Thursday, 30 June 2016

रिक्शा नहीं घर चला रहा है

रिक्शावाला पैडल मार रहा है रिक्शे को आगे घसीट रहा है
पसीने से लथपथ ,भारी - भरकम सवारी को ढोते हुए
लोगों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुँचाते हुए
जानवर को सामान ढोते देख मन दया से भर उठता है
पर यह आदमी जिसके पैर लडखडा रहे हैं
चेहरे पर झुरिया पडी है
हॉफ रहा है
दम लिया नहीं कि कहीं से आवाज आई
ऐ रिक्शावाले इधर आ
वह सवारी तो ढो रहा है
उसे परिवार का पेट जो पालना है
वह केवल रिक्शा नहीं खीच रहा
अपने परिवार की गाडी को खीच रहा है
वह रिक्शा चलाएगा तभी तो परिवार की गाडी भी चलेगी
यह पेट है जनाब जो किसी को चैन से नहीं रहने देता
यह चैन से रहे इसलिए इसको तो भरना ही है
भरने के लिए मेहनत भी करनी है
और इसकी भूख तो कभी शॉत नहीं होती
पशु को तो खाना मिल ही जाएगा
पर इंसान को कौन देगा
भीख मॉगे या मेहनत करे
और किसी के आगे हाथ फैलाने से तो अच्छा है
मेहनत से दो जून की रोटी खाना

जिंदगी एक प्रयोगशाला

आज विज्ञान की लैब में प्रयोग करते समय अचानक एहसास हुआ
हमारी जीवन भी तो एक प्रयोगशाला ही है
लैब में हम भिन्न- भिन्न एक्सपरीमेन्ट करते हैं
कभी दो गैसों को एकत्रित करते हैं
कभी कोई द्रव्य मिलाते हैं
कभी रंग बदलता है ,कभी धुऑ भी निकलता है
प्रयोग सफल नहीं होता तो फिर करते हैं
जीवन की प्रयोगशालला में तो नित नए प्रयोग होते हैं
कुछ सफल होते हैं तो कुछ असफल
कुछ खुशी देते हैं तो कुछ रूलाते हैं
कुछ तो पूरी जिंदगी बदल देते हैं
जीवन के मायने ही बदल जाते हैं
जो बीता वह वापस नहीं आता
जीवन तो एक ही मिला है अब किस बात पर कौन- सा मोड लेगा
कोई नहीं जानता
पर इस कारण चुप होकर बैठ भी तो नहीं सकते
कर्म तो करना ही है और कर्म करते समय बहुत कुछ ऐसा करना पडता है
जो हम नहीं चाहते पर हो जाता है
यह प्रयोग शाला कभी बंद भी नहीं होती
कभी उलझ जाती है तो सुलझाने की कोशिश होती है
उस प्रयोगशाला में तो मशीन लगाकर पता कर सकते हैं
पर इसमें तो एक ही कर्ता है ऊपर वाला
जमीन पर एक से एक नायाब प्रयोग कर लिया गया
पर भाग्य और तकदीर पर नहीं
वह तो जैसा है वैसा ही रहेगा
लाख बदलने की कोशिश करें तब भी

Saturday, 25 June 2016

फिर मिंलेगे ,बाय- बाय ,टाटा ,आउजो

कल का क्या पल का ठिकाना नहीं है
पर फिर भी हम कहते हैं फिर मिलेंगे
आज में रहते है और भविष्य के सपने बुनते हैं
अगली पीढी के लिए भी
नई- नई योजनाएं बनाते हैं
प्रयत्न करते हैं
पैसा और संपत्ति इकठ्ठा करते हैं
मकान बनवाते हैं
बुढापे की योजनाएं बनाते हैं
मृत्यु तो जीवन का अटल सत्य है
यह तो सब जानते है पर समय नहीं
भविष्य दिखवाते हैं पंडितों और ज्योतिषियों से
कब क्या होने वाला है यह जानने के लिए
यही आशा तो हमें जीवन जीना सिखाती है
लाख तकलीफे आ जाय पर जीने का जज्बा कायम
हार को जीत में  बदलने को तत्पर
बस चले तो मौत को भी पछाड दे
जीने के लिए न जाने कितने उपाय करते
दवाई से लेकर प्रत्यारोपण तक
हमें कुछ करना है
ईश्वर हमारे साथ है
यही भरोसा तो हमें जीने के लिए प्रेरित करता है
नहीं तो कौन कहता
   फिर मिलेगे ,बाय- बाय ,टा टा ,आउजो

अफसोस क्यों ? स्वतंत्रता का मूल्य तो चुकाना ही पडता है

अफसोस हो रहा था पर यह जीवन तो मेरा ही मॉगा हुआ था
नया - नया जोश ,नारी शक्ति और करियर बनाने का जुनून
हॉ यह नहीं पता था कि जिंदगी जोडते - घटाते बीतेगी
पति फोर्स में ,अकेले और अलग रहने का निर्णय
तबादले वाली नौकरी में पढना और करियर बनाना मुश्किल जो होता
बच्चों को संभालने के साथ नौकरी
पर इस दरभ्यान बहुत कुछ बदला
खीज आने लगी,स्वयं को और भाग्य को दोष देना
तनाव और परेशानी के कारण बीमारियों का घेरा
सपने और महत्तवकॉक्षा लुप्त होने लगी
आज उम्र के इस पडाव पर पहुँच कुछ मायने नहीं रखता.
स्मृतियॉ भी मिटने लगती है
एक कहानी पढी थी कि दो तोते होते हैं
दोनों को पकड कर शिकारी ,राजा को बेचता है
दोनों को सोने के पिंजरे में रखा जाता है ,
मनपसन्द खाना दिया जाता है
एक तोता तो खुश हो जाता है और खा- खाकर मोटा और लालची हो जाता है
दूसरा खाना- पीना छोड देता है उसे गुलामी पसन्द नहीं
परिणाम एक ज्यादा खाने और अपच तथा पेट फूलने के कारण मर जाता है
दूसरा भूखे रहने के कारण
पर दोनों ने अपना जीवन स्वयं ही चुना था
यह जीवन भी तो मैंने ही चुना है
बहुत कुछ हासिल किया
नाम ,ओहदा ,पैसा और बच्चों का भविष्य तथा आत्मनिर्भर बनाना
एक पहचान स्वयं की बनी
अफसोस क्यों!??
स्वतंत्रता का मूल्य तो चुकाना ही पडेगा

सलमान की बात का बतंगड न बनाए

सलमान के रेप के बारे में कहा गया वाक्य विवाद का रूप ले रहा है
पहली बात तो सलमान ने यह वाक्य किसी महिला के लिए नहीं अपने लिए इस्तेमाल किया था
औरत बलात्कार के बाद कितना टूट जाती है
कितने नजरों और तानों का सामना करना पडता है
जिंदगी बदल जाती है उसकी
क्या अपने क्या पराए ,सबकी संदेह भरी दृष्टि
समाज का नजरिया ही बदल जाता है जैसे उसने ही कोई अपराध किया हो
उसकी दुनियॉ बदल जाती है
जो मुक्तभोगी हो वही समझ सकता है
सलमान ने कहते समय इसकी गंभीरता को नही समझा
बाद में खेद भी प्रकट किया गया
बलात्कार यानि शाब्दिक अर्थ बल प्रयोग
पिछले दिनों ने एक नेता ने कहा था सिस्टम का बलात्कार हो रहा है, संज्ञान लेना चाहिए
सलमान बिना कुछ सोचे बोल देते हैं और विवाद में आ जाते हैं
वैसे वे सभ्य और  Human being है
स्त्रियों का आदर करते हैं.उनके जीवन में कई महिलाएं आई पर उनके बारे में भी सलमान ने कोई ऐसा शब्द नहीं इस्तेमाल किया कि जो नागवार गुजरे
हॉ इस ५१ साल के नायक को बहुत संभल कर बोलना चाहिए
शब्द बहुत खेल ,खेल सकते हैं

Friday, 24 June 2016

देने में ही जीवन की सार्थकता

पत्थर तराशा जाता है तब भगवान की मूर्ति बनती है
गुलाब कॉटों पर रहता है तो ही राजा कहलाता है
मॉ प्रसव पीडा सहती है इसलिए महान है
नदी जल देती है तब ही जीवनदायिनी मानी जाती है
गाय दूध देती है तब ही गौ माता है
पीपल ऑक्सीजन देता है तभी वासुदेव का निवास स्थान है
सूर्य प्रकाश देता है तभी वह भगवान भास्कर है
कमल ,कीचड में रहकर भी खिलता है
तभी वह शिव जी का प्यारा है
चॉद शीतलता प्रदान करता है तभी सब उसके दर्शन को उतावले रहते हैं
जब तक दोगे नहीं तब तक तुम्हें पहचानेगा कौन
निस्वार्थी बनो ,परोपकारी बनो
मिटोगे तो ही कायम रहोगे
अन्यथा जीवन व्यर्थ करोगो

मॉ- तुझसे ही मेरा असतित्व

जिंदगी तू मुझ पर मेहरबान
मॉ देकर स्वर्ग का सुख दे दिया मुझे
चीखना ,चिल्लाना ,झल्लाना
उस पर भी चेहरे को ताकती मॉ
जिंदगी के हर पडाव पर साथ निभाती
चोरी - छुपे मदद करती मॉ
बच्चों के बच्चों का भी पालन करती ,प्यार लुटाती मॉ
शायद इसलिए घर नानी का ही होता है
मॉ से ही मायका होता है
हाथ - पैर अशक्त,कमजोर पर खाना खिलाने को आतुर
मॉ बडा होने ही नहीं देती
बडे- बडे बच्चों की मॉ को ही बच्चा समझना
कभी - कभी खीझ होती है
हर बात में टोका टोकी
पर मॉ है कि मानती ही नहीं
लगता है कि मॉ के सामने मेरा कोई असतित्व नहीं
पर यह भूल गई कि
तुमसे ही तो मेरा असतित्व है मॉ

कैकयी - रामायण की विद्रोहणी नारी

कैकयी जो रामायण की सूत्रधार बनी
समय ने कैकयी को सम्मान से वंचित कर दिया
कैकयी ने क्या गलत किया था
वह एक मॉ थी वह भी भरत जैसे बेटे की
राजा दशरथ की तीसरी पत्नी भले ही हो पर सिंहासन बडी रानी के और बडे बेटे को ही मिले
यह मंजूर नहीं था रानी कैकयी को वह भी बिना उससे पूछे  ,राम को तो सबसे ज्यादा प्यार करती है क्या आपत्ति होगी
प्यार करना अलग और अधिकार अलग
वह और रानियों की तरह कठपुतली नहीं थी बल्कि वह वीर योद्धा भी थी
राजा दशरथ के साथ युद्ध में भाग लेने पर ही वह दो वर प्राप्त हुए थे .
अधिकार तो मैं किसी भी कीमत पर हासिल करूंगी और हुआ भी वही.
राजा दशरथ को अपने प्राण गँवाने पडे
कैकयी को स्वयं के बेटे से अपमानित होना पडा
भरत का सिंहासन पर बैठने से इन्कार
वह नारी जो भरत जैसे बेटे की मॉ हो
राजा दशरथ की जीवनसंगिनी हो.
युगों तक समाज की अनादर का पात्र बनी
राजा दशरथ के कर्म बोल रहे थे
नियती अपना खेल ,खेल रही थी,कैकयी नहीं
आज भी समाज बेटी का नाम कैकयी नहीं रखता
पर आज कैकयी बनने की जरूरत हर बेटी को है
अपने अधिकार के लिए लडना भले सारा समाज विरूद्ध हो
कैकयी न होती तो गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस न होती
राम  मर्यादा पुरूषोत्तम न होते
राम के जीवन और उन्हें महान बनने का अवसर रानी कैकयी ने दिया
भरत जैसे निस्वार्थी बेटा रानी कैकयी के पालन - पोषण का परिणाम था
नहीं तो राज्य पाने के लिए लोग क्या नहीं करते

Wednesday, 22 June 2016

हाय - मंहगाई

बर्तनों की तो बात मत पूछिए
आजकल सब व्यस्त है टकराव में.
मंहगाई और मेहमान दोनों खडे हैं
किसका करू सत्कार इस अभाव में
टमाटर खरीदू या सेव
दाल खरीदु या चिकन
सब्जी खाना है ,सेहत बनाना है
   पर कैसे  ???
दूध - दही का पडा अकाल
मक्खन - बटर करे गुहार
अब तो बटाटा - कॉदा का ही सहारा
हाय रे ंं विकास
पेट न भरे न सही ,मंगल पर तो पहुँच ही गए
लोकल ठप्प हो जाय पर बुलेट ट्रेन तो दौडेगी
आम आदमी का पेट भरे या न भरे
इसकी किसको परवाह
बस वोट मिले और सत्ता मिले
अपना पेट भरे
अब जब चुनाव आएगा
विकास की झलक दिखलाएगा
मंहगाई की बात धरे रह जाएगी

जो मिला है उसे संभाल कर रखिए भाई

कल रात जम कर बारिश हुई कडकडाती बिजली
और मेघ गर्जन के साथ ,अच्छा लगा,बारिश तो हुई
दूसरे दिन पाठशाला जाने की जद्दोजहद
ट्रेन और बस लेट ,टेक्सी की हडताल
किसी तरह इन बाधाओ को पार किया
वहॉ बिजली नहीं ,लाईट- पंखा सब बंद
पूरा दिन उमस और गर्मी ,बाहर तेज धूप
स्टाफ रूम में सर्वत्र अंधकार
कक्षा में अंधेरे का साम्राज्य ,बच्चे बेहाल
बिजली नहीं ,पानी नहीं
घंटी बजी ,आज का दिन बीता ,सब घर जाने को आतुर
दूसरे दिन आते ही चेहरे पर मुस्कान
उजाला और हवा ,मन प्रफुल्लित
ऐसा लगा सब नया - नया और उजला - उजला
एक दिन के अंधेरे ने बिजली का महत्तव समझा दिया
प्यास लगी हो तभी पानी की कीमत पता चलती है
धूप के कारण छाया और अकेलेपन में साथी
के महत्तव को नकारा नहीं जा सकता
यही तो जिंदगी का सार है भाई
अगर आसानी से सब मिल जाय तो उसकी कीमत का अंदाजा नहीं होता
फिर वह चाहे पैसा हो ,संबंध हो , या रोजमर्रा की जरूरत हो
जो मिला है उसे संभालकर रखिए
कितनों को तो वह भी नसीब नहीं

Monday, 20 June 2016

जिंदगी की गाडी ऊपर वाले को चलाने दे

हम कहीं घूमने जाते हैं दो- चार दिनों के लिए
न जाने रास्ते में कितनी समस्याएं आ जाती है
कभी गाडी का पेट्रोल खत्म तो कभी गर्म
तो कभी किसी कारणवश बिगडना
कभी खड्डे में चले जाना तो कभी हिचकोले खाना
गाडी को संभालने का और बनाने का काम चालक का
सब कुछ उस पर छोड ,पूरे भरोसे के साथ
यह मंजिल तक तो पहुंचाएगा ही
हम झपकी भी ले लेते हैं ,हँसते भी हैं
गाना भी गाते हैं ,पूरे सफर का ऑनंद लेते हैं
जिंदगी तो इतना बडा सफर है
न जाने कितने सालों का.
इस सफर में भी तमाम मुश्किले आती है
कभी बारीश ,कभी गरमी ,कभी कपकपाती ठंड
पर वसंत का भी आगमन होता है
सब हम सह लेते हैं
तो फिर सोच और चिंता किस बात की
ऊपर वाले को जिंदगी की गाडी चलाने दे
आपका सफर भी आसान
और विश्वास रखिए
वह तो पहुँचा ही देगा
रास्ते की जानकारी उसे है ,हमें नहीं

ऑख भर आई क्यों किसी बात पर

बोलते - बोलते ऑख भर आई अनायास ही
जैसे आँसू निकलने को बेताब हो रहे हैं
लाख कोशिश के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रहे
छुपाते - छुपाते छलक ही आए पलकों पर
बाहर बारीश की बूंदे गिर रही है
यहॉ ऑसू बह रहे हैं
यह ऑसू क्यों ऐसे है ,असमय छलक जाते हैं
बादलों से आसमान भरा हो तो बरस जाता है
ऑसू शायद मन भर आने पर
मन बेताब हो उठा है जब तक यह छलक न जाए
कुछ हल्का हो जाएगा
यही तो जरिया है भावना व्यक्त करने का
हर किसी की सीमा होती है
रोते- रोते ऐसा न हो कि ऑखे ही पथरीली बन जाय
कितना गम का बोझ उठाएंगे
जिनके लिए ऑसू आ रहे हैं ,उन्हीं के लिए बचाना भी है ,ऐसा न हो कि रोने के लिए जिंदगी ही न बचे
इन्हीं ऑखों से हँसना भी है
आज गम में छलके है ,कल खुशी में भर आए
इनका काम तो बहना पर हमारा संभालना
जिंदगी के नए मायने समझने होगे
रोने के साथ हँसना भी सीखना होगा
जिंदगी की स्याही को कलम में डुबोकर कागज पर उतारना होगा
केवल ऑसू ही क्यों ,शब्द क्यों नहीं
जहॉ शब्द लाचार और आवाज अस्फुट हो जाती है
वहीं तो ऑसू साथ देते हैं
ऑसू तो ऑसू है न जाने कब छलक जाय

Sunday, 19 June 2016

बाबूजी - Happy Father's day

अपने बाबूजी की दुलारी ही नहीं मैं दोस्त भी थी
बचपन में वह मेरा बस्ता अपने कंधे पर लटकाएं और बाते करते - करते हम बाप - बेटी जाते थे ,रास्ते में पडने वाले इरानी होटल में कभी - कभी मिसल - और बडा पाव खिलाकर भेजते थे
कभी पढने के लिए जोर नहीं डाला
यहॉ तक कि कॉलेज में एडमिशन लेते उनका कहना कि सांइस मत लेना ,आर्टस लेना
कहानी पढने का शौक है ,पढाई पूरी कर लेगी
फिल्म देखना हो या और कही जाना हो मैं हमेशा उनके साथ रही
ऑपेरा हाउस थियेटर में लगने वाली हर फिल्म हम देखते थे
एक बार स्कूल का रंगभवन में पोग्राम था तो बाबूजी बस में बोले कि क्या वहॉ जाएगी
हम लोग फिल्म देखेगे और हम उतर कर "दो चोर " देखी
फेल होने पर मैं चारपाई के नीचे दुबक कर सो जाती थी तो बटाटा बडा लाकर कहते
अब बाहर निकल ,और यह खा ले
सुबह - सुबह मुझे पढने के लिए बाहर चारपाई डालते थे और मैं उडती पतंग देखती थी
व्याकरण पढाने बैठते तो उनका
Present ,past ,Future Tence
मेरी समझ से बाहर रहता था पर आज जब बच्चों को पढाती हूँ तो उनका महत्तव समझ में आता है
एक बार का वाकया कि मैं शर्मा क्लास से छूट कर अपनी सहेली के घर चली गई और चार - पॉच घंटे वही लगा दिया
उस समय फोन तो नहीं था ,बस में बैठकर आ ही रही थी कि बाबुजी बस पकडने के लिए भागते दिखे
मैं खुशी में उनको चिल्लाकर आवाज देने लगी
चढते ही चप्पल निकालकर मझे मारने लगे
कंडक्टर के टोकने पर रूके ,तब बुरा लगा था
पर आज अपने बच्चों की मॉ बनने पर पता चलता है कि मॉ- बाप को कितनी चिंता रहती है
कहते थे कि मुझे सब्जी बहुत पसन्द है जब शादी होगी तो रोज इसको सब्जी पहुँचा दूगा
उनके ही घर में रहती थी और उनसे ही लडती थी
एक बेटी का हक था अब तो लडने से डर लगता है
जिस पर घमंड था वही नहीं रहा
मैं ऑख दिखाती और बच्चे भी
कभी गुस्से में आकर कहते - मेरे घर से निकल जाओ
तो जवाब मिलता - चलो निकलो आप यहॉ से
और वे मन ही मन हँसते बाहर चले जाते
लोग लडके को ज्यादा प्यार करते हैं पर बाबूजी ने कभी यह भेद नहीं किया
मैं हमेशा उनके दिल के करीब रही
आज वे हमारे बीच नहीं है पर मैं जो कुछ भी हूँ
उन्हीं की बदौलत हूँ
हर जन्म में बाबूजी आप ही मेरे पिता बने
सीधा- सच्चा ,ईमानदार ,निरव्यसनी ,विद्वान ,प्रेमल ,भावना शील ,सादा जीवन ,उच्च विचार
तथा विचार में समय से दो पीढी आगे
आधुनिकता को अपनाने वाले बाबूजी
आप को तो कभी भूलाया ही नहीं जा सकता
मेरे जीवन को बनाने और सँवारने में आप ही है
यह जीवन सदा आपका त्रृणि रहेगा

Saturday, 18 June 2016

कर भला तो हो भला

नदी देती रहती है इसलिए उसका पानी मीठा रहता है
समुद्र लेता रहता है इसलिए उसका पानी खारा रहता है
नाला रूका रहता है इसलिए उसका पानी गंदा रहता है
जीवन भी कुछ इसी तरह है
अगर रूकोगे तो सड जाओगे
देते रहोगे तो खुश रहोगे
एक तालाब था ,पास ही एक नदी बहती थी
तालाब नदी से कहता है कि बहन तुम क्यों अपना मीठा जल सागर को देती हो
वह तो उसे खारा बना देता है
नदी कुछ नहीं बोली सिर्फ मुस्कराई और कहा
मैं अपना काम कर रही हूँ
गर्मी आई तलाब पूरा सूख गया
नदी का पानी भी कम हो गया पर पानी देना कम नहीं हुआ
सागर का पानी भाप बन कर उडता रहा
बादल आए और गरज- गरज कर बरसे
तथा पानी बरसाने लगे
नदी फिर लबालब भर गई और उसी गति से सबको पानी देने लगी
जीवन का उपयोग दूसरों की भलाई में लगाए
जीवन में स्वार्थी मत बनिए नहीं तो नाले की हालत हो जाएगी.
आगे बढे और उन्नति करें
कर भला तो हो भला

जबान संभाल के

जबान और बोल को कैंची की तरह मत चलाइए
जो केवल काटने का काम करती है
लाठी और डंडे से सर फूटता है और हड्डियॉ टूटती है
और शब्दों से संबंध टूटते हैं
हड्डियों का घाव तो भर जाएगा उपचार से
मन का घाव नहीं जो शब्दों के बाण से लगा है
महाभारत का एक कारण सर्वविदित है जो कि पॉचाली ने दुर्योधन को कहा था
अंधे का पुत्र अंधा ही होता है
यह घाव जल्दी नहीं भरता है और मरणपर्यत याद रहता है
आपका एक कटु वाक्य आपके सारे किये - कराए पर पानी फेर देता है.
रहिमन धागा प्रेम का मत तोडो चटकाय
टूटे से फिर न मिले  ,मिले तो गॉठ पड जाय
जबान को संभाल कर रखिए
बिना सोचे - समझे और कटु वाक्य दूसरों की भावनाओं का ख्याल किए बिना कुछ मत बोलिए
जीभ को संभाल कर इस्तेमाल कीजिए
वह तो ऐसे ही दॉतों के बीच रहती है
उसको ज्यादा छूट मत दीजिए

जीवन भी सागर जैसे ही है

जीवन वह सागर है जिसका कोई ओर छोर नहीं
कहॉ से शुरू हुआ कहॉ खत्म
कुछ नहीं पता.
असीमित है ,विशाल है
जीवन रूपी लहरे बहते - बहते हिचकोले खाते
किनारे पर पहुँचने की कोशिश
इस सफर में न जाने कितने मिलते हैं
बिछुडते हैं , कभी न मिलने के लिए
पर कुछ हमेशा याद रहते हैं
वे जिन्होंने हमारे दिलों को छुआ है
जीवनरूपी सागर में निरीह मछलियॉ भी है
और खूंखार मगरमच्छ भी ,जो निगलने को आतुर
बहुमूल्य मोती भी मिले और कंकर - पत्थर भी
अब क्या लेना और क्या छोडना
मंथन में अमृत और विष भी मिले
अब उसको शिव की तरह गटक कर नीलकंठ हो या
राहु की तरह सर कटाया जाय
सीमा में रहना और मर्यादा का पालन करना
कूडे- कचरे को बाहर फेक देना
अनावश्यक कुछ भी न ग्रहण करना
हॉ कभी- कभी सूनामी दिखा देना
ताकि कोई नाजायज फायदा न उठा सके
वाष्प के रूप में जल कर जीवन देना
भले स्वयं खारा हो पर दूसरों को मिटकर मिठास देना
जलना पर बरसकर प्यास बुझाना
सागर जैसा विशाल हदय रखना और कुछ कर जाना
लोग और मानव जाति हमेशा याद रखे
नाम रह जाएगा और सब छूट जाएगा

नेताओं को कमल से सीखना चाहिए

कमल एक ऐसा फूल है जो कीचड में रहता है
और खिलता है
पू्र्ण रूप से निखरकर और कीचड का स्पर्श भी नहीं.
आप कहॉ से आए है यह कोई मायने नहीं रखता
आप ने क्या हासिल किया है यह महत्तव पूर्ण है
आप किस उंचाई को पहुँचे हैं
आजकल हमारे नेता यह बताने से नहीं चूकते कि उन्होंने किस परिवार में जन्म लिया
हर कोई अपने को कुछ न कुछ बता रहा है
कोई दलित तो कोई चायवाला तो कोई ग्वाला
जाति और धर्म ,गॉव और शहर
इसकी कोई जरूरत नहीं है
आपका काम बोलना चाहिए
बहुत बडे- बडे लोग इस संसार में हो चुके हैं
जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमी अच्छी नहीं रही है
पर वे मानव ईतिहास में अमर है और अपनी छाप छोड गए हैं
बार - बार इन सबका उल्लेख उचित नहीं है
कमल कीचड में से निकलने के बाद भी सबका आदरणीय है
हमारा राष्ट्रीय फूल है
शिव का प्यारा है
उसने अपनी पहचान बनाई है
योग्यता किसी परिचय की मोहताज नहीं होती

भ्रूण हत्या - गर्भ मे ही मारने की साजिश

डॉक्टर के क्लिनिक में एक पति - पत्नी का जोडा बैठा हुआ था साथ में एक बच्ची भी थी
शॉत ,निश्चिंत ,निर्विकार
डॉक्टर के पूछने पर पता चला कि वे गर्भ में पल रहे बच्चे का अबार्शन कराना चाहते हैं
इसी डॉक्टर ने सोनोग्राफी करने से मना कर दिया था
तो वे पास के क्लिनिक में जाकर टेस्ट करा आए पर उनके पास अबार्शन की सुविधा नहीं थी
दूसरे ज्यादा पैसा मॉगेगे और यह परिचित थे
डॉक्टर के कहने पर कि कभी- कभी लालच में आकर भी लडका हुआ तो भी लडकी बता देते हैं लिंग परीक्षण में
पर वे किसी तरह मानने को तैयार न थे
एक लडकी पहले से ही है दूसरी हमको नहीं चाहिए
डॉक्टर ने फिर पूछा
नक्की तुमको लडकी नहीं चाहिए
तो उनका उत्तर हॉ  में
डॉक्टर ने कुछ क्षण देखा और सोचा
अचानक छुरा उठाया और बैठी हुई बच्ची के गरदन पर रखकर कहा
कि इसको ही मार डालते हैं ,तुमको दूसरी बेटी नहीं चाहिए न
दोनों पति- पत्नी डॉक्टर ने उन्हें पकड कर बोला
आप डॉक्टर है या कसाई
डॉक्टर ने उनकी ओर देखा और कहा कि कुछ लोग लालच में हमारे पेशे को बदनाम कर रहे हैं
पर हम भी इंसान है कसाई नहीं
तब तक इनको अपनी गलती का एहसास हो गया था
बिना कुछ बोले सर झुकाकर क्लिनिक से बाहर निकल गए