Thursday, 30 November 2017

अगर तुम होती तो क्या होता

तुम होती तो क्या होता
धूप भी लगती मधुर चॉदनी
रात्री की नीरवता भी गाती मधुर गीत
झिंगुर की आवाज में आती पायल की खनक

अगर तुम होती तो क्या होता
हवा की ठंडी - ठंडी मंद बयार
छूकर मन को आह्लादित कर जाती
पुष्पों की सुंगध वातावरण को महकाती
पतझड भी वसंत लगता

अगर तुम होती तो क्या होता
बादल भी इंद्रधनुषी लगता
क्षितिज का रीतापन भी रंगबिरंगी लगता
पैरों तले मखमली हरियाली का आभास होता
शुक्र ग्रह भी भोर में स्वागत करता हँसते - मुस्कराते

तुम होती तो यह जग सुंदर लगता
सुंदर से सुंदरतम रचना लगती कलाकार की
दूधिया चॉदनी का वास होता , न होता धुंधलापन
तुम होती तो मेरा जीवन , न जाने कैसा होता
जो भी होता , सुंदरतम और खूबसूरत ही होता

आखिर रोटी मान ही गई

बच्चें भूखे है रोटी के इंतजार में
कब रोटी मिले, कब खाए
पर यह क्या????
यह तो नखरे करने लगी , उछलने लगी
सब परेशान , रूठ गई और अब मानती नहीं

तवे पर डाला कि उछल पडी
चूल्हें के अंदर से लकडी बोली
तू अच्छी तरह से सिंके
इसलिए मैं स्वयं जलती और नष्ट होती
तूझे कोई फर्क नहीं

चूल्हा बोला तू गोल आकार ले तवे पर बैठेगी
मुझे चटका लगना बंद हो जाएगा
कुछ तो मेरा विचार कर

चेहरे पर आए पसीने को पोछता कठौता की फरियाद
मैं न जाने रात- दिन कितनी मार और थाप सहता
तू है कि अड कर बैठी

घर अपना धूआ झाडता बोला
मेरा तो दम घूट रहा है ,सॉस फूल रही है
अब तो मान जा

अंत में ऑखों में ऑसू भर मॉ आई
मेरे बच्चे भूखे हैं ,उनका पेट कैसे भरू
यह सुन रोटी तवे पर सीधी हो गई
मॉ का दुख जान जिद छोड बैठी
बच्चे ताली पीट - पीटकर हंसने लगे
गरम - गरम रोटी तवे पर से उनकी थाली में आ गई
मॉ ने भी चैन की सॉस ली
आखिर उसने अपनी जिद छोड दी

छोडो छाता , मौज उठाओ मौसम का

छोडो छाता , उठाने की जहमत से
कितनी बार लौटे उल्टे पैर उसे लेने
कभी घर तो कभी ऑफिस
धूप - हवा - बरखा  से खूब बचाया स्वयं को
कपडो को और तन -मन को भी
मन मचलता रहा भीगने को
यह भी याद न रहा कि दूर हुए नीलाभ छतरी से
बस अब बस भी करना
मुक्त- स्वच्छंद हो श्वास लिया जाय
बारीश की बूंदों में भीगा जाय
धूप की तपीश महसूस की जाय
हवा में केश उडाये
मन भर कर देख ले निरभ्र आकाश
धूप - बरखा - कडकडाती बिजली - तूफानी हवा
इनसे क्या घबराना ???
ऊपर आकाश , नीचे जमीन
पंचतत्वों से तो शरीर का निर्माण
छाते को बीच में मत आने दे
पंचतत्व को अंदर - बाहर एकरस होने दे
महाभारत के पांडवों के महाप्रस्थान जैसा क्षण
सब कुछ छोड बिना हाथ पकडे चलते रहो
और पास - पास जाने हेतू
रहने दो छाता घर पर ही
तन - मन को भीगने दो.

Monday, 27 November 2017

मैं और मेरा साहित्य संसार

बात बचपन की है तब मन भी मनमानी करता था और मेरा मन तो किताबों और पढने में लगता ही नहीं था बल्कि और ज्यादा करता था .कहानी - उपन्यास तो मेरी जान थे
हॉ , कोर्स की किताबों को पढने में मेरा मन नहीं रमता था . और गणित से तो मैं थर- थर कांपती थी , भूगोल के नक्शे तो कभी मेरे मन को भाया ही नहीं.
हॉ , इतिहास अच्छा लगता था , भाषा तो जान थी पर व्याकरण को छोडकर
विज्ञान में भौतिक तो छोडा , रसायन थोडा पल्ले पडा और जीवशास्र ठीक था क्योंकि उसमें पेड- पौधे , पशु- पक्षी भी थे
घर में तो कोई कहानी की किताबें देने से रहा क्योंकि उनके लिए वह बेकार थी
समय और पैसे की बर्बादी
केवल स्कूूल की पुस्तके पढो और रात- दिन उसमें सर खपाओ
अच्छे अंकों से पास जो होना है
मेरे मन की मजबूरी थी कि मैं पाठ्यपुस्तक में कहानी की पुस्तक रख पढती थी
पढने का इतना नशा था कि जब शिक्षक गणित सिखाते थे तब भी छुपाकर पढती थी
इसका नतीजा यह हुआ कि मेरी गणित आज तक कमजोर है
कुछ बच्चों के घर बाल पाकेट बुक्स की पुस्तकें आती थी उनसे चिरौरी कर लेती थी और खत्म करके देती थी
वैसे भी हमारे समय टेलीविजन नहीं था
मनोरंजन का साधन खेलना या कहानी पढना - सुनना था . दादी तो कहनियॉ सुनाती ही थी .
कैसे ,बैसे कर मैट्रिक पास हो गई वह भी तृतीय श्रेणी
अब आगे क्या करेंगी , घरवालों को चिंता सता रही थी
कॉलेज में एडमिशन लेना था वह भी अंग्रेजी माध्यम
मेरे तो रोंगटे ही कॉप उठे पर बाबूजी थे कि वह अपनी बेटी को पढाना चाहते थे
मुझे तो आश्चर्य होता है बेटा - बेटी में भेद करने वालों में
मेरे बाबूजी ने जितनी मेहनत मुझे पढाने में की उतनी शायद बेटों में नहीं
यह पढाई का जिन्न मेरा पीछा नहीं छोडना चाहता था
बाबूजी के साथ गई तो रास्ते में सलाह दी आर्ट्स अच्छा रहेगा और वैसे भी आरामपसन्द है , ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडेगी
मैंने भी वही किया
परिणाम अपेक्षाकृत अच्छा रहा
मेरी रूची बढती गई और मैं अपने मुकाम पर पहुंचती गई
कहॉ फिसड्डी रहने वाली अब प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो रही थी
पोस्ट ग्रेजुएशन हुआ
नौकरी करने की भी संधि मिली
यह सब मन का नहीं था क्योंकि मैं महत्तकांक्षी नहीं थी
पर ऊपर वाले को कुछ और मंजूर था
वह न बोलनेवाली लडकी धडल्ले से बोलती है
तुंरत कविता , लेख और भाषण लिख सकती है
पर इन सबमें एक बात तो है वह
कहानी और उपन्यास पढने का शौक
सभी महान लेखकों और कवियों को पढ डाला
आज वह काम आ रहा है
मेरी सफलता के परचम फहरा रहा है
बाबूजी का वाक्य
यहॉ कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता
सागर भी लहरों के साथ पीछे अपनी छाप छोड जाता है फिर यह तो ज्ञान है
अंजाने में किया हुआ शौक आज मेरी रोजी - रोटी का जरिया है
धन्यवाद उन सभी रचनाकारों को जिनकी बदौलत एक साधारण व्यक्ति को भी जीने की नई दिशा मिली
      याद है वह कहानी बचपन में पढी थी
      याद है वह उपन्यास जो जवानी में पढी थी
      उमड - घूमड कर कहते जान पडते हैं
              उसने    कहा    था

Saturday, 25 November 2017

नाम में क्या रखा है ??

नाम में क्या रखा है
नाम में ही तो बहुत कुछ है
किसी को पप्पू बुला बुलाकर लोगों की नजरों में पप्पू ही बना दिया
किसी को फेंकू तो किसी को लालू बना दिया
विश्वसुंदरी को चिल्लर बना दिया
क्यों उनके नाम नहीं है क्या ??
और कुछ नहीं तो नाम से मजाक उडा लो
आज तो माता - पिता सजग हो गए है
ढूढकर और अर्थपूर्ण नाम रख रहे हैं
मोटू , मुछ्छड ,छोटू , काली ,भैंस यह सब क्या है
यह संबोधन कभी व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित कर जाता है
बिना बाल वाले को गंजा
किसी को पागल ,अंधा , बहरा बनाने में लोगों को देर नहीं लगती
चश्मीश , डबल बैटरी ,बडे दात वालों को फावडा
कंजूस मारवाडी , भय्या , घाटी
यह सब तो नाम ही है ना
पर इसका असर क्या होता है यह तो नहीं सोचा
नीचे गिराने का साधन है यह
तुच्छता का एहसास दिलाया जाता है
तो जनाब नाम में बहुत कुछ रखा है
ऐसा नाम मत रखो कि सालोसाल वह व्यक्ति का पीछा करता रहे
उसे सालता रहे
नाम में बहुत कुछ है
इसके साथ बदनाम भी तो जुडा है

Wednesday, 22 November 2017

इतिहास के झरोखों से रानी पद्मिनी

आज फिर इतिहास के झरोखों से रानी पद्मिनी झॉक रही है
यह क्या हो रहा है
कहीं सर काटने की धमकी तो कहीं किसी को मारने की
इतना बवाल और बखेडा मेरे नाम पर
वर्षों पुरानी पीडा उभर आई
याद आ गया वह समय जब अलाउद्दीन खिलजी ने प्रस्ताव रखा था
ऑखें अंगारों सी दहक उठी थी
शरीर थर- थर कापने लगा था
राजपूतनी थी मैं , परदों में रहनेवाली
पर पुरूष तो छाया भी नहीं देख सकते
सर काट डाले या ऑखें निकाल ले इस नराधम की
आततायी और अत्याचारी खिलजी
रानी थी बेमिसाल सुंदरी भी थी
आन - बान - शान विरासत मे मिली थी
साथ- साथ प्रजा के प्रति भी कर्तव्य था
विवश होना पडा , राजा की भी सहमति थी
शीशे में अपनी परछाई दिखानी पडी
अपनी खूबसूरती पर लानत हो रहा था
लगा यह शीशा पिघल जाय और यह नराधम उसी में समा जाय पर होनी को कुछ और मंजूर था
उस लोलुप की तो प्यास बढ रही थी.
वह अंधा हो गया था
छल- बल का सहारा लिया
रानी के भी शूरवार गोरा- बादल के नेतृत्व में लडे
आखिर उस दुराचारी की जीत
रानी को जौहर का सहारा लेना पडा
भस्म कर दो इस शरीर को
जौहर की आग में अपने पतियों का नाम ले कूद पडी
खिलजी को राजपूतानियों की यह गाथा पता नहीं थी
मलीक मोहम्मद जायसी और अमीर खुसरों की वह नायिका बनी
पद्मावत की रचना हुई और पद्मिनी की कहानी आगे बढती रही
कहानी इस अंजाम पर पहुंचेगी ,यह नहीं पता था
आज विवाद में है पद्मिनी पर बनी फिल्म
दिखाने पर पांबदी की मांग
उस समय भी यही हुआ था ,शीशे में रूप के प्रर्दशन को मजबुर थी
आज भी वही हो रहा है
टुकडे- टुकडे कर झलक दिखला रहे हैं
मेरी मर्यादा का खयाल तक नहीं
तब भी जौहर हुआ था
आज फिर आग में झुलस रहा है हिंदूस्तान
अफसोस हो रहा है

Sunday, 19 November 2017

Happy international man s day

वह पिता है जिसकी वजह से इस दुनिया में आपका असतित्व है
वह पति है जो आपकी हर इच्छा को पूरी करना चाहता है
वह प्रेमी है जो अपने जेबखर्च से बचाकर आपके लिए मंहगे गिफ्ट लाता है ,सबसे विरोध मोल लेता है
वह भाई है जो बहन की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहता है
वह बेटा है जो आपके सपनों पर खरा उतरने के लिए रात- दिन एक कर देता है
वह दोस्त है जो आपके साथ हमेशा बना रहता है और मदद करने को तत्पर
वह दादा , मामा ,चाचा ,मौसा हर किरदार बखूबी निभाता है
दुनिया की आधी आबादी का हिस्सा है वह
वह पुरूष है जो अपनों को खुश देखने के लिए सर पर बोझ उठाने से लेकर सीमा पर बंदूक ताने खडा रहता
हर जिम्मेदारी उठाना वह अपना कर्तव्य समझता है
स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों के चेहरे पर खुशी लाता है
उसको देख हर रिश्ता मुस्करा ही नहीं खिलखिला उठता है
उसके बिना घर- परिवार सूना और अधूरा
मुश्किल घडी में ढाल बनकर खडा होना
हर समस्या को मात करने का माद्दा रखना
अपने लिए नहीं परिवार के लिए जीना
यह पुरूष है , वह व्यक्ति भी है
भावनाओं से भरा हुआ
उसका सम्मान करिए।

हर शख्स चाहता है एक अदद सरकारी नौकरी

क्या है यार , हम तो लेटलतीफ है
अरे कोई हमारा क्या बिगाड लेगा???
बॉस कभीकभार चिल्ला देगा
सरकारी नौकरी है यार
जिंदगी बन गई
हर महीने एक मोटी तनख्वाह तो आनी है
आराम से आएगे
थोडा अंगडाई लेगे
इधर- उधर नजर फेरेगे
पान तो चबा ही रहे हैं
उसके बाद चाय पीएगे
थोडी गपशप करेगे
चपरासी हो या फिर बाबू
सबके नखरे हजार
आज तो हर हाथ में मोबाईल
पब्लिक खडी है इंतजार में
कब काम होगा  ़़़
जब तक जेब गर्म न हो तब तक पूरा काम कैसे भाई??
एक काम के लिए न जाने कितनी बार चक्कर
बतियाना पूरा हुआ तो ऑख उठा कर देखेगे
ऑखों में इशारे  करेगे
कुछ थोडा - बहुत फाइल देखेगे
तब तक लंच टाईम हो गया
डब्बा उठाए और चले बतियाते
आधा घंटा लेट आए
बैठे , थोडा बहुत काम किया
तब तक समय हो गया
अब तो आधा घंटा बाकी बचा है
देश की समस्याओ पर चर्चा होगी
पर आम आदमी की समस्या को नजरअंदाज करेगे
दफ्तरों के चक्कर लगवाएगे
अपनी दूकान को चलाएगे
घूस और रिश्वत लेते रहेगे
सरकारे बदलती रहेगी
व्यक्ति तो वही रहेगे
लेट आएगे , रिश्वत भी लेगे
ज्यादा हुआ तो सरकार बदल देंगे
रिटायरमेंट के बाद एक मोटी रकम मिलेगी
ताउम्र पेंशन भी जारी रहेगी
इसलिए तो हर कोई चाहता है
एक अदद सरकारी नौकरी .

Fabulous story

A little Indian Boy wanted Rs500/=
so he prayed for weeks, but nothing happened.
Finally he decided to write a letter to God requesting Rs500/=

When post office staff received a letter addressed to God, they forwarded it to the President.

The President was so amused,
he instructed his secretary to send the little boy Rs 100/=
as he thought Rs500/= would be a lot of money for him.

The little boy was delighted with Rs100/= & decided to write a thank u note to God.

'Dear God, Thank u very much for sending the money. However,
I noticed that u have sent it through 'Rashtrapati Bhavan' (Through Government ) & those corrupt donkeys ate my 400/= rupees!
   Copy

Answer By Jonathan pettit

Question: What is the best advice your mother ever gave you?

Answer By Jonathan Pettit

I was about ten. My mom had just finished creating one of her amazing meals, and I thoroughly enjoyed it. Delicious. Later, as I was washing the dishes, my mom came up to me. “Sorry, dinner was so awful again,” she said.

I was shocked. “What? No, it was great. I loved it.”

“Really?” she said, with mock surprise. “You always eat so quietly, never saying anything. You’ve never told me you liked my cooking, so I thought you hated it.”

“No, you’re the best cook I know.”

“Then you should tell me that,” she said. “Whenever someone does something nice for you, you should thank that person. If you don’t, then she might think she’s not appreciated and stop doing those nice things.”

Something clicked right then. From that day onward, I thanked everyone for literally everything. If anyone did something that even vaguely helped me, I thanked that person profusely. It became a habit, something I didn’t even think about, and that’s when the magic started happening.

People liked me more. They talked to me more, shared with me, were more friendly. In my first year of high school, during the final week, I came home and found a giant freezie (a kind of sweet frozen snack) waiting for me. “Thanks, mom!” I said instinctively.

“This isn’t from me, she said. “This is from your bus driver.” He had been driving that bus for years, and my siblings and I were the first people to ever thank him as we got dropped off. Those two simple words made a huge difference, so much so that he went out of his way to tell our mom and give us a present.

That’s the power of appreciation. When you have it, all is right in the world, but when it’s missing life is empty. My mom taught me many things, but taking two seconds to say ‘thank you’ every time, in any situation, was the best.

*Debriefing of this Story*

You would have met people who call themselves as good critics but have you ever met a person who says I am good at appreciating others? Isn't that a sad part of our society?

Let's start appreciating people more frequently especially people who are close to us.

"The sweetest of all sounds is praise"

Saturday, 18 November 2017

चंदा मामा आ जा ंंंंंंंं

पूर्णिमा का चॉद ,धीरे- धीरे ओझल होता
उसी तरह मायके में कुछ समय के लिए आई बेटी
कविताओं में चॉद का अतुलनीय वर्णन
इस पर तो देखा जाय अंतरिक्ष पर उसका एकाधिकार
बचपन में चंदा मामा की कहानी पढी थी
चरखा कातती बुढिया भी दिखती थी
ल ला ल ला लोरी , दूध की कटोरी का भी लालच
चॉद पर दाग भी लगा है
शांत ,शीतल ,गतिमान ,स्थितप्रज्ञ
पर क्या वाकई वह ऐसा है??
चॉद का स्वभाव सागर जैसा तो नहीं??
जिसकी गहराई को कोई थाह नहीं सकता
नीलाभ आकाश , तारों का साथ.
शीतल रात , घूमक्कडी स्वभाव
कभी दिखना ,कभी ओझल हो जाना
सब पर स्निग्घ चॉदनी फैलाना
जहॉ से देखो वहॉ अपने साथ ही पाना
तुम भी चलो - चलते चलो़
काले बादलों में घिर हो तब भी निकल लो
हर तूफान का सामना करने को तैयार रहो
यही संदेश दे आगे बढता

सबसे प्रिय भी यही है
बच्चा हो या युवा
हर घर में उसकी चर्चा
सुहागिने हो या रमजानी
सबको उसके निकलने की प्रतीक्षा
सोचते हैं एक बार चॉद से मुलाकात तो हो जाय
क्या वास्तव में वह शीतल और सुंदर है
कभी धरती पर उतर आए सचमुच में
उसकी परछाई तो लुभाती है
पर उससे भी मिलने को दिल करता है.
मॉ और मामा तो सबके प्यारे
फिर यह तो सबके मामा
चंदा मामा आ जा..

Wednesday, 15 November 2017

जीने के लिए सॉस जरूरी है

यह दुनियॉ आनी - जानी है
हर सॉस जरूरी है
सॉसों की रफ्तार थाम लो
यह जीवन तो क्षणभंगुर है
आज यहॉ तो कल वहॉ
इसका कहॉ रैन बसेरा है
हर पल जी लो 
जो मिला उसी में खुश हो लो
सॉसों की बागडोर  कब छूट जाय
जिंदगी की पतंग कब डोर छोड उड जाय
इस सॉसों को डोर कर कस कर पकडे रखना
यह जिंदगी है यारो
हर सॉस जरूरी है
हर पल कीमती है
सॉस का भी ख्याल रखना है
उसके प्राणवायु को बचाना है
उसका ध्यान रखना है
उसे शुद्ध और साफ रखना है
वह रहेगी तभी तो हम सॉस ले पाएगे
खुल कर जी पाएगे
हंसेगे और खिलखिलाएगे
अपनों के बीच रहेंगे
उनका आधार बनेंगे
उनके सपनों को साकार करेगे
सपने भी तो अपने है
अपने है तो जीवन है
सॉस है तो हम है
हर सॉस जरूरी है


Monday, 13 November 2017

बचपन फिर जी उठा

बाल दिवस ,१४ नवम्बर , चाचा नेहरू का जन्मदिन
छोटे - छोटे बच्चों को देखा
कितने प्यारे - प्यारे
निरनिराले रंगों की विविध पोशाक
सजे - संवरे , प्रसन्नता से भरपूर
आज मनोरंजन होगा
उनके लिए विविध कार्यक्रम
मन अतीत के झरोखों से झांकने लगा
एक गुलाबी और परी जैसा फ्राक पहना था
उसे पहन इतरा रही थी
सबको दिखा रही थी
अचानक गिर पडी
गिरने का दुख नहीं ,फ्राक गंदा न हो जाय
झाडकर उठी
सब चिढा रहे थे
कोई जीभ दिखा रहा था तो कोई हाथ
पर मैं भी सबको अंगूठा दिखा रही थी
ठेंगा  ! मुझे तो कुछ लगा ही नहीं
घर जाने पर मॉ ने पैर देखा
सूजा हुआ था
क्या हुआ बताया नहीं
डाट पडी
आज सोचकर हंसी आ गई
अरे ! मैं कहॉ बचपन में खो गई
बचपन तो कबका पीछे छूट गया
हम बच्चे नहीं बडे हो गए
वह शरारते , नादानियॉ रफूचक्कर
अब एक फ्राक नहीं सैकडों साडियॉ और ड्रेस
पर मन रीता - खाली है
क्योंकि वह तो बचपन था
जो मिला उसी में खुश हो लिए
अब बडे हो गए है
समझदारी तो आ गई पर खुशी गायब हो गई

मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ

बच्चों का संसार
कितना प्यारा ,कितना न्यारा
सच्चा और भोला - भाला
छल - कपट चालाकी से दूर
मन आए तो रो लो
मन आए तो हँस लो
न दिखावा न बनावट
लडना - झगडना ,फिर एक हो जाना
मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ
अतीत की कडवाहट
भविष्य की चिंता को गोली मारे
नींद भर सोए , जी भर खेले
गर्मी हो या ठंडी
जाडा हो या बरसात
सबका लुत्फ उठा ले
मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ
समय बीता , बचपन छुटा
बडे और समझदार बन गए
सोचना और समझना
घर - गृहस्थी में उलझना
काम और जिम्मेदारी का भार
मन को मारना
पैसों के पीछे भागना
सब कुछ संवारते बचपन छूट गया
बचपन तो छूटा पर बचपन की यादे शायद नहीं  ???
मन कहता हे फिर बच्चा बन जाओ
बिना बात के हंसो और खिलखिलाओ
सारे मुखौटों को निकाल फेक दो
जो मन में आए वह करो
कुछ मत सोचो
कीचड उडाना हो या पतंग पकडना
रास्ते पर पैर पटकना या जोर - जोर से रोना
कहीं भी जिद करना हो या लोट जाना
पर वह तो संभव नहीं
हम जिम्मेदार जो है , बच्चे नहीं
मन का बच्चा कभी - कभी बाहर आने को आतुर
पर रोक दिया जाता है यह कहकर
   यह बच्चा है क्या
रूक तो जाता हैं ,मन मसोसकर रह जाता है
पर फडफडाता है 
मन कहता है फिर बच्चा बन जाओ .

स्वयं बदलो , समाज बदलेगा

हर वक्त शिकायतों का पिटारा
कभी परिवार कभी समाज ,कभी देश
कभी परिस्थितियॉ तो कभी सरकार
जरा अपने गिरेबान में झॉककर तो देखो
तुमने क्या किया़़़़़़
मीन मेख निकालना आसान
आगे बढ मोर्चा संभालना मुश्किल
मौका नहीं मिला
यह तो गलत बात
अवसर तो है तलाश तो करो
समस्या कहॉ नहीं??
कुछ तो निदान करो
अपने कदम तो बढाओ
कमान तो संभालो
कुछ नहीं तो मलाला बन कलम हाथ में ले लो
गाडगे बाबा बन झाडू उठा लो
मदर टेरिसा बन अनाथ को सनाथ कर लो
और कुछ न हो तो ऐसे लोगों के साथ होलो
सहयोग और भागीदार तो बन ही सकते हो
लाखो - करोडो का नहीं
किसी एक का ऑसू तो पोछ ही सकते हो
जरूरत है एक निश्चय की ,आत्मविश्वास की
ठोस ईरादे की
बूंद - बूंद से घट भरता है
तुम्हारी भागीदारी न जाने कितनों की दुनियां बदल देगी
काम भी है समस्या भी है
बस हाथ आगे बढाना है
शिकायतकर्ता नहीं ,निर्माणकर्ता बनना है
स्वयं को बदलना है
हर एक जन यह. सोच ले
तो समाज भी बदलेगा , देश भी बदलेगा
जन- जन से तो यह दुनियॉ है
हर जन की भागीदारी भी तो जरूरी है

Friday, 10 November 2017

यह जंगल है भाई

वह शांत ,खामोश और वीरान
वह किसी का क्या बिगाडेगा
इस भ्रम में मत रहना
वह कब अपना रंग दिखाएगा
कहा नहीं जा सकता
इसमें तो दावाग्नि छुपी है
कब लपेट में ले ले
जब तक हरे- भरे
जब तक उनकी श्वाच्छोश्वास कायम
तब तक सब सही - सलामत
उनको जतन कर ऱखना है
उनकी उपेक्षा सभी पर भारी
वह फिर मानव या कोई और
उनको काटना ,नष्ट करना कहीं घातक न हो जाय
अंसख्य लोगों तक अपनी उर्जा पहुंचाना
सबको जीवन देने का प्राणप्रण से संकल्प
पर इतनी भी गफलत में मत रहना
हर जीव को संरक्षण देना इसका कर्तव्य
इसलिए वह किसी को चोट नहीं पहुंचा सकता
यह तो जंगल है
प्राणवायु के साथ प्राणघातक भी न हो जाय
मानव अगर जंगली बन सकता है
फिर  जंगल तो जंगल है

Wednesday, 8 November 2017

नोटबंदी का जश्न और मातम

नोटबंदी को हुआ एक साल
कोई जश्न मना रहा है तो कोई काला दिन
अचानक ऐलान हुआ
आज रात से ५०० -१००० के नोट बंद
होश ही उड गए
देखूं मेरे पास कितने
खर्चा कैसे चलेगा
बेटी की शादी कैसे होगी ??
कल का राशन और दवा कहॉ से आएगा
अस्पताल और डॉक्टर को पैसे कैसे देगे??
रिक्शा और टेक्सी वालों को कैसे देगे
काम पर जाय या कतार में खडे हो??
पूरा - पूरा दिन लाईन में लगे रहे
कभी किसी को मिला
कोई खाली हाथ घर आया
बच्चे ,गृहणी ,बूढे सबको लाईन में खडा कर दिया
अपने ही पैसे के लिए मोहताज
मन मारकर लोग रहे
कितने कतार में लगकर दम तोड गए
यह जश्न उस बात का है क्या??
यह तो उनके परिजनों को घायल करना है
डिजिटल इंडियॉ बनाना है तो कीमत तो चुकानी है
रोजगार गवाकर
उधोग - धंधे बंद कर
जब कमाई ही नहीं तो ए टी एम से क्या निकालेगे
पर जान देकर
उनको कब न्याय मिलेगा
सरकार तो फायदा बताएगी
सत्ता में विराजेगी.
विरोधी ,विरोध प्रर्दशन करेगे
पर जनता तो सिसक रही होगी
उन दिनों को याद कर कॉप जाती होगी
वैसे वक्त हर मरहम का इलाज है
कुछ भूल जाएगे
पर कुछ सारी जिंदगी इनको कोसेगे

प्रीत की रीत निराली

प्रीति बिना जग सूना ,प्रीति की रीत निराली
सब कुछ लगे सुहाना ,जग लगे प्यारा - प्यारा
दिशाएं भी हो महकती सुगंधित वायु से
स्पर्श भी करता रोमांचित
शब्द हो जाते अस्फुट
दृष्टि हो जाती स्थिर
समय कम पड जाता
दिन - राते लंबी हो जाती
हर मौसम लगता सुहावना
कॉटे भी फूल सा लगते
दिल की धडकन हर वक्त कुछ कहती
होठ हौले- हौले मुस्कराते
मन झूमता - गुनगुनाता
तलाब का कमल भी मंद - मंद हिचकोले खाता
चॉद की चॉदनी भी न्यारी हो जाती
मवमयूर नाचता
प्रीति का जुनून जिस पर हावी
वह प्राणों का  मूल्य भी कम ऑकता
भौरा ,पतंगा ,पपीहा सब प्रीति के मारे
प्रीति बिना सब जग सूना
प्रीति से है दुनियॉ

Sunday, 5 November 2017

आज का शिक्षक

शिक्षक हूँ, पर ये मत सोचो,
बच्चों  को  सिखाने  बैठा हूँ
मैं   डाक   बनाने  बैठा  हूँ , 
      
            मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कितने एस.सी. कितने एस. टी. कितने ओ. बी.सी.
कितने जनरल  दाखिले हुए
कितने आधार बने अब तक
कितनों  के  खाते  खुले हुए
बस यहाँ कागजों में उलझा
               निज साख बचाने बैठा हूँ
               मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कभी एस.एम.सी कभी पी.टी.ए
की मीटिंग बुलाया करता हूँ
सौ - सौ भांति के रजिस्टर हैं
उनको   भी   पूरा  करता हूँ
सरकारी  अभियानों में  मैं
              ड्यूटियाँ  निभाने बैठा हूँ
             मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

लोगों की गिनती करने को
घर - घर में  मैं ही जाता हूँ
जब जब चुनाव के दिन आते
मैं  ही  मतदान  कराता  हूँ
कभी जनगणना कभी मतगणना
              कभी वोट बनाने बैठा हूँ
              मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा हूँ ...

रोजाना  न  जाने  कितनी
यूँ  डाक  बनानी पड़ती है
बच्चों को पढ़ाने की इच्छा
मन ही में दबानी पड़ती है
केवल  शिक्षण  को छोड़ यहाँ
                 हर फर्ज निभाने बैठा हूँ
                 मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ ...

इतने  पर भी  दुनियां वाले
मेरी   ही  कमी   बताते  हैं
अच्छे परिणाम न आने पर
मुझको   दोषी   ठहराते हैं
बहरे  हैं  लोग  यहाँ 
             मैं  किसे  सुनाने बैठा  हूँ
             मैं कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ..
             मैं  नहीं  पढ़ाने  बैठा  हूँ..

          👤👤👥 समस्त सरकारी अध्यापको एवं शिक्षिको को समर्पित👥👤👤
         Copy pest

What is the Life

WHAT IS THIS LIFE?

A man is born today, Tomorrow he is dead.

A man lives in  a mansion today, Tomorrow he lives
underground.

A man drives a car today, Tomorrow an ambulance
drives him.

A man reads biology today, Tomorrow a biography
is been read of him.

A man eats whatever he wants today, Tomorrow he
becomes food for insects.

A man is always early for work today, Tomorrow he
is termed late Mr/Mrs.

A man is seen resting in his house today, Tomorrow he is resting in a coffin. And they say "Rest In Peace"!

A man eats all kinds of fruits in his house today,
Tomorrow he becomes manure to those trees.

A man is known today as the richest man ever,
Tomorrow he doesn't even know where or what will
happen to his riches.
        Copy pest

Saturday, 4 November 2017

खिचडी

मैं खिचडी , सब परिचित है मुझसे
पर मैं सबकी पसन्द हो ,यह जरूरी नहीं
बीरबल की खिचडी तो सबने पढी होगी
मुहावरों में भी मेरा प्रयोग
आपस में क्या खिचडी पक रही है
मैं आलीशान भोजन में तो कम ही समाविष्ट
पर सबकी जरूरत जरूर हूँ
गरीब हो या अमीर
बीमारी में तो मैं ही आधार
उपवास - व्रत में
थकान हो या मन न हो
मुझे बनाना बहुत सरल
हॉ तरीके बहुत है
अनाडी भी मुझे बना कर पेट भर लेगा
हॉ मीठा रूप भी है मेरा
खट्टा ,मीठा,नमकीन ,तीखा हर रूप
पौष्टिकता में भी अव्वल
पचने में आसान
मुझमें कुछ भी मिला लो
हर तरह की दाल - सब्जी
सादी भी और मसालेदार भी
और घी का साथ तो स्वाद और भी बढा देता
हर राज्य और प्रांत में मैं
आज गर्व हो रहा है भारत की पहचान बनकर

दल - बदल का खेल

जब तक विरोधी पार्टी में थे
विरोध का स्वर गूंजता रहा
आज दूसरी पार्टी में शामिल हो लिए
महान बन गए
उनकी खूबियॉ गिनाई जाने लगी
जिसका पलडा भारी
जिसके हाथ में सत्ता
उसकी तरफ हो जाओ
काम एक पार्टी में रहकर किया
परिणाम फल दूसरी पार्टी को मिला
आजकल यह आम बात हो गई है
नेताओं में निष्ठा और विश्वास का अभाव
अब बमुश्किल अटल जैसे नेता मिलेगे
दो सीट पर भी पार्टी के निष्ठावान बने रहे
समष्टिवाद से व्यक्ति वाद हो गया है
पहले पार्टी के नाम पर वोट मिलते थे
आज पार्टियॉ ही अपना असतित्व बचाने मे असमर्थ है
तमाम छोटी - छोटी पार्टियॉ बन गई है
कांग्रेस मुक्त भारत का सपना घातक भी है
विपक्ष ही नहीं रहा तो प्रजातंत्र कैसे रहेगा?!
शासक निरकुंश हो जाएगे
सत्ता का नशा सर चढकर बोलेगा
विवादित बयान दिया जाएगा
मजाक उडाया जाएगा
नीचा दिखाया जाएगा
सत्ता और पैसों का लालच
गिरगिट की तरह रंग बदलना
सुर बदल जाना
यही तो हो रहा है
कब कौन पार्टी छोडे
सत्ता धारी पार्टी में शामिल हो
कहा नहीं जा सकता
पल भर में पहचान ही बदल गई
यह तो राजनीति का सबसे बडा खेल है
पर यह गेम खतरनाक भी है
ऐसा न हो कि कहीं का न रहे
अतीत इसका गवाह है
पार्टी में लोकतंत्र हो पर नियम भी हो
कठोर और अनुशासन वाला
दूसरी पार्टी भी शामिल करने में हिचकिचाए
सत्ता के लालच में नेता दलबदलू न बने
जो अपनी पार्टी और लोगों का न हुआ
वह जनता का क्या होगा ???
उसे तो केवल सत्ता चाहिए
चाहे कुछ भी करना पडे.


Wednesday, 1 November 2017

आह ! ताज नहीं वाह ! ताज कहे

आज मैं बहुत व्यथित हूँ
विवादों से घिरा हूँ
स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा हूँ
इसमें मेरा तो कोई दोष नहीं है
सदिया बीत गई
प्रेम की निशानी और अमर प्रेम लोगों को भाता रहा
वास्तुशिल्प का अनूठा नमूना
मैं प्रेम का ताज बना रहा
हॉ पर सिसकता भी हूँ
मेरे कारण जान गई
कारिगरों को अपाहिज किया गया
एक बादशाह के प्रेम के जुनून ने
अमर तो शरीर ही नहीं
फिर यह संगमरमर कैसे अमर
यह शुभ्र - सफेद में किसी की आह समाई
मैं तो अपने रूप पर इतराता रहा
विश्व के सात आश्चर्यों में एक बनकर
आज विवाद के कारण स्मृतियों की परते भी खुल रही
मैं मंदिर हूँ या मकबरा
यह भी चर्चा का विषय बना हुआ
तेजोमय मंदिर या ताजमहल
मुझे हिन्दू या मुस्लिम से कुछ लेना- देना नहीं
मैं किसी धर्म का नहीं
कला और कारिगरों की कारिगरी का उत्कृष्ट नमूना
मुझे किसी विवाद में न घसीटा जाय
मैं शांति चाहता हूँ
प्रेम बॉटना चाहता हूँ
हर कोई मुझे सराहे
प्रेम की कसमें खाए
शायद ऊपर से वह गुमनाम कारीगर भी अपनी अमर कृति को देखकर निहारे
प्रसन्न हो और सुकून प्राप्त करे
शाहजहॉ की बेगम मुमताज ही नहीं
हर दिल का मैं अजीज बनू
हर प्रेम करने वाले का प्रेम अमर हो
मैं मृत्यु का पूजन नहीं
जिंददिलों के दिल की धडकन बनू
मैं प्रेमियों के प्रेम का ताज बनू
मैं हर अजीज दिल की आवाज बनू
मैं सौंद्रर्य की पहचान बनू
दुनिया का हर व्यक्ति मुझे अपना आदर्श माने
अपने प्रेम की  हिफाजत करे
उसे अमर बना दे
इस जिंदगी में और जिंदगी के बाद भी
लोग दुख से
  आह! ताज नहीं
बल्कि गर्व से
    वाह ! ताज कहे