Friday, 28 February 2025

वह तो नारी है

उसने समझा 
मैं घर की मालकिन 
सच तो यह 
वह घर काम करने वाली नौकरानी 
उसे लगा 
घर उसके इशारों पर चलता है 
सच तो यह
वह किसी के इशारों पर चलती है 
उसे लगा 
सब उसकी मुठ्ठी में 
सच तो यह
हर बार उसकी मुठ्ठी से कुछ न कुछ फिसल जाता है 
उसे लगा 
वह सबके दिलों पर राज करती है 
सच तो यह
उसके लिए किसी के दिल में स्थान ही नहीं 
उसे लगा 
घर उसका है 
सच तो यह
घर की नेमप्लेट पर भी उसका नाम नहीं 
उसे लगा 
वह अपनी मर्जी की मालिक 
सच तो यह
वह बिना परमिशन के घर से बाहर कदम नहीं निकाल सकती 
ऐसे न जाने कितने बंधन में बंधी यह नारी 
फिर भी उसने कभी हार न मानी 
वह कुछ न छोड़ सकी 
तभी तो बुद्ध न बन सकी 
उसने प्रेम किया और त्यागी गई 
उसने अपना हक मांगा निकाली गई 
वह बस त्याग और करूणा की मूर्ति बनी रही 
कभी माॅ कभी बहन कभी प्रेयसी कभी पत्नी 
अधिकार दिया नहीं जबरदस्ती थोपा
उसने सब कुछ सहा 
गलत को भी सही माना 
ऐसा नहीं कि उसको अपनी ताकत का अंदाजा नहीं 
जब - जब वह कुपित हुई 
तब - तब रामायण और महाभारत हुआ 
पूरे समाज का विध्वंस हुआ 
यही तो वह नहीं चाहती 
तभी तो सदियों से सब स्वीकारती 
वह धरती है 
समाज की धुरी है 
उसके बिना तो हर कहानी अधूरी है 
वह तो नारी है 

Thursday, 27 February 2025

संघर्ष बिना कुछ नहीं

वसंत ऐसे ही नहीं आता
बागों में फूल यू ही नही खिलते 
पेड़ पर पत्ते यू ही नहीं झूमते 
उनको भी पतझर का सामना करना पड़ता है
उस दौर से गुजरना पड़ता है 
जहाँ फिर से नयी शुरुआत करनी होती है 
तब हमने कैसे समझ लिया 
अपने आप सब अच्छा होगा
भाग्य सब दे देंगा 
संघर्ष बिना तो कुछ हासिल नहीं 
उन कठिन राहों से तो गुजरना होगा 
कभी टूटना कभी बिखरना होगा
स्वयं को समेटना होगा 
गिर गिरकर उठना होगा 
जीवन संग्राम है 
युद्ध तो लड़ना होगा 
कभी हार कभी जीत का सामना करना होगा 
बिना पतझर के तो वसंत भी नहीं आता
बिना संघर्ष के शिखर पर कैसे पहुंचा जा सकता है 

Wednesday, 26 February 2025

शिव तो शिव ही है

तुम ही शंकर हो 
तुम ही शिव हो 
तुम ही सुंदर हो 
मत हारो स्वयं से 
जो हो जैसे हो 
वैसे ही रहना है 
भोलापन स्वभाव तुम्हारा 
इसे किसी कीमत पर न खोना है 
अमृत नहीं विष भी पीना होगा 
तुम्हें भी शिव बनना होगा 
अपनी शक्ति पहचानो 
समय - समय पर तीसरा नेत्र भी खोलो 
विषधर से क्या डरना 
उसको तो साथ ले चलो 
गंगा सी शीतलता धारण करो 
सूर्य नहीं चंद्रमा से भी प्यार करो 
महानता का चक्कर छोड़ो
हर जीव की महत्ता को समझो 
मेहनतकश लोगों से प्यार करो 
नंदी का भी सम्मान करो 
ऊपरी दिखावों पर न जाओ 
ब्रांडेड चीजों के पीछे मत भागो 
सरलता और सादगी को अपनाओ
महल न सही पर्वत घर बनाओ 
भोले के साथ शक्तिमान भी रहो 
जहाँ अपमान हो वहाँ जाना नहीं
सम्मान से विष भी गरल कर लो
शिव तुम बन सकते हो 
शिव जैसा हो जाओ 
शिव ही सत्य है 
शिव ही आधार है 
शिव ही निर्माण है 
शिव ही संहार है
निर्माण और संहार की शक्ति जिसके पास 
वो तो हमारे भोलेनाथ हैं
मान सहित विष पिय के शंभु भले जगदीश 
बिना मान अमृत पीए राहु कटायो शीश
देवो के देव महादेव
संसार की भलाई के लिए विष पीने वाले 
नीलकंठ महादेव 
तांडव नृत्य करने वाले 
अर्धनारीश्वर 
गौरा के पति 
गौरीशंकर 
परिवार के साथ कैलाश पर वास करने वाले 
कैलाशपति 
शिव तो शिव ही है 





जय भोले नाथ

ॐ नमः शिवाय
हर हर महादेव

शिव सत्य है,
 शिव अनंत है,
शिव अनादि है,
 शिव भगवंत है,
शिव ओंकार है,
 शिव ब्रह्म है,
शिव शक्ति है,
 शिव भक्ति है
शिव निर्माण है शिव संहार है 
शिव से ही संसार है 
महाशिवरात्रि के इस महापर्व पर आप को हार्दिक शुभकामनाये।

भगवान शिव से आपके और आपके परिवार की मंगल कामना
भोले नाथ बाबा की कृपा संसार पर बनी रहें 

Tuesday, 25 February 2025

कुंभ स्नान और मां गंगे का आशीर्वाद

चल पड़े सब कुंभ नगरी की ओर
हर परेशानी का सामना करते
कभी बस कभी रेल कभी पैदल
हर तरफ भीड़ ही भीड़ 
चले जा रहे हैं लोग
दब रहे हैं 
मर रहे हैं 
बिछुड़ रहे हैं 
पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 
एक जुनून जो सवार है 
अमृत स्नान का 
स्वर्ग प्राप्ति का 
पाप धुलने का 
अब समझ में आ रहा है 
राहु और केतु क्यों घड़ा लेकर भागे थे 
शीश कटाना पड़ा था
यहाँ तक कि सूर्य और चंद्रमा को भी भोगना पड़ रहा है 
आज तक उन पर ग्रहण लगता है 
अमरता का वरदान सब चाहते हैं 
चाहे कर्म कैसे भी हो 
गंगा जी भी अपने पुत्र भीष्म को कर्म फल से मुक्त नहीं कर पाई 
भगीरथ का कुल तारने वाली
मां गंगा यहीं पर रहने वाली हैं 
वे हमेशा से पूज्य रही हैं 
माता हैं वे हमारी 
स्नान के नाम पर बहुत कुछ हो रहा है 
पता नहीं क्या - क्या विसर्जन हो रहा है 
माता इतना बोझ कैसे संभाल रही हैं वे ही जाने 
वह गए तो हम क्यों नहीं
यह तो वही बात हुई तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद क्यों??
भक्ति दिखावा नहीं अंतरात्मा की आवाज है 
पता नहीं कितने सालों बाद आएगा 
इसकी अपेक्षा यह सोचे 
मां गंगा की गोद में आराम से और निश्चिंत हो स्नान- ध्यान करेंगे 
होड़ नहीं और भीड़ का हिस्सा नहीं बनना है 
जान है तो जहान है 
अपना भी सामर्थ्य देखना है 
देखा-देखी नहीं 
कर्म पवित्र रहें
गंगे का आशीर्वाद बना रहेगा 
न जा पाए कोई अफसोस नहीं 

अल्बम की दांस्ता

एक पुराना अल्बम देख रही थी 
हर पर हाथ रख सहला रही थी 
कभी मुस्कराती कभी ऑखों में पानी भरती 
बच्चें यह देख हैरान 
ऐसा क्या है इसमें 
उन्हें कैसे बताऊ 
तुम्हारा बचपन और मेरी जवानी 
सब है इनमें 
हर फोटों की अपनी एक कहानी 
उन लम्हों की याद 
वे खुशी के पल
कैसे भूले हम 
यादें थोड़ा धुंधली हो गई है 
इन्हें देख फिर ताजा हो उठती है
हम अतीत में सैर करने लगते हैं
फिर से वह जीवन जी लेते हैं
बच्चें बड़े हो गए 
उनका अपना संसार 
मेरा भी अपना संसार 
जो इस अल्बम में समाया 
वो भूली दास्तां 
         लो फिर याद आ गई 
नजर के सामने घटा सी छा गई 

दिल बिना

मैंने तुमसे प्रेम किया 
तुम्हारें लिए सबको छोड़ा
तुम्हें अपने से ऊपर रखा
तुम्हारी हर जरूरत का ख्याल रखा
तुमको पलकों पर बिठाकर रखा 
तुमसे खूबसूरत मुझे कुछ नहीं लगा
तुमने मुझे नहीं समझा 
मुझे छोड़कर जाते वक्त जरा भी नहीं सोचा
मेरी सारी दुनिया तुम 
तुम्हारी दुनिया में कोई और
मैंने सबको छोड़ा 
तुमने तो मुझे ही छोड़ दिया
मुझे कहीं का न रखा 
बस रोते ही रह गया
तुम्हारी हंसी के पीछे मैंने सब वार दिया 
मेरे ऑसू भी तुम्हें पिघला न सके 
इतना कठोर कैसे हो गई 
जज्बात की कोई जगह नहीं 
मैं समझा कि तुममें कौमल दिल का वास है 
तुमने तो पत्थर को भी मात दे दिया 
वह भी कोमल जल से अपने में छेद कर लेता है 
तुम्हारें दिल में जरा भी जगह न बनी 
कैसा दिल है 
लगता है तुम भावना से परे 
बस स्वार्थ से भरे 
दिल बिना व्यक्ति 

Monday, 24 February 2025

अतीत की बखिया

अतीत का बखिया उधाड़ने बैठी 
परत दर परत उधड़ती रही 
खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही 
मन कसैला सा हो गया
स्वयं से प्रश्न किया 
इससे क्या लाभ
जवाब मिला 
कुछ नहीं 
मन अशांत होगा
दिमाग खराब होगा
स्वास्थ्य पर असर होगा 
टेंशन बढ़ेगा 
बीमारियां सर उठाएगी 
तो बस 
मत उधेड़ो 
जहां तक उधड़ा है उसको फिर से सील दो 
अतीत में जीने - मरने से क्या होगा 

हमें हमारी मुंबई

ऐ मेरी प्यारी मुंबई 
तू मुझे बहुत भाती है 
तुझ बिन दिल लगता नहीं कहीं
वह गांव की शांति हो या गुलाबी ठंडी 
पेड़- पौधे का बगीचा 
नदी - पोखर का किनारा और ठंडी हवा 
बारीश की फुहार और बिजली की कड़कड़ाती
मोर का नृत्य या कोयल की कूं 
गौरयों की चीं चीं 
खुले आकाश का छत और चांद 
सूरज की किरणों का साथ 
एक - दूसरे के साथ बैठकी हो 
तीज - त्योहार या पूजा - पाठ
मंदिर का घंटा या मस्जिद की अजान

इन सबसे अंजान नहीं हम
अच्छे लगते हैं सब
हमको यह जीवन फिर भी रास नहीं आता
आदत जो पड़ गई है
भागम-भाग करने की 
छोटे जगह में एडजस्ट करने की 
समय के अनुसार चलने की 
घड़ी की सुईयों के पहले भागने की 
रेल की छुकछुक और बस की पौं पौं 
एक मिनट का भी समय नहीं 
मुड़कर देखने और बतियाने का 
सजने - संवरने और गप्पे - गोष्टी करने का 
सब एक - दूसरे से अंजान 
हाय - हैलो तक ही सीमित मुलाकात 

फिर भी हमको जीने में मजा आता है 
कभी कोई कमी जैसा लगता ही नहीं
पानी पुरी और सेव पुरी खाकर आनन्दित हो लेते हैं 
रास्तें पर मोलभाव कर लेते हैं 
ऑटों - टैक्सी में बैठ खुश हो लेते हैं 
एक रविवार को घर का सब काम निपटा लेते हैं 
कार- बंगला की अपेक्षा नहीं
अपने छोटे से घर में खुश हो लेते हैं
ज्यादा प्रपंच में नहीं पड़ते 
सीमित जिंदगी जीते हैं 
दिखावे से कोसो दूर रहते हैं 
जो है जितना है उसी में गुजारा करते हैं
नहीं किसी के आगे हाथ फैलाते 
अपनी मेहनत पर भरोसा करते हैं
हर काम को तवज्जो देते हैं 
किसी को कम नहीं समझते 
कहने को तो हम रहते महानगर में 
झूठे आडंबर का दिखावा नहीं करते
यह सब हमको मुंबई ने सिखाया है 
रोजी - रोटी दी है 
दिल से सम्मान और प्यार करते हैं 
भले औरों के पास खुला आसमान हो 
हमारे पास खुला दिल है 
सबको अपनाती है मेरी मुंबई 
किसी को भूखा नहीं रहने देती
मेहनत की कद्र करती है 
फर्श से अर्श तक पहुंचाती है 
तुमको तुम्हारा जहां मुबारक 
हमें हमारी मुंबई 


एहसास, एहसान का

आज सामने एक वृक्ष खड़ा देखा
वैसे तो हर रोज देखती हूँ 
कोई अनोखी बात नहीं
आज कुछ अलग निगाह से देखा 
न जाने कब से खड़ा है 
गर्मी की मार झेलता 
ठंड की कहर सहता 
बरसात में थपेड़ों का सामना करता 
जलता रहा 
ठिठुरता रहा 
भीगता रहा 
बिजली - तूफान को डटकर झेला 
पतझर भी देखा 
वसंत भी देखा 
डिगा नहीं न हिला 
देने में कोई कसर नहीं 
जो पास था वह दिया
फूल , पत्तें , फल
छाह भी दी 
हवा भी दी 
गर्मी से निजात दी भले तपता रहा
बारीश में आसरा दिया भले भीगता रहा
अपने डालियों पर घरौंदा दिया
झूला भी झुलाया
पत्थर मारा उसे भी नहीं दुत्कारा
सबको प्रेम से गले लगाया 
वह तो अपना काम करता रहा 
कर्तव्य निभाता रहा 
मेरे प्रति भी तो किसी का कर्तव्य 
मैंने तो अपनी पारी पूरी की 
अब तुम्हारी बारी 
मैं भी वह पहले जैसा नहीं रहा 
लगा ऐसे जैसे 
जीवन दर्शन बता रहा हो 
जीने के मायने समझा रहा हो 
एक हल्की सी मुस्कान के साथ देखा उसे 
धन्यवाद तो बनता है 
कृतज्ञ है उसके 
वह आदरणीय है उसका हर भाग का एहसान 
इसका भी है एहसास 

जो होना है

कुछ ख्वाब देखे थे मैंने 
कुछ सपने सजाए थे 
उनको साकार करना था 
उसी चक्कर में चक्कर पर चक्कर लगते रहे 
हम उसे अपने इर्द-गिर्द लपेटने में लगे रहे 
खुश भी होते रहे 
कुछ टूटे भी कुछ पूरे भी 
अब कुछ नहीं दिखता 
देखना जो छोड़ दिया है 
अब लगा ऐसा
इसमें तो कुछ भी नहीं रखा है 
जो होना है वह होना ही है 

Sunday, 23 February 2025

जी लो

जिसको साथ रहना था वह रहा
जिसका साथ छूटना था वह छूटा
किसी ने जान बूझकर छोड़ा
किसी का असमय छूटा 
मिलते गए छूटते गए 
कुछ पल खुशी के बांटे 
कुछ टाइम पास भी किया
किसी से वैसे नहीं जुड़ाव हुआ 
जिसे खास कहा जाए 
कभी रोए भी कभी हंसे भी
कभी मन खोलकर रखा
कभी चिंता और टेंशन व्यक्त किया
कभी गुस्साए भी 
हमें लगा कि हमसे कोई नजदीक क्यों नहीं हो पाता 
क्या हममें कुछ दोष
नहीं ऐसा नहीं है 
जिस स्टेशन पर जिसको उतरना था 
उतरेगा ही 
हमारे लिए थोड़ी रुकने वाला 
यहाँ सब संबंध अपने मतलब से चलते हैं 
कुछ न कुछ रहता ही है 
तो सब बातें छोड़ दो 
मन पर बोझ मत लो 
किसी का छूटा तो वजह आप नहीं 
हां यह दीगर बात कि कोई आपमें कमी निकाल छोड़ चला हो
रुकना तो उसे वैसे भी नहीं था 
अकेले आए हैं अकेले जाना है 
न कोई साथ खुद के साथ रहें
खुश हो ले , निहार ले 
ईश्वर का शुक्रिया अदा करे
जीवन जो मिला है उसे मनपूर्वक जी ले 

Saturday, 22 February 2025

मैं धारा हूँ

मैं धारा हूँ 
बहना मेरा स्वभाव 
मैं कभी रुकती नहीं
मैं कभी थकती नहीं 
अनवरत बहती जाती
आगे बढ़ती जाती 
मैं बस देती जाती 
मैं प्यार की स्नेह की धारा
घुमक्कड़ी हूँ मैं 
एक जगह रुकती नहीं 
प्रवास करती रहती 
सबको अपने साथ जोड़ती जाती
मुझे रोकने की कोशिश न करें 
यह तो अपने आप अपना विनाश 
भंवर में फंस जाएगे
जहाँ से निकलना मुश्किल 
मेरे साथ चलते चले
बहते चले 
मैं विकास के पथ पर ले जाऊंगी 
मैं पीछे नहीं आगे बढ़ती हूँ 
विपरित परिस्थिति में भी नहीं मुड़ती 
बस चलो मेरे साथ 

नियति

कभी- कभी वसंत की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं
वसंत आता ही नहीं 
पतझड़ जाता ही नहीं
कभी - कभी किनारे पर पहुँचने की कोशिश नाकाम हो जाती 
लहरों से जूझते हुए भंवर में फंस जाते हैं
कभी- कभी मंजिल की तलाश में दूर निकल जाते हैं
फिर भी नहीं मिलती 
बस चलते जाते हैं
कर्म करते रहते हैं 
प्रतीक्षारत रहते हैं 
इसी को तो नियति कहते हैं 

बदल गई

मैं तुझे बेहतर बनाना चाहता था
बेहतर की कोशिश में तुझे जीना ही भूल गया
बेखबर इस बात से 
तू क्या चाहती है 
तुझे किससे खुशी हासिल होगी 
मैं सोचता रहा 
तू खिसकती गई 
अब लगता है 
कि कैसे यह सब हो गया 
सुनहरे पल हाथ से छूट गए 
तू भी वह न रही 
कितना कुछ बदल गई 

Friday, 21 February 2025

क्या करें ???

हंसने के लिए एक छोटी सी वजह भी काफी है
रोने के लिए बड़ी से बड़ी वजह भी कम है 
रोना - हंसना इसी से चलता हमारा जीवन
एक ऐसी घटना जो सारी जिंदगी रोने पर मजबूर कर दें
जिंदगी को सुकून से रहने ही न दे
क्या करें रोते रहें
रोने के लिए तो जन्म नहीं हुआ है 
जिंदगी कुछ दिन के लिए वह भी जीऍ नहीं
खुश न रहें , हंसें न 
तब करें तो क्या करें 
यह भी हमें ही तय करना है 
रोते - रोते गुजारे या फिर हंसते - हंसते 
दुख - दर्द दरकिनार कर
कुछ छोटी - छोटी बातों पर हंस लिया जाए 
खुश हो लिया जाए 
जो भी है उसमें से कुछ खुशी को ढूंढ लिया जाए 
बहुत कुछ न सही थोड़ा ही सही
जिंदगी को जी लिया जाए 

मेरी अहमियत

मैंने उनको अपना समझा था
बहुत नाज था उन पर
सोचा था 
मेरे बिना तो ये रह ही नहीं पाएंगे 
भ्रम में जी रहा था 
एक कदम स्वयं के लिए उठा लिया
सबको बहुत अखर गया
मैं मान में बैठा था 
रूठा था 
विश्वास था 
मुझे कोई मनाने आएगा 
मैं इंतजार करता रहा
कोई नहीं आया 
सब आशा - विश्वास चूर-चूर हो गये 
अब पता चला 
मेरी कितनी अहमियत उनके जीवन में है 

Thursday, 20 February 2025

दर्द

दर्द का दर्द से रिश्ता होता है 
जिसने झेला ही नहीं 
वह क्या जाने 
दर्द क्या होता है 
जब तन - मन आहत होता है 
तब दर्द होता है
दिल दुखता है
जब अपनों को दर्द होता है 
उस दर्द का एहसास हमें भी होता है 
दर्द उसको पीड़ा हमको 
स्वयं का दर्द सह भी ले 
किसी अपने का दर्द नहीं सहा जाता 
दर्द दिखता नहीं
पर जीवन झकझोर कर रख देता है
सब कुछ उथल-पुथल कर डालता है 
सारे सपने - आशाएं तोड़ डालता है 
एक भिकारी से भी बदतर कर डालता है 
किससे कहे 
किसे दिखाए 
कौन समझे 
मेरा दर्द न जाने कोई 
सुख के सब साथी 
दुख का न कोई 

विश्राम की बेला खत्म

अंधेरा भागा
सुबह हुई 
रोशनी ने डेरा डाला
धीरे - धीरे पैर पसारा
भोर की किरण मुस्कराई 
ओस की बूंदों पर झिलमिलाई 
चिड़ियां भी चहचहाई 
पत्ते भी सरसराए 
मुर्गे ने भी बाग लगाई
कौवा भी इस डाली से उस डाली डोला 
कबूतर की गुटरगूं से घर - आंगन गूंजा 
चारों ओर चहल-पहल 
कहीं गाड़ी का हार्न 
कहीं बस की पौं पौं
कहीं रेल की छुकछुक 
सूरज दादा ने जब घेरा 
सब उठकर भागे 
हर जगह हुई हलचल 
सब हुए गतिशील 
उठो , चलो 
काम पर लगो 
विश्राम की बेला खत्म 

सब कुछ अनिश्चित

चिंता करते रहे 
फिक्र करते रहे 
होनी को फिर भी होना है 
उसे टाला नहीं जा सकता
कहने को तो बहुत मजबूत है इंसान 
वास्तविकता तो यह है 
बहुत कमजोर है इंसान 
बहुत मजबूर है 
जिसके हाथ में कुछ नहीं
कुछ भी तो नहीं
सब कर्म धरा का धरा रह जाता है 
जब भाग्य का डंडा पड़ता है 
उसने  तो भाग्य विधाता को भी नहीं बख्शा
उनको भी भोगना पड़ा 
वह उसे अपने वश में न कर पाए 
कभी-कभार कुछ ऐसा घटता है 
लगता है सबसे विरक्त हो लें
यह सपने यह इच्छा सब छोड़ दें
हो नहीं पाता यह भी
यहाँ भी तो मजबूरी है 
माटी का खिलौना 
कब टूट जाए 
सपनों का महल 
कब ढह जाए 
अंधेरा कब छा जाए 
सांस कब साथ छोड़ जाए 
सब कुछ अनिश्चित 

Wednesday, 19 February 2025

हम - तुम खुश रहे

उसने , उससे कहा 
मैं तुम्हारें लिए जान भी दे सकता हूँ 
जान देने की नहीं जिंदा रहना है मेरे लिए 
आकाश से चांद- तारें तोड़कर ला सकता हूँ 
नहीं उसकी जरूरत नहीं
राशन - पानी , सब्जी- दूध ले आओ
दुनिया से लड़ सकता हूँ 
दुनिया से  लड़ो नहीं बचाव करों
राह में फूल बिछा दूंगा 
राह में हाथ पकड़कर साथ- साथ चलो
तुम्हें अपने सर पर बैठाकर रखूंगा 
सर पर नहीं घर में बैठाकर रखो
तुम्हें महारानी बनाकर रखूगा 
महारानी नहीं संगिनी बनाकर रखो 
पलकों पर बिठाउंगा
दिल में बिठाकर रखो
तुम्हारे लिए सब कुछ छोड़ दूंगा 
छोड़ना नहीं जोड़ना है 
त्यागना नहीं अपनाना है 
सात जन्मों का वादा मत करो
किसने देखा है 
इसी जनम में साथ निभाओ 
सारे जहां की खुशियां तुम्हारे  कदमों में
जहां की खुशियां नहीं
बस हम - तुम खुश रहे 


बस यादें रह जानी है

कुछ तो बोलो 
कितना चुप रहते हो 
जरा बैठ बतियायों 
कुछ गुफ्तगू करो 
कुछ अपनी कहो कुछ हमारी सुनो 
कभी तो खिलखिलाकर हंसो 
चेहरे पर मुस्कान बिखेरो  
इतनी चुप्पी ठीक नहीं
कब तक मन को दबाकर रखोगे 
जरा मन खोलकर तो देखो 
कितना सुकून मिलता है 
कितना भावनाओं को छिपाओगे 
जरा भावनाओं को बहने तो दो 
उनको दबाना ठीक नहीं 
नासूर बन जाएगा 
क्या फायदा वैसे प्रेम का 
मन में तो भरा है 
उसका इजहार करना नहीं आता 
अब तो छोड़ो सब
जीवन को खुलकर जी लो 
पता नहीं कितने दिन रहना है 
कुछ प्यारे पलों को याद कर लो 
अपनों में प्यार बांट लो 
बस बाद में तो यह यादें रह जानी है 

Monday, 17 February 2025

शबरी

मतंग त्रृषि की शिष्या 
छोटी जाति और कुल
भक्ति में लीन 
बरसों किया राम का इंतजार 
हर रोज स्वागत की तैयारी 
बुहारती पोछती सजाती कुटिया 
फूलों को बिछाती राह में
कभी न हार मानी 
न कभी आलस किया 
बस आशा लगाई और प्रतीक्षा की 
पगली समझी गई 
हंसी उड़ाई गई 
पर वह न डगमगाई 
विश्वास जो था अपने प्रभु पर
बचपन से बुढ़ापा आ गया
शबरी की सोच नहीं बदली 
अगर सीता का हरण नहीं होता तो 
शबरी की प्रतीक्षा व्यर्थ जाती 
नहीं कभी नहीं 
राम को तो हर हाल में आना था 
उत्तर से दक्षिण उस बूढ़ी माई से मिलने 
विश्वास जो था उस भक्त का 
उसको कैसे तोड़ते 
उसके जूठे बेरों को खाना था 
कौन इतने प्रेम से उनको अपना जूठा खिलाता
बड़े - बड़े पकवानों का भोग में वह स्वाद कहाँ
लोग कुछ समय इंतजार नहीं कर सकते 
शबरी ने तो पूरी उम्र उसी में गुजार दी 
बस मेरे राम आएगे 
शबरी राम को ढूँढने नहीं गई 
राम को ढूँढते हुए आना पड़ा
वह अपनी कुटिया में बाट जोहती  रही 
सही भी है 
कहते हैं ना 
कौन कहता भगवान आते नहीं 
शबरी सा तुम बुलाओ  तो सही 


आज क्या लिखना है

आज क्या लिखना है 
नहीं कुछ नहीं लिखना है 
आज लेखनी को विराम 
सोचते है हर दिन 
होता नहीं है 
कुछ न कुछ मोबाइल देखते - देखते विचार जेहन में आ ही जाता है 
अब आया है तो उनको समक्ष लाना है 
भाव व्यक्त करना है 
अपने आप उंगलियाँ टिपटिपाने लगती है
अक्षर उकेरने लगते हैं
भाव आते रहते हैं 
शब्द और वाक्य बनते रहते हैं 
यह सब स्वाभाविक होता है 
कोई प्रयास नहीं 
आदत जो है लिखने की 
खुराक है वह एक तरह से 
आदत कहाँ जल्दी छूटती है 
दिल भी कहाँ मानता है 

दाग

दाग कैसा भी हो 
एक बार लग गया तो लग गया 
कितना भी साबुन - डिटर्जेंट रगड़ो 
जल्दी नहीं छूटता 
छुट भी गया तो कुछ तो निशान रह ही जाता है
वहाँ का रंग थोड़ा फीका सा हो जाता है 
धोते - धोते छुट ही जाता है 
समय लग जाता है 
निशान याद भी नहीं रहता 
दाग कपड़े पर हो या चरित्र पर हो
बहुत संभालना पड़ता है 
अन्यथा उसे बड़ा बनते देर नहीं लगती 
दाग तो दाग ही है
वह कपड़े पर चाय का हो 
या चरित्र पर हो 

प्रेम

बह रहा मुझमें प्रेम का झरना 
कैसे लुटाए कहाँ लुटाए 
प्रेम देना ही नहीं प्रेम लेना भी आना चाहिए 
सबके बस की बात नहीं
स्वार्थ से परे
मोल - भाव 
हिसाब- किताब नहीं 
तुमने क्या दिया 
इतना तो इतना क्यों 
बदले में क्या ??
प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता
प्रेम बस प्रेम चाहता है 
दिल में थोड़ी सी जगह चाहता है 
सम्मान चाहता है 
विश्वास चाहता है 
अगर है तब तो कोई समस्या ही नहीं 
एहसान नहीं एहसास हो 
सब कुछ लुटादेने की कुवत हो 
न सोच न गुणा - भाग 
विशुद्ध प्रेम हो 
है ऐसा हो सकता है ऐसा 
प्रेम के झरने में गोते लगाए 
प्रेम की नदी में बेहिचक तैरिए 
लहरों से बिना डरे 
जितना उचिल ले 
अपनी अंजुरी भर लें 
हाॅ यह ध्यान रहें 
उस में उतरना ही होगा
आग का दरिया है पार तो करना ही होगा 

Sunday, 16 February 2025

हमारा अस्तित्व

हमें ऐसा लगता है अक्सर
हमारी कहीं कोई पूछ नहीं है 
हमारी कोई वैल्यू नहीं है 
हमारा अस्तित्व नहीं है 
इससे पहले यह भी सोचे
किसी को आपसे अपेक्षा है क्या
किसी को आपसे शिकायत है क्या
किसी को आपको देख चेहरे पर मुस्कान आती है 
किसी के आंखें भर आती है
किसी को आपका इंतजार रहता है क्या
कोई आपसे नाराज है क्या
कोई आपसे गुस्साया हुआ है क्या
कोई आपको टोका टोकी करता है क्या
यहाँ तक कि कोई आपसे नफरत करता है क्या
किसी को आपसे ईष्या है क्या 
तब तो समझ लीजिए 
आप महत्वपूर्ण हैं 
हम लोगों से जुड़े हैं
यह सब इसलिए 
कि हमारा भी अस्तित्व है 

वे लोग

वे लोग वे पल
वह साथ बिताए क्षण
जेहन में सब हैं 
कुछ हैं कुछ नहीं
कुछ इस जगत में
कुछ रुखसत कर दूसरी दुनिया की सैर पर 
सफर जिंदगी का साथ चला था उनके 
यादों में ताजा अब भी 
वह अपनापन 
वह प्यार 
वह नोक-झोंक 
कुछ भी तो नहीं भूला 
आज सब अपनी अपनी राह
कभी हमराह थे 
सफर को साथी थे 
सुख - दुख बांटा था
साथ बैठे हंसे - खिलखिलाएं थे 
कभी नाराज तो कभी मनुहार होता था 
कभी हक जताया तो कभी गले लगाया
हर समस्या को मिल जुलकर सुलझाया 
अपना कौन पराया कौन 
जवानी जिनके साथ गुजारी 
दिन के आधा उनके साथ बिताया 
सहमित्र- सहकारी हमारे 
हम न भूल पाएं उन्हें 
सही है वह और सटीक भी
   लो भूली दास्तां फिर याद आ गई 

खुद पर गुरुर

हम चलते रहें
हासिल भी करते रहें
कुछ सफलता मिली 
कहीं निराशा भी 
क्या हम रीते रहे
ऐसा नहीं है 
बहुत कुछ पाया भी 
पर बहुत कुछ खोया भी
इस खोने - पाने के चक्कर में 
कुछ ऐसा छूट गया
वह फिर वापस नहीं आने वाला 
वे पल वे लम्हें 
फुरसत नहीं मिली 
कभी बैठकर निहारे समुंदर किनारे
कुछ सुकुन का पल व्यतीत करें 
कभी ऐसे ही गुफ्तगू करें 
पार्टियां करें सिनेमा देखे 
दोस्तों संग पिकनिक मनाए 
अच्छे परिधान पहन इतराए
शीशे के सामने खड़े रह मुस्कराते
बालों के लट को आहिस्ता से सुलझाए 
कभी बच्चों की मनुहार करें
कभी उनकी मनपसंद भोजन बनाए 
कभी होटल में बैठ में स्वाद का लुत्फ उठाए 
ईश्वर की पूजा करें ध्यान मग्न
कीर्तन- भजन में शामिल हो 
गुरु बनाए और उनका आशीर्वाद लें 
कभी थकान कभी आलस कभी आराम का खुमार 
सब कुछ हुआ भागम-भाग में
बहुत कुछ जल्दी - जल्दी में 
कभी समय की कमी की वजह
कभी कुछ और वजह
कभी फर्ज तो कभी कर्म 
कभी मजबूर तो कभी मजबूत 
कभी इच्छानुसार तो कभी अनिच्छावश 
कभी रोकर कभी मुस्करा कर
कभी मन से कभी मन मारकर 
किया भी करना भी पड़ा 
कोई बात नहीं 
यही तो जीवन है 
खुशी देकर हंसी पाई है 
गम को धता बताया
अपने बल पर परचम फहराया 
न गिरी न किसी को गिराया 
अपने सामर्थ्य को पहचाना 
हार कर जीतना और जीत कर हारना 
यह कला बखूबी जानते हैं 
तभी तो खुद पर गुरुर करते हैं 

Saturday, 15 February 2025

मैं भारत की बिटियां हूँ

इन ऑखों में बडे - बडे सपने संजोये
मुस्कान भरती हुई हमारी प्यारी बिटिया
मानो कह रही हो
मुझे न रोको न टोको
मुझे खुले आसमान में उडने दो
मैं आधुनिक भारत का भविष्य हूँ
अब हमारा जमाना है बेटियों का
आप हमें धरती दें
हम पूरा आसमां आपको लाकर देंगे
पन्द्रह अगस्त को जन्मी 
आजादी का परचम फहराती हमारी माही
कह रही हूँ 
मैं ही आज हूँ 
मैं ही कल हूँ
मैं ही भारत महान की बेटी हूँ
सारे जग को मुठ्ठी में करने का माद्दा रखने वाली
भारत की प्यारी बिटिया हूँ

Friday, 14 February 2025

माता - पिता की ममता

अपने बच्चों के पुराने खिलौने संभाल कर रखा था 
उसकी पुरानी सायकल भी वैसे ही
उसे रोज पोछते थे 
साफ करते थे 
हाथ फेरते थे 
उनके अलबम में फोटों देख खुश होते थे 
पुरानी यादों को फिर जीवंत करते थे 
आंखो में पानी भर आता था
धुंधला हो जाता था
जल्दी से आंखें पोछ दोनों हंसते - मुस्कराते थे 
प्यार से एक एक फोटों पर हाथ फेरते थे 
उनकी बातें बतियाते थे 
गर्व से सबको उनके बारे में बताते थे 
बच्चे चले गए विदेश 
चिड़िया का घोसला जैसे घर फिर सूना हो गया
अब उनके ऊपर हाथ फेरने वाला कोई नहीं 
सांत्वना देने वाला बीमारी में कोई नहीं
देखभाल करने वाला कोई नहीं
हाथ पकड़कर चलाने वाले तो चले गए 
वे अकेले रह गए 
प्रसन्न तो अब भी सोचकर यह है
हमारी भी संतान है
हम भी किसी के माता -- पिता है 

Happy Velintine day

प्रेम का दिन एक
एक दिन नहीं हर दिन प्रेम हो 
हर पल दिल में प्रेम लहराता हो 
प्रेम में हिसाब-किताब नहीं होता
यह दिल का मामला है 
सब कुछ वार जाना 
अपने अस्तित्व को ताक पर रख देना
अपने प्यार को मुस्कान में देख आंनदित हो जाना
उसको चोट लगने पर ह्दय द्रवित हो उठना 
उसके खुशी का ध्यान रखना
हर कुछ करने के लिए तैयार रहना 
केवल मुख से नहीं जताना कर दिखाना 
उसके हर सुख- सुविधा का ध्यान रखना
उसकी परवाह करना 
उसकी हर बात को तवज्जो देना 
उसके मान - अपमान का ध्यान देना
गुलाब भले न दे लेकिन भोजन के लिए फूल गोभी अवश्य दे 
शाहजहां न बन पाएं कोई बात नहीं
ताजमहल मत बनाएं उसके लिए घर बनाए 
रांझा बन जान देने की अपेक्षा दशरथ मांझी बने 
जिसने पूरी जिंदगी लगा दी पहाड़ से रास्ता बना देने में
पागलपन की ह्दय तक प्रेम 
दुनिया चाहे कुछ भी कहे
प्रेम के लिए तख्तोताज भी छोड़ने वाले हुए हैं
प्रेम रुप - रंग- जाति - धर्म, अमीरी - गरीबी नहीं देखता 
प्रेम का ह्दय कोमल होता है
आपकी बुराई में भी अच्छाई दिखे 
स्वतंत्रता का अधिकार हो 
हर बंधन से परे हो 
प्रेम बंधा हुआ नहीं होता न उसको बांधना है 
न वह जबरदस्ती होता है 
इतना प्रेम हो कि जिससे प्रेम हो वह भी प्रेम करने पर बाध्य हो जाए 
उसके हर कदम का स्वागत हो 
यह कुछ दिन का नहीं जिंदगी भर का हो 
सभी प्रेमियों को शुभकामना 
 Happy valentine day 

Thursday, 13 February 2025

अब चक्रव्यूह में उलझना गंवारा नहीं

अब पीछे लौटने को जी नहीं चाहता
उन रास्तों पर चलना अब गंवारा नहीं
अब उन गलियों को पीछे मुड़कर देखने का जी नहीं करता
जिनसे जिंदगी होकर गुजरी है
हम छोड़ आए उन रास्तों को
जिस पर कभी हम चले थे 
ख्वाब देखे थे 
उन ख्वाबों को सच करने की कोशिश में न जाने क्या-कुछ छूट गया 
कितनी बार  जलालत सही
कितनी बार आत्मसम्मान की धज्जियाँ उड़ाई 
आत्मविश्वास आहत हुआ 
हंसने की वजह न होने पर भी हंसना पड़ा 
कितनी बार अपनी हंसी उड़ते देखी 
झूठ को सच मानना पड़ा 
बिना कारण भी दबना पड़ा 
गल्ती न होते हुए भी अपने को ही गलत बताना पड़ा 
जहाँ अपनी बात को रखने का हक नहीं मिला 
मन से न बात समझा पाए न भावना 
न किसी ने समझा 
दोष भी लिया 
माफी भी मांगा
लेकिन धारणा किसी की न बदली
हम चक्रव्यूह में उलझ कर रह गए 
बहुत कुछ पाने के चक्कर में बहुत कुछ खो बैठे 
अब किसी चक्रव्यूह में उलझने का मन नहीं 
अब पीछे मुड़कर देखना गंवारा नहीं
अब पीछे लौटने को जी नहीं चाहता 

जीवन यात्रा की साथी किताबें

मैंने किताबें बहुत पढ़ी है
बहुत से पात्र अपने से लगे 
किसी ने प्रेरणा दी
किसी ने सहनशक्ति दी 
किसी ने परिस्थिति से जूझना सिखाया
कभी कोई मेरा मित्र बना
कभी कोई मार्ग दर्शक बना 
किसी ने जीवन दर्शन का मार्ग बताया 
कोई तो मेरे साथ हंसा और खिलखिलाया 
कोई तो मेरे दुख से दुखित दिखा 
किसी ने मेरे ऑसू पोछ धैर्य बंधाया 
किसी ने सहनशीलता का पाठ पढ़ाया
किसी ने अपनी जिंदगी खोलकर दिखाई 
मानो हर पात्र यह कह रहा हो 
मैं यह कर सकता हूँ तो तुम क्यों नहीं
सुख - दुख तो हिस्सा है जीवन का 
हार मान बैठ रहना यह तो समस्या का हल नहीं
आँसू बहाने से क्या होगा
भाग्य को स्वीकार और कर्म करना 
ईश्वर ही कर्ता - धर्ता 
यह सब सीखा मैंने 
वह पात्र भले असली न हो 
लेकिन कभी-कभार नाजुक पलों में मैंने उनको समीप पाया 
पूरी किताब तो याद नहीं रहती 
हां उसका सार उसके पात्र जरूर जेहन में रहते हैं
भावनाओं के चढ़ाव - उतार के भागीदार रहते हैं 
हमें पता है वे भगीरथ नहीं है जो हमारा उद्धार करेंगे 
लेकिन साथी जरूर रहेगें जीवन यात्रा में 

Tuesday, 11 February 2025

अधिकार किसे ??

मैं आस में खड़ा था 
कोई तो होगा अपना
मुश्किल घड़ी में साथ देगा 
बीच भंवर में डूबने से बचाएगा 
यहाँ तो अलग ही मंजर था
लोग डूबने की प्रतीक्षा में थे
किसी तरह मैं हिम्मत जुटा अपने को बचाया
जीवन नैया किनारे पर लगाई 
आज संभल गया हूं
अब लोग मेरी तरफ देख रहे हैं 
हालात का जायजा ले रहे हैं
नजरिए में फर्क आ गया है 
लेकिन मैंने किनारा कर लिया है 
जो लोग मुझे डूबते देख बचाने नहीं आए 
आज किनारे पर आया हूँ 
तब भी अपना हाल पूछने का अधिकार नहीं दूंगा 
चाहे वह कितने भी अपने हो 

Sunday, 9 February 2025

मैं ऐसा ही हूँ

मैं कठोर बना रहा
एक आवरण ओढ़कर मन पर रहा
किसी को अपने पास फटकने न दिया
एक गुरुर लेकर जीता रहा
अपने उसूलो पर चलता रहा
समझौता करना सीखा नहीं
झुकना मुझे पसंद नहीं
उसका परिणाम क्या निकला
अपनों से ही दूर होता गया
कभी उनसे खुलकर बात न कर पाया
न उनकी बात सुन पाया
जब जरूरत थी उनको 
न प्यार दे पाया 
न समय दे पाया 
न उनके बचपन को जीया न उनकी जवानी को 
आज एक टीस सी लगती है 
फिर भी क्या करु 
आदत से मजबूर हूँ  
मैं ऐसा ही हूँ  

मैं क्यों ???

परीक्षा थी 
मन में बहुत घबराहट थी 
गणित का पेपर था जिससे मेरा छत्तीस का आंकड़ा था
कभी गणित मुझे न रास आया न समझ आया
घसीटते- घसीटते कैसे ही पास हो गया
वाकया यू था कि 
मुझे कुछ आ नहीं रहा था पर दिखाने के लिए कुछ न कुछ अंकों से खेल रहा था
ऐसे तो बैठ नहीं सकता था 
अचानक अध्यापक महोदय पास आकर बोले कि ठीक से बैठो 
वह पीछे वाला नकल कर रहा है 
कहकर वे आगे बढ़ गए 
मुझे थोड़ा संतोष हुआ 
मेरे जैसे और मुझसे भी गए - गुजरे लोग हैं 
थोड़ा-बहुत  गर्वित भी हो उठा 
बात पुरानी हो गई 
आज जिंदगी का गणित सुलझाने बैठा हूं
हार नहीं मानता 
यह सोचकर कि 
मैं ही नहीं बहुत से लोग है हम जैसे
हमसे भी कठिन हालात हैं उनके 
वे नहीं हार मानते तो मैं क्यों ???

Saturday, 8 February 2025

क्यों इतराता फरवरी

कम दिन का महीना
तब भी सबको प्यारा है फरवरी
प्रेम की सौगात लाता है 
न जाने कितने डेज मनाता है 
रोज डे प्रपोज डे वैलेंटाइन डे 
अपने पर इतराता है
क्या एक ही महीने में सब संभव
वह यह क्यों भूल जाता है 
दिसंबर से जनवरी तक 
प्रेमियों ने कितने पापड़ बेले हैं
न जाने कितनी मनुहारें  की है 
फूल अचानक नहीं खिले 
बहुत खाद - पानी देकर सींचा 
तब जाकर खिले हैं 
रंगत आई है 
मुस्करा रहे हैं 
हां यह बात दिगर
इजहार तो फरवरी में होना था 
प्यारा लगता है
इंतजार होता है 
तब जाकर यह कहीं आता है 
यह न सोचे और ध्यान रखें 
जनवरी तक सबने मुझे सौगात दिया है 
तब यह आया है
इस  एहसान का एहसास रहें 
खुशी मनाओ 
प्रेम के रंग में रंग जाओ
ऐसा रंगों कि ताउम्र संग रहे 


Friday, 7 February 2025

वे किस्से - कहानियाँ

पढ़ते थे हम एक जमाने में 
किस्से - कहानियाँ 
खो जाया करते थे उनमें 
रात भर जाग कर पूरा करते थे 
मन भावुक हो उठता था
कल्पना में खो जाते थे
वे पात्र अपने लगते थे 
दुखद होने पर रो उठते थे
पढ़ते पढ़ते आँखों से आँसू बह उठते थे 
वे जेहन पर छाए रहते थे 
नहीं प्रेमचंद की निर्मला को भूले 
न शरत के देवदास को 
न कालिदास की शकुंतला को भूले
न दिनकर की उर्वशी को 
न गुलेरी के उसने कहा था के बच्चों को 
न तीसरी कसम के उस गीत को 
चिठिया हो तो हर कोई बांचे भाग न बांचे कोय
जिनको पढ़कर हम इतने भावुक हो सकते हैं 
जिन पर गुजरी है उनका 
बहुत मुश्किल है 
सही भी है 
तुम हमारी तकलीफ को सरेआम करो 
हमारा कुछ न हो कुछ का भला तो होगा 

कड़वा सच

कहते हैं लोग 
कितना दुख होता है बेटी की मां को 
जब शादी के बाद अपने ही घर में बुलाने और रखने के लिए 
दामाद और ससुराल वालों की इजाजत लेनी पड़ती है
सही है और स्वाभाविक भी है 
एक पहलू तो यह भी है
बेटी की मां अपने ही घर में 
उसे न रख सके प्रेम और सम्मान से 
न बुला सके कुछ दिन अधिकार से 
उस घर को पराया कर दें 
दामाद और ससुराल वाले तो अपने नहीं
अपने कहे जाने वाले उसे पराया कर दें तब
सोच लो उस मां का हाल
जहां वह मजबूर हो 
कहने और रहने को तो उसका घर
लेकिन मर्जी नहीं चलती 
कड़वा है लेकिन सच है 

मेरे घर आई एक नन्ही परी

मेरे घर आई एक नन्हीं परी
शुभ्र सफेद रंगत
मासूमियत से भरी
टक टक निहारती बड़ी - बड़ी आँखें 
गुलाबी नाजुक से गाल 
ढूंढ रही हूँ उसमें अपने को
कहना है कुछ का
लगती है कुछ कुछ मुझसी भी 
हल्की सी मुस्कान जब भरती है
मन गद गद हो जाता है
कहावत है
बेटी धन की पेटी
पता नहीं सच क्या 
हाॅ  बेटी दिल के करीब होती है
दिल की धड़कन है वह 
खूब फले - फूले बढ़े हमारी बिटिया रानी 
खुशी से महके घर - आंगन
तोतली बोली से घर हो गुंजार
हमारी  वीरा  पर मैं सब कुछ जाऊं वार


Thursday, 6 February 2025

मेरी जीजी

पता नहीं कुछ दिनों से मन उदास है । दिल का कोई कोना जैसे रिक्त हो गया है ।एक खालीपन भर गया है कारण कि जीजी जो हमको छोड़कर चली गई हैं । रिश्ते में तो थी जेठानी पर और भी बहुत कुछ थीं ।कभी सखी तो कभी गार्जियन भी । कोई पर्दा या भेदभाव नहीं । अपना मन खोलकर रखती थी उनके सामने । मुझे उनकी बोली नहीं आती थी न वे कभी खड़ी हिन्दी बोलती थी फिर भी अगर मन में प्रेम हो तो भाषा - बोली मायने नहीं रखती । वैसे भी मेरे पति की प्यारी भाभी थीं । जिस पति को मैंने कभी हंसते हुए नहीं देखा उनके साथ खूब हंसी - मजाक कर लेते थे ।उनको पतरको को कहते थे 
               मैं अनगढ़ गांव के रीति-रिवाज से अंजान ऊपर से सब बोली और ताना मारने में एक्सपर्ट।  मैं तो लगता था एकदम मूर्ख हूँ वैसे समय में वे डटकर खड़ी हो जाती थी बिना किसी की परवाह किए।  बहुत लोगों को तकलीफ भी होती थी कि उनके साथ क्यों उठती - बैठती है । चढ़ाती है पर उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की ।
                  बहुत अच्छा पल  उनके साथ बिताया है । इतनी मजबूत औरत को तब टूटा हुआ देखा जब उनको असमय छोड़कर उनका जीवनसाथी चला गया । मृत्यु के कुछ दिन बाद ही मैं जब उनसे मिली तब बस आँखों में आँसू
 ही देखा  । बस वे सांस ले रही थीं मर तो उसी दिन गई थी । सारी इच्छा खत्म कर दी । 
              जीवन बदल गया था । अब वह सहारा रहा नहीं । कभी घर से बाहर नहीं निकली थीं न होशियारी थीं । सीधी - सादी । बच्चों और परिवार के इर्द-गिर्द घूमना ।
           शारीरिक तकलीफ को भी बहुत झेल लिया उसके बाद भी मिलने पर रोने के साथ किसी बात पर मुस्करा भी उठती थी । अस्पष्ट शब्दों में कुछ कहती रहती थी हम समझ नहीं पाते थे 
           जाना सबको है कोई अमर नहीं आया है । आज तुम्हारी बारी तो कल हमारी बारी । लेकिन व्यक्ति का किया और उसका व्यवहार नहीं मरता । वह याद रहता है । 
                विमला का अर्थ है शुद्ध और पवित्र ह्रदय।  तो सच में वे थी ही वैसी । पति और बच्चों के प्रति प्यार भरा समर्पण।  हर किसी से प्रेम से मिलना और बतियाना , बिठाना 
      आज लिखते लिखते आँख में आंसू आ रहे हैं लेकिन यह भी ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति मिले । उन्हें ईश्वर अपनी शरण में लें 
        उनकी बातें और यादें तो कहने बैठे तो खत्म ही नहीं होगी । आपको तो हम कैसे भूलेंगे।  पलिया भी अब आपके बिना तो सूना लगेगा । अब कौन पूछेगा मन से हाल चाल 
 परछाईयां रह जाती है रह जाती निशानी है
जीवन का मतलब तो आना और जाना है 
            मेरी प्यारी और अजीज जीजी को आदर भरी श्रद्धांजलि    🙏🙏🙏🙏🙏

अकेलापन

पेड़ तो पेड़ ही था
वह अपने पर हमेशा इतराता था
उसके तने हमेशा फूलों - पत्तों और फलों से लदे रहते थे 
डालियां जब झूमती थी तो वह भी मुस्कराता था
किसी को तवज्जों नहीं देता था
अपने में ही मस्त रहता था
समय हमेशा एक सा नहीं रहता 
पत्तों ने भी रंग बदलना शुरु किया
उसको छोड़ने लगे 
पेड़ को तो आभास ही नहीं
ऐसा भी कुछ होगा 
सब धीरे - धीरे बिछुडने लगे 
उससे दूर जाते गए 
वह बस मजबूर हो देखता रहा
आँखों में आँसू भर सोचने लगा
वह भी क्या दिन थे 
एक साथ कितने अच्छे लगते थे 
वह किसी को जाने तो नहीं देना चाहता था
धीरे - धीरे सब चले गए 
वह अकेला खड़ा रह गया 

Wednesday, 5 February 2025

चलना

यह सड़क कहाँ तक जाती है
इसका कोई ओर छोर नहीं
चलना भी आपको ही है
हो सकता है 
कोई आपके साथ चले
कोई आपके आगे चले
कोई आपके पीछे चले 
यह तो निश्चित है
आपके लिए कोई नहीं चलेगा 
वह तो आपको ही करना पड़ेगा 
अब यह आप पर निर्भर है

Monday, 3 February 2025

प्रेम के नाम पर

प्रेम से सब कुछ पाया जा सकता है
यहाँ हमने तो प्रेम को हारते देखा है
प्रेम को मजबूर देखा है
प्रेम को सिसकते देखा है 
प्रेम को मरते देखा है
प्रेम में पाना नहीं बल्कि खोना ही प्रेम है
ऐसा लगता है 
प्रेम न हो तो कोई परवाह नहीं
प्रेम में बंधक बन जाना पड़ता है
परीक्षा देनी पड़ती है 
अपने को साबित करना पड़ता है 
विश्वास दिलाना पड़ता है
प्रेम के नाम पर अपने अस्तित्व को खत्म करना पड़ता है 
यह कैसा प्रेम 
काहे का प्रेम 
जहाँ उसके नाम पर खोना ही खोना
पाना कुछ नहीं 

भूल जाओ

रात गई बात गई 
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई
रात भी गई 
बात भी गई 
जिस पर बीती 
उसका क्या
उस अपमान का
उस दर्द का 
उस बात का असर का 
उस याद का 
जो जेहन में ताजा हो उठती है
सुषुप्त अवस्था में हैं 
जरा सा छेड़ने पर सारे पल आँखों के समक्ष
उसने जिसने इसे जीया है
उसने जिसे इसे भोगा है
हर दंश को झेला है 
हर उपेक्षा को महसूस करा है 
कह दिया और हो गया
अरे जीकर तो देखो वह जिंदगी 
फिर कहना कि 
भूल जाओ

आँसू

आँसू ही नहीं आते यार
रोने के वक्त जैसे सूख जाते हैं
मौके पर नहीं आते 
बाद में आते हैं
रात को आते हैं नीरव शांति में
जहाँ कोई देख न सके 
चुपके से रो सके 
आँसू को भी प्रदर्शन अच्छा नहीं लगता 
उनकी भी अपनी भाषा होती है
बहुत मजबूत होते हैं 
विडंबना तो देखो इसकी 
कोमल और कमजोर को आते हैं
जहाँ शब्द असमर्थ 
वहां ये काम आते हैं
बड़े - बड़े चट्टानों को पिघला देते हैं
इनका कोई रंग नहीं 
इनका कोई रुप नहीं
फिर भी सबसे बड़ा हथियार 

Sunday, 2 February 2025

हंसी उसकी

वह आज बहुत हंस रही थी
बात - बात पर खिलखिला रही थी 
ऐसी कौन सी खुशी हासिल हुई थी
समझने की कोशिश में लगी थी
खुश थी वास्तव में 
या दर्द को छिपाने की कोशिश कर रही थी
हर हंसी खुशी की नहीं होती
पूछा तो टाल दिया
बस ऐसे ही हंसने का मन हुआ 
खुश रहना चाहिए 
हर दम हंसते रहना चाहिए 
कहते - कहते ऑखों के कोरे भीग गए 
न जाने कहाँ से आँसू की एक बूंद टपक पड़ी 
छिपाकर पोछना चाहा 
मैंने हाथ पकड़कर कहा 
मत पोछो न छिपाओ 
बह जाने दो 
रोने में क्या शर्माना 
सब बारी- बारी से रोते हैं
यह बात सुनते ही वह रोते - रोते हंस पड़ी 
साथ में हंसते हुए मैं बोली 
यह हुई न बात
अबकी हंसी सच्ची थी बनावटी नहीं 

चंदा और तारें

तारों के बीच एक चंदा रहता है 
वही उनको अपना लगता है 
लेकिन वह भी कहाँ एक जगह टिकता है
कभी यहाँ कभी वहाँ बस डोलता फिरता है
अपने आकार बदलता रहता है 
कभी छोटा कभी बड़ा 
कभी आधा कभी पूरा 
कभी छिपता कभी दिखता 
उस पर भी अमावस आती है 
ग्रहण लगता है 
दुख तारों को भी होता है
वे तो उसे पास और पूर्ण देखना चाहते हैं
अंधेरे से दूर रखना चाहते हैं
पर करें तो करें क्या
बस टिमटिमा सकते हैं 
कोशिश भरपूर करते हैं 
पर कहाँ पास रख पाते हैं 
कभी - कभी तो वे भी टूट जाते हैं
चंदा को तो कोई फर्क नहीं पड़ता 
तारों को तो पड़ता है 
प्रेम जो उससे करते हैं

Saturday, 1 February 2025

शक्ति का नाम ही नारी है

मैं औरत हूँ 
कोई खिलौना नहीं
बहुत खेल लिया मेरी भावनाओं से
न दोषी होते हुए भी मुझे दोषी ठहराया गया
अपनी गलतियों को छुपाने के लिए मुझ पर तोहमत लगाया गया 
मैंने तो जो भी किया मन से किया
हर रिश्ता बखूबी निभाया
मैंने बेटी का बहन का पत्नी का बहू का और मां का हर रोल निभाया अपनी सामर्थ्य भर
मैं कभी किसी पर बोझ न बनना चाहा
न कभी अपनी ख्वाहिश और इच्छानुसार कुछ किसी से मांगा
अपने ही दायरे में सिमटी रही
अपना काम करती रही 
जो मुझसे हो सकता था वह समर्पण और प्यार दिया
सबको ही मुझसे शिकायत 
अपने गिरेबान में कोई झांकता नहीं
कुछ भी हो मुझ पर ही ऊंगली उठी
कुछ नहीं तो कोई मेरी आवाज को लेकर तो कोई मेरा मुंह देखकर 
बोलना भी मुश्किल न बोलना भी मुश्किल 
ऐसे लगता है सब दूध के धुले हैं
सब परिपूर्ण है 
उनकी हर बात सही
हर क्रियाकलाप सही
बाहर वालों से तो बचा जा सकता है
अपने कहे जाने वालों से डर कर रहना
बोलते समय भी सोचकर बोलना
पता नहीं किस बात पर किस को बुरा लग जाए 
बहुत प्यार करते हैं बहुत मानते हैं 
जो अपना होता है वह एहसान नहीं जताता
हर बात पर नीचा नहीं दिखाता
हर बात में कमी नहीं निकालता
उसके मन और घर के दरवाजे बंद नहीं होते
जुड़ाव रहें तो कोई कारण नहीं अलगाव का
अलगाव के लिए तो एक क्षुद्र कारण भी काफी है

औरत ताउम्र सहती है 
तभी लोगों ने उसे यशोधरा और राधा बना डाला 
उसको तो उसी समय सिद्धार्थ को घसीट लाना था तब देखते वह कैसे महात्मा बनते 
सब गए उनसे मिलने और दर्शन करने भगवान जो बने थे वह नहीं गई 
पूछने पर कहा कि उस भिक्षुक का दर्शन करने क्यों जाऊ 
बुद्ध को आना पड़ा उसके द्वार पर 
राधा तो स्वाभिमानी थी अढ़ाई कोस की दूरी पर ही थी मथुरा 
गई नहीं कभी मिलने और कृष्ण की भी हिम्मत नहीं हुई तभी तो जीवन भर मथुरा से हस्तिनापुर का चक्कर लगाते रहें क्योंकि गोकुल बीच में पड़ता था
रही बात मीरा की तो प्रेम मीरा ने किया था कृष्ण ने नहीं
राजमहल का सुख और ऐश्वर्य तथा राजा पति को छोड़ संतों संग बिना समाज की परवाह किए कृष्ण धुन गाती रही
कृष्ण जैसा नहीं बनी जो जिंदगी भर राधा को रोने के लिए छोड़ गए थे 
जहर दिया गया ।विष का प्याला पिया पर उनको नहीं छोड़ा
औरत प्रेम करती है तो भरपूर 
तिरस्कार करती है तो मुड़कर नहीं देखती
वह किसको छोड़कर नहीं जाती 
लेकिन अगर गई तो वापस नहीं आती 
वह मजबूर होती है प्यार में अपनों से 
जिस दिन वह इनसे विरक्त हो जाए तो फिर वह कुछ भी कर सकती है
उसको अपनी शक्ति पता चल जाए तो वह क्या नहीं कर सकती
मर्द भागता है औरत जिम्मेदारी से नहीं भागती 
आज की नारी यशोधरा नहीं यशोदा बेन है जिसका पति प्रधानमंत्री मोदी हैं फिर भी वह सिक्युरिटी नहीं लेना चाहती और अपना जीवनयापन अपने बल पर भाई के घर रहकर कर रही है
आज की नारी इंदिरा है जिसे गूंगी गुड़िया कहा जाता था उसने दुनिया के नक्शे को बदल डाला 
इतने पुरुष प्रधान मंत्रियों पर एक औरत प्रधान मंत्री भारी है 
वह मां होती है 
इसलिए वह शक्तिमान और मजबूर दोनों होती है 
लोग उसको  Take for granted  लेते हैं
अब वह समय आ गया है 
वह अपने अधिकार और स्वाभिमान के प्रति सतर्क है
अब उसे बांधना इतना आसान नहीं
वह आत्मनिर्भर है 
जो पूरा घर चलाता हो उसको चलाना अब आसान नहीं 
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आंचल में दूध और आँखों में पानी
  वह दिन गए 
अब तो है 
कोमल है हम कमजोर नहीं
शक्ति का नाम ही नारी है 
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का कथन है
मर्द अपने को नहीं मिटाता औरत से ही इसकी अपेक्षा करता है , कारण कि मर्द में इतनी सामर्थ्य ही नहीं है कि वह अपने को मिटा सके क्योंकि वह स्वयं मिट जाएगा