Friday, 23 February 2024

रोना कमजोरी ???

ऑख भर आती है कभी भी किसी बात पर
लगता है मैं कमजोर हूँ 
रोना माना गया है दुर्बलता 
ऐसा है नहीं 
सबसे शक्तिशाली हथियार है यह ऑंसू 
जहाँ शब्द भी असमर्थ 
वहाँ ऑसू सबसे समर्थ 
भावनाओं को अभिव्यक्त करना बिना कुछ कहे
कठोरता का ऑसू से संबंध नहीं 
संवेदना का सबंध है
संवेदनशील व्यक्ति सबके साथ 
अपना स्वार्थ छोड़ दूसरों के लिए 
भावना नहीं तब तो मूर्ति या पुतला 
वह क्या सामर्थ्यवान 
उसे तो कोई भी नचा लेगा 
अगर दूसरों का दुख देख हदय द्रवित न हो
मुख पर हंसी और मुस्कान आए 
वह तो शैतान की श्रेणी में 
इंसान की नहीं। 

Friday, 16 February 2024

वसंत

आया वसंत 
भाया वसंत 
मुस्कराया वसंत 
खिलखिलाया वसंत 
डोला वसंत 
भीगा भीगा वसंत 
खिला - खिला वसंत 
खुशबू से सराबोर वसंत 
फूलों फलों से लदा वसंत 
खुशियों की सौगात लाता वसंत 
जीवन की प्रेरणा देता वसंत 
माँ सरस्वती की कृपा  बरसाता वसंत 
ज्ञान के प्रकाश से परिचय कराता वसंत 
ये वसंत है जीवन की बहार है 
जाना है फिर भी मन भर जीना है
यही सिखाता वसंत 

Tuesday, 13 February 2024

साल का सबसे छोटा महीना फरवरी

साल का सबसे छोटा महीना
महत्ता किसी से कम नहीं 
हर दिन खुशी मनाता है
रोज डे 
चॉकलेट डे
फ्रपोज डे
किस डे 
वेलेंटाइन डे
वसंत का आगमन 
वसंत पंचमी के साथ ही त्योहारों का आगाज
खिले खिले फूलों के साथ बहारता मौसम
गुलाबी ठंडी का मीठा मीठा एहसास 
फरवरी फहरता है 
खुशबू से सराबोर करता है
सब खिला खिला 
प्रकृति के साथ अंगडाई लेता आता है
न जाने कितने वादे करता है
न जाने कितनी खुशियाँ देता है
लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाता है
एक - दो दिन कम सबकी अपेक्षा 
लेकिन औरों की अपेक्षा पूरी करने आता
यह साल का सबसे छोटा महीना। 

तुम जैसे लोग

रिश्तों की कद्र करते करते हम अपने को भूल गए 
रिश्ते तो पीछे छूट गए 
हम कहीं के न रह गए 
सबकी भलाई देखी अपनी न सोची
सबका भला हो गया 
हम मझधार में अटके रह गए 
आज नैया मझधार में है
सबके मुख बंद 
ऑखें बंद 
हमने भी उस वक्त ऑखें बंद की होती
तब तुम ऑखें दिखाने लायक न रहते
अब इतना घमंड कि हमें छोड़ दिया 
अगर हमने तुमको छोड़ा होता तो तुम कहीं के न रहते
भला करना बुरा है
यह तुमने सिखा दिया
चालाकियों से हमें चकमा दे दिया
ठीक है तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ 
तुम सोचो और क्या करना है
इससे पहले हम तुम्हारी सोच से आगे निकल जाएंगे 
बहुत ठग लिया मुखौटा ओढ
अब सब नाकाब होगे
तुम्हारी असलियत सब उजागर होगी 

Saturday, 10 February 2024

सीता

सीता पति के पीछे-पीछे चल दी
जनकदुलारी को कर्तव्य निभाना था
मायका और ससुराल का मान रखना था
क्या बीती होगी
उस नवयौवना पर 
भावी महारानी जिसको बनना था उसे वन वन घूमना पडा
जमीन से जन्मी जमीन में समाई
कौन दोषी था
भाग्य की लेखनी क्या यही थी
पग पग पर मुसीबत का घेरा 
चली नंगे पैर और थकने पर पूछा पति से
और कितनी दूर
न कोई शिकवा और शिकायत 
कैकयी को तो कभी कोसा ही नहीं 
पर्णकुटी में रही 
रसोई बनाई 
हर काम किया
हाँ वहाँ भी गृहस्थ धर्म निभाया
देवर की लक्ष्मण रेखा पार की क्योंकि द्वार पर संन्यासी खडा था उसे कैसे भिक्षा दिए खाली हाथ लौटाती 
सूपर्णखा की नाक - कान देवर ने काटा था परिणाम भुगता था सीता ने
हाँ एक गलती हो गई 
स्वर्ण मृग को देख स्त्री स्वभाव के कारण ललचा गई
सीधे वहाँ से स्वर्ण की नगरी पहुँच गई
अपनी गलती तो समझ ही गई होगी
ऐसे चुकाना पडेगा यह नहीं सोचा होगा
रावण की अशोक वाटिका में रही सुरक्षित 
महाज्ञानी- महाबलशाली को भी उन्हें स्पर्श करने की हिम्मत नहीं हुई
एक अपहरण की हुई दूसरे की पत्नी किस तरह से उसी के राज में रही होगी
मन कितना मजबूत होगा और कितना विश्वास अपने वनवासी पति पर
अग्नि परीक्षा देनी पडी अपने सतीत्व को सिद्ध करने 
अतिसुंदरी मंदोदरी का पति और शिव भक्त रावण जो स्वयं 
सबका ज्ञाता था 
शत्रु पक्ष से लक्ष्मण शिक्षा लेने के लिए गए
राम को जिसने अपने सामने खडा कर प्राण त्यागा
जिसको पता था कि यह मेरे आराध्य के आराध्य है इतना नादान तो था नहीं 
साक्षात जगतमाता जगदम्बा है सीता 
लेकिन क्या विधाता ने सीता को ही चुना उसके उद्धार के लिए 
अयोध्या आई 
गर्भवती हुई
लांछन लगा 
जबकि दोष उनका नहीं था
राम ने निकाला  ।राजा को ऊपर रखा पति से 
अश्वमेघ के समय मूर्ति बना कर यज्ञ किया लेकिन सीता तो मूर्ति नहीं थी
बाल्मीकि के आश्रम में बच्चों का जन्म और पालन - पोषण 
वनदेवी बनकर रही
लेकिन यहां भी चैन से न रह पाई
वहाँ भी अयोध्या के राजा पहुंच ही गए 
अब कहाँ जाती
बस माता की गोद बाकी थी
वह तो जरूर अपनाएगी 
माँ तो माँ होती है 
सीता ने उन्हीं का आश्रय लिया 
धरती की बेटी धरती में समा गई। 

Thursday, 8 February 2024

मानव हो ??

वो ऐसा है वो ऐसी है
कहने वालों 
जरा अपनी जिंदगी में भी झांक लिया करो
तुमने अपनी जिंदगी का ठेका लेकर रखा है
किसी और की नहीं 
यह ताक-झांक बंद कर अपना काम करो 
अपने को जज करो 
किसी और को नहीं 
मानव हो मानव बनो
खुदा और ईश्वर बनने की कोशिश मत करो 

आज का आदमी

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध 
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनके भी अपराध
दिनकर जी की यह पंक्तियाँ सभी के लिए हैं 
हम थे क्या और हो क्या गए हैं 
मशीन और पत्थर बन रह गए हैं 
मानवीय संवेदना मर सी गई है
अपने आप में सिमट कर रह गये हैं 

कोऊ होऊ नृप हमें का हानि
चेरी छाडि न होइओ रानी

हमको क्या पडी है किसी से
पडोसी के घर आग लगी है हमारे यहाँ नहीं 
उस आग की लपटें तो हम तक भी आएंगी 
देश में राजनीति में  समाज में 
यहाँ तक कि अपने घर में भी
सब अपने में मस्त 
कहने को परिवार 
रहते हैं जैसे अजनबी
हमारा सब काम हो रहा है ना
और जाएं भाड़ में 

 हम सब देख कर मूक दर्शक बने हैं 
आने वाली पीढ़ी इसका जिम्मेदार हमें भी मानेगी ही 
हम डरपोक और कायर हो गए हैं 
लालची और स्वार्थी बन गए हैं 
अपनेपन और मैं में सिमट कर रह गए हैं 
मशीनी युग में मशीन हो गये हैं 
भावनाओं और विचारों से परे हाड- मांस का इंसान ।

Wednesday, 7 February 2024

बिटिया

बिटिया तो माथे की बिंदिया 
बिटिया तो है पैरों की बिछिया 
बिटिया तो है हाथों की चूडियां 
बिटिया तो है कानों की बालिया 
बिटिया तो है नाक की नथनिया 
बिटिया तो है प्यार की पुड़िया 
बिटिया तो है घर की जलता दीया
बिटिया है तो रौनक है
बिटिया है तो मुस्कान है
बिटिया है तो श्रृंगार है
सारा प्रेम इसमें समाया 
मन ने मन को समझाया 
बिटिया से ही है यह संसार 
मत करो बिटिया को इग्नोर 
पढाओ - लिखाओ 
उसे उसकी उडान दो 
हर क्षेत्र में  वह परचम फहराए 
बेटा जो न किया
वह बेटी कर दिखाए 

राह के मुसाफिर

हम रहें या न रहें 
तुम रहो या न रहो
कोई रहें या न रहें 
फर्क नहीं पडता
संसार चलता रहेगा
यह न रूका है ना रूकेगा
कुछ क्षण के लिए भी नहीं 
यह तो इसके लिए सामान्य बात है
आना - जाना लगा रहता है दुनिया के मेले में 
हमको लगता है कि
हमारे बिना काम कैसे चलेगा
चलेगा और चलता रहेगा
प्रकृति का नियम है
यहाँ अमरता का वरदान किसी को नहीं 
स्थायी का भी ठिकाना नहीं 
आज यह तो कल वह 
जो जमीन पर वह आसमान पर 
जो आसमान पर वह जमीन पर

पल में प्रलय होय है 
सांसों का ठिकाना नहीं 
लाख जतन कर लो
होगा वहीं जो होना है
जी लो फिर कल की चिंता छोड़ 
मुसाफिर हो आए हो
एक दिन जाओगे 
राह तो वही रहेगी 
तुम्हारे बाद भी उस पर लोग चलते रहेंगे 

Tuesday, 6 February 2024

मैंने बचपन को जी भर जीया

मैंने बचपन को जी भर जीया 
कोई मलाल नहीं 
जो मिला उसी में खुश रहें 
एक बडा - पाव और मस्का - पाव किसी जिज्जा- बर्गर से कम नहीं 
खिलौने न मिले महंगे महंगे कोई गम नहीं 
पीठ पर बस्ता लादे दौड़ लगाई
नहीं मंहगा बोतल से पानी एक अंजुरी ही काफी थी
किसी की खिड़की से टेलीविजन देखा
रास्ते पर लगे परदे पर सिनेमा देखा
नहीं मंहगे कपडे मिले दो जोड़ी में ही इतराए 
दीवाली पर मंहगे फटाके भले न फोडे माचीस की तीली से फुलझड़ी खूब जलाई
पतंग के साथ खूब दौड़ लगाई
उडाना न सही पकड़ने का मजा लिया
होली में मन भर गुलाल लगा शीशे के सामने अपने को बडे प्यार से निहारता
खाने की कोई फिकर नहीं 
दाल - भात को सुपड सुपड कर खाया 
चाय को फूंक मार मारकर पिया 
मैंने बचपन को जी भर जीया 
छुपाछुपी खेली कबड्डी में भी दो दो हाथ किए 
चवन्नी- अठन्नी में ही दिल बाग बाग होते 
हर मेहमान का इंतजार करते
नमस्ते और मुस्कान से स्वागत करते 
दोस्तों और सहेलियों के संग मटरगश्ती करते
किसी के डांटने और चिल्लाने पर छिप जाते डर से
पीछे खिलखिलाकर हंसते 
किसी का बुरा ना मानते 
चोट लगने पर रो कर ऑसू खुद ही पोछ लेते
घर पर खबर न लगते
खुद ही गिरते खुद ही उठते
इसी तरह बचपन गुजर गया
बहुत कुछ सिखा गया
मजबूत बना गया
लडने की ताकत दे गया
संघर्षों से लडना सिखा दिया
अभावों में भी जीना सिखा दिया
जैसे भी थे वह दिन तो सुहाने थे 
वह हमारा प्यारा बचपन था
जो नींव पडी तब अब भी बरकरार है
प्यार- स्नेह से लबरेज बचपन 
वह नहीं थे कोई सपने
बस जीवन का वह पल 
जो अब मिलना मुश्किल ।


Monday, 5 February 2024

जिंदगी का साथ

जिंदगी तूने सितम ढाए 
जख्म दिए अनगिनत 
हम सब भूल गए 
वक्त के साथ
आगे बढते रहे
तुझे प्यार करते रहे
हम तुझसे जुड़े हैं 
क्या शिकवा क्या शिकायत
कभी खुशी देती है अनगिनत 
अगले ही पल गम भी
भरोसा रहता है
यह पल भी चला जाएंगा 
आशा रहती है
चलो कल अच्छा होगा
बुरा वक्त गुजर जाएंगा 
हमें तो तेरा साथ निभाना है
तेरे साथ ही रहना है
गाना है ना
हम हर फिक्र को धुंए में उड़ाते चले गए 
जिंदगी का साथ निभाते चले गए। 

Saturday, 3 February 2024

मन से परीक्षा दे

बचपन में परीक्षा देने जाते थे
हमको नहीं हमारे पैरेन्टस को डर लगता था
क्योकि हमको अक्ल नहीं थी
थोड़ा बडे हुए 
बोर्ड की परीक्षा पहली बार देना था 
तब डर लगा था
उसके बाद तो लगातार परीक्षा देते गएँ 
डर और तनाव के साथ साथ 
अब सब जिम्मेदारी हमारी थी
गलत - सही की 
वह भी समय पास हुआ 
बारी आई जिंदगी की परीक्षा की 
यहाँ तो कदम कदम पर बाधा थी
नित नयी परीक्षा 
वह परीक्षा तो अच्छी थी यह तो ??
न जाने कितने पडावो से गुजरे
अभी भी गुजर रहे हैं 
लगता है अभी तक कुछ समझे ही नहीं 
बहुत कुछ बाकी है
किताबी परीक्षा तो कुछ भी नहीं 
इन सबके सामने 
तब आराम से परीक्षा दो
राजा के जैसे व्यवहार होता है
खाना - नाश्ता सब हाजिर 
कोई काम नहीं करना है पढने के सिवा 
सभी की सहानूभूति और अपेक्षा भी
तुम जो चाहो वह मिलेगा 
बस पढाई करों और परीक्षा दो 
जिंदगी तुम्हारी फिक्रमंद दूसरे 
तब सब कुछ छोड़ छाड लग जाओ
किताब में सर खफाओ 
इसी पर तुम्हारा भविष्य 
लाभ तुमको ही 
अर्जुन बन जाओ
सब छोड़ केवल पढाई 
कुछ ही दिन बाकी है
उसके बाद तो जो करना है कर लेना
पहले तो मन से परीक्षा दे देना ।

हर पल अच्छा

मैंने बर्दाश्त की है 
अपने हिस्से की हर तकलीफ 
तकलीफ सहने की भी एक हद तक
अब तो सीमा पार हो चुकी 
रब का शुक्रिया 
हर तकलीफ को सहने की क्षमता दी 
लगा ही नहीं 
कुछ तकलीफ हुई
सब आसान हो गया
सब लगता है कल की बातें 
बातें करते करते उम्र गुजर गयी 
कुछ हिस्सा ही बाकी है
वह भी आपकी कृपा दृष्टि से गुजर ही जाएंगी
सोचती हूँ 
पीछे मुड़कर देखती हूँ 
सब अच्छा सब ठीक 
जो गुजरा वह भी अच्छा 
जो गुजर रहा है वह भी अच्छा 
जो गुजरेंगा वह भी अच्छा 

Friday, 2 February 2024

माया मोह से जकड़ा इंसान

आज बाबूजी याद आए
उनके साथ ही माँ भी याद आई
वे तो इस दुनिया में नहीं रहें 
माँ है उनकी जीवनसंगिनी 
उनके साथ डट  कर खडी रहने वाली
अब वह बूढी हो गई है
उसके पास शक्ति नहीं 
जो कभी हमको सहारा देती थी 
आज स्वयं सहारे के हैं 
देखा नहीं जाता 
माँ का मजबूत रूप देखने की आदत है
वह कुछ पूछती है 
तो झल्ला जाती हूँ 
जब देखो मरने की बात करती है
उसको झिडक देती हूँ 
जब देखो तब यही बात 
लेकिन सत्य तो है
वास्तविकता से मुख कैसे मोडे 
उनकी तकलीफ तो वो ही जानती होगी
आज भी उसको काठी के सहारे नहीं चलना है
गिर भले जाएं पर हाथ में लाठी नहीं 
जो काफी का सहारा न लेना चाहे 
वह कैसे सब स्वीकार करेंगा
मैं हंसती हूँ 
कहती हूँ 
मैं तेरी बेटी हो स्टिक का इस्तेमाल करती हूँ 
तू नहीं कर सकती
पर नहीं तो नहीं 
बहुत जिद्दी है वह
मजबूत भी है मन से
तभी तो बिना डांटे- फटकारे उसके बच्चे सही राह पर चले
जीवन संघर्ष क्या होता है 
उससे लडना तो उसने ही सिखाया 
हम घबरा जाते हैं उसको कभी घबराते नहीं देखा 
ईश्वर पर अटूट श्रद्धा 
आज ईश्वर से प्रार्थना कर रही है
कहती है 
भगवान मुझे भूल गए हैं कि अपने पास बुलाते नहीं 
हम हैं कि उसको जिंदा रखना चाहते हैं 
वह है कि मृत्यु की गुहार कर रही है
अजीब विडंबना जीवन की
शायद यही माया है ।

अपना या पराया

अपनों ने ही सिखाया 
दुनियां में कोई अपना या नहीं होता पराया
भाग्य ने जब जब खेल दिखाया 
सबने अपना रंग दिखाया 
रंगबिरंगी  दुनिया है
रंग है कितने बेरंग 
इंद्र धनुष सा दिखता तो है
बस झलक दिखलाकर छुप जाता है
यहाँ बादलों के घेरे हैं 
अंधड तूफानों का साया है
कडकडाती बिजली है
कब गिर पडे कह नहीं सकते 
बचना हो तो बच लो
कुछ जतन कर लो
अपने रंग खुद भरो 
नहीं किसी का भरोसा
आएगी भोर सुहानी 
नहीं रहता हमेशा एक सा पानी
बहता जाता है 
लहरों के साथ बहकर 
नैया पार लगाना है
अपना खेवैया स्वयं ही बनना है 
यहाँ कोई नहीं होता 
अपना या पराया 

Thursday, 1 February 2024

ऐ जिंदगी ठहरो जरा

ऐ जिंदगी ठहरो जरा
क्या जरूरत आन पडी 
जल्दी जाने की
जरा रुको तो
जरा देखो तो
जरा पीछे भी मुड़कर
देखो तो तुम कितनी हसीन हो
याद करो
तुम कितना बेखबर थी
हंसती - खिलखिलाती थी
सपने दिखाती थी
घंटों अपने आप से बतियाती थी
शीशे के सामने खड़े हो निहारती थी
अपने आप पर इतराती थी
हिरनी सी कुलांचे भरती थी
रात - रात भर ख्वाबों में रहती थी
अब भी तो तुम वही हो
हाँ उम्र थोडा आगे खिसक गई है
तो क्या हुआ
तुम कहाँ हार मानने  वाली 
तुम तो हर हाल में मजबूत रहने वाली
मजबूर होना तो तुमने जाना नहीं 
सबका सामना करना तुमको आता है
अरे रूको , मत जाओ अभी
वैसे भी तुम्हारी मर्जी कहाँ चलती है 
तुम तो ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली हो
वह जब तक नहीं चाहेगा 
तुम क्या कर सकती हो
रोने - बिसुरने की जगह हंसकर जीओ
मत भागो
भागो आराम से सुस्ताओ
नजारा देखो दुनियां का 
यह दुनिया बडी हसी है रंगीन है
इससे क्या भागना 
बडी नियामत से मिलती है जिंदगी 
उसे ऐसे जाया न करो 

रोटी

मैं रोटी हूँ 
आप लोग को लगता होगा
आप लोग मेरे कारण ही इतनी मेहनत करते हैं 
कहते हैं रोटी गोल है 
और सबको गोल गोल घुमाती है
मैं भी तो आपका पेट भरने के लिए न जाने क्या क्या करती हूँ 
मशीन में पीसती हूँ 
बारीक से बारीक बन कर निकलती हूँ 
गूंथी जाती हूँ 
तवे पर सींकती हूँ 
आग पर तपती हूँ 
चिमटे की चटक लगती है 
तब भी मैं ऊफ नहीं करती 
न जाने मुझमें क्या क्या मिलाते हैं 
सबके साथ घुल-मिल जाती हूँ 
तेल - मसाले या फिर सब्जी
सबका पेट भरती हूँ 
आप लोग के साथ मैं हमेशा रहती हूँ 
आप ही नहीं मेरे इर्द-गिर्द घूमते हैं गोल गोल 
मैं तो तवे पर भी गोल गोल घूमती हूँ 
आप हैं तो हम
हम हैं तो आप