी से जुड़ता नहीं
न घाव भरते हैं
जिसका इलाज किसी डाक्टर के पास नहीं
कोई मरहम नहीं है
बस प्रेम और माफी के
पश्चाताप के
इसके लिए बहुत बडा दिल चाहिए।
Tuesday, 22 June 2021
मैं एक जोकर
वह जोकर नहीं था जोकर बना दिया गया
बचपन से बौनेपन की जिल्लत सहते बडा हुआ
सब साथी बढते जाते
वह देखता रहता
मन मसोसकर रह जाता
माता - पिता भी मायूस
उनका दुख देखा नहीं जाता था
चेहरे पर मुस्कराहट बिखेरता रहता
अंदर ही अंदर रोता रहता था
आसमान की तरफ ऑखे उठाकर एकटक ताकता रहता
कहीं ईश्वर दिख जाएं तो पुछू
मैंने क्या गुनाह किया
एक साधारण सा इंसान भी नहीं रहा
एक सामान्य सा शरीर भी नहीं मिला
समाज में कोई सम्मान नहीं
उपेक्षित सी नजरें
वह सह नहीं सकता
सोच लिया
अब जोकर ही बन जाऊंगा
विदूषक बन कुछ तो करूगा
लोगों के चेहरे पर मुस्कान ले आऊंगा
हंस ही ले लोग
खुश हो ले लोग
बच्चों की तालियां तो गूंजेगी
हंसी तो बिखेरूगा
यही क्या कम होगा
जहाँ लोग हंसी भूल गए हैं
मुझे देख हंस तो लेंगे
कम से कम यह तो कहेंगे
क्या कमाल का जोकर है
करतब दिखलाऊगा
मनोरंजन करूंगा
कुछ न करने से कुछ करना बेहतर
छोटी सी जिंदगी
छोटा सा मैं
कुछ तो दिलों में याद छोड़ जाऊंगा।
बचपन था तब
छोटे थे मासूम थे
कभी मार पडती थी
कभी डांट खाते थे
कभी गिर पडते थे
रोते थे
चुप भी हो जाते थे
कभी खिलखिला कर हंसते थे
बचपन था तो बचपने भी था
एक ही क्षण में सब भूल जाते थे
बडे हो गए
तब बचपन नहीं रहा
यहाँ वह हंसी नहीं रही
वह मासूमियत नहीं रही
दुनिया दारी में सब खो गई
अब कुछ भूलता नहीं
भुलाने की लाख कोशिश हो तब भी
बचपन की बात ही कुछ और है
काश सब भूल जाते
कुछ दिल पर न लेते
रोते - रोते हंस देते
Monday, 21 June 2021
धरती सबकी है
धरती सबकी है
हमारी - तुम्हारी
पशु - पक्षी की
पेड - पौधों की
पर्वत- पहाड़ की
नदी - समुंदर की
हवा - पानी की
सूरज- चांद की
सभी में जीवंतता
सभी में सौंदर्य
सभी उपयोगी
सभी का समान अधिकार
सभी समान भागीदार
किसी एक की नहीं
मानव इस भ्रम में न रहें
किसी को नुकसान पहुँचाने का हक नहीं
किसी को तोड़ने का अधिकार नहीं
नष्ट-भ्रष्ट करने का भी हक नहीं
सभी को जीने का अधिकार
विचरण करने का अधिकार
सबसे उसे फायदा ही है तब भी वह समझता नहीं
बस कांक्रीट के जंगल बनाएं जा रहा है
अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा
जिससे सांस चल रही उसी को काट रहा
उसे नहीं पता वह क्या कर रहा है
नासमझ बन विनाश कर रहा है
जिस दिन वह यह समझ जाएं
उस दिन से धरती ही स्वर्ग बन जाएं
Sunday, 20 June 2021
पिता बोलता नहीं करता है
पिता बोलता नहीं करता है
वह गरजता नहीं बरसता है
अपने बच्चों पर प्यार की बौछार
बिना जताए सब कुछ लुटाता है
घर की छत समान होता है
उसके आश्रय में परिवार रहता है
आसमान सा विशाल हदय रखता है
माँ का नाम होता है
जिसमें उसका योगदान होता है
बच्चों के लिए जो बन पडे
वह करता है
त्याग और बलिदान यह तो पिता से ज्यादा किसी के बस में नहीं
माॅ अगर गर्भ में नौ महीने रखती है तो वह ताउम्र मन में रखता है
स्वयं मेहनत करता है
बाॅस की डाट सुनता है
तब बच्चों का पेट भरता है
बच्चों को देख उसका सीना गर्व से चौडा हो जाता है
वह भले गले न लगाए
दिल से लगाए रखता है
दिखता है कठोर सा
पर बहुत नाजुक सा मन होता है
कर्म से बंधा होता है
तभी तो वह अनुशासन से लबरेज होता है
माॅ का नाम भले हो पर उसके पीछे बाप का प्यार होता है
चिंतित वह रहता है तभी माँ निश्चिंत रहती है ।
Saturday, 19 June 2021
अलविदा मिल्खा सिंह
कभी भागता था
हिरन सी कुलांचे भरता था
उम्र के 91 वे पडाव पर वह ठहर गया
आज वह रफ्तार खत्म हुई
खिलाडियों का खिलाड़ी बिदा हुआ
जमी से शुरू हुआ सफर आसमां पर जा खतम हूआ
भारत माता का लाल चल पडा
उस जहां पर
जहाँ से फिर कभी न लौटने के लिए
प्रशंसा में कंजूसी मत करें
कितना अच्छा लगता है
जब कोई तुम्हारी कला की प्रशंसा करता है
वह फिर चित्रकार हो
कल्पनाकार कवि हो
गढने वाला मुर्तिकार हो
सब चाहते हैं
हमारे गुणों की सराहना हो
यहाँ तक कि छोटा बच्चा भी अपनी हैंडराइटिग को देख
अपने बनाए टेढे - मेढे चित्र को देख
किसी के सौन्दर्य की तारीफ करो तब देखो
हर व्यक्ति प्रशंसा और दो मीठे बोल का भूखा रहता है
फिर हम करने में इतनी कंजूसी क्यों ??
फेसबुक और इंसटाग्राम का जमाना है
अगर सच में तारीफें काबिल है तो एक लाइक करने में क्या जाता है
कितनी खुशी होती है जब हमारे पोस्ट पर प्रतिक्रिया मिलती है
तब खुशी दीजिए
न पैसा लगना है न कुछ खर्च
बस एक ऊंगली ही तो चलाना है
तब मन बडा कीजिए
विशाल दृष्टि कोण रखिए
प्रशंसा में कोई कसर न छोड़िए
वह फिर घर के खाने की बात हो
या मोबाईल पर कुछ पसंद हो ।
Friday, 18 June 2021
मै तो ओस की बूंद हूँ
मैं तो ओस की बूंद हूँ
आसमां को छूती हूँ
पर पैर मेरा जमीन पर ही
मुझे पता है मैं क्या हूँ
तभी तो अपनी औकात में रहती हूँ
आसमां की बुलंदियों को छूती जरूर हूँ
पर मिट्टी की कीमत भी जानती हूँ
कभी सीप में मोती बनती हूँ
कभी पत्तों पर कभी फूलों पर
कभी कमल दल
कभी सूर्य की सुनहरी किरणों मे झिलमिलाती हूँ
फिर भी मैं गर्व नहीं करती
अंत में मिलना तो है इसी मिट्टी में
तभी तो अपनी औकात में रहती हूँ
मैं तो ओस की बूंद हूँ
आसमां को छूती हूँ
पर पैर मेरा जमीन पर ही
एक शिक्षक का अपनी छात्राओं के लिए
तुमसे ही तो हम
तुम नहीं तो कुछ नहीं
तुम्हारी शैतानिया
वह अल्हड़पन
वह वाशरूम जाने की रिकवेस्ट
वह बडबड बडबड
वह इधर-उधर डोलना
वह दूसरे की काॅपी में झांकना
कभी-कभी झूठ भी बोलना
वह मासूम सा बना चेहरा
वह पेपर में एक अंक बढाने की मांग
यह सब तो बच्चों यह स्कूल जीवन की खासियत है
तुमने हमको परेशान नहीं किया
यह तो हमारा भी जीवन का एक अंश था जो हमेशा-हमेशा साथ है
नमस्ते मिससससस वह कैसे भूलेंगे
बशर्ते तुम न हमको भूलो
एक शिक्षक ही होता है जो बच्चों की तरक्की पर खुश होता है
एक - दो बच्चों ने कभी-कभी माफी मांगी
कभी-कभी उन्हें ऐसा लगा कि उन्होंने मुझे तंग किया
यह भ्रम है
हमें तो आप की हर हरकत पर प्यार आता था
जब खडा करती थी तो दया आती थी
चलो यहाँ आकर नीचे बैठो
इसलिए ऐसा करती थी कि मन में प्यार था
बस कभी मिलो सामने
हमें पहचान लो
यही बहुत होगा
अपनी उन सभी छात्राओं के लिए
जिनके मन में थोडा भी हमारे लिए सम्मान होगा ।
मौसम का मिजाज
मौसम का मिजाज
कब बदले
यह कोई नहीं जानता
कभी-कभी मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी गलत भी कभी सही भी
आज का कहा तो आज नहीं एक - दो दिन बाद बरखा होगी या और कुछ
इंसान का मिजाज कब और क्यों ??
कहाँ और कैसे ??
कब कहाँ पलटेगा
यह कोई नहीं जानता
मुखौटा पर मुखौटा ओढे हुए
न जाने किस - किसकी खाल पहने हुए
जानवर के भेष में इंसान
देवता के भेष में शैतान
सांप जहरीला है यह सर्वविदित है
इंसान का पता नहीं चलता
विश्वास करना मुश्किल
सबसे ज्यादा धोखा अपने कहे जाने वालों से
अपने परम मित्र से
अपने ही परिवार जनों से भी
तब क्या करें??
इतिहास भी गवाह है
न भाई,भाई का
न बाप , बेटे का
न बेटा ,बाप का
न पति ,पत्नी की
यहाँ तक कि जन्म देनेवाली जननी भी ।
धूप - छाँव का खेला है
धूप - छाँव का खेला है
यह जीवन का रेला है
अपने - अपने रंग बदलते
यह दुनिया का मेला है
कभी घनी धूप
कभी कडाके की ठंडी
कभी घना कुहासा
कभी मुसलाधार बरसात
कभी बादलों की गडगडाहट
कभी बिजली का चमकना
फिर भी उसमें दिखता इंद्रधनुष है
कुछ- कुछ अच्छी भी लगती है
हल्की-हल्की धूप
कुछ अच्छी लगती है
गुलाबी - गुलाबी ठंडी
कुछ अच्छी लगती है
रिमझिम रिमझिम फुहारे
पतझड़ है तो वसंत भी तो है
हर मौसम के अपने - अपने रंग
अपने- अपने ढंग
जीवन भी तो यही है
कभी धूप
कभी छांव
कही पतझड़
कही वसंत
तब भी जब आता है इंद्रधनुष
तब वह भी लगता प्यारा
जीवन को बनाता न्यारा
दशा दस साल , चलन चालीस साल
दशा दस साल
चलन चालीस साल
यह कहावत सुनी
लगा एकदम सही कहा है पुरखों ने
बहुतों को देखा
बडा बनते
धन और नाम कमाते
जमीन पर गिरते भी देखा
रावण हो या कंस
विजय माल्या हो या मेहुल चौकसी
बडे से बडा डाॅन
बडे से बडा बाहुबली
बडे से बडा माफिया
बडे से बडा नेता
जिनकी एक समय जय - जयकार
वही दूसरे समय गलियों के पात्र
डरा सकते है पर कितने समय
दिलों पर राज करना है तो अपने आचरण से
डर और खौफ से नहीं
नहीं तो अंत विकास दुबे की तरह
अपने कर्मों का परिणाम तो भुगतना ही पडता है
आज कलाम और भगतसिंह को लोग पीढी दर पीढी याद रखेंगे
वह भी सम्मान से
वही एक बदमाश को घृणा की दृष्टि से
यहाँ तक कि उसके परिवार जनों को भी
तब ऐसा कुछ करिए
चालीस साल क्या
लोग बरसों तक याद रखें
Wednesday, 16 June 2021
अच्छाई
आप में क्या भरा है
स्नेह, करूणा ,ममता
क्षमाशीलता, दयाशीलता
यह तो आपका व्यवहार दर्शाता है
नींबू से रस निचोड़ो तब वह खट्टा
करेला से रस निचोड़ो तब वह कडवा
आम से रस निचोड़ो तब वह मीठा
मतलब जो जैसा है वैसा ही परिणाम
आप में क्या है
कहीं द्वेष , क्रोध ,हिंसा तो नहीं
चेहरे पर भी वही भाव
चेहरा भी विद्रूप नजर आएगा
तब अगर मन ठीक हो
तब चेहरे पर हास्य और स्मित
खिला-खिला ,शांत और सौभ्य
क्यों दूसरे के कारण अपने को खराब करना
अंदर भी बाहर भी
अच्छे रहिए
अच्छाई , अच्छाई ही रहती है
बुराई कभी उसकी जगह नहीं ले सकती
Sunday, 13 June 2021
वह खट्टी मीठी यादें
वह खट्टी मीठी गोली थी
लाल पीली नारंगी
मुंह में जब डालते
तब चेहरा रंग बदलता
वह पांच पैसे की पेप्सी थी
जब तक बर्फ खतम न हो जाय
चूस चूस कर खाते थे
प्लास्टिक को भी चबा डालते थे
वह क्रीम वाला चीनी लगा बिस्कुट
चाट चाट कर खाते थे
चाशनी भर घूमते थे
पानी भी नहीं पीते थे
वह रंगबिरंगा रबर
काॅपी में रगड रगड कर मिटाते थे
सभी को ललचाते थे
वह चार आने का बडा
सी सी कर खाते थे
घरवालों को नहीं बताते थे
बहुत खा लिया
बटर टोस्ट , पिज्जा और बर्गर
पर पहले वाला स्वाद
कहाँ भूला है
अभी भी जिह्वा पर कायम है
वह बचपन था
भले बडे हो जाय
बचपना तो कायम रहता है
Thursday, 10 June 2021
हाथी भाई हाथी भाई
हाथी भाई हाथी भाई
तुम इतने भारी - भरकम
इतनी भारी खुराक
नहीं चाहता दिल तुम्हारा
तुम भी डायटिंग करो
फुर्तीले बनो
पर तुम क्यों सोचो
तुम तो अपनी मदमस्त चाल में मगन
तुम्हें नहीं कोई फिकर
कौन क्या कहेंगा
सुंदर दिखने की इच्छा नहीं होती
हाथी हंसा और बोला
यह भारी - भरकम शरीर ही तो बल है मेरा
यह लंबी सूंड ही शान है मेरी
यह कीमती दांत ही तो अनमोल है
मैं जैसा हूँ ठीक हूँ
मदमस्त चलता हूँ
मुझे देख सब रास्ता दे देते हैं
दुबला-पतला और फुर्तीला नहीं बनना है मुझको
मैं सबसे अलग
सबसे यूनिक
बस लोगों के दिलों में रहता हूँ
जहाँ जाता हूँ
सम्मान पाता हूँ
बस यही बहुत है भाई
वह और मैं
वह बहुत तेज थी
बहुत होशियार थी
सब जगह वाहवाही थी
हर जगह अव्वल
हर जगह प्रथम
परिवार में भी मान
उसके विपरीत
मैं बहुत स्लो , धीमी
कछुए और खरगोश की कहानी की तरह
उसे अभिमान था
गर्व था
अपनी काबिलियत पर
लगता था
कुछ भी असंभव नहीं
यही वह मार खा गई
सोचा सब फतह कर लूंगी
धैर्य नहीं था
मैं चलती गई
अपनी मंजिल पाती गई
धीरे-धीरे ही सही मुकाम हासिल कर ही लिया
आज वह जहाँ थी वही है
हम सीढी पार करते - करते उससे बडे ओहदे पर पहुंचे
आज मैं उसकी बाॅस वह मेरी मातहत
वह जल्द पहुँच वही रह गई
मैं देर से पहुँच उससे ऊपर हो गई ।
Friday, 4 June 2021
जीवन तो एक बहती नदी है
जीवन तो एक बहती नदी है
हम उसके किनारे खडे सोच रहे हैं
क्या करें क्या न करें
अंदर उतरे या न उतरे
बीच में जाएं या न जाएं
अपना पात्र आधा भरे
पूरा भरे
बडा पात्र हो
छोटा पात्र
यह तो आप पर निर्भर है
आप कितना जल भरे
अपनी सामर्थ्य को जानना है
जी भर जल उलीचना है
जीवन है
केवल सोचने से कुछ नहीं होगा
उतरना तो पडेगा गहरे जल में
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठ
Thursday, 3 June 2021
चिडियाँ
सुबह सुबह चिडियाँ बोली
ची ची ची ची
सोना था हमको
पर यह कहाँ मानने वाली
अपनी आदत से बाज आने वाली
है छोटी सी
चिचियाती है तेज सी
सुबह- सुबह ही उठती है
इधर उधर डोलती हैं
खूब आवाज करती है
जिद्दी है
आखिर सबको जगा कर ही मानती है
कोई सोता
यह इनको नहीं भाता
सुबह सुबह ही आती हैं
यहाँ वहाँ और पेडो पर बैठ चहचहाती है
खुशी में डोलती है
सुरीली संगीत छेडती हैं
अन्न का दाना मिलता
उसको चोंच में उठा फुर्र से उड जाती है।