Thursday, 30 September 2021

चलो अब स्कूल चलते हैं

चलो अब स्कूल चलते हैं
कुछ मस्ती- वस्ती करते हैं
घर में  बैठे  - बैठे बोर हो गए
वीडियों गेम खेलने का मन नहीं करना
दोस्तों के साथ रमने का दिल करता है
मम्मी  - पापा का प्यार नहीं भाता
टीचर की डांट सुनने का मन करता है
टेलीविजन सामने नहीं ब्लेकबोर्ड की याद आती है
इस रंगबिरंगे रंग से वह काला रंग बहुत भाता है
हाथ में  अब रिमोट नहीं चाक लेने का मन करता है
अब घर में बंद नहीं क्लास के बाहर पनिशमेंट होकर खडे रहने का मन करता है
अब भाई - बहन नहीं दोस्तों का साथ चाहता है
घर का खाना नहीं दोस्तों का टिफिन याद आता है
वह आधी छुट्टी वह पुरी छुट्टी सब याद आते हैं
वह रूठना - मनाना

चलो अब स्कूल चलते हैं 
वह सहपाठियों की शिकायत करना
वह दूसरे की काॅपी में ताक - झांक  करना
वह खो - खो और कबड्डी
वह झंडावंदन और परेड
वह सुबह की प्रार्थना
वह मिस को गुड मार्निग  और नमस्ते
वह पीछे की बेंच पर बैठ न जाने क्या- क्या रेखांकित करना
वह आधा झूठ और आधा सच बोलना
होमवर्क न करने के तमाम बहाने बनाना
वह बीमार होने का नाटक कर घर बैठना अब रास नहीं आता
अब चलना है पाठशाला 
पढना भी है हुडदंग भी मचाना है
टीचर को तंग करना है
अव्वल नंबर लाना है
घर की चहारदीवारी से मुक्त हो हरियाली में विचरण करना है
बस स्टाप पर मस्ती करना है
कभी डांट कभी प्यार के साये में रहना है
साथ ही  साथ करोना के नियमों का पालन करना है
तो चलो अब स्कूल चलते हैं।

हरि का नाम लो मगन लो मगन रहो

मन खाली - खाली लगता है
अब ये जैसा है उसको वैसा ही रखना है
सारी चिताओं और परेशानियों  से मुक्त रखना है
कौन क्या सोचेगा उसमें नहीं उलझना है
जिसको जो सोचना है वह उसकी सोच पर छोड़ना है
नहीं किसी की परवाह करना है
बेफिक्री से जीवन गुजारना है
आधे से ज्यादा तो बीत गई
कुछ बाकी है
उसको तो जी भर कर जी लेना है
जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाना है
आप रहे न रहे
यह दुनिया चलती रहेगी
किसी का काम नहीं रूकने वाला
गर मुर्गा बांग न दे तो
क्या सुबह नहीं होगी
सुबह तब भी होगी
सूरज तब भी निकलेगा
तब छोड़ मोह - माया का जंजाल
स्वयं भी खुश रहो
दूसरों को भी रहने दो
न किसी से अपेक्षा न किसी की अपेक्षा
बस अपने काम से काम
न दखलंदाजी करना
न रोक न टोक
सब अपने में मस्त
हरि का नाम लो मगन रहो

भाग्य का पहिया

सब कुछ भाग्य और परिस्थितियों पर निर्भर
हवा का रूख बदलते देर नहीं  लगती
कल का भिखारी आज राजा
आज का राजा कल भिखारी
समय क्या करवट लेगा
कोई नहीं जानता
कोई मूढ कालीदास बन जाता है
तो कोई काम छोड़ तुलसीदास
तो कोई राज-पाट और गृहस्थी छोड़ भगवान बुद्ध
अगर हवा का रूख सही हो तो
टूटी नाव भी किनारे पर
न हो तो
बिना झंझा - तूफान के भी मझधार में डूब जाएंगी
कभी-कभी तो किनारे तक पहुँच कर भी
तकदीर और तदबीर
तकदीर तस्वीर बदल देती है
न जाने कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है
अगर तकदीर न हो
तब तदबीर कभी-कभी  दूर से ही देखती रह जाती है
जिंदगी  ठेंगा  दिखाते  हुए गुजर जाती है
कोई जान भी नहीं  पाता
हवा अनुकूल तो सब अनुकूल
हवा प्रतिकूल तो सब प्रतिकूल
भाग्य का पहिया कैसे घूमे
किस तरह से घूमें
यह तो वही जानता है
क्योंकि यह किसी के बस में  नहीं
यह विधाता की देन है
उसका विधान इंसान कैसे समझे ।

Monday, 27 September 2021

बेटी हो या बेटा

बेटी हो या बेटा
बस कहने को अपना
सबके अलग अलग अफसाने
जब तक है आप पर निर्भर
तब तक है आप पर
अन्यथा हो जाता उनका नया जहान

दामाद की बेटी
बहू का बेटा
सदियों की है यही कहानी
ज्यादा अपेक्षा
ज्यादा लगाव
कर देता है परेशान

उनकी अपनी जिंदगी
उनके अपने सपने
सब जीने में लगे हुए
रंग भरने में लगे हुए
मत बाधा बनो उनकी उडान में
मत कर्तव्यों की दुहाई  दो उनको
आपको जो करना था
आपने किया
उनको जो करना है वे करें

काबिल बना दिया
आत्मनिर्भर बना दिया
अपना कर्तव्य किया
पर इसका मतलब यह नहीं
उन पर एहसान किया
उनको गुलाम बना दिया
मत बांधों बेडी पैर में
आप हमेशा पालक ही रहेंगे
आपने तो जिंदगी दी है
इतने बडे दानदाता स्वयं हैं
जिसको दी उसी से मांगना
यह शोभा नहीं देता
शान से रहे
एहसास करें
बस दूर से ही उनको खुश देखकर आप भी खुश रहे
बातें बाद बाद की
वह किस्मत पर छोड़ दें
उसके बिना तो कुछ नहीं
न औलाद न सुकून ।

Sunday, 26 September 2021

डर लगता है

बेटी होना अभिशाप नहीं
समाज का नजरिया अभिशाप है
बेटा होना कोई वरदान नहीं
बेटी , बेटों से आगे हैं
नारी शक्ति का जमाना है
फिर भी मन में एक डर समाया है
कहीं कोई ऊंच- नीच न हो जाएं
तब दुनिया क्या कहेगी
समाज क्या कहेगा
यह तो जीने नहीं देगा
बेटा देर रात घर से बाहर रहें
तब इतना डर नहीं
जितना बेटी होने के कारण
भले वह काम से ही हो
हमेशा ऊंगली औरत पर ही उठाई जाती है
गलती उसकी हो या न हो
इज्जत की दुहाई भी उसी से दी जाती है
सबका ठीकरा उसी के माथे पर
तभी तो डर लगता है
बेटी के पालक होने पर।

अपना फेसबुक बहुत बढिया है

अजनबियों का घेरा है
तब भी फेसबुक लगता प्यारा है
अंजाने लोग जब दाद देते हैं
किसी पंक्ति पर लाइक और कंमेट करते हैं
दुख में सहानुभूति और सुख में खुशी जताते हैं
पास - पास नहीं हैं
फिर भी सबको पास ले आते हैं
मन की भावनाओं को व्यक्त करते हैं
कुछ कविता - कहानियां गढते हैं
कुछ तो लोग देखेंगे
कुछ तो पढेंगे
यह जान मन को सुकून मिलता है
अपने जो छूट गए
अपने जो भूल गए
फिर उनकी याद दिलाता है
कही - अनकही न जाने कितनी बातें कह जाता है
सबको एक मंच पर ला खड़ा कर देता है
सुबह-सुबह गुलाब के फूलों और भगवान की फोटों के साथ
रात को चंद्रमा की चांदनी के साथ
गुड मार्निग और गुड नाइट बहुत भाता है
किसी अपने की उपलब्धि का बयान करता है
किसी का जन्मदिन तो किसी की मैरिज एनवर्सरी मनाता है
पहाड़ की वादियों के दर्शन के साथ-साथ सारी दुनिया की सैर कराता है
सुस्वादु व्यंजन और नए-नए फैशन - कपडे की झांकी दिखाता है
यह अमीर - गरीब का अंतर मिटाता है
सबको मौका देता है
जो चाहे प्रस्तुत करों
जैसा करों
कोई प्रतिबंध नहीं
ज्ञान की बातें बताता है
समाचार भी सुनाता है
क्या  - क्या गिनाए
न जाने कितनी खुबिया है इसमें
बस बटोरना है
फेसबुक से जुड़े रहना है
कह सकते हैं
अरे फेसबुक अपना है तभी तो बहुत बढिया है ।

Friday, 24 September 2021

सुंदरता कभी-कभी अभिशाप

सुंदरता यह प्रकृति का वरदान
पर बन जाता कितनों के लिए अभिशाप
घर से बाहर निकलना मुश्किल
सडक पर चलना मुश्किल
लोगों की घूरती निगाहों का सामना
इतना आसान नहीं  होता
न पसंद के कपडे पहनना
न घूमने - फिरने जाना
घर वालों की पाबंदी
एक मन में डर समाया
न जाने कब कौन सी दुर्घटना घट जाएं
अगर गरीब और मध्यम वर्गीय हुआ तो और आफत
अमीर के लिए ठीक है
नौकरी पेशा और साधारण वर्ग के लिए नहीं
हमेशा गाडी में तो नहीं चल सकते
बस और लोकल के धक्के भी खाना होता है
सडक पर चलना है
बस स्टॉप पर खडा होना है
अगर यह सब करना है
तब सामान्य और साधारण ही दिखना ठीक है
सुंदरता अपने साथ न जाने कितनी आफत लेकर आता है
इतिहास भी गवाह है ।

न माया मिली न राम

तुम्हारे नाम का सिंदूर
तुम्हारे नाम की बिछिया
तुम्हारे नाम की बिंदिया
तुम्हारे नाम की चूडियां
तुम्हारे नाम का मंगल सूत्र
तुम्हारे नाम की पायल
सब धारण किया
यहाँ तक कि तुम्हारा नाम और सरनेम भी
इतना सब किया
तब तुमसे जुड़े
मैं तुम्हारी हुई
पर तुम क्या मेरे हुए
मैंने तो अपने को मिटाया
घर - परिवार और माँ- बाप छोड़ा
इच्छाओं को मारा
बस तुम्हारी इच्छा पूरी हो
तुम खुश रहो
घर में नित नए व्यंजन बनाना
सजना- संवरना
झाडू- पोछा और बरतन करना
बच्चों को संभालना
सब कुछ राजी - खुशी किया
बदले में मिला क्या ??
सोचती हूँ तब ऐसा लगता है
नाम तो तुम्हारा
उनके बच्चे
उनके घर
मेरा क्या
वहीं दिन - रात खटना
प्रशंसा के मीठे बोल के लिए तरस जाना
जो हालात तब थे वह अब भी
पहले तो तुम और तुम्हारा परिवार
अब तुम और तुम्हारे बच्चे
सबकी फरमाइश पूरी करते- करते उम्र गुजर गयी
न माया मिली न राम

Thursday, 23 September 2021

यह है अखबार

ताजा - ताजा खबरें देनेवाला यह अखबार
रात होते - होते बासी हो जाता है
सुबह सुबह  जिसका रहता बेसब्री से इंतजार
बाद में  कहीं करीने से रख दिया जाता है
हर रोज जो अनमोल रहता है
महीने भर बाद रद्दी के भाव बेच दिया जाता है
सारे जग की कहानियां सुनाने वाला
एक कहानी बन कर रह जाता
आज की खबर देनेवाला
कल का होकर रह जाता है

सुबह सुबह जो करारा करारा
बिना सिकुड़न औ सिलवट के
बाद में किसी सामान की पुडिया बन जाता है
उपयोग कर तोड़ मरोड कर फेंक दिया जाता है
गल जाता है पानी में
ऐसा निशान छोड़ जाता है
जो सदियों तक याद रहता है

आज की ताजा खबर
आज की ताजा खबर कह
इसे बेचने वाले हर गली - चौराहे पर
देर रात तक छपता है
सुबह निकल कर हर घर पहुँचता है
दूध के बाद किसी की याद
तब होता है वह अखबार
चाय - काॅफी की चुस्कियों के साथ
इसे पढना भी लगता है मजेदार

ज्ञान तो मिलता ही है
देश - दुनिया की बातें भी
खेल हो या मनोरंजन
हर तरह का मानसिक खाद्य परोसता है यह
यहाँ तक कि भाग्य भी बताता है
ज्योतिष द्वारा दिवस और हफ्ते की भविष्यवाणी भी करता
अफसोस यह अपना भविष्य नहीं जानता

घर और चाय की दुकान से
कब यह पुडिया या कूडे के ढेर में
या किसी गरीब का फुटपाथ पर बिछौना
यह सूर्य के समान है
जो सुबह प्रकाश के साथ निकलता है
संध्या होते होते बिदा लेने लगता है
अगले दिन फिर आगमन के लिए।

तभी तो जिंदगी

जिंदगी तू कब कब मुस्कराई
यह सब याद है
वह मुस्कुराहट भी याद है
वह खिलखिलाहट भी याद है
वह कहकहे भी याद है
वह शमा भी याद है
भूला तो कुछ भी नहीं
जब जब पीछे मुड़कर देखते हैं
वह मानसपटल पर अंकित हो जाते हैं
चित्रपट की तरह घूमने लगते हैं
वह लोग भी याद आते हैं
जो हमारे मुस्कराने की वजह थे
खिलखिलाने की  वजह थे
वह शमा भी अजीब थी
वह शाम भी निराले थे
वह सुबह भी सुहानी थी
वह रात भी चांदनीमय थी
वह बैठकें
वह गपशप
वाह वाह क्या बात थी
तभी तो कहते हैं
जिंदगी तू इतनी बुरी भी कभी नहीं रही
जैसा हम समझते रहें
कुछ बात तो थी तुममें
तभी तो आज भी हम तुमसे बंधे हैं।

जय किसान जय अन्नदाता

यह हरी - भरी हरियाली हमसे हैं
यह गेहूं- मटर की फसले हमसे हैं
हम पैसा नहीं उगाते अन्न उगाते हैं
लोगों का पेट भरते हैं
धरती को सींच - सींच उपजाऊ बनाते हैं
मिट्टी का सोना करते हैं
भाई हम नौकरी - व्यापार नहीं
खेती - किसानी करते हैं
पहचान  हमारी किसी से छुपी नहीं
मैं किसान हूँ
इस बात का गर्व है मुझे
ईश्वर नहीं है हम
पर हम न होते तो इस जहां में  कोई नहीं होता
जीने का सहारा नहीं होता
भोजन बिना तो भगवान का भजन भी नहीं भाता
   भूखे पेट भजन न होय गोपाला
            जय किसान जय अन्नदाता

हमारे बाबूजी जैसा कोई नहीं

आज सपने में आए तुम बाबूजी
न आते तो भी कुछ बात नहीं
तुम तो हर पल साथ हो
यादों में सांसों में बसे हो
तुमसे ही तो हम हैं
यह जीवन है
जो तुम्हारी देन है
तुमने जन्म से लेकर पालन - पोषण
लिखाना- पढाना
काबिल बनाना
अपने पैरों पर खडा होना सिखाया
पितृ पक्ष तो साल में एक बार आता है
तुम तो हर रोज ध्यान में आते हो
जब कुछ करने जाते
तब तुम्हारा ख्याल आ जाता
तुम होते तो क्या कहते
तुम होते तो क्या कहते
खुश होते या नाराज होते
हाँ कहते या ना कहते
आप बिना हम अधूरे
आपकी शिक्षा के साथ हम पूरे
हमारे साथ साथ चलने वाले
मार्गदर्शन करने वाले
हम आपको कहाँ  भूलेगे??
क्यों भूलेगे  ??
हम तो आज भी गर्व से कहते हैं
हमारे बाबूजी जैसा कोई नहीं।

हम ब्राह्मण हैं

मैं जाति का ब्राह्मण हूँ
हमारे पूर्वज भिक्षा मांग कर
पूजा - पाठ कर जीवन यापन करते थे
ज्ञान दाता थे
गुरू थे
राजा सिंहासन पर बैठता था
राजनीति हम सिखाते थे
मैं ही द्रोणाचार्य
मैं ही चाणक्य
मैं ही परशुराम
मैं ही सुदामा
हमें दरिद्र नारायण की संज्ञा दी गई
हमें आदर और सम्मान दिया गया
हमें पूजा गया
हम भी यही समझते रहें
हम सबसे श्रेष्ठ है
वहीं  हम अपना कर्म भूल गए
जमाना बदला
ब्राह्मण होने से काम नहीं चलेगा
हमें हर काम करना पडेगा
रोटी और घर का इंतजाम करना है
क्योंकि हम बडे जाति के हैं
हमारे लिए तो आरक्षण भी नहीं है
हाँ आजकल नेता और पार्टियां भी हमारे नाम पर राजनीति कर रही हैं
हमें किसी के झांसे में नहीं  आना है
कोई झुनझुना कोई लाॅलीपाप से लुभना नहीं है
तब अपने आप को उठाना है
इतिहास का गाना , गाने से कुछ नहीं हासिल होगा
अपनी महत्ता को साबित करना होगा
     छोड़ों  कल की बातें
     कल की बात पुरानी
     नई डगर पर चलकर
      फिर से लिखे नई कहानी
       हम हिन्दुस्तानी।

कृपा तो बरसती रहेंगी

आज खीर - पूरी बनी है
साथ में गरमा गरम पकौडे भी
माँ को बहुत पसंद थे न
पर वह कभी खुद चैन से न खा पाई
दूसरों को खिलाने के चक्कर में
अब वह रही नहीं
दूसरे लोक की वासी हो गई है
उसकी याद आ गई
श्राद्ध जो शुरू हुआ है
तुम्हारी मनपसंद भोजन बनाना है
कौए को खिलाना है
जीते जी तो नहीं खिला सके
तुम्हारे जाने के बाद न किसी ने उतने प्रेम से खिलाया ही
साल में एक बार तुम यादों के साथ आगमन करती हो
तुम्हारे बहाने ही सही
घर में पकवान तो बनते हैं
पहले तुम्हारे हाथ का बना खाता था
अब तुम्हारे बहाने खाता हूँ
माँ- बाप तो माँ- बाप ही होते हैं
उनकी जगह कोई ले ही नहीं सकता
उनका ऋण कोई उतार ही नहीं सकता
धरती पर रहे चाहे आसमान पर
कृपा तो बरसती ही रहेंगी ।

जिंदगी की गाड़ी

जिंदगी की गाड़ी चलती रही
हम हिचकोले खाते रहे
कभी ऊपर कभी नीचे
कभी दाएं कभी बाएं
गाडी भी रफ्तार में चलती रही
कभी थोड़ा धीमी जरूर हुई
रूकी बिल्कुल नहीं
हम जो ड्राइवर सीट पर बैठे थे
स्टीयरिंग हमारे हाथ में था
हार मानना हमने भी कहाँ सीखा था
चलते रहे चलते ही रहे
आज भी चल ही रहे हैं
चला भी रहे हैं
गंतव्य पर जब पहुंचेगे तब तक
रूकना हमने नहीं सीखा ।

Monday, 20 September 2021

मैं तेरी हमसफर हूँ

जिंदगी तू इतनी कठोर क्यों है
न जाने बीच बीच में क्या कर देती है
वह भी उस समय
जब लगता है
अब तो सब ठीक है
जीवन पटरी पर चल रहा है
अचानक पटरी से उतर जाती है
हिचकोले खाने लगती है
विश्वास करू कैसे तुझ पर
तू न जाने कब दगा  दे दे

जिंदगी हंसती हुई
कह उठी
परेशान न हो
मैं तो तुझे जीना सीखा रही थी
दुनिया से रूबरू करा रही थी
पथरीले राहों पर चलना सिखा रही थी
मैं तेरी हमसफर हूँ
सुख दुःख की साथी हूँ
कोई दुश्मनी नहीं है
मैं तो बस अपना कर्तव्य निभा रही हूँ।

Saturday, 18 September 2021

जो आज हम हैं हम न होते

गर वो न होते तो हम न होते
होते तो जो आज हैं वह हम न होते
न जाने कितनों ने कितना कुछ सिखाया
ढूंढ ढूंढ कर कमियाँ निकाली
लोगों के बीच में मजाक उडाया
हर कमजोरी को जान बूझ कर कुरेदा
जो कुछ काबिल नहीं थे
वह भी हंसे
बहुत खिल्ली उडाई
हम भी कहाँ कम थे
जबान से तो कुछ नहीं कहा
क्योंकि यहाँ हम कम पड जाते थे
पर अपने को साबित किया
यह महसूस कराया
तुम कहाँ और हम कहाँ
हमारी तो तुमसे तुलना ही नहीं
तुम लोगों का एक ही काम
हमारे पास बहुतेरे काम
फुरसत नहीं है  गप्पबाजी की
झूठ को सच बताने की
किसी पर ऊंगली उठाने की
हम वो हैं
जो आपकी पहुँच से बाहर है
हमें समझना आप के बस की बात नहीं
एहसान है फिर भी
गर वो न होते तो
जो आज हम हैं  हम न होते ।

Friday, 17 September 2021

भूले कैसे ??

कुछ घाव और अपमान
भुलाएँ  नहीं भूलते
समय की धारा से भी वह नहीं बहते
जकड़ कर धरे रहते हैं सालोसाल
मिलना फिर वैसा नहीं हो पाता
नजरें छुपाकर , सिर झुका कर
कुछ भी कर लो
कितना भी यतन करों
वह फोडा बन रिश्ता रहता है
कभी-कभी सुख जाता है
फिर कोई कुरेद देता है
फिर हरा भरा हो जाता है
जख्म ताजा हो जाता है
मन मस्तिष्क में लहलहाने लगता है
कितना भी सूखा पड जाएं
कितनी भी बाढ आ जाएं
उस पर सभी कोई असर नहीं होता
न वह सूखता है
न वह बहता है
जरा सा उधेड दो
फिर वही
क्या करें
कैसे करें
न देने वाला भूलता है
न लेने वाला भूलता है
कितना भी जतन करों
कोशिश करों
बहुत बडे दिल वाला होगा वह
जो कोई भूल जाए
जो धागा टूट गया
उसे जोड़ो तो गांठ पड ही जाएंगी  ।

कल को कौन याद रखता है

तुमने किया ही क्या है
तुम्हें आता ही क्या है
तुम्हारे बाप ने दिया ही क्या है
न कोई सहुर न रंग
सांवर, छोट , मोट ,लडबक

सही ही कहा
कहने वाले नो
कुछ अब रहे नहीं
कुछ दूर जा बसे
पर वह जो दुरियां थी
वह खतम नहीं हुई
कैसे खत्म होती

बातें  नहीं भूलती
यादें भी ताजा रहती है
जबकि पता है
इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला
जो बीत गई सो बात गई

वास्तव में ऐसा होता नहीं
कहना आसान है
जिस पर बीती वहीं जानता है
अच्छा था
कुछ  नहीं आता था
न चालाकी थी न होशियारी
न छल न कपट
तभी तो घर चला
चालाकी होती तब केवल अपना सोचता
ताउम्र रिश्ता नहीं निभाता
वह भी बिना किसी लालच और स्वार्थ के
फर्ज निभाते - निभाते
न जाने क्या - क्या खो दिया

जीवन के अमूल्य क्षण
पहनने - ओढने और घूमने के दिन
निश्चिंत रहने के दिन
बहुत कुछ चुकाया है
कोई सहुर नहीं
फिर भी स्वयं को संभाला है
अपने बच्चों की परवरिश
पढाना - लिखाना
नौकरी  - घर संभालना
सब अपने दम पर किया है
नहीं किसी का एहसान
कि किसी अपने ने हमारे लिए भी कुछ किया है

कोई समझे या न समझे
ऊपरवाला तो समझता है
हमने न जाने क्या - क्या मूल्य चुकाया है
अच्छा लगता है
नई पीढ़ी को देख
जो बस अपने बारे में सोचते हैं
अपने हक और अधिकार के प्रति सचेत रहते हैं
कर्तव्यों और फर्ज की बलि क्यों चढे
कौन याद रखता है
आपको और आपके त्याग को
जो सामने हैं
वहीं दिखता है
और तो बीता कल है
कल को कौन याद रखता है ।

Tuesday, 14 September 2021

हिन्दी मेरी शान हिन्दी ही मेरी पहचान

हिन्द की हिन्दी
लगती बहुत प्यारी
जोडती है दिलों को
करती नहीं कोई भेदभाव
जो भी इसको अपनाता
उसकी ही हो जाती
तोड मरोड़ कर किसी भी लहजे में
वह ढल जाती
अंजानो के बीच रिश्ता कायम करती
जनसाधारण की भाषा है यह
हर आम आदमी परिचित इससे
नहीं कोई इससे अंजान
ज्यादा न सही थोडा ही सही
सब तक यह पहुंची जरूर
यह किसकी मजबूरी नहीं
स्वेच्छा से स्वीकृत है
जब कुछ न समझ आता
तब अपना दामन पकडा देती
सबका सहारा बनती
बातचीत का माध्यम बनती
सडक से लेकर महलों तक
सबमें इसका वास
है बहुत सरल
नहीं है इसमें कोई क्लिष्टता
लिपि इसकी देवनागरी
जो है सब पर भारी
यह है हिन्द की पहचान
हिंद की हिन्दी लगती बहुत प्यारी

Sunday, 12 September 2021

उठना तो स्वयं को पडेगा

उतर जाओ मैदान में
जो होगा वह देखा जाएंगा
हार या जीत
सफलता या असफलता
मत डरो
कर्मवीर बनो
जो लडा नहीं वह हारा क्या और जीता क्या
जो खडा नहीं वह जो उठा नहीं
वह सफल क्या और असफल क्या
भाग्य भरोसे बैठ रहना
ईश्वर को दोष देते रहना
इसलिए तो मानव जन्म नहीं
कुछ तो करो
कुछ तो आगे बढो
कुछ तो प्रयास करो
जब स्वयं उठोगे तो दूसरे भी सहारा दे देंगे
टेका लगा देंगे
उठाएंगे नहीं
उठना तो स्वयं को पडेगा

Monday, 6 September 2021

कविता

कुछ कहते हैं
आप कविता लिखती है
हाँ लिखती तो हूँ
पर वह आपबीती हो
ऐसा नहीं
लोगों की सोच है
भावना जब हो तब कविता का जन्म
वह अपनी हो या पराई
भावना को समझ कर
शब्दों में उकेरना
यही तो कविता है
कुछ अपनी
कुछ दूसरों की
भावनाओं का मिश्रण
तभी वह बन जाती कविता

Sunday, 5 September 2021

हमारी संपूर्ण गुरू जाति को नमन

मैं भूत , वर्तमान और भविष्य
तीनों का कारण हूँ
मैं शिक्षक हूँ
भूत को सुधारता हूँ
वर्तमान को गढता हूँ
भविष्य को निर्माण करता हूँ

मैं ज्यादा नहीं चाहता
हाँ इतना जरुर चाहता हूँ
मेरा हर छात्र सफल रहें
ऊंचाइयों तक पहुँचे
मैं ही वह हूँ
जो आपकी सफलता देख कर इतराता है
गर्व से कहता है
यह मेरा स्टूडेंट हैं
हम ही ऐसे हैं जो आपको ऊपर चढते देख जलते नहीं
न हतोत्साहित करते
बल्कि प्रोत्साहित करते

हम ही वह हैं
जहाँ हमें कोई एक नहीं सब प्रिय
फिर वह चाहे कैसा भी हो
सबको एक ही जैसा ज्ञान
हमारी नजरों में सब समान
हमारा एक भी छात्र असफल न हो
यही हमारी इच्छा
क्योंकि तुम्हारी सफलता और असफलता के बीच हम जो हैं
क्या यही सीखा है  तुमने
यह ताना सुनने की अपेक्षा
यह सुनना
न जाने इनके शिक्षक कैसे होंगे और इनकी पाठशाला
जिनकी वजह से यह मुकाम हासिल है
हम ईश्वर नहीं है
न हम जन्मदाता है
पर उनके भी गुरू तो हम ही हैं
गुरू बिना ज्ञान कहाँ
             हमारी संपूर्ण गुरू जाति को नमन

Saturday, 4 September 2021

कुछ यादें जो अब भी याद है।

बात उस समय की है जब मैं केन्द्रीय विद्यालय में पढा रही थी । पहली नौकरी थी और वह भी टेम्परेरी। कुछ अनुभव नहीं  था पर वहाँ से कुछ अनुभव मिले जो आज तक याद रहा ।
पहला वाकया
पहला यह कि जब पहली बार बच्चो का पेपर जांचा तो ऐसा कि आधे से ज्यादा फेल।नई थी ही क्लास टीचर आई तो बच्चों ने हो हल्ला किया ।उन्होंने सभी कापियों को इकठ्ठा किया और मुझे लाकर दिया । कहा इतना स्ट्रीक्ट नहीं जरा लीनियन होकर जांचो। बच्चे हैं वह तो मैंने रोक दिया नहीं तो प्रिंसिपल के पास जाने वाले थे ।मैंने घर आकर अपने भाई को यह बात बताई तो उसने कहा कि छात्रों से ही तेरी नौकरी है ।वे खुश तो नौकरी सही सलामत।  यह बात मैंने गांठ बांध ली फिर तो अट्ठाईस साल के टीचिंग प्रोफेसन में कहीं कोई शिकायत नहीं आई

दूसरा वहीं का वाकया
पन्द्रह अगस्त था ।झंडा फहराया जा रहा था कि अचानक जोरो की बरसात होने लगी ।,प्रिंसिपल  मिस्टर सूद जरा भी टस से मस नहीं तो फिर कोई नहीं  ।न छात्र न स्टाफ ।
अगर मिसाल पेश करनी है तो पहले अपने पर बाद में दूसरों पर ।

तीसरा वाकया 
जब मैंने इंटरव्यू दिया तब झूठ बोला था कि मेरे पति महाराष्ट्र में ही कार्यरत हैं जबकि वे तो उत्तर प्रदेश पुलिस में थे ।जब पहली सैलरी की बारी आई तो क्लर्क ने बुलाकर कहा कि आपको हाउस एलाउन्स नहीं मिलेगा
क्योंकि आप सरकारी क्वार्टर में रहती है ।मैंने तो यह सोचा ही नहीं था कि झूठ बोलने पर इतना नुकसान। अब क्या करें  । रात को नींद नहीं  आई बराबर ।सुबह होते ही मैंने निश्चय कर लिया सर को सब सच बता दूंगी ।अगले दिन सुबह ही जाकर मिली और सच बता दिया। सर ने कहा , हमें क्या मतलब कि आप कहाँ रहती है झूठ क्यों बोला ।मैंने कहा कि नौकरी के लिए  ।पति उत्तर प्रदेश और मैं यहाँ।  लोग हिचकिचाते थे । सर ने कहा कोई बात नहीं आप जहाँ रहती है वहाँ के किराये की रसीद दे देना ।
तब महसूस हुआ सच बोल ही दो ।सब साफ हो जाएंगा ।

चौथा वाकया
मैं लेंग्वेज की टीचर ।छात्र कहते हमको यह हिन्दी और संस्कृत पढकर क्या मिलने वाला ।इससे अच्छा तो कोई फारेन लेंग्वेज पढते तो वह काम आता ।इतिहास पढकर क्या मिलने वाला ।गणित और साइंस ही रहना चाहिए।
शायद उन्हें यह नहीं पता जिस देश का इतिहास नहीं उस देश का भूगोल ही खत्म
इकबाल की पंक्तियाँ
यूनान ,मिस्र, रोम सब मिट गए जहां से
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा।

पांचवा वाकया
दो शिक्षक थे उसी विद्यालय में। दोस्त भी थे ।एक जैन एक राजपूत।
अब जैन साहब शाकाहारी और सिंह साहब ठहरे मांसाहारी।
आपस में बात करते करते इसी खाने पर बहस हो गई और दोनों सीढियों पर ही आपस में उलझ बैठे ।हाथापाई करने लगें  ।बच्चों ने छुडाया
अगले दिन दोनों का तबादला  दूसरे शहर में
सर का कहना था जो खुद पर काबू नहीं रख सकते वह बच्चों पर क्या रखेंगे ।