गांधी हर रोज अपमानित हो रहे हैं
कभी कोई कुछ कहता
कभी कोई कुछ कहता
आजकल एक साधु बाबा गांधी को अपमान भरे शब्द कहने के कारण चर्चित है
लोग इतिहास के पन्नों को खंगाल रहे हैं
गांधी की चुन चुन कर बुराई कर रहे हैं
लेकिन इससे क्या सच में बापू की महत्ता कम हो जाएंगी
इस महात्मा का कद इतना कमजोर है कि किसी के ढहाने से ढह जाएगा
यह सही है
सत्य और अहिंसा से आजादी नहीं मिलती
लेकिन हर बडे युद्ध के बाद अहिंसा का ही रास्ता अख्तियार करना पडता है
फिर वह महाभारत का विनाशकारी युद्ध हो
कलिंग का युद्ध हो
हिरोशिमा- नागासाकी पर बमबारी हो
युद्ध कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता
भले ही लोग बम का जखीरा लगा रहे हो पर बात शांति की होती है
जहाँ शांति मजबूर वही युद्ध निश्चित
गांधी भगवान नहीं थे साधारण मानव थे
हो सकता है कुछ कमजोरी होगी उनमें
कुछ गलती की होगी
तब भी गांधी की महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता
भारत के इस नंगे भिखारी ने वह कमाल किया जिसके सदियों से लोग कायल रहेगे
एक काठी से उन्होंने वह प्रहार किया जो बडे बडे अस्र - शस्त्र नहीं कर सकते
साबरमती के संत ने वह कमाल किया है जो बडे बडे दिग्गज हिटलर और सिकंदर नहीं कर सके
सबके दिलों को जीतने का रास्ता शांति से ही संभव है
अंग्रजों को यह बात समझ में आ गई थी
अब ज्यादा देर तक किसी को गुलामी में नहीं रख सकते
यह बैरिस्टर गांधी ने किया
उन्हीं के यहाँ सीख उनको ही सिखाया
नारा दिया
अंग्रजों भारत छोड़ो
प्रवचन देना आसान है
गांधी बनना आसान नहीं
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Friday, 31 December 2021
गांधी का अपमान ???
जाने वाले को भी आनेवाले को भी शुक्रिया
जा रहा है यह साल
कुछ घंटे ही बाकी है
फिर वह अतीत हो जाएंगा
बहुत कुछ देकर जा रहा है
कुछ खट्टी- मीठी यादें छोड़ जाता रहा है
कुछ नई उम्मीद देकर जा रहा है
यह देने - लेने का चक्कर चलता ही रहता है
आज जो है वह कल नहीं
जो कल वह परसों नहीं
बहुत कुछ खोता - पाता है इंसान
इस आने - जाने के चक्कर में
जिंदगी का चक्र तो चलता रहता है
न जाने कितने मिले
कितने बिछुडे
कुछ यादें मिटी
कुछ बाकी है
हर आनेवाला साल नयी खुशियाँ लेकर जाएं
पुराने की ससम्मान बिदाई हो
इक्कीस को अब अलविदा
बाइस का इंतजार
जाने वाले को भी
आनेवाले को भी
दोनों का आभार और शुक्रिया
उल्टा चक्कर
अपने को भूल गया
लोगों के चक्कर में खुद का ही ख्याल न रखा
अपनापन निभाने के चक्कर में अपने को भूल गया
अपने व्यक्तित्व का ख्याल तक न रखा
आपने मन को मारता रहा रिश्तों को जीवित रखता रहा
लोगों से प्यार किया
सबको स्नेह और आदर दिया
दिल रोता रहा मैं हंसता रहा
दिखाता रहा
सब कुछ ठीक-ठाक है
कोई बात नहीं है
सबने यही समझा
खुद को भी छला
दूसरों को भी बहकाया
तभी तो लोग कहने लगे
आपका क्या है
आपको किस बात की परेशानी
उन्हीं लोगों को अब मैं खटकने लगा
जलन और ईष्या होने लगी
अब ऐसा लगता है
अगर तुम खुश तो सभी को दुख
तुम्हारे दुखी में सब सहभागी
सुख में कोई नहीं
यही उल्टा चक्कर है
इस दुनिया का
Wednesday, 29 December 2021
काश । ये जिंदगी तू मेरी माँ जैसी होती
काश । ये जिंदगी तू मेरी माँ जैसी होती
तब तू कैसी भी होती
मुझे प्यारी ही लगती
माँ का हर रूप खूबसूरत
उसका कोई रंग नहीं
काली - गोरी
लंबी - छोटी
सुंदर- साधारण
पढी - लिखी -- अनपढ़
अमीर- गरीब
कुशल - अकुशल
उसके प्यार के रंग के आगे सब फीके
पर तू ऐसी नहीं है न
जीने के लिए तेरी न जाने कितनी शर्तें
ऐसा हो वैसा हो
यह करना वह करना
ऐसा - वैसा , यह - वह के चक्कर में
तू हमेशा फंस जाती है
तू हमेशा मेरे लिए ही सोचती
सब अच्छा अच्छा ही करती
असलियत तो यह है
जिंदगी तू बहुत टेढ़ी मेढी है
माँ जैसी सरल नहीं
जहाँ अंहकार वहाँ सर्वनाश
अहंकार का कीडा बडा भयानक होता है
यह उस दीमक के समान है
जो एक बार लग जाएं
तो खत्म करके ही मानता है
व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व को ही चाट जाता है
उसे समूल नष्ट और खोखला कर देता है
अंहकार ने बडे बडो को धराशायी कर दिया
फिर वह महाबलशाली चारों वेदों का ज्ञाता
प्रकांड पंडित और महान शिव भक्त रावण ही क्यों न हो
धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन ही क्यों न हो
जगत विजेता बनने की इच्छा रखने वाला सिकंदर ही क्यों न हो
पेड़ जब फल से लद जाते हैं
तब वे झुक जाते हैं
जब व्यक्ति के पास ज्ञान और संपत्ति आ जाती है
लेकिन साथ में अंहकार भी आ जाता है
तब उसका खात्मा निश्चित है
नदी में जब बाढ आती है
तब वह विशाल वृक्षों को तो बहा ले जाती है
कोमल लताएँ वैसे ही रहती है
पेड़ ने झुकना नहीं सीखा
लताएँ झुकना जानती थी
तब अगर आपने जिंदगी में बहुत कुछ अर्जित किया हो
तो संतुलन बनाएं रखें
अंहकार को मत आने दे जीवन में
जहाँ अहंकार वहाँ सर्वनाश
Tuesday, 28 December 2021
एक महान गणितज्ञ
गणितज्ञ #लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है जबकि लीलावती लगभग 1000 वर्ष तक (800 ad से 1857 AD) तक प्रत्येक हिन्दू के पाठ्यक्रम में अनिवार्य थी। maculey ने अपनी अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली लागू करने पर इसे हटाया।
दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में #भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था।
वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’
उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था।
एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी।
पर विधाता का ही सोचा होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला।
विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा। लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बांध टूट गया। लीलावती अपने पिता के घर में ही रहने लगी।
पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना आरंभ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी।
थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में पूर्ण पंडिता हो गई। पाटी-गणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ भास्कराचार्य ने बनाया है। इसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है।
पाटीगणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए ‘लीलावती’ रखा है।
भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो काव्य में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे।
उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे।कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे।
वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, “हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं…।” बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने “लीलावती” रख दिया।
आजकल गणित एक शुष्क विषय माना जाता है पर भास्कराचार्य का ग्रंथ ‘लीलावती‘ गणित को भी आनंद के साथ मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए कैसे पढ़ाया जा सकता है,
लीलावती का एक उदाहरण देखें- ‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई।
अये, बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे..?‘
उत्तर-120 कमल के फूल।
वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है।
दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस भी घन है।‘
‘मूल” शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में प्रयुक्त होता है।
इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘।
इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित थीं।
लीलावती के प्रश्नों का जबाब देने के क्रम में ही “सिद्धान्त शिरोमणि” नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया, जिसके चार भाग हैं- (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) ग्रह गणिताध्याय और (4) गोलाध्याय।
‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है।
अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् 1587 में “लीलावती” का #फारसी भाषा में अनुवाद किया।
अंग्रेजी में “लीलावती” का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् 1716 में किया।
मनुष्य के मरने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है अतः आज गणितज्ञो को लीलावती पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। हमारे पास बहुमूल्य संपदा है जिसे छोड़कर हम आधुनिकता की दौड़ में विदेशों की नकल कर रहे हैं।अपना बहुत कुछ खो चुके है, पर सब कुछ नही,अभी बहुत कुछ बचा है,बचाना होगा।
Copy paste
तुम हो तो मैं राजा हूँ
तुम हो तो मैं राजा हूँ
अपने घर का मालिक हूँ
सर्वेसर्वा हूँ
दफ्तर में एक अदना सा कर्मचारी
दिन में न जाने किसकी किसकी बातें सुनना
बाॅस का तो खौफ अलग से
कुछ बोलने के पहले सोचना पडता है
घर में तो रौब दिखाता हूँ
सुबह-सुबह चाय - नाश्ता तैयार
खाने में मनपसंद खाना
जो फरमाइश करू वह हाजिर
नहाना - खाना बस इससे सरोकार
कपडे धुलने ,इस्तरी करने
साग - सब्जी और राशन
यह सब तुम्हारी जिम्मेदारी
घर आकर सुकून की सांस
तुम्हारा चेहरा देख सारी टेंशन खत्म
ज्यादा हुआ तो तुम पर उतार कर खाली हो लिए
तुमसे ही तो घर है
मैं, मैं हूँ
खाना तो होटल में भी मिल जाता है
वहाँ वह स्वाद कहाँ
जो तुम्हारे हाथ के पके खाने में
जब तुम साथ चलती हो
तब लगता है
मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब प्राणी हूँ
अकेला नहीं कोई साथी है
तुम्हारा साथ ही काफी है
और की जरूरत नहीं
मेरा गम मेरा दुख
मेरा तनाव मेरी चिंता
मेरी परेशानी
सब तुम हर लेती हूँ
हर समस्या चुटकियों में हल कर देती हूँ
मैं ऑर्डर देने और हुक्म चलाने का काम करता हूँ
घर में मेरा एकछत्र राज
तभी तो कहता हूँ
तुम हो तो मैं राजा हूँ
स्वागत है नये का । पुराने की बिदाई सम्मान सहित
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
हर साल नया होता है
कुछ नया लेकर आता है
पुराना भी कुछ देकर जाता है
बहुत से अनुभव छोड़ जाता है
जो नया साल को बेहतर बना सके
साल आ रहा है
एक नयी आशा लेकर
एक नए सपने लेकर
एक नयी आकांक्षा लेकर
कुछ अधूरा जो रह गया है
उसे पूरा करना है
कुछ कडवाहट आ गई है संबंधों में
उसमें फिर से मिठास भरना है
कुछ पल जो रूक गए
उन्हें फिर जीवित करना हक
कुछ पग जो ठहर गए
उसमें गति भरनी है
पंखों को पुनर्जीवित करना है
फिर उडान भरनी है
हर चिंता और तनाव को मुक्त करना है
खुशियों को महकने का मौका देना है
मौसम रहे न रहे
हर मौसम को महसूस करना है
उसे शानदार बनाना है
हर क्षण का लुत्फ उठाना है
अलविदा कहना है
आने वाले का स्वागत भी करना है
Asha Singh at 08:42
No comments:
About Me
Asha SinghView my complete profile
Powered by Blogger.
Monday, 27 December 2021
उसकी हमेशा रहे परवाह
हर पल मूल्यवान
इसे जी भर जी लो
आज जो हैं वह कल नहीं रहें
तब हंस लो मुस्करा लो
वक्त का इंतजार मत करों
वक्त कहाँ किसका सगा हुआ है
नहीं उदासी
नहीं पछतावा
स्वयं से प्यार
मीठे बोल
किसी के लिए कुछ कर सको
सबको माफ कर सको
अपने को भी
जो स्वयं से प्यार नहीं कर सकता वह दूसरों से कैसे करेंगा
खुशियों का आदान-प्रदान
न किसी से दोस्ती न किसी से दुश्मनी
अपने काम से काम
मजबूत इरादे
काम करने का जज्बा
जिंदगी एक सौगात
उसकी हमेशा रहें परवाह ।
एक सौ सत्तर करोड
कौन कहता है
हमारा देश गरीब है
तब सोने की चिड़िया डाल डाल पर उडती थी
आज डाल डाल पर पैसे
रुपयों का भंडार
कुछ ज्यादा नहीं
कल्पना से ज्यादा
एक सौ सत्तर करोड
वह भी घर में
लगता है रुपयों की बरसात हो रही होगी
कहाँ से आया
कैसे आया
यह तो जांच का विषय
इत्र व्यापारी के घर से इतने रूपये बरामद
रुपयों की सुगंध से घर भी महकता होगा
न जाने कहाँ कहाँ रखे मिलें
आश्चर्य की बात
नोटबंदी में भी इतने नोट शायद बैंक में आए नहीं होंगे
अब यह सफेद है काला है
कौन सा धन
यह तो पता नहीं
हाँ पर रूपये पेड़ पर फलते हैं क्या ??
यह तो कहावत थी
आज तो सच में दिख रहा है
इससे कुछ हासिल नहीं
जंगल में मोर नाचा
किसने देखा
सिकंदर ने पौरूष से की थी लडाई
तब हम क्या करें
नाचने वाले नाचे
लडने वाले लडे
हमें क्यों फिक्र भाई
किसी ने हमसे पूछा क्या ??
नहीं ना
तब अपने काम से काम रखे
दूसरों के बीच में पडना
ताक झाँक करना
इससे कुछ हासिल नहीं
मूर्खता भी
मूर्खता भी करनी चाहिए
वह सबसे अच्छा है
हमारे पल्ले कुछ नहीं पडता
हमको कुछ समझ नहीं आता
तब किसी की अपेक्षा ही नहीं
अरे यार । वह तो मूर्ख ठहरा
कहो कुछ करता कुछ
उसको जो ठीक लगेगा वहीं करेंगा
उसको समझाना सर पर हथौड़ा मारने जैसा
सही तो है
येडा बनकर पेडा खाने में ही मजा है
Sunday, 26 December 2021
न समझा वह अनाड़ी
कल रात जोरों का तूफान आया
ऑधी चली
हवा के थपेडों से सब अस्त व्यस्त
किसी के घर का छप्पर उडा
तो किसी के घर की दीवार गिरी
बडे बडे पेड भी इस झंझा के आघात को सह न सके
वे भी धराशायी हो गए
रात भर पवन देवता ने तांडव मचाया
सुबह हुई
तूफान थम चुका था
चारों ओर शांतता पसरी हुई थी
सब जगह खामोशी
यह क्या ??
यह छोटे छोटे पौधे वैसे के वैसे
फिर सीधे खडे
उन पर कोई असर नहीं
लताएँ भी जमीन पर पसरी है
वह प्रसन्नचित्त हैं
तब प्रभावित कौन ??
बडे बडे और तने तने
जो झुका नहीं वह अवश्य गिरा
बडा अभिमान था अपने पर
अपनी विशालता पर
अपने बल पर
सब चकनाचूर
बहुत कुछ कह जाता है यह सब
प्रकृति सिखा जाती है जीने की राह
समझ सके तो समझो
न समझा वह अनाड़ी ।
भीष्म उपदेश
🌺 भीष्म उपदेश 🌺
*शरशय्या पर लेटे भीष्म का युधिष्ठिर को संबोधित करके सभी दिया गया उपदेश।*
भीष्म ने युद्ध के पहले और बाद में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कही थी। ऐसी कई बातें थी जिसे उन्होंने धृतराष्ट्र, दुर्योधन, कृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर से कहा था। शरशय्या पर लेटे भीष्म ने युधिष्ठिर को संबोधित करके सभी को उपदेश दिया। उनके उपदेशों में राजनीति, नीति, जीवन और धर्म की गूढ़ बाते होती थी। आओ जानते ही कि भीष्म ने क्या कहा था।
1. ऐसे वचन बोलो जो, दूसरों को प्यारे लगें ।दूसरों को बुरा भला कहना, दूसरों की निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, यह सब त्यागने के योग्य हैं। दूसरों का अपमान करना, अहंकार और दम्भ, यह अवगुण है।
2. त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता । त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
3. सुख दो प्रकार के मनुष्यों को मिलता है । उनको जो सबसे अधिक मूर्ख हैं, दूसरे उनको जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया है। जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे दुखी रहते हैं।
4. जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है* (अपना पथ आप निश्चित करता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता) जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है।
5. सनातन काल से जब-जब किसी ने स्त्री का अपमान किया है, उसका निश्चित ही विनाश हुआ है। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि, स्त्री का पहला सुख उसका सम्मान ही है। उसी घर में लक्ष्मी का वास रहता है, जहां स्त्री प्रसन्न रहती है। जिस घर में स्त्री का सम्मान न हो और उसे कई प्रकार के दुःख दिए जाते हो, उस घर से लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवता भी चले जाते हैं।
6.भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि जब नदी पूरे वेग के साथ समुद्र तक पहुंचती है तो बड़े से बड़े वृक्ष को बहाकर अपने साथ ले जाती है। एक बार समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम्हारा जल प्रवाह इतना तेज और शक्तिशाली है कि उसमें बड़ा से बड़ा पेड़ बह जाता है लेकिन ऐसा क्या है कि छोटी घास, कोमल बेल और नरम पौधों को बहाकर नहीं ला पाती? नदी ने कहा कि जब मेरे जल का बहाव आता है तो *बेलें अपने आप झुक जाती है ।* किंतु पेड़ अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते हैं, इसीलिए मेरा प्रवाह उन्हें उखाड़कर बहा ले आता है।
7. महाभारत के युद्ध के पहले जब श्रीकृष्ण संधि के लिए हस्तिनापुर आए थे तब भीष्म ने दुर्बुद्धि दुर्योधन को यह कहकर समझाया था कि जहां श्रीकृष्ण है, जहां धर्म है, उसी पक्ष की जीत होनी निश्चित है। इसलिए बेटा दुर्योधन! भगवान कृष्ण की सहायता से तुम पांडवों के साथ संधि कर लो, यह संधि के लिए बड़ा अच्छा अवसार हाथ आया है। व्यक्ति को सदा धर्म की ओर ही रहना चाहिए।
8.भगवाद श्रीकृष्ण की तरह भीष्म पितामह ने भी कहा था कि *परिवर्तन इस संसार का अटल नियम है और सबको इसे स्वीकारना ही पड़ता है* क्योंकि कोई इसे बदल नहीं सकता।
9.भीष्म पितामह ने कहा था कि एक शासक को अपने पुत्र और अपनी प्रजा में किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव नहीं रखना चाहिए। ये शासन में अडिगता और प्रजा को समृद्धि प्रदान करता है।
10. भीष्म पितामह ने कहा था कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु कठिन परिश्रम करके समाज का कल्याण करने के लिए होता है..!!
संदर्भ- महाभारत
🙏🏽🙏🏻🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🙏🏼
Copy paste
प्रेम करना ही पर्याप्त नहीं
प्रेम करना ही पर्याप्त नहीं है
उस लायक भी बनना होता है
जिम्मेदारी होती है उस व्यक्ति के प्रति
जो सब छोड़ कर आपसे प्रेम करती है
बिना किसी की परवाह किए
माता - पिता और समाज की भी
तब उसके सम्मान को कायम रखना
यह भी तो जरूरी है
राम ऐसे ही नहीं बना जाता
सीता के लिए धनुष तोडने की भी योग्यता होनी चाहिये
रावण से युद्ध ठानने की भी क्षमता होनी चाहिए
रुक्मिणी के लिए कृष्ण बनना पडेगा
एक खत से आकर केवल भगा कर ही नहीं ले गए
पटरानी बना कर रखा
रूक्मी उनके भाई से युद्ध ठान लिया
आज के जमाने की बात करें
तो अब वह जमाना नहीं रहा
अब कोई बंधन आडे नहीं आता
फिर भी योग्य तो होना पडेगा
बातें करने से
हवा में उडने से
बडे बडे सपने देखने से गुजारा नहीं होता
यथार्थ के धरातल पर उतरना पडेगा
स्वयं को कर्मठ और लायक बनाना पडेगा
मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ
कहने से काम नहीं चलता
उसके लिए जी - जान से तैयार रहना चाहिए
मर भी सकता हूँ
इससे अच्छा जीने का जुगाड़ करें
उसके लिए कुछ भी करना पडे
छोड़ना पडे तब छोड़ कर दिखाओ
घर - परिवार, समाज सब
ऐसा लोगों ने किया भी है
प्रेम करने वाला डरता नहीं है
डंके की चोट पर करता है
इतना विश्वास तो होना ही चाहिए
डरपोक और कमजोर प्रेम कर ही नहीं सकता
वह विश्वास घात कर सकता है
प्रेम में स्वार्थ नहीं त्याग होता है
जो यह कर सका उसी को प्रेम करने का अधिकार है
कायर , लालची ,स्वार्थी और नपुंसक को नहीं
Saturday, 25 December 2021
असली मर्द ??
औरत पर जो हाथ उठाएं
वहीं असली मर्द कहलाए
औरत की जो बात माने
वह तो जोरू का गुलाम कहलाए
पिता , पति और पुत्र से संबंधित है
अच्छा पिता अच्छा पति
जो होगा
वह क्या मर्द नहीं होगा
जो बीवी की इज्जत करें
उसकी इच्छाओं का सम्मान करें
उसे भी अपने समान समझे
वह क्या मर्द नहीं
मार - पीट करें
तुच्छ लेखे
दासी समझे
अपने परमेश्वर की पदवी धारण करें
तब वह मर्द हैं ??
परमेश्वर न बने
सामान्य इंसान बना रहें
एक अच्छा इंसान बने
एक अच्छा पिता , पति बना रहें
वहीं बहुत है
Friday, 24 December 2021
नया साल आ रहा
निरंतर माला का एक अनमोल मोती कम हो रहा
एक नया साल शुरू हो रहा
तारीख की सीढियों से दिसम्बर खिसक रहा
नववर्ष दस्तक दे रहा
बस कुछ दिन ही शेष
कुछ चेहरे जो याद बन गए
बहुत कुछ छोड़ गए
उम्र का पंछी भी आगे निकल रहा
यही जीवन-चक्र है
दूर नीला गगन
नीचे यह धरती
उनके मध्य हम
इसी की मिट्टी में जन्म
इसी में अंत में मिलन
एक - एक क्षण बादल बन कर उड जा रहे
बस अनुभव छोड़ जाते
मिलते हैं
बिछडते हैं
कुछ नए दोस्त बनते हैं
कुछ नयापन आता है
कुछ अपने जो हर वक्त के साथी
उनका एक कर्ज हैं हम पर
स्नेह और प्यार का
वह ऐसा ही बना रहें
नया साल कुछ और सौगात लेकर आए
सबकी झोली खुशियों से भर जाएं
ऐ जिंदगी
तुमने नाच नचाया
जैसा चाहा वैसा
तुमने इंतजार करवाया
जितना वक्त चाहिए था उससे ज्यादा लिया
हम इंतजार करते रहें
नाचते रहें
उसका क्या सिला मिला
तुमने जो कुछ दिया तो उसके एवज में बहुत कुछ लिया
ऐसे ही सब बीत गया
हमारा खाली हाथ रीता ही रह गया
अब भी तुम्हारा वही हाल
क्या दुश्मनी है हमसे
जो तुम चुन चुनकर बदला ले रही हो
माना गलती की है
कब तक उस गलती की सजा दोगी
कब मुझ पर मेहरबान होंगी
अब भी आस है
वह तब तक जब तक सांस है
तब रहम कर ऐ जिंदगी
Thursday, 23 December 2021
आ रहा नया साल
आ रहा नया साल
कुछ सौगात लेकर
कुछ सपने अपने कुछ अपनों के
पूरा करने
हर साल एक नयी उम्मीद
एक नयी आशा
जो गया उसका भी शुक्रिया
बहुत कुछ देकर गया है
आने वाला का भी स्वागत
जो रह गया है
वह इस साल पूरा हो
उम्मीद पर तो ही संसार है
बहुत कुछ अपेक्षा है जीवन से
वक्त से
वक्त थमता तो नहीं है
आगे ही बढता जाता है
कुछ यादें छोड़ जाता है
कुछ खट्टा कुछ मीठी
इसी से तो जिंदगी भी चलती है
स्वागत करने को पूरे तैयार है
मन से ।
Wednesday, 22 December 2021
यह चांद
यह चांद मुझे बहुत प्यारा है
बहुत खूबसूरत है
मैं उस तक पहुंचना चाहता हूँ
पहुँच नहीं पाता
कोशिश करता हूँ
उसे छूने की
उसके पास पहुंचने की
हर बार असफल हो जाता हूँ
समझ गया हूँ
मुझमें और उसमें बहुत अंतर है
मैं जमीन पर वह आसमान में
यह असमानता की दूरी जो है
जो पास नहीं आने देती
पहुँचने नहीं देती
बस दूर से देखता हूँ
खुश हो जाता हूँ
बस यह हमेशा इसी तरह रहें
यही कामना करता हूँ।