बेटा बेटा करता रहा जमाना
बेटियां निकल गई जमाने से आगे
बेटे को सब मिला
घर - द्वार और अधिकार
इसी में वह उलझ कर रह गया
अपनी जिम्मेदारी को भूल गया
बेटी अब भी है माता - पिता का सहारा
भले दो घरों में बंटा उसका जीवन सारा
प्यार के दो मीठे बोल
अब वह बोल न पाता
पत्नी जो कहती वैसा वह करता
हर बात का हिसाब - किताब देना पडता है
जैसे वह पति नहीं गुलाम हो
न अपनी इच्छा से रह पाता
न शांति से कुछ कर पाता
कहने को तो पुरुष है
पर उसका पुरुषत्व है डरा हुआ
किसी के अधीन
वह डरता है अपनी पत्नी से
जो किसी की बेटी है
बेटी तो बेटी ही रहीं
बेटा बेटा न बन पाया
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Sunday, 28 February 2021
बेटी - बेटा
परछाई
परछाई , परछाई रहती है
उसका अपना कोई वजूद नहीं
जिंदगी में किसी की परछाई न बने
किसी के भरोसे नहीं
अपने बल पर रहें
परछाई तो मिट जाएंगी
वह कुछ समय के लिए
परछाईयां मिट जाती है रह जाती निशानी है
अपने कदमों का
अपने कार्यों का निशान छोड़े जो कभी मिटे नहीं
उसे उडना है
उसे उडना है
मुक्त और स्वच्छंद
बंधना उसे स्वीकार नहीं
बंधनों की बेडियाँ
परिवार - समाज की बेडियाँ
नहीं चाहती
इन बंदिशों में बंधना
हवा की तरह
जहाँ कोई रोक - टोक न हो
आंधी - तूफान की शक्ति
जब अपने पर आ जाएं
तब विनाशक
न जाने क्या - क्या उजाड़ जाएं
उसके पहले की शांति
उसके बाद की शांति
दोनों ही खतरनाक
खुले विचरण
स्वतंत्रता का परचम फहराते
यहाँ से वहाँ डोलती
धरती से आकाश तक
अपने होने का एहसास कराती
उर्जा और शक्ति से पूर्ण
उसकी उडान को बस देखते रहें
मौका दे
जमीन दे
स्वतंत्रता दे
तब देखिए उसका कमाल
Friday, 26 February 2021
खूबसूरत हो तुम
खूबसूरत हो तुम
यह अपनी नजर से देखो
दूसरे की नजरों से नहीं
स्वयं से प्यार करना सीखे
स्वयं का सम्मान करना सीखे
स्वयं को किसी से कमतर न ऑकना है
न किसी से तुलना करनी है
आप विधाता की अद्भुत कृति है
उसने बनाया है तब कुछ सोचा ही होगा
काला - गोरा
लंबा - ठिंगना
मोटा - पतला
इन सबमें क्या रखा है
एक सुंदर मन है
उसमें भावनाएं है
उसकी कद्र कीजिए
जो कुछ मिला है उसका उपयोग करना है
बुद्धि , बल , वैभव
सकारात्मक सोच के साथ जीवन जीना है
आपका व्यक्तित्व आपका है
उसे सजाना - संवारना भी तो आपके हाथों में है
जीवन बडा खूबसूरत है
उसको खूबसूरती से जीना
यही जीवन का मकसद हो
Thursday, 25 February 2021
शहर गाँव पर भारी पड गया
शहर गाँव पर भारी पड गया
वह अपनापन कहीं खो गया
न वह लोग रहें
न वह रंगत रहीं
विकास सब पर भारी पड गया
अब भोर सुबह मुर्गे की कुकुडू कु नहीं सुनाई देती
वह घर में मुंह अंधेरे जाता पीसती
अनाज को ओखली में कुटती
वह डिबरी की रोशनी में काम करती
बुहारती और बडबडाती
कहीं नहीं दिखती
द्वार पर गाय - बैलों की रंभाने की आवाज
उनको बरदऊल से निकालते
चारा - पानी देते
गोबर बटोरते
खटिया पर बैठ बतियाते
चिलम फूंकते
बच्चों को डाटते - फटकारते
अब लोग नहीं दिखाई देते
अब तो द्वार भी सूना
सब अपने - अपने कमरे में
अब पीपल और आम के पेडो पर बैठ झूला झूलती
गीत गुनगुनाती
आवाज चाहे कैसी भी हो
गीत तो गाना ही है
सुरीली या बेसुरी
कोई फर्क नहीं पड़ता
एक जीवंतता
जिंदगी की जीवटता का दर्शन
अभावों में भी खुशी का इजहार
वह कहीं लुप्त हो रहा
समष्टिवाद से व्यक्तिवाद
गाँव से शहरीकरण की ओर अग्रसर
कहीं न कहीं कुछ छूटा जा रहा है
विकास की इस यात्रा में
शहर गाँव पर भारी पड गया
मेरा शहर
अहा ग्राभ्य जीवन भी क्या है
कितना सुकून है
भैंस चारा खा रही है
कोई कुर्सी पर बैठा धूप सेंक रहा है
कुत्ता लोट रहा है जमीन पर
पेड़ भी शांति से खडे हैं
बीच - बीच में हिलते रहते हैं
कभी हवा का झकोरा
कभी सूर्य किरण अठखेलियां करती हैं
ऐसा नसीब शहर वालों का कहाँ ??
वह भागम-भाग की जिंदगी
घडी से जीवन नियंत्रित
गुलाम होता है समय का
ऐसी स्वतंत्रता मिलती भी नहीं
रास भी नहीं आती
यही तो अंतर है
एक निरंतर गतिशील
दूसरा अपनी मर्जी का मालिक
फिर भी कहीं न कहीं हम भी कहते हैं
मेरा शहर बडा न्यारा और बडा प्यारा
कुछ बात तो उसमें है
जो सबको बुलाता है
अपनाता है
बिजी और कर्मठ बनाता है
इस खुले आकाश की शांति से कहीं अधिक
वह भागती - दौड़ती और निरंतर गतिशील तथा जागती
विकास की ओर अग्रसर
जिंदगी प्यारी लगती है
यहाँ ठहराव नहीं
फर्श से अर्श तक पहुँचा देता है अगर आप कर्मठ हो तब
आपकी योग्यता की कदर होती है
यहाँ मौसम नहीं बदलता स्वयं को लोग बदलते हैं
हर मौसम एक ही समान
कुछ दिन की बात हो तब ठीक है
जिंदगी गुजारना तो अपने ही शहर में है
तब पछताना बेकार
बहुत बोलते हो तुम
हर बात पर झिडकते हो
गुस्सा तुम्हारी नाक पर
न आगे देखना
न पीछे देखना
न किसी की परवाह करना
जब आया तो उडेल देना
जैसे मैं कोई कचरे का ढेर हूँ
उडेलते जाओ
मैं इकठ्ठा करती जाऊं
जब यह ज्यादा हो जाएंगा
तब तो उसमें से भी संडाध आने लगेंगी
वह तो तब तक जब तक चुप
अगर मुंह खोल दूं
तब तुम्हारी औकात पता चल जाएंगी
चुप हूँ तभी भलाई तुम्हारी
चुप रहना आता है
तब चुप कराना भी आता है
वह छोड दिया
जाने दो
तब ही सब सुरलित
सबका जीवन भी संतुलित
नहीं तो भूचाल आ जाएंगा
सब संजोया और सजाया व्यर्थ हो जाएंगा
जो मैं नहीं चाहती
जो तुम भी नहीं चाहोंगे
तब जरा कंट्रोल करों
अपनी जबान पर लगाम रखो
नहीं तो सब बेकाबू हो जाएंगा
तब पछताना बेकार
Wednesday, 24 February 2021
मेहनत से मुकाम
वक्त बीतता गया
जिंदगी का हिसाब - किताब चलता रहा
कभी जोड़ा
कभी घटाया
कभी गुणा
कभी भाग
यह भी साथ-साथ चलता रहा
हर दिन नया
हर पल का हिसाब रखा
सब संचित कर मन - मस्तिष्क में
कितना भरा पडा है
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
क्या छोडू क्या संभालू
बहुत कुछ बदला है
बदलता ही रह रहा है
हम भी तो बदलते ही गए
समय के साथ चलते गए
तब भी लगता है
कहीं कुछ छूट गया
कहीं कुछ कसक सी है
वह सुकून नहीं है
जो होना चाहिए
रोते हुए मुस्कराए हैं
कुछ छूटा तब कुछ मिला
कुछ अपने भी बिछुड गए
जिंदगी देकर खुशी मिली है
त्याग किया है तब हासिल हुआ है
हर चीज की कीमत चुकानी पड़ी है
इतना सस्ता और आसानी से कुछ भी नहीं मिला
तभी तो फिजा में उदासी छा जाती है
हंसी ओठों तक आकर रह जाती है
जिंदगी में लाटरी नहीं लगी
मेहनत किया है
तब यह मुकाम हासिल किया है
अब बचा नहीं है दम
बहुत कुछ देखा है
सहा है
अनुभव किया है
क्या जज्बा था
सब हंसते - हंसते हो जाता था
एक पल घबरा जाते थे
फिर सब ठीक हो जाता था
कमर कसकर खडे हो जाते थे
न जाने कितने वसंत और पतझड़
आए और गए
हम खिलखिलाते रहें
मुस्कराते रहें
चेहरे पर शिकन न आने दी
मन के दर्द को बाहर न आने दिया
मौसम बदल गया है
अब तो लगता है
क्या वाकई यह सब हमने किया
इन परिस्थितियों का सामना किया
अब ऐसा क्यों लगता है
कि अब हममें वह बात नहीं रही
उम्र बढ रही है
सब कुछ बदल रहा है
वह जोश वह उत्साह
अब बचा नहीं
शरीर कमजोर पड रहा है
मन भी घबराता है
जो कर लिया वह कर लिया
जो सही लिया वह सह लिया
बस अब और नहीं
अब बचा नहीं है दम
Tuesday, 23 February 2021
प्यार का मोल
बच्चे आने वाले हैं
दादी ने यह जाना था
तबसे खुश हो जुट रही थी
नए नए पकवान बनाने में
लड्डू , मठरी और शकरपारे
बच्चे तो आए
वह तो पिज्जा - बर्गर वाले
उनको तो यह नहीं भाया
केडबरी , चाकलेट और चिप्स
यह था उनका प्रिय
दादी का पकवान देखते ही
सिकुड़ जाता मुख
यह क्या है
हम तो इसे नहीं खाते
छी छी इतना तेल
दादी मन ही मन सोचती
यही खाकर तो तेरा बाप हुआ है बडा
आज तक मजबूत है
बीमारी से दूर
तुम लोगों की ऑखों में अभी से चश्मा
दुबले - पतले हाथ - पैर
वह घी वाले लड्डू
एक खा लिया तो पेट भर गया
बादाम - पीस्ता से भरा हुआ
उसके सामने पास्ता की क्या बिसात
यह बात दिगर है
यह हाथ का बना हुआ
वह रेडीमेड है
उसमें प्यार की खुशबू
इसमें बिजनेस की महक
जो सब पर हावी हो रही है
घर के खाने से बाजार का खाना स्वादिष्ट लगता है
प्यार का मोल अब नहीं रहा
सौंदर्य और व्यक्ति
वह बहुत खूबसूरत थी
जवानी में उसका सौन्दर्य शबाब पर था
यह नहीं पता था
यह हमेशा नहीं रहेंगी
उम्र के साथ यह भी ढलती जाती है
उस पर गर्व क्या करना
जो समय के साथ , साथ छोड़ दे
बहुत इतराती
अपने सामने किसी को कुछ न समझती
आखिर अब वह जा रही है
धीरे - धीरे जाते जाते
कानों में कुछ कह रही है
ऐसा करों
जो मुझे जाने के बाद भी तुम्हें याद रखें
जो तुम्हारा साथ कभी न छोड़े
वह है तुम्हारा व्यवहार
वह हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगी
लोग सौदर्य को भूल जाएंगे
पर तुमको याद रखेंगे
असली खूबसूरती मन की
काला - गोरा
लंबा - ठिंगना
पतला - मोटा
सब भूल जाता है
बस याद रहता है
वह है व्यक्ति
Monday, 22 February 2021
कठोर बनना
मुझे बहुत बार तोड़ने की कोशिश हुई
सब नाकाम हुए
मुझे कहा गया
मैं पत्थर हूँ
मजबूत हूँ
सही भी है
पत्थर बनना पडता है
न जाने कितनी बार ठोकर मारी
पर मैं न हिला
सब साथ मिलकर भी हिलाने की कोशिश कर ली
तब भी मैं टस से मस न हुआ
ऐसा नहीं कि मुझे चोट नहीं लगी
लगती थी पर मन मसोसकर रह जाता था
सोचता था
लाख प्रयास करें
अपनी जगह बनाना है
तब हिलने से काम नहीं चलेगा
कठोर तो बनना ही पडेगा
कर्म में कठोर बनना ही पडता है
हिलते रहें तो हिलते रहेंगे
Sunday, 21 February 2021
रोने वाले
यह दुनिया है
जहाँ चले जाएं
कुछ ऐसे मिलते हैं
जो हमेशा रोना रोते रहते हैं
रोना उनकी आदत में शुमार
रोएं बिना चैन नहीं
सब कुछ है भगवान की कृपा से
तब भी रोना नहीं छोड़ सकते
हर छोटी छोटी बात पर रोना
छींक भी आ गई तब भी
लगता कोई मुसीबत आ गई
वैसे आजकल तो छींक से भी डर लगता है
इन्हें हर चीज से शिकायत
ऐसा हुआ तो
ऐसा नहीं हुआ तो
दोनों ही तरफ चलेंगे
रोने का जरिया ढूंढ ही लेंगे
हंसते कब हैं
खुश कब होते हैं
ये तो राम ही जाने
लाख खुश हो
दिखाते यही हैं
हम सबसे ज्यादा दुखी हैं
Saturday, 20 February 2021
प्रेरक कहानी
*अच्छाई पलट-पलट कर आती रहती है...*✍🏻
*ब्रिटेन के स्कॉटलैंड में फ्लेमिंग नाम का एक गरीब किसान था। एक दिन वह अपने खेत पर काम कर रहा था। अचानक पास में से किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी । किसान ने अपना साजो सामान व औजार फेंका और तेजी से आवाज की तरफ लपका।*
*आवाज की दिशा में जाने पर उसने देखा कि एक बच्चा दलदल में डूब रहा था । वह बालक कमर तक कीचड़ में फंसा हुआ बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था। वह डर के मारे बुरी तरह कांप पर रहा था और चिल्ला रहा था।*
*किसान ने आनन-फानन में लंबी टहनी ढूंढी। अपनी जान पर खेलकर उस टहनी के सहारे बच्चे को बाहर निकाला।अगले दिन उस किसान की छोटी सी झोपड़ी के सामने एक शानदार गाड़ी आकर खड़ी हुई।उसमें से कीमती वस्त्र पहने हुए एक सज्जन उतरे*
*उन्होंने किसान को अपना परिचय देते हुए कहा- " मैं उस बालक का पिता हूं और मेरा नाम राँडॉल्फ चर्चिल है।"*
*फिर उस अमीर राँडाल्फ चर्चिल ने कहा कि वह इस एहसान का बदला चुकाने आए हैं ।*
*फ्लेमिंग नामक उस किसान ने उन सज्जन के ऑफर को ठुकरा दिया ।*
*उसने कहा, "मैंने जो कुछ किया उसके बदले में कोई पैसा नहीं लूंगा।*
*किसी को बचाना मेरा कर्तव्य है, मानवता है , इंसानियत है और उस मानवता इंसानियत का कोई मोल नहीं होता ।"*
*इसी बीच फ्लेमिंग का बेटा झोपड़ी के दरवाजे पर आया।*
*उस अमीर सज्जन की नजर अचानक उस पर गई तो उसे एक विचार सूझा ।*
*उसने पूछा - "क्या यह आपका बेटा है ?"*
*किसान ने गर्व से कहा- "हां यह मेरा बेटा है !"*
*उस व्यक्ति ने अब नए सिरे से बात शुरू करते हुए किसान से कहा- "ठीक है अगर आपको मेरी कीमत मंजूर नहीं है तो ऐसा करते हैं कि आपके बेटे की शिक्षा का भार मैं अपने ऊपर लेता हूं । मैं उसे उसी स्तर की शिक्षा दिलवाने की व्यवस्था करूंगा जो अपने बेटे को दिलवा रहा हूं।फिर आपका बेटा आगे चलकर एक ऐसा इंसान बनेगा , जिस पर हम दोनों गर्व महसूस करेंगे।"*
*किसान ने सोचा "मैं तो अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिला पाऊंगा नहीं और ना ही सारी सुविधाएं जुटा पाऊंगा, जिससे कि यह बड़ा आदमी बन सके ।अतः इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता हूँ।"*
*बच्चे के भविष्य की खातिर फ्लेमिंग तैयार हो गया ।अब फ्लेमिंग के बेटे को सर्वश्रेष्ठ स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।*
*आगे बढ़ते हुए उसने लंदन के प्रतिष्ठित सेंट मेरीज मेडिकल स्कूल से स्नातक डिग्री हासिल की।*
*फिर किसान का यही बेटा पूरी दुनिया में "पेनिसिलिन" का आविष्कारक महान वैज्ञानिक सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग के नाम से विख्यात हुआ।*
लेकिन
*यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती! कुछ वर्षों बाद, उस अमीर के बेटे को निमोनिया हो गया ।*
*और उसकी जान पेनिसिलीन के इंजेक्शन से ही बची।*
*उस अमीर राँडाल्फ चर्चिल के बेटे का नाम था- विंस्टन चर्चिल , जो दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे !*
*हैं न आश्चर्यजनक संजोग।*
*इसलिए ही कहते हैं कि व्यक्ति को हमेशा अच्छे काम करते रहना चाहिए। क्योंकि आपका किया हुआ काम आखिरकार लौटकर आपके ही पास आता है ! यानी अच्छाई पलट - पलट कर आती रहती है!यकीन मानिए मानवता की दिशा में उठाया गया प्रत्येक कदम आपकी स्वयं की चिंताओं को कम करने में मील का पत्थर साबित होगा ।*
*कुँए में उतरने के बाद*
*बाल्टी झुकती है,*
*लेकिन झुकने के बाद,*
*भर कर ही बाहर निकलती है।*
*यहीं जिन्दगी जीने का सार हैं।*
*जीवन भी कुछ ऐसा ही है,*
*जो झुकता है वो अवश्य,*
*कुछ न कुछ लेकर ही उठता है।*
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अपना घर अपना ही
पेड़ सूखा था
वसंत का आगमन होने को था
सब इंतजार कर रहे थे
कब हरा - भरा होगा
पत्ते - फूल आएंगे
तब हम विचरण करेंगे
ठूंठ और सूखे पर कौन बसेरा डालेगा
एक चिडिया उसी पर रहती थी
उसने नहीं छोड़ा
फुदकती रही
बच्चों को जन्म दिया
अब बच्चे भी निकले
सब बडे हो रहे थे
सब छोड़कर जा रहे थे
चिडियाँ नहीं गयी
वह अपने आशियाने में पडी रही
उसे अपने घोसले से प्यार था
उसको यहाँ वहाँ भटकना नहीं था
वसंत आया
पेड़ फिर लहलहाया
झूमने लगा
चिडियाँ खुश हो इस डाली से उस डाली डोलती
यह सब देख फिर सब वापस आए
मन में थोड़ा कसक थी
पेड़ हमारे बारे में क्या सोचेंगा
कितने स्वार्थी हो गए हम
कठिनाई में छोड़ा
भरा- पुरा तब फिर आए
शर्म से झुकी हुई नजर सबकी देख
चिडियाँ ने कहा
आओ अपना घर अपना ही होता है
तुम उसको भले छोड़ दो
वह तुम्हें हर हाल में स्वीकार करेंगा
लगता है अजनबीपन
सब कुछ था वहाँ
मन का सुकून नहीं था
एक घुटन सी होती थी
अंदर ही अंदर मन मसोसकर रह जाती
क्यों खुशी नहीं मिलती
हर वक्त उदासी का छाना
तब ऐसा लगा
अब यहाँ से हट जाना
क्यों होता है ऐसा
जब कुछ लगता है पराया
नहीं लगता है अपना
जबकि सब अपने ही
सब अजीज हैं
मुझे जान से प्यारे हैं
उनकी हर चोट लगती मेरी चोट
उनका दुख - दर्द
लगता मेरा अपना
हर वक्त उनकी सलामती की दुआ
यही मांगती हूँ मैं हमेशा
तब इस मन का क्या करें
क्यों विचलित होता है
कहीं न कहीं कोई तो कमी है
संबंधों में कुछ तो दुरावट है
ऊपर से कुछ
अंदर से कुछ
जो है वह दिखता नहीं
जो नहीं है वह दिखता है
क्यों नजदीकीयां बस रही है दिखावे की
जबकि मन से पास - पास
एक का कांटा लगा
दूसरे को चुभता है
फिर भी वह गर्माहट नहीं
तभी होता है
लगता है अजनबीपन
यादों के भंवर
आज यादों के झरोखों में जरा सैर कर लिया
सबका हिसाब - किताब कर लिया
क्या फटा क्या उघडा
किसको सीया
किसका रफू किया
किसकी तुरपाई की
किसकी बखिया उधेड़ फिर सिलाई की
कुछ एकदम फट गए
उसे फेंक दिया
कुछ दाग लग गए
उनको रगड़कर धो दिया
कुछ बिल्कुल फट गए
पहनने लायक ही नहीं रहें
उन्हें फेंक दिया
कुछ पुराने थे
उन्हें दे दिया ।
जिंदगी की कपडे की सिलाई करते करते न जाने क्या - क्या किया
कभी नया था तब खूब इतराए थे
कुछ दिन बाद ही सब असलियत से सामना
इतना आसान नहीं होता
न जाने कितने जतन करना पडता है
तब जाकर यह सही सलामत रहता है
न जाने कितनी बार तुरपाई , बखिया , रफू किया
सुधारते रहें
जब ज्यादा फट ही गया
बहुत पुराना हो गया
तब उसको सहेजे रखना क्यों ??
जिंदगी में नयापन भरना है
तब पुराने को छोड़ना है
फटे तो फेकना है
सांप भी पुरानी केंचुली को उतार फेंकता है
तब हम क्यों यादों के भंवर में गोते लगाएं
अपनी जिंदगी कैसे जीए
मेरी पहचान क्या ??
मैं बडे पद पर कार्यरत हूं
मैं हाइअली एज्युकेडेट हूँ
मेरा ऑफिस में एक रूतबा है
कहीं अधीनस्थ कर्मचारी मेरे अंडर काम करते है
अच्छा बडा मकान है
गाडी है
सुख - सुविधा के सब साधन है
मैं परिवार के सदस्यों का भी ध्यान रखती हूँ
पूरे परिवारों का खर्चा चलाती हूँ
मैं आत्मनिर्भर हूँ
अपने दम पर
अपने शर्तों पर जिंदगी जीती हूँ
यह सब होने के बावजूद मैं बेचारी हूँ
तरस आता है लोगों को
कारण मैं सिंगल हूँ
कोई मुझे हेय की तो
कोई दया की दृष्टि से देखता है
कुछ ईष्या से देखते हैं
तो कुछ बातें बनाने को
कोई तोहमत लगाने को
ऐसा समाज जहाँ
जिंदगी की शुरुआत ब्याह से
खत्म ब्याह पर
डोली और अर्थी वाली धारणा
कितना भी सामर्थ्यवान कोई हो जाएं
यह सोच बदलने वाली नहीं
कपड़े और रहन - सहन से आधुनिक भले हो जाएं
विचारों से मार्डन नहीं हो सकते
समाज की संरचना और उसका संचालन करने वाले
कुछ ऐसे लोग
जो न आगे बढेंगे
न किसी को बढने देंगे
बस कूपमंडूकता को ओढे अपना अस्र और शस्त्र चलाते रहेंगे
हर संभव कोशिश रहती है इनकी
कब किसको गिराया जाएं
मजा आता है इनको
ये और कुछ तो कर नहीं सकते
हाँ लोगों की जिंदगी नर्क कर डालते हैं
समाज के इन तथाकथित ठेकेदारों की परवाह किए बिना
आगे बढना है
अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीना है
Friday, 19 February 2021
ऐसे ही जीना है
अब तक जी रही थी
दूसरो के लिए
उनकी इच्छा सर्वोपरि
हर सदस्य का ध्यान रखती
खाना - पीना
पहनना - ओढना
पढना - लिखना
सब कुछ ध्यान रखती
बस अपने को छोडकर
अब वही सब छोड़कर चले गए
मुझे अपना ख्याल रखने को कह गए
अब अपना ख्याल रखती हूँ
सुबह-सुबह सैर पर जाती हूँ
बिना चीनी की चाय पीती हूँ
सूखी रोटी बिना घी चुपड़ी खाती हूँ
बिना तेल - मसाला की सब्जी बनाती हूँ
भगवान का नाम जपती हूँ
नियम से स्नान - ध्यान करती हूँ
सबसे प्रेम से बोलती हूँ
ऐसा तब भी लगता है
कि कहीं कुछ छूट गया
जब जीना था अपनी मर्जी से
तब तो जीया नहीं
अब शरीर की मजबूरी है
या मर्जी कह लो
ऐसे ही जीना है
इच्छा - अनिच्छा का कहीं प्रश्न नहीं
बस निर्लिप्त भाव से जीना है
मेरा घर जो घर न रहा
वह मकान था उसका
उसे घर बनाया था
सारी जमा - पूंजी जोड़ एक आशियाना खडा किया था
बडे - बडे सपने संजोये थे एक अदद घर का
वह बनकर पूरा हुआ
हर जरुरत की चीज से संवारा था
उसे खूबसूरत बनाया था
मेहनत और पसीने की कमाई लगी थी
तभी तो जान से भी प्यारा था
एक गर्व होता था
ईट - गारे का मकान भले हो
भावनाओं का उसमें समंदर लहराता है
हर वस्तु हर दीवार एक याद समेटे रहती है
सब खुश हुए
गृहप्रवेश हुआ
पूजा - पाठ हुआ
भोज दिया गया
दोनों बच्चों का ब्याह हुआ
समय भी पंख लगाकर उडता रहा
कुछ वर्ष बीते
अब उसका बंटवारा हो रहा था
आधा - आधा बांट लिया गया
मैं किसके हिस्से में
यह भी प्रश्न ??
आखिर निर्णय हुआ
आधा साल इधर आधा साल उधर
अब तख्ता डाल दिया गया बरामदे में
इस बरामदे से उस बरामदे डोलता रहा
अंदर आने की सख्त मनाही
सारे सपने ढह गए
मन की इच्छा मन में रही
एक कोने में पडा बिसुर रहा
अपने ही घर में बोझ बन रहा
आते - जाते सबको देखता हूँ
किसी के पास फुर्सत नहीं
न बात करने की न हाल-चाल पूछने की
अजनबी बन पडा हूँ
अपने को कोस रहा हूँ
कुछ पैसे अपने बुढापे के लिए भी बचाकर रखा होता
तब अपने ही घर में उपेक्षित - लाचार नहीं होता
दाने - दाने को मोहताज न होता
यह घर , घर न होकर सराय लगता है
अब यहाँ कोई न अपना लगता है
जैसी जिसकी सोच
किसी ने मेरा अपमान किया
बहुत दुःख हुआ
मैं निराश हो गया
क्यों मैंने ऐसा क्या किया
जिसका ऐसा परिणाम मिला
मैं तो सबसे प्रेम से मिलता हूँ
बतियाता हूँ
बैठाता हूँ
हर आने वाले का दिल खोलकर स्वागत करता हूँ
सबको इज्जत देता हूँ
सबसे हिल - मिलकर रहता हूँ
कभी किसी बात का घमंड नहीं करता
अपने ओहदे और पद की डींग नहीं हांकता
किसी को छोटा या तुच्छ नहीं समझता
इन सबके बावजूद सब मुझसे ईष्या करते हैं
कुछ न कुछ व्यंग करते हैं
मजाक उडाते हैं
मेरी सज्जनता और नम्रता को कमजोरी समझते हैं
अब क्या करूँ
ये तो बदल नहीं सकते
तब क्या मैं इनके जैसा बन जाऊं
उसमें तो मैं स्वयं को ही खो दूंगा
उनमें और मुझमें फर्क क्या रह जाएंगा
यही सोच कर संतोष है
सोने का मूल्य लोहार तो नहीं जान सकता
वह तो पीटना और ठोकना जानता है
तब मैं अपना मूल्य कम क्यो करूँ
कुशल कारीगर के साथ रहूँ
ताकि तराशा जाऊं
और चमक बिखेरू
जो मेरा वैल्यू नहीं समझते
उन्हें छोड़ दूँ
दुखी होने के बजाय यह सोचूं
जैसी जिसकी सोच
मैं त्रृणी हूँ
मैं त्रृणी हूँ
इस धरा का
मैं त्रृणी हूँ
इस मिट्टी का
मैं त्रृणी हूँ
माता - पिता का
मैं त्रृणी हूँ
गुरुजनों का
मैं त्रृणी हूँ
परिवार जनों का
मैं त्रृणी हूँ
अपने गांव - शहर का
मैं त्रृणी हूँ
अपने दोस्तों - यारों का
मैं त्रृणी हूँ
अपने पडोसियों का
मैं त्रृणी हूँ
इस समाज का
मुझे बनाने में इन सबकी बडी महत्वपूर्ण भूमिका रही है
कभी स्नेह से
कभी डांट फटकार से
कभी अनुशासन से
कुछ न कुछ सभी का योगदान है
तब जिम्मेदारी तो मेरी भी बनती है
मैं यह कैसे सोच लू
मैं अकेले ही सब कुछ कर सकता हूँ
अगर ये नहीं होते मेरे निर्माण में
मनुष्य बनाने में
तब मैं कुछ और ही होता
ईश्वर ने मुझे पृथ्वी पर भेजा है
मानव इन्होंने बनाया है
इन सब का त्रृण उतार तो नहीं सकता
पर इनका मान तो बढा सकता हूँ
Wednesday, 17 February 2021
हम न रहें रीते
हमने न देखा एक - दूसरे को
न जोड़ी मिली न कुंडली
बांध दिए ब्याह के बंधन में
जिंदगी भर साथ निभाना था
तुममें और मुझमें जमीन - आसमान का अंतर
भिन्न विचार
भिन्न रहन - सहन
भिन्न परिवेश
भिन्न खान - पान
हर जगह समझौता करना था
हम लडते - झगड़ते रहें
जिंदगी की गाडी चलाते रहे
समझौता करते रहें
मुझे लगा कि मैंने ही सब सहा है
मैं ही झुकी हूँ
शायद वह सही नहीं है
समझौता तो तुमने भी किया है
निभाया तो तुमने भी है
यह सब हुआ
वह जो तुम्हारा निश्चल प्रेम था
मुझ पर अटूट विश्वास
कुछ भी करने को तत्पर
मैंने हमेशा दिमाग से सोचा
तुमने हमेशा दिल से सोचा
दिमाग के आगे दिल जीता
जब जब मुझे लगा
मैं टूटी मैं बिखरी
तुमने मुझे उबारा
खडे हुए मेरी ढाल बनकर
हर बार भरोसा दिलाया
साथ निभाऊगा हर हाल में
वह निभाया भी
आज चालीस साल पूरे हो गए हैं
कभी तुम रूठे कभी मैं रूठी
रूठते - मनाने का सिलसिला चलता रहा
हम अपने को भूल गए
बस एक - दूसरे की याद रही
बरसों गुजरे
हम एक - दूसरे के साथ रहें
अब जो बाकी है वह भी बीते
हम न रहें रीते