Saturday, 31 July 2021

वैसे हमारे लिए भी

कभी मैंने सिखाया तुझको
चलना सिखाया तुझको
तरीका रहन सहन का सिखाया तुझको
मनपसंद खाना खिलाया तुझको

हमारा समय बीत चुका है
अब बारी तेरी है
बात कोई फर्ज की नहीं
न कोई कर्ज की
न दुनिया दारी की
बस एक अपनेपन की है

वहीं अपनापन जो हमसे मिला था
प्यार  और स्नेह मिला था
अधिकार  मिला था
हम , हम न रहे थे
अपने को समाहित कर दिया था
तुम्हारे लिए

अब हमें भी कुछ सीखना है
मोबाइल चलाना
गाडी बुक कराना
ए टी एम से पैसे निकालना
होटल से खाना मंगवाना
यह सब हमसे ज्यादा तुमको आता है
कम्प्यूटर युग के हो

तब जरा समय निकालो
हमारा भी कुछ ख्याल रखो
काम तो चलता रहेगा
जैसे सबके लिए  समय
वैसे ही हमारे लिए भी

Friday, 30 July 2021

मैं जिंदा हूँ

कहने को तो जीता है आदमी
अब जीना किसे कहते हैं
यह शायद वह नहीं जानता
हर रोज चोट खाता है
फिर भी उफ तक नहीं  करता
न जाने क्या - क्या दफन करता है
तब वह जीता है
आशा - आंकाक्षाओ की बलिवेदी रोज चढाता है
घुटता है
सिसकता है
कराहता है
पर दिखाता नहीं है
सब सीने में छुपाए रखता है
ऊपर से हंसी बिखेरता है
ठहाके लगाता है
सबको बताता है
मैं जिंदा हूँ

औरत को समझना इतना आसान नहीं

औरत केवल औरत ही नहीं होती
वह माँ होती है
बहन होती है
पत्नी होती है
दोस्त होती है
प्यार से लबालब होती है
बिन मांगे बहुत कुछ दे जाती है
सारी जिंदगी खाना बनाती है
घर संभालती है
दुनियादारी निभाती है
सारा दारोमदार अपने कोमल कंधों पर लेकर चलती है
कोमलता और कठोरता का मिश्रण होती है
वह अपने लिए नहीं दूसरों के लिए सब करती है
त्याग कर
अपने पीछे रहकर
अपनों को आगे बढता देख खुश होती है
हमेशा ऑखों में ऑसू भरी होती है
यह खुशी और दुख दोनों के हो सकते हैं
इसका सबसे बडा अस्र- शस्त्र भी यही हैं
सबकुछ  उलट - पलट कर सकती है
यह चाहे तो महाभारत
यह चाहे तो रामायण
बहुत जटिल पहेली है यह औरत
इसको समझना इतना  आसान नहीं

हद से ज्यादा से नहीं

हमने तो क्या सोचा था
हुआ क्या
जो देखा
जो सोचा
जो समझा
वह तो भ्रम था
ऑखों  पर परदा था
हम इसी भ्रम जाल में जीते रहे
लोगों की बातों को नजरअंदाज करते रहे
नहीं पता था
हर बात का एक मतलब होता है
किसी ने आपके लिए कुछ किया भी
उसमें भी एक अहसान होता है
समय-समय पर यह एहसास दिलाता जाता है
आपकी कमजोरी को बताया जाता है
जताया जाता है
सही है
इस दुनिया में रहो तो शान से सर उठाकर रहो
जीओ तो स्वाभिमान से जीओ
समझौता करो पर उतना ही
हद से ज्यादा से नहीं

Saturday, 24 July 2021

यह तो पिता ही कर सकता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ अपनापन और अधिकार होता है
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम मेहमान सरीखे होते हैं
कुछ भी छूने से डर लगता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम जिद करते हैं
अपनी बात मनवा कर ही छोड़ते हैं
खाने में ना - नुकुर करते हैं
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम समझदार हो जाते हैं
जो मिला वह खा लेते हैं
ना - नुकुर की कौन कहे
रसोई में जाने पर भी डर लगता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम जब चाहे आ - जा सकते हैं
विचरण कर सकते हैं
परमीशन की जरूरत नहीं
एक घर भाई का होता है
जहाँ सोचना पडता है
मौका और वक्त  देखना पडता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम राजकुमारी होते है
राजदुलारी  होते हैं
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम सिर्फ उस घर की बेटी होते हैं
नाज - नखरे नहीं कर सकते
उसे उठाने वाला कोई नहीं
हर भाई पिता समान नहीं हो सकता

पिता तो पिता ही होता है
उसकी जगह कोई नहीं ले सकता
न किसी का दिल इतना बडा होता है
अपना सर्वस्व लुटाकर भी हमारे चेहरे पर मुस्कान हो
यह तो पिता ही कर सकता है।

बिना गुरु के ज्ञान कहाँ

पता नहीं  वे लोग कहाँ हैं, कैसे हैं, हैं भी या नहीं। फिर भी हमारी यादों में हैं। समय-समय पर याद भी आते हैं और वे हैं हमारे गुरू।
मिसेज सुशीला गुप्ता ,मिसेज नारंग ,विनोद गोदरे सर , प्रभात सर , मिसेज बहल , पांडे सर ,कुरैशी सर
मिश्रा सर
बहुत कुछ बच्चों को पढाने की स्टाइल इन्हीं से सीखा था
ये जिस तरह पढाते थे हमने भी वैसा ही प्रयास किया ।
बहुत हद तक सफल भी रहें।
आज गुरु पूर्णिमा पर उन्हें सांष्टांग दंडवत।
मैं तो स्वयं बहुतों की गुरू रही हूँ सालोसाल हजारों विधार्थियों की ।
इस गुरू के भी ये गुरू हैं वंदन है सभी का ।
   बिना गुरु के ज्ञान कहाँ  ??

अपने सभी गुरुजनों को नमन

गुरू बिना ज्ञान  कहाँ??
हर उस गुरू पर गुरूर
जिससे हमने सीखा
सीखना असीमित है
गुरू की भी कोई सीमा नहीं
बचपन से गिरते - पडते
पाठशाला की दहलीज पार करते
जीवनयात्रा में आज तक न जाने कितने गुरू
सभी को नमन
तहे दिल से शुक्रिया
तुम न होते तो जो आज हम हैं
वह हम न होते
जैसे भी सिखाया हो
जाने में
अंजाने में
प्यार से
अपनेपन से
डांट से क्रोध से
उपेक्षा से भी
हमने तो सीखा
आज भी सीख ही रहे हैं
उम्र कोई मायने नहीं रखती
एक बच्चा और युवा भी सिखा जाता है
और जो सही है
जायज है
उसे सीखने और अपनाने में गुरेज क्यों 
हमें तो सीखना है
स्वयं को Update रखना है
हमारे जीवन में सहभागी होने के लिए
आप को शायद हम याद रहें या न रहें
पर आप हमारे दिल में हैं
दिमाग में हैं
     धन्यवाद और शुक्रिया

Thursday, 22 July 2021

मन का छोर

गाडी  चल रही है
अनवरत दौड़ रही है
मन में विचार भी उसी गति से चल रहे हैं
बीच में  कभी - कभी तंद्रा भंग हो जाती है
जब चायवाला आवाज लगाता है
चायययय चायययययय
एक क्षण  देखती हूँ
फिर विचारों में मग्न
न जाने कहाँ- कहाँ से
न जाने किस रूप में
कभी अच्छा कभी बुरा
कभी आलोचनात्मक
आदत हो गई है
हर चीज का चीर-फाड़ करना
मन शांत रहने ही नहीं देता
काबू करके रखना चाहिए
पर होता नहीं है
हम परेशान रहते हैं
उन बातों से
जो आज के समय में कुछ मायने नहीं रखते
बीती बातों की बखिया उघड़ने से क्या हासिल
गाडी तो पहुँच ही जाएंगी
अपने ग॔तव्य पर
पर विचार तो नहीं
उसका तो ओर छोर ही नहीं।

भाव से ही स्वभाव

भाव से ही स्वभाव
जैसा भाव वैसी भावना
जाकि रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तीन तैसी
जहाँ भाव वहाँ अभाव कहाँ
मन भावों से परिपूर्ण हो
दया , करूणा का वास हो
तब स्वभाव क्यों न हो सुवर्ण सा

Monday, 19 July 2021

जल संरक्षण

जल संरक्षण
पानी बचाओ
वाया मत करो
नहीं तो भविष्य नहीं मिलेगा
भविष्य की चिंता क्यों
वर्तमान में ही कर ले
आज से
अभी से
पानी से दोस्ती कर ले
संभाल कर रखें
बहुत अनमोल है
यह तो जीवन है
बिना जरूरत के  खर्च मत करें

Sunday, 18 July 2021

चार पैसों का गणित

बचपन में बुजुर्गों से एक कहानी सुनते थे कि... इंसान 4 पैसे कमाने के लिए मेहनत करता है या... बेटा कुछ काम करोगे तो 4 पैसे घर में आएँगे या... आज चार पैसे होते तो कोई ऐसे ना बोलता, आदि-आदि ऐसी बहुत सी बातें हम अक्सर सुनते थे।

आख़िर क्यों चाहिए ये चार पैसे और चार ही क्यों तीन या पाँच क्यों नहीं?
तीन पैसों में क्या कमी हो जायेगी या पाँच से क्या बढ़ जायेगा? आइये...
समझते हैं कि इन चार पैसों का क्या करना है?........
.
पहला पैसा खाना है...
दूसरे पैसे से पिछला क़र्ज़ उतारना है...
तीसरे पैसे का आगे क़र्ज़ देना है और...
चौथे पैसे को कुएं में डालना है। अर्थात् दान करना है ...

4 पैसों का रहस्य...
1. खाना : अर्थात अपना तथा अपने परिवार पत्नी, बच्चों का भरण-पोषण करना, पेट भरने के लिए।
2. पिछला क़र्ज़ उतारना...
अपने माता-पिता की सेवा के लिए उनके द्वारा किए गये हमारे पालन-पोषण क़र्ज़ उतारने के लिए।
3. आगे क़र्ज़ देना :- सन्तान को पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाने के लिए ताकि आगे वृद्धावस्था में वे आपका ख़्याल रख सके।
4. कुएं में डालने के लिए :-  अर्थात शुभ कार्य करने के लिए दान, सन्त सेवा, असहायों की सहायता करने के लिए, यानि निष्काम सेवा करना, क्योंकि हमारे द्वारा किए गये इन्ही शुभ कर्मों का फल हमें इस जीवन के बाद मिलने वाला है।

इन कार्यों के लिए हमें चार पैसों की ज़रूरत पड़ती है...

यदि तीन पैसे रह गए तो कार्य पूरे नहीं होंगे और पाँचवे पैसे की ज़रूरत ही नहीं है। 
यही है 4 पैसों का गणित...💐🙏🏻COPY PASTE

मुझे मत बुलाना

आज सुबह से ही उमा जी की खूब खातिरदारी हो रही है
हर महीने की पहली तारीख को उनके साथ ऐसा ही होता है।
सबके चेहरे खिले हुए
पोते - पोती उनके पास मंडराते हुए
बहू उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करते हुए
अच्छी सी साडी निकाली जाती है उनके पहनने के लिए
वैसे तो वे बाहर जाती नहीं
उनके पैरों में दर्द जो रहता है
बस आज के दिन जाती है
बेटा मोटर साईकिल पर बिठाकर ले जाता है
वहाँ जाकर वे अंगूठा लगाती है हाथों में रुपयों की गड्डी मिलती है
वह उसमें से कुछ रूपये निकलकर बेटे को दे देती है
आते समय उन्हीं रुपयों से बच्चों के लिए मिठाई - नमकीन ले लेती है
कभी-कभी कपडे भी ले लेती है
घर पर जाते ही बच्चे दादी को घेर कर  खडे हो जाते हैं
क्या करें वे भी
बेटा बेकार है
कुछ काम - धंधा नहीं  करता
घर का खर्चा उनकी ही पेंशन से चलता है
पति सरकारी नौकरी में  जो थे
मरने के बाद अब उमा जी को मिलती है
वे ही एक सहारा है
जबकि इस समय उन्हें सहारे की जरूरत है
बुढापा  है
पता नहीं कितनी उम्र है
बहुत सारी शारीरिक तकलीफ है फिर भी वे जीना चाहती हैं
पहले बेटे - बेटी के लिए
अब पोते - पोती के लिए
यही डर हमेशा  सताता है कि मैं न रहूंगी तो इनका क्या होगा
यह पेंशन ही तो सहारा है
माँ है न
उसका कर्तव्य तो कभी खत्म हो नहीं सकता जब तक वह जीए
जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती
बच्चों के  बच्चों की भी जिम्मेदारी
बस ईश्वर से हाथ जोड़ कहती है जब तक ये पोते - पोती बडे न हो जाएं
मुझे मत बुलाना
नहीं तो कैसे इनका गुजारा होगा ।

Saturday, 17 July 2021

ईमानदार आदमी

मैं ईमानदार हूँ
रिश्वत नहीं लेता
कर्ज नहीं लेता
झूठ नहीं बोलता
बेईमानी नहीं करता
ईमानदारी से अपनी कमाई से अपना और अपने परिवार का गुजर - बसर करता हूँ
जितनी चादर उतनी ही पैर फैलाता हूँ
आज तक किसी को धोखा नहीं दिया
फिर भी सम्मानित नहीं हूँ
मेरा परिवार ही हिकारत की नजर से देखता है
पत्नी और बच्चों को शिकायत रहती है
वह मेरी तुलना औरों के पति और पिता से करते हैं
रिश्तेदारी में भी तवज्जों नहीं दी जाती
क्योंकि मैं धनवान जो नही हूँ
रुपयों को पानी की तरह नहीं उडाता
मांस - मदिरा का सेवन भी नहीं करता
सोसायटी में भी अनदेखा किया जाता हूँ
सोचता हूँ
यह किस बात की सजा है
क्या अपने जीवन जीने के ढंग की वजह से
ढोंग करना आता नहीं
जो हूँ जैसा हूँ वह हूँ
मन में  एक सुकून है
जिंदगी में धोखा भले मिला हो किसी को धोखा दिया नहीं
अपनी मेहनत का खाता हूँ
सीधा - सादा जीवन जीता हूँ
डरपोक कहलाना पसंद है पर गुंडा- दादा नहीं
आज नहीं तो कल बच्चों को यह समझ ही आ जाएंगा
वे सर उठाकर चल सकते हैं
क्योंकि  उनका बाप चोर  , बेईमान और भ्रष्टाचारी नहीं है
एक साधारण ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है ।

पति और प्रेमी

प्रेम केवल प्रेमी करें ऐसा जरूरी तो नहीं
पति भी करता है हाँ वह इजहार नहीं करता
हो सकता है वह उपहार नहीं देता
हो सकता है वह फूलों के गुलदस्ते नहीं  देता
हो सकता है वह लच्छेदार भाषा नहीं बोलता
हो सकता है वह मनुहार नहीं  करता
फिर भी वह प्यार तो करता है
उसका साथ ही काफी है गुरुर के  लिए
वह छुप - छुप कुछ नहीं करता
जो है जैसा है डंके की चोट पर करता है
पत्नी के स्वाभिमान की रक्षा
सात फेरों का वचन वह बखूबी  निभाता है
कमाता वह है जेब खाली उसकी रहती है
पत्नी घर पर राज करती है वह बस काम करता है
सारे ऐशो-आराम पत्नी और बच्चे
वह ऑफिस और दुकान में खटता है
पत्नी  और बच्चों के ढेरों कपडे
वह दो - तीन कपडों में गुजारा करता है
उसकी ख्वाहिश पूरी होने का सवाल ही नहीं
वह परिवार के ख्वाहिशो को पूरी करने में लगा रहता है
पूर्ण समर्पित होता है
अपने को मिटाता है
फिर भी सुकून से रहता है
जिम्मेदार बना रहता है
उसके ऊपर किसी दूसरे का अधिकार
यह भी वह भलीभांति समझता है
फिर भी ऊफ नहीं करता
और क्या करेंगा प्रेमी जो वह नहीं करता है
दिखावट नहीं असलियत में रहता है
तभी तो यह सबसे अटूट बंधन कहलाता है

सुरेखा सीकरी

दादी सा चली गई
अपने अभिनय की छाप छोड़ गयी
बालिका वधु की दादी सा को कौन भूल सकता है
जो उस सीरियल की जान थी
असली नायिका तो वही थी
एक अनपढ़ औरत का सफर
जो रूढ़ीवादी से आधुनिकता को स्वीकार करती है
वह भी अपने पोते की बहू के  कारण
एक कठोर सास
एक ममतामयी माँ
एक अनुभवों से पगी दादी
पूरा घर का दारोमदार उन्हीं के  कंधों पर
क्या चाल क्या ठसक
गले में हसुली
पैरों में कडे
सर पर दुपट्टा ओढे
न जाने कितने बडे बडे काम
गाँव की कम पढी लिखी भी वर्किंग लेडी हो सकती है
कठोरता पर ममता में पगा
पढा - लिखा बेटा
आधुनिक बहुए
उनके साथ तालमेल बिठाती दादी सा
यह किरदार कोई नहीं भूल सकता ।

Friday, 16 July 2021

का बरखा जब कृषि सुखाने

आज भी सब कुछ तुम्हारा है
मेरा कुछ नहीं
हम तो बस अजनबी है
तुम्हारा घर
तुम्हारे माता - पिता
तुम्हारे भाई - बहन
तुम्हारा परिवार
उस परिवार में हम कहाँ
यह आज तक समझ न आया
बच्चे कहने को तुम्हारे
पर अधिकार के नाम से शून्य
तुम तो कर्तव्य वान
तुम्हें  तो समाज की चिंता
समाज ही सब कुछ
उसमें  मेरा और मेरे बच्चों की भावनाओं का गला घोंटा गया
इच्छा  - आंकाक्षाओ की बली चढा दी गई
हम तो समझे नहीं
कब हमारी जवानी गई
कब बच्चों का बचपन खत्म हुआ
समय से पहले बडे हो गए
दूसरे के ऊपर निर्भर हो बचपना भूल गए
न कभी जिद न कोई मांग
वो जाने कब बडे हो गए
सबका वक्त बदल गया
हम तो वहीं के वहीं खडे
जहाँ से चले थे वहीं पडे रहे
हसरतों से दूसरों को निहार रहें
अतीत को भूल जाओ
अतीत के गर्भ में तो वर्तमान छिपा है
जिस पेड़ का जड कमजोर वहाँ फुनगी कैसे पनपेगी
जिस ईमारत की नींव कमजोर वह ऊपर से मजबूत कैसे हो सकती है
उम्र बीत चली उम्मीद के सहारे
फिर भी टीस तो बाकी है
सही भी है
समय तो निकल ही गया
जब जरूरत हो तब वह न मिले
पेट में भूख हो तो स्वादिष्ट खाना न मिले
जब समय हो तो इच्छा अधूरी रहें
तब उसका क्या महत्व
     का बरखा जब कृषि सुखाने

घर होकर भी घर नहीं

घर तो वह होता है
जहाँ अपनापन होता है
अपने रहते हैं
अधिकार होता है
हर कोने पर
अपनी इच्छा से विचरण होता है
हम जो चाहे जब चाहे कर सकते हैं
किसी की बंदिश नहीं
जहाँ कहने और सुनने का हक होता है
घर में हम मेहमान नहीं होते
दो - चार दिन या छह महीने
किसी की कृपा के मोहताज नहीं  होते
पूरा हक होता है तब उस घर का मतलब होता है
केवल कर्तव्यों की  दुहाई दी जाती हो
अधिकार का हनन हो
वह घर नहीं
बस स्वार्थ ही हो
मन में भेदभाव हो
मुखिया ही सर्वेसर्वा हो
बाकी सब बेकार हो
एक का कुछ नहीं
दूसरे का सब कुछ
यह भावना सर्वोपरि हो
बस अपना देखो
अपना लाभ
तब वह घर नहीं सराय होता है
प्रेम और सम्मान मांग कर भीख में मिले
अधिकार के लिए जद्दोजहद हो
यह जताया जाय
तुम्हारा क्या है
उस घर को घर कैसे माने
मन में कसक होती है
घर होकर भी घर नहीं।

समझौता

सारी जिंदगी समझौता
कभी अपने से
कभी अपनो से
कभी आशा - आंकाक्षाओ से
कभी मन को मारा
कभी इच्छाओ का गला घोटा
कभी हसरतों को दूर से निहारा
कभी अपने शौक से किनारा
यह होता तो
वह होता तो
जब हुआ ही नहीं
तब जाने कैसा होता
कहने को तो कहते हैं लोग
बिना समझौता के जीवन नहीं
पर जीवन ही जब समझौता बन जाएं
हर वक्त समझौता
हर चीज में समझौता
तब फिर क्या सोचना
कर लेंगे
जो मिलेंगा स्वीकार
न कोई शिकवा न शिकायत
जी लेंगे
सब स्वीकार कर लेंगे
यह भी तो एक समझौता है ।

चली हवा चली

चली हवा चली
इतराती, बल खाती
इधर उधर स्वच्छंद डोलती
कभी यहाँ  कभी वहाँ
कभी छत पर कभी बगीचे में
कभी किसी पेड पर
कभी खिडकी से घर के अंदर
न रहती एक जगह
जब जब डोलती
सुकून देती
आह्लादित कर जाती
कुछ पल में छोड़ फुर्र हो जाती
पकडना चाहते पर हाथ नहीं आती
मनमौजी है
जब उसका मन होता
तब ही आती
हमारे बुलाने पर तो कभी न आती
भले कितनी भी गर्मी हो
हम तपते रहते
पर इसे दया न आती
जिद्दी है
जब जिद पर आ जाती
ऑधी- तूफान ले आती
जब शांत बैठती
तब सबको पसीने से तर बतर कर जाती
मन करता
इसको पकड़ के रख ले
पर इस पर किसका बस
आएगी तभी
जब मेहरबान होगी
सांसों से जुड़ी है यह
जब तक यह आनी - जानी है
तब तक ही तो जिंदगानी है

जग की यही कहानी है

न तेरा है न मेरा है
सब माया का खेला है
न लेकर आया कोई
न लेकर जाना है
सब कुछ यहीं रह जाना है
न कोई  अपना न कोई पराया
सब दुनिया का मेला है
यह मेरा है यह तेरा है
पर साथ कुछ न ले जाना है
सब कुछ यहीं रह जाना है
रात और दिन
सुख और दुख
खुशी और गम
उदासी और आंनद
यह सब साथ साथ चलते रहें
सब उसी के पीछे भागते रहें
भंवर जाल में  उलझते रहें
कभी डूबे कभी उतराए
यह जीवननैया  चलती रही
हम अपनी कश्ती खेते रहे
पतवार  किसी और के हाथ
हम अपने हाथ में समझते रहें
मैं मैं  किया कभी तुम तुम किया
उसका न कोई सिला मिला
खाली हाथ आए
खाली हाथ ही जाना है
जग की यही कहानी है

Thursday, 15 July 2021

बहुत-बहुत प्यारा

तुम्हारे अधरों को छू लू
तब सचमुच तर जाऊं
तुम्हारे घुंघराले केशों से खेलूँ
तब सचमुच जी जाऊं
तुमको आलिंगन बद्ध कर लूं
तब इस धरा पर सब कुछ पा जाऊं
तुम्हारे नैनो में झांकू
तब समंदर की लहरों को भूल जाऊं
तुम्हारे स्पर्श को पा लूं
तब आसमां को भी अपनी मुठ्ठी में कर लूं
तुम्हारे चेहरे को जब समीप से निहारू
तब चांद को भी भूल जाऊं
तुम्हारा साथ मिल जाएं
तब मैं सारी दुनिया को भूल जाऊं
तुममें तो मैं सब कुछ देखूं
तुम्हारी हर अदा पर फिदा हो जाऊं
तुम बोलो और मैं सुनूं
संगीत लहरिया कानों में घुलकर कहे
बस अब तुम मेरी और मैं तुम्हारा
साथ - साथ जीवन बन जाएं
बहुत-बहुत प्यारा
तेरा- मेरा साथ रहे
हाथों में हाथ रहें
हर तमन्ना पूरी हो
जब तुम जैसी संगिनी हो ।

समझती तो तुम भी हो

समझती तो तुम भी हो
समझते तो हम भी है
इतने नादान तो तुम भी नहीं
इतने नादान तो हम भी नहीं
कम चालाक तुम नहीं
उतने भोले - भाले हम भी नहीं
तुम्हारी हर चाल से वाकिफ है हम
यह एक दिन का नहीं
बरसों का तजुर्बा है हमारा
कितना भी दिखावा करो
हम तो भांप ही लेते हैं
तुम्हारी रग - रग से परिचित है
यह बात दिगर है
हम जताते नहीं
तुम्हारी आवाज का जादू
हम पर नहीं चलने वाला
तुम्हारी ऑखों के पानी पर
अब ऐतबार नहीं रहा हमारा
जब एतबार ही नहीं
तब वहाँ भावनाओं का एहसास कहाँ ??
सब कुछ बनावट से भरपूर
यह तो तुम भी समझती  हो
यह तो हम भी समझते है
संबंधों में दरार है
वह भले दिखती किसी को न हो
सच तो तुम्हें भी पता है
सच तो हमें भी पता है
किसी को पता हो या न हो
हमें तो पूरा पता है
हर वह लम्हा जो तुम्हारे साथ बीता है
जेहन में आज भी सालों बाद बरकरार है
तुमको लगता है
हम भूल जाएंगे
हम वह शख्सियत नहीं
जो भूल जाए
वह तो जीवित है तब तक
जब तक जीवन है
हम इतने महान भी नहीं
माफ कर दे
हाँ बदले की भावना नहीं रखेंगे
एक बार जो टूटा है
वह तो फिर जुड़ने से रहा
लाख जतन करों
फिर भी हम तो
अडे तो अडे
वहीं खडे तो खडे।

कविता करना कोई खेल नहीं

कविता करना कोई खेल नहीं
भावनाओं से रूबरू होना पडता है
तब कविता  का जन्म होता है
पीड़ा और दुख - दर्द को महसूस करना पडता है
तब कविता का जन्म होता है
अंजाने के  एहसास को अपना बनाना पडता है
उसे शब्दों में उकेरना पडता है
तब कविता का जन्म होता है
प्रसव- पीडा से बस माँ ही गुजरती है
उस माँ की पीड़ा जब समझी जाती है
तब कविता का जन्म होता है
विरह की वेदना तो प्रेमी और प्रेमिका सहते हैं
उस अनुभव को जब लडियो में पिरोया जाएं
तब कविता का जन्म होता है
वेदना , हास्य  , रूदन की अनुभूति को समझना पडता है
तब कविता का जन्म होता है
कविता कोई खिलौना नहीं
भावनाओं का पिटारा होता है
न जाने कितने जख्म लगते हैं
तब कविता का जन्म होता है
न जाने कब किसके मन में प्यार प्रस्फुटित होता है
तब कविता का जन्म होता है
मन की कोमल भावनाएं
जब अंगडाइया लेती है
तब कविता का जन्म होता है
किसी का हास्य
किसी की वेदना
जब ऑखों से  बाहर छलकते हैं
तब कविता का जन्म होता है
कविता करना कोई खेल नहीं।

चुपचाप देखती रहूंगी

हम मरते रहें
तिल - तिल कर जलते रहें
जहर का घूंट पीते रहे
जायज - नाजायज सब सहते रहे
अपने अधिकारों का हनन करते रहे
मुख बंद कर शांत चित्त सब देखते रहे
समझौता हर वक्त करते रहे
अपमान का घूंट पीते रहे
तब भी साथ निभाते रहे
इसका क्या सिला मिला
हम तो वहीं के वहीं रह गए
तुम आगे बढ गए
तुम्हारा नाम
तुम्हारा सम्मान
तुम्हारी इज्जत
सब महफ़ूज है
महफिल सजती रही हम देखते रहें
कभी उफ तक न की
न जबान खोला
तुम्हारी इज्जत जो प्यारी थी
तुम लडखडाते रहें
हम संभालते रहें
कभी महसूस नहीं हुई
हमारी अहमियत
तुम जो हो आज
उस आज के पीछे हमारा कल है
सिसकता हुआ
शिकायत करता हुआ
पर तुम तो आज मे
वर्तमान में जीने वाले हो
भूतकाल को भूल जाओ
अतीत को देखने से क्या हासिल
मैं नहीं भूलती हूँ
इसी अतीत पर वर्तमान  और भविष्य की बुनियाद टिकी
वह तुमको कहाँ दिखाई देगा
अपने में रहने वाले
अपनों के  बारे में  तुम क्या सोचो
तुम्हारे लिए अपनों की परिभाषा कुछ और है
हमारे लिए कुछ और
वह तुम न समझोगे
जब तक समझ आएगा फिर देर हो चुकी  होगी
जो हमेशा से होता आया है
मैं चुपचाप देखती रहूंगी ।

Wednesday, 14 July 2021

चांद सी जिंदगी

कभी बढता कभी घटता
कभी आधा कभी पूरा
कभी गोल कभी तिहाई कभी चौथाई
इंच इंच घटता कभी बढता
कभी दाग तो कभी साफ
कभी चमकीला तो कभी धुंधला
कभी बादलों  के नीचे तो कभी ऊपर
यह लुकाछिपी का खेल चलता रहता
यह अक्सर होता है
यह चांद जो है हमारा
सबसे प्यारा सबसे न्यारा
अजीज है दिल के करीब है
जैसा भी दिखता हर रूप भाता

यह जिंदगी हमारी जो है
वह भी तो हमें प्यारी है
उतार - चढ़ाव
सुख - दुख
आशा- निराशा
गिरना - उठना
टूटना  - सहेजना
न जाने कितनी भावनाओं के भंवर में
डूबती  - उतराती
गोते खाती
गुजरती  जाती
गतिशील है  उसी चाँद की भाँति ।

चांद की पूजा होती है अवसर पर
जिंदगी को भी सम्मान मिलता है
प्यार और अधिकार मिलता है
जीने के बहाने तो बहुत है
बस जीना आना चाहिए
जो भी है उसे स्वीकार करना आना चाहिए।