Thursday, 31 July 2014

सोनिआ के प्रधानमंत्री पद छोड़ने पर आज विवाद क्यों ???

कभी कांग्रेस और नेहरू - गांधी परिवार के करीबी रहे नटवर सिंह ने अपनी रिलीज़ होने जा रही ऑटोबायोग्राफी "वन लाइफ इज़ नॉट एनफ " में यह तथ्य दिया है की दो हज़ार चार में पीएम का पद ठुकराते  समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिआ गांधी ने कहा था कि वह यह फैसला अपनी अंतरात्मा कि आवाज़ पर ले रही है जब कि सत्य यह है की उनके बेटे राहुल गांधी कि जिद ने उन्हें पीएम बनने पर रोक दिया था। उन्हें डर था कि उनके पिता और दादी की तरह उनकी माँ की भी हत्या की जा सकती है। 

नटवर सिंह सत्य ही कह रहे है यह कौन जानता है ? आखरी समय में वे नाराज़ चल रहे थे। अगर यह सही भी है तो क्या हुआ। एक बेटे को अपनी माँ की चिंता थी और उन्हें मना किया, यह कोई बड़ी बात नहीं है। 

इतिहास गवाह है की सत्ता के लिए लोगो ने अपने ही सगे - सम्बन्धियों , प्रियजन को हटाने के लिए क्या कुछ नहीं किया है। बेटे की सलाह - जिद मानना या न मानना कांग्रेस अध्यक्षा पर निर्भर था। एक छोटे से नेता का पद प्राप्त करने के लिए लोग अपनों को रास्ते से हटा देते है। यह पद तो भारत के प्रधानमंत्री का था। उन्होंने उसको छोड़ा। उनके इस त्याग को साधारण नहीं लेना चाहिए या विवाद खड़ा करना चाहिए। वैसे भी नेहरू - गांधी परिवार ने देश के लिए अपनों का बलिदान दिया है। 


Wednesday, 30 July 2014

फिर याद आया कारगिल...

कारगिल फिर याद आ गया, समय अपने आप को दोहराता हैं और हमें सोचने को मज़बूर कर देता हैं। कारगिल के जवान जब अपना बलिदान दे रहे थे तो सारा देश दूरदर्शन के माध्यम से उन्हें देख रहा था। आँखे भर - भर आ रही थी। आज उन जवानो के परिवार और घर वालो की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं। वे तो देश के लिए शहीद हो गए लेकिन सरकार का कर्तव्य उनके परिवारो को हर संभव सहायता देना होना चाहिए , हमें भी सैनिक और सैनिको के परिवार को सम्मान देना चाहिए। क्योंकि वे हैं तभी हम भी सुरक्षित हैं। 

आज हर युवा डॉक्टर , इंजीनियर , कंपनी का सीईओ , बैंक ऑफिसर बनना चाहता हैं। पर फ़ौज में जाने से कतराते हैं। माँ - बाप नहीं चाहते कि बच्चे फ़ौज में जाए। लोगो में राष्ट्रीयता की भावना को कायम करना तथा देश भक्ति का जज्बा बनाये रखना देश की सबसे बड़ी जरूरत हैं।

भरा नहीं जो भावो से, बहती जिसमे रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं, वह पत्थर हैं, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं।


Tuesday, 29 July 2014

किसी भी घटना को साम्प्रदाइकता का रूप देना उचित नहीं !!!

किसी भी घटना को बढ़ा - चढ़ा कर साम्प्रदाइकता का रूप देना उचित नहीं है। इससे दंगे भड़कते हैं। जान-माल का नुकसान होता हैं। लोगो की भावनाए आहत होती हैं  तो दूरिया बढ़ जाती हैं। एक क्रिकेट के खेल में आपस में बच्चो का झगड़ा हो जाता हैं या एक छेडखानी की घटना ने दंगे करा दिए। झगड़ा या छेड़खानी धर्म या जाती को देख कर नहीं हुआ था। ऐसे ही  हाल की घटना रोटी के विवाद को लेकर हैं। किसी भी नेता या पार्टी को इतना तूल देने की जरूरत नहीं हैं। जो हुआ वह गलत था लेकिन शायद यह जान बूझ कर नहीं किया गया था। किसी भी व्यक्ति के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए। चाहे वह अमिर हो या गरीब हो। नेता तो जनप्रतिनिधि होते है। खाना खराब होने की शिकायत दूसरी तरह से भी की जा सकती थी। अतः सभी को सयंम और मर्यादा का पालन करना चाहिए।


Monday, 28 July 2014

अन्नदान सबसे बड़ा पुण्य है।

पूर्वजो ने कहा हैं कि अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए , लेकिन आज भोजन को इतना व्यर्थ करते है कि पूछो मत। शादी - ब्याह में पहले पंगत में बैठ कर खाना होता था तो व्यक्ति को जितनी जरूरत होती थी उतना परोसा जाता था। आज बुफे सिस्टम जिसमे कि अपनी इच्छा अनुसार लो। लोग लालच में पूरी की पूरी प्लेट भर तो लेते है पर खा नहीं जाता तो फेक देते है। रास्ते पर , सोसाइटी में कही रोटी तो कही चावल या अन्य खाद्य पदार्थ यहाँ - वहाँ फेके दिखाई देते है। उत्तर भारत में जो जूठन होती है वह नाले में ना बहा कर पशु की हौदी में डाला जाता है। किसान कि औरत गेहू के दस दाने गिरे हो तो भी चुन कर रख लेती है क्यूंकि उसको अन्न का मतलब पता है। 

अधिकाँश शहरों में यह दिखाई देता है। अभी कुछ लोगो ने मुहीम छेड़ी है और वे इसमें कामयाब भी हुए है। वे ऑफिस में जो डब्बा जाता है उसका बचा हुआ भोजन और होटलों के बचे हुए भोजन को रेफ्रीजिरेटर में इकठ्ठा करते है। बाद में उसे गरीब और जरूरतमंद लोगो में बाटने का काम करते है। अतः आप भी अपना अन्न फेंकिए मत , उसका उपयोग किसीका पेट भरने में कीजिये। आप का भोजन किसी जरूरतमंद का पेट भर सकता है। उसके चेहरे की मुस्कराहट और संतुष्टि से बड़ा पुण्य क्या हो सकता है।




Friday, 25 July 2014

श्रद्धा के नाम पर खिलवाड़ क्यों ???

आजकल अखबार उठा लीजिये तो आपको तमाम विज्ञापन मिल जायेंगे आपकी तकदीर बदलने के लिए पाखंडी बाबाओ और ज्योतिषियों की भरमार हो गयी है। वह आपकी सारी समस्या का हल गारंटी के साथ और दिन में कर सकता है।  ट्रैन में रस्ते पर बंगाली बाबा का पोस्टर लगा हुआ होता है। समाज में ऐसे अनेक अंधविश्वास प्रचलित है और लोग इन अन्धविश्वासो के घेरे में आकर इन ढोंगी बाबाओ और महात्माओ के की जाल में फसते जाते है। पैसा तो व्यर्थ बहाया ही जाता है , अनेक गलत क्रिया - कर्म भी किये जाते है। यहाँ तक की अपनी समस्या के समाधान के लिए किसीकी बलि देने से भी नहीं हिचकते। आज के वैज्ञानिक युग में जहाँ अंतरिक्ष पर पंहुचा जा रहा हैं , वहा समाज किस और जा रहा है। सब कुछ करने वाला सर्व शक्तिमान ईश्वर है। ईश्वर पर अटूट विश्वास होना चाहिए पर अन्धविश्वास नहीं। 

ईश्वर की प्रार्थना के लिए किसी माध्यम जैसे बाबा , महात्मा , तांत्रिक इनकी जरूरत नहीं , अटूट श्रद्धा की जरूरत है। धर्म के नाम पर श्रद्धा और विश्वास के साथ खिलवाड़ करने वाले इन तथा - कथित बाबाओ को बख्शा नहीं जाना चाहिए।


Tuesday, 22 July 2014

मानवता से बड़ा कुछ भी नहीं...

आज विश्व अशांति के कगार पर खड़ा है। अमेरिका - इराक या रूस - यूक्रेन की वर्तमान हालात।  भारत के पडोसी देशो की दखलंदाज़ी या आतंकवादी गतिविधिया , इन सब का एक ही परिणाम - मानवता की हानि।
जीवन में शान्ति का बड़ा महत्त्व है।  शान्ति के कारण ही प्रगति भी संभव है।  विश्व शान्ति रही तो राष्ट्रों के परस्पर व्यवहार में वृद्धि , आवागमन , सांस्कृतिक आदान - प्रदान , भेद-भाव कम होना , विश्व बंधुत्व की भावना का विकास होना , व्यापार इत्यादि पर भी प्रभाव पड़ता है।

ब्रिक्स सम्मेलन ऐशिया खंड के राष्ट्राध्यक्षो का एकत्रित होना एक शुभ संकेत है। अगर संबंध सुधरेंगे तो शांति होगी , विकास होगा।  विश्व - शांति होने पर ही मानवता के फूल खिलेंगे।

कवि पंत के शब्दों में :

" मानव ने पाई देश काल पर जय निश्चय , मानव के पास नहीं मानव का आज हृदय ,
चाहिए विश्व को आज भाव का नवोन्मेष , मानव उर में फिर मानवता का हो प्रवेश। "



Monday, 21 July 2014

आजकल के धारावाहिको का उद्देश्य आखिर क्या ???

कहानी ख़त्म होने पर टीवी सीरियल को बंद कर देना चाहिए ताकि नया सीरियल शुरू हो सके।  लोगो को कुछ नवीनता मिल सके।  लेकिन यहाँ सीरियल चार - पाँच वर्षो से चल रहे हैं।  कहानी ख़त्म होने के बाद उसमे जबरदस्ती नए चरित्र और प्रसंग डाल कर घसीटा जाता है।  सास - बहु के सागा , मर कर जिन्दा होना , एक ही जीवन में दो तीन बार लापता होना। मनोरंजन के नाम पर यह क्या परोसा जा रहा है ? सार्थक कहानी , संदेश, प्रेरणा यह सब कुछ नहीं दिखाई देता है। इन धारावाहिकों का उद्देश क्या है। पता नहीं कौन से युग और कौनसी संस्कृति दिखाई जा रही है। कॉमेडी के नाम पर फूहड़ और द्विअर्थी संवाद।  

इनके निर्माणकर्ता को इसपर अवश्य ध्यान देना चाहिए।  असली कथानक के साथ ज्यादा छेड - छाड़ और तोड़ - मरोड उसकी जीवंतता को ही कम कर देता हैं। मनोरंजन सार्थक , स्वच्छ और प्रेरणा दायक भी बनाया जा सकता है। 


पानी की हर बूँद अनमोल हैं

जल ही जीवन हैं, इस जीवनरूपी अमृत को यो न बहाया जाए।
बीएमसी ने इसपर मुहीम भी चला रखी  हैं । बूँद - बूँद  से घट भरता हैं, पर हम इस संपत्ति को संभाल कर रखते हैं क्या ? कितना पानी हम नुक्सान करते हैं , बासी पानी को बहाना या फिर वाश बेसिन पर खड़े हो कर मुह धोते समय या फिर शावर से स्नान करते समय या फिर नल को खुला रख। मॉल , पांच सितारा होटल में सैकड़ो लीटर पानी तो किसी को पीने के लिए पानी नहीं हैं। एक ओर पानी बहाते लोग तो दूसरी तरफ बूँद - बूँद को तरसते  लोग , यह विरोधाभास क्यों ?जैसे हम एक - एक पैसे जोड़ते हैं तथा उसका हिसाब रखते हैं , वैसे ही इस प्राकृतिक संपदा को भी संभाल कर उपयोग करना होगा। 
बीएमसी और महाराष्ट्र सरकार की इस मुहिम में जन - जन को अवश्य सहयोग करना चाहिए। 



Wednesday, 16 July 2014

अब फ़िक्र को धुए में नहीं उड़ा सकते !!!

पान , गुठखा , पान - मसाला , सिगरेट , इत्यादि चीज़ें महँगी कर जेटली ने सराहनीय काम किया है। 
हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाने और बर्बादी का जशन मनाने की जगह ज़िन्दगी का डट कर सामना करने की जरूरत है।  न जाने कितने घर और परिवार को यह नशीले पदार्थ बर्बाद कर देते है। खाना नहीं लेकिन तंबाकू खाने का पैसा कहाँ से आता है। फेफड़ो को जलाने वाला सिगरेट स्वयं को तथा दुसरो को भी हानि पहुँचाता है। 

स्त्री - पुरुष दोनों ही नशे की शिकार है। मौत के घाट सुलाने वाले इन पदार्थो पर ज्यादा कर लगा कर मोदी सरकार ने इसे रोकने की दिशा में पहला कदम रखा है। इसे रोकने के लिए अन्य प्रस्ताव भी लाने चाहिए। 


Tuesday, 15 July 2014

AAJ KI SHIKSHA !!!

गुरु पूर्णिमा , गुरुओं के आदर - सम्मान का दिन , पर आज के गुरु यानी शिक्षक की स्तिथि क्या ? 
उसकी हैसियत एक सरकारी नौकर के अलावा कुछ नहीं। वह न बच्चो को डाट सकता है न उन्हें कोई दंड दे सकता है। छात्रों में भी अनुशाशन हीनता बढ़ रही है। वह शिक्षको से वाद - विवाद करने से भी नहीं चूकते। अच्छा बनने के लिए कुछ कड़वी दवा घुट पीना भी जरूरी है। शिक्षा व्यवसाइक हो कर रह गई है। शिक्षक सोचता है मुझे क्या करना है , अपना काम पढाना , वेतन मिलता है इससे ज्यादा कुछ क्यों करू। माता - पिता भी बच्चो से कहते है मुफ्त में नहीं पढ़ाते है , ज्यादा हुआ शिकायत कर देंगे। ऐसे में बच्चो को भी लगता है शिक्षक कोई हम पर उपकार थोड़े ही कर रहा है।  अतः गुरु - शिष्य में दूरिया बढ़ रही है। सम्मान और प्रेम का संबंध ख़त्म हो रहा है। इस नजरिए  बदलना होगा। शिक्षक और छात्र दोनों का अटूट नाता है। जीवन की बुनियाद ही छात्र जीवन में होती है , अतः छात्र को शिक्षको का सम्मान और शिक्षको में प्रेम एवं ज्ञानदान की ज़िम्मेदारी का एहसास जरूरी है। 


Sunday, 13 July 2014

"बदलेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया "

"Child is the Father of Nation" 

नेहरू जी का यह वाक्य शायद आज की जरूरत है। दूरदर्शन पर एक विज्ञापन में एक बच्चा अपने पिता से कहता है कि अगर पेट्रोल ख़त्म हो जायेगा तो हम क्या करेंगे ? या फिर माँ रसोई में खाना बना रही है और दूसरे कमरो की बत्तियाँ , पंखे , टीवी चालु है , बच्चा आ कर बंद करता है।  कई घरो में बड़ो को बच्चे टोकते हुए देखे गए कि कचरा बहार क्यों फेकते हो ? क्या घर में डस्टबिन नहीं है ? फेके हुए तिरंगे झंडे को उठाने के लिए कई कॉलेज के छात्रों ने मुहिम चलाई है।  समुद्र किनारे के कचरे को भी उठाने में सक्रिय रहे है।  अच्छी सोच है इंडिया बदल रहा है।  इसके लिए विद्यालय , शिक्षक आदि को पहल करना पड़ेगा कुछ तो इसमें प्रयासरत है।  

आज का बच्चा जाति भेद की भावना से परे हैं। उससे इससे कुछ लेना - देना नहीं है।  

नारी सशक्तिकरण , लिंग भेद भी पाठ्यक्रम में शामिल होने चाहिए। 
अब हमे बच्चो से ही शुरुआत करनी पड़ेगी क्योंकि वेही भारत महान के भविष्य है।  

"बदलेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया "


Saturday, 12 July 2014

NAARI KE PRATI BHARTIYA MAANSIKTA KAB BADLEGI ???

नारी को दुर्गा और लक्ष्मी का रूप माना जाता है। उसी भारत में यह नारियो के साथ क्या हो रहा है ? एक पंचायत के फरमान पर एक लड़की को बलात्कार की बलि पर चढ़ाया जाता है।  वह भी इकीसवीं सदी में। यह कहा का न्याय है ? अगर भाई ने गलती की तो उसकी सजा बहन को क्यों ? झारखण्ड की यह घटना शर्म-सार करने वाली है। लोगो की सोच कितनी घृणित हो गयी है। इससे तो कुछ डाकू अच्छे थे , जिनका सिद्धांत केवल लूट-पाट करना होता था।  घर की महिला के साथ कोई अभद्र व्यवहार करना नहीं।  गाँव या मोहल्ले की बहन-बेटियों की इज़्ज़त हमारी इज़्ज़त है।  यह भावना कहाँ गई ?

" मदर इंडिया " में नरगिस गाँव की बेटी की इज़्ज़त बचने के लिए अपने ही बेटे पर गोली चलाने में नहीं  हिचकती।  इस घटना में गाँव के लोग मूकदर्शक बने हुए है , किसी को भी विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई। निर्भया काण्ड हो या बदायू की घटना , आज घर , पास-पड़ोस , सड़क कही पर भी महिलाये सुरक्षित नहीं है।  आये दिन दो चार घटना तो जरूर होती है।  एक निर्भया नहीं सैकड़ो निर्भया रोज शिकार हो रही है। 

इसका हल किस तरह से निकलेगा ? कब यह सब बंद होगा ? विचार करने की ज़रुरत है। प्रशाशन , पुलिस , एनजीओ , मानव अधिकार , नारी संघटनाए , संत - महात्मा , धरम गुरुओ सभी को आगे आ कर लोगो में स्त्री के प्रति दृष्टिकोण बदल ने की जरूरत है।  वह केवल भोग्या ही नहीं एक व्यक्ति भी है। सारे अधिकार उसके भी पास है।  बिना सोच में परिवर्तन लाये यह संभव नहीं है।  नहीं तो न जाने कितनी निर्भया हर रोज़ इन राक्षशों के हवस का शिकार होती रहेंगी।  सरकार को इनपर कठोर कदम उठाना चाहिए।  

न वकील , न कोर्ट , न तारीख , न फरियाद , तुरंत फैसला।  



Friday, 11 July 2014

Mdhaym warg ke liye ache din!!!

मोदी सरकार का बजट आ चूका है , अच्छे दिनों की शुरुआत भी हो गयी है , मध्यम वर्ग को बजट में राहत दे कर सरकार ने सराहनीय कदम उठाया है।  मंहगाई से उच्च वर्ग को तो कोई फर्क नहीं पड़ता , गरीब वर्ग को बहुत सारी सरकारी सुविधाये प्राप्त है , लेकिन मध्यम वर्ग उसकी मुश्किलें इन् लोगो से बिलकुल अलग है। 
वह सामजिक प्रतिष्ठा कायम रखने के साथ-साथ नयी पीढ़ी को अच्छी शिक्षा देने के लिए अपना रात-दिन एक कर देता है।  समाज की नैतिकता की ज़िम्मेदारी भी इसी वर्ग की है। स्कालरशिप चाहिए तो गरीब वर्ग के लिए बहुत सारी संस्थाए है लेकिन माध्यम वर्ग के बच्चे के लिए कुछ नहीं क्यों की उसका पिता वेतन भोगी है और उसका वेतन गरीबी रेखा से नीचे नहीं है। स्वास्थ्य खर्चे के लिए उसके पास कोई योजना नहीं है। 

इनकम टैक्स , वैट , सर्विस टैक्स , एजुकेशन सेस भरता है , महंगे होम और कार लोन की किश्ते चूका ता है। 
राशन , फल - सब्जी , पेट्रोल , गैस , खरीदने के बाद उसके पास कुछ भी बचता नहीं है।  फिर भी वह जोड़-तोड़ कर ज़िन्दगी को पटरी पर लाने की कोशिश करता रहा है। इनकम टैक्स और होम लोन में छूट से मध्यम वर्ग को जरूर कुछ रहत मिलेगी। इसके अलावा नए बजट में आईआईटी , आइआइम , मेडिकल कॉलेज खोलने से मध्यम वर्ग के युवा वर्ग को भी फायदा होगा।  अतः मध्यम वर्ग कुछ हद तक "फील गुड" महसूस कर सकता है। 


Thursday, 10 July 2014

Kisaan ki unnati toh desh kki unnati !!!

हिन्दुस्तान की आत्मा गाँव में बस्ती है , हमारा मुख्य व्यवसाय कृषि है।
सुजलाम, सुफलाम, शष्य-शामलाम हमारी धरती है।
आज गाँव की और किसान की क्या स्तिथि है ?
सबका अन्नदाता आज भूखा है , आत्महत्या कर रहा है।
गाँव का युवा शहरों की और पलायन कर रहा है।
घर वीरान हो रहे है , खेती बंजर हो रही है।
मज़दूर नहीं मिल रहे है खेती करने के लिए।
यही हाल रहा तो देश दाने-दाने को तरस जायेगा।
हमें दूसरे देशो से अनाज लेना पड़ेगा।
मोदी सरकार के बजट से अगर किसानो को रहत मिलती है ,
कृषि क्षेत्र का विकास होता है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ?
किसानो की समृद्धि से ही देश खुश हाल और आत्मनिर्भर हो सकता है।




Wednesday, 9 July 2014

Gowda ki BULLET gaadi kya chalegi ???

लालू , नितीश , पासवान , ममता , पवन कुमार बंसल की छुक-छुक रेल,
आज सदानंद गौड़ा की बुलेट युग में प्रवेश कर रही है।  देखना होगा बरतीय रेल कितनी तेजी से दौड़ेगी।
रैलो को मोर्डर्न और पैसेंजर फ्रेंडली जरूर बनाया जाए , लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जाये की जो गरीब जनता जानवरो की तरह यात्रा करती है , शौचालय तक में बैठे रहते है।
भोजन बासी , पानी के ज्यादा पैसे देना , असामाजिक तत्वों की दादागिरी , टिकटों की काला बाज़ारी को भी रोकना होगा।

गौड़ा की रेल बजट में बड़े-बड़े लुभावने वादे किये गए है।
यह वादे कही सपना या खयाली पुलाव न साबित हों।
गौड़ा गाडी बुलेट की रफ़्तार से रेल यात्रियों के लिए अच्छे दिन लाएगी।
ऐसी अपेक्षा सभी को है।


Tuesday, 8 July 2014

Aswakshta ka zimmedaar kaun???

मानसून का इंतज़ार हो रहा था, बरखा रानी आ भी गयी,
सब के मन प्रसन्न हो गए लेकिन साथ में समस्याएं भी आ गयी,
गट्ठर - नाले भरने लगे, गंदा पानी जमने लगा, बीमारिया फैलने लगी,
सड़क पर गड्ढे पड़ने लगे, ट्रैफिक जाम होने लगा,
इन सब के लिए जिम्मेदार कौन ? क्या हम नहीं ?

कचरा यहाँ-वह फेकते रहते है, प्लास्टिक को थैलियों के बिना हमारा काम नहीं चलता,
सारा वातावरण प्रदूषित हो रहा है, गाडी की आवश्यकता न हो तो भी प्रतिष्ठा के लिए चाहिए,
स्वयं का घर स्वछ रखे, बाहर भले गंदगी पसरी रहे,
हमें अपना नजरिया बदलना होगा, देश को भी अपना घर समझना होगा,
उसकी संम्पत्ति की रक्षा करनी होगी, अधिकार के साथ-साथ अपने कर्तव्य का भी भान रहना चाहिए,
केवल सरकार ही इन सबके लिए ज़िम्मेदार नहीं, हर व्यक्ति ज़िम्मेदार है।


Garibi ki paribhasha aakhir kya???

कोई कहता ५ रुपये में भर पेट खाना मिलता, कोई कहता ७ रुपये में खाना मिलता,
इतने में तो चाय भी नहीं मिलती, ५ रुपय और ७ रूपए के दिन लद गए
पेट की भूख मनुष्य को जानवर बना देती है, देश का कोई भी नागरिक भूखा नहीं सोना चाहिए
गोदाम मो में पड़ा अनाज सड़ रहा है, रखने की जगह नहीं है
सड़क पर खाने फेके जाते है, कोई एक बार में बैठ कर ५ हज़ार का खा जाता है 
तो किसी को २ जून की रोटी भी नसीब नहीं, इतनी असमानता क्यों??

प्रकर्ति ने हमको इतना दिया है की हर व्यक्ति पेट भर खाना खा सकता है,
पर जमा खोरो की वजह से यह भी मुमकिन नहीं 
सरकार को इस पर सचेत होना चाहिए 
हर व्यक्ति को आवास, भोजन, शिक्षा मिलनी ही चाहिए 
नेता कम से कम अपने बातों से गरीबी का मज़ाक तो न बनाए । 


Monday, 7 July 2014

Naari aur uska career!!!

आज कल नारी और उसका करियर चर्चा का विषय बना हुआ है।  एक बड़े कंपनी में उचे पद पर आसीन महिला की बात को लेकर।  आज महिलाये हर क्षेत्र में कार्य कर रही है , और अच्छी तरह से कर रही है , पर यह बात भी सही है की एक स्त्री को घर और परिवार भी साथ - साथ सम्भालना होता है।  अगर वह नौकरी करती है तो शायद उतना वक़्त अपने परिवार और बच्चो को नहीं दे पाती है पर इस कारण वह अपने करियर, महत्व कांषा, इच्छा, योग्यता सबको दाँव पर लगा दे ? आज बहुत सी महिलाये है जो अपना कार्य और घर दोनों को अच्छी तरह संभाल रही है बिना रूकावट के।  अगर स्त्री काम कर रही है तोह घर की आर्थिक स्तिथि मज़बूत होगी।  वह अपने बच्चो और परिवार को ज्यादा सुख - सुविधा दे पाएगी। 

हाँ उसे सरल बनाने के लिए पुरुषवादी मानसिकता को त्यागना होगा।  दोनों को मिल-बाटकर काम करना होगा।  घर और बच्चो के संभाल ने की जिम्मेदारी दोनों को बखूबी निभानी होगी।  राजनितिक कार्यकर्ता से लेकर राजनैतिक विश्व में अच्छे पद पर आज नारिया कार्य कर रही है। डॉक्टर , इंजीनियर , वैज्ञानिक ही नहीं अंतरिक्ष यात्री के रूप में भी अपनी पहचान बनायीं।  व्यापार जगत भी इससे अछूता नहीं।  अगर औरत केवल घर ही संभालती तोह आज इंद्रिरा गांधी, बेनज़ीर भुट्टो, मीरा कुमार, मायावती, चंदा कोचर ऐसे न जाने कितने महिलाओ के कार्यकलाप से हम परिचित ही न हो पाते।  यह तो कुछ चंद  नाम है पर किसान की औरत से लेकर मछ्वारे तक औरते घर और बाहर दोनों काम करती है।

आज तो  विज्ञानं का युग है।  घंटो के काम मिंटो में हो जाते है।  तो वह क्यों नहीं अपने समय का उपयोग करे। ऐसे भी जब बच्चे बड़े हो जाते है तोह उसके पास कुछ काम नहीं बचता।  वह भी व्यक्ति है।  क्यों न अपने व्यक्तित्व को निखारे। उसकी योग्यता का लाभ समाज को मिले। इंजीनियरिंग, एमबीए,  एमबीबीएस, एलएलबी , आदि की पढाई कर वह घर में बैठे गी तो क्या उसके मन में कुंठा नहीं उत्पन होगी ? ज्ञान को दबा कर नहीं रखा जा सकता।  उसको तो प्रसाद करने का मौका मिलना चाहिए और स्त्री में इतनी शक्ति है की परिवार और करीर में सामंजस्य बनाये रख सकती है , बस उससे थोड़ा सा सहयोग चाहिए।  नारी को सम्मान दिलाने के लिए प्रथम आवश्यकता है की वह स्वयं को नारी होने के अपराध भाव से मुक्त करे।  उसके सामने खुला आकाश है, वह अपनी उड़ान भरने में कोई कसर न छोड़े। 



Sunday, 6 July 2014

Kanya bhrun hatya kyu???

आए दिन अखबारों में, टीवी चैनेलो पर भ्रूण ह्त्या की खबर प्रकाशित होती रहती है।  अब तो एक केंद्रीय मंत्री ने भी कह दिया कि  उनको भी गर्भ में मार ने की सलाह दी गयी थी ।  भ्रूण हत्या के कारणों की तह में जाना होगा। लड़की को ही मार ने की बात क्यों की जाती है? क्या लड़की से माँ-बाप प्यार नहीं करते? संतान बेटा हो या बेटी, दोनों ही प्यारे होते है, लेकिन सामाजिक समस्या आड़े आ जाती है. लड़की के ब्याह की समस्या, दुनिया की बुरी नज़रो से बचा कर रखना, बेटा आवारा निकल जाए तो कुछ नहीं लेकिन लड़की के साथ खानदान और इज़्ज़त जुडी हुई है, बेटी के ससुराल वालो के आगे झुकना, यहाँ तक की राजा जनक भी अपनी दुराली जानकी के स्वयंवर में सही पात्र न मिलने के कारण रो दिए थे।

आज कल बलात्कार की घटनाये बढ़ रही है, उसका एक कारण लिंग अनुपात में असमानता होना।  लड़को के ब्याह नहीं हो रहे है, कुंवारों की फौंज कड़ी है।  लडकिया हर मायने में आगे निकल रही है।  यह उस पुरुष वादी मानसिकता को सहन नहीं हो रहा है।  शादी के पहले पिता और बाद में पति की अवधारणा बदल रही है।  आज लड़की परिवार पर बोझ नहीं बल्कि परिवार का बोझ संभाल रही है।  समाज बदल रहा है, पर फिर भी बेटी के बाप को हमेशा डर लगा रहता है।  चार बेटो की इतनी चिंता नहीं जितना एक बेटी की।  हमारी लाड़ली सुरक्षित है या नहीं, ससुराल कैसा मिलेगा, दहेज़ जुटाना पड़ेगा यही सब चिंता सताती है इसलिए इस संसार में आने से पहले ही उसे मार कर उसकी तथा अपनी तकलीफो का अंत कर देते है। 

अब समय आ गया है, यह धारणा, मानसिकता बदलनी होगी। बेटा ही नहीं बेटी भी हमारा आधार बन सकती है। समाज, सरकार, परिवार, माँ-बाप सभी इस पर विचार करे तो परिवर्तन होगा।  हर जीव को जीने का अधिकार है और उससे यह अधिकार न छीना जाए, बेटी को भी है उतना ही हक़ जितना बेटो का। 

"बेटा  है एक परिवार का दीपक तो  बेटियाँ सर्व समाज को प्रकाशित करती ज्योति "



Tuesday, 1 July 2014

Menhgai ki maar hai sab par bhari!!!

मंहगाई की मार पड़ी है सब पर भारी, क्या अमीर क्या गरीब सब है बेहाल,
सोचा था सरकार बदलेगी, अच्छे  दिन आएंगे, पर कहाँ ?
कांदा-बटाटा और टमाटर रुला रहे है , हरी-हरी सब्जिया देखो  संतोष करो,
फल की तो बात ही छोड़ो, उसकी औकात नहीं।

यात्र की तो भूल ही जाओ, किराया बढ गया दुगना,
रही-सही कसर पूरी  दी मौसम की  बेईमानी ने,
टकटकी लगाये सब बैठे है, क्या किसाम, क्या व्यापारी ?
आम आदमी तो उलझा हुआ है इन उलझनों में,

सोचने की फुर्सत नहीं उसके पास केवल दाल-रोटी के सिवाए,
इंतज़ार है तो केवल अच्छे दिन आने का,
बरसात, भगवान और सरकार,
इनपर निर्भर है आम इंसान।


Sai ko lekkar itna Vivaad kyu???

श्रद्धा और सबुरी यही मंत्र है साईं का, आज साईं को लेकर  इतना बवाल क्यों ?
साईं ने तो अपने भक्तो से कुछ नहीं माँगा, न ही भगवन मान ने की बात की थी,
यह तो श्रद्धा और विश्वास की बात है,

आज ऐसे कितने संत-महात्मा है जो अपने को स्वयंभू भगवन मानते है और लोगो से मनवाते है,
प्रवचन देते है, लाखो करोडो का चढ़ावा चढ़ता है, आखिर यह दिखावा-पाखण्ड क्यों?
ईश्वर तो हमारे मंन और आत्मा में निवास करता है , गुरु या माता-पिता को हम आदर-सम्मान के साथ भगवान के समकक्ष मानते है लेकिन वे भगवान  नहीं बन जाते.

साईं जो की एक फकीर थे,
उनको रूपियो-पैसो का बिलकुल मोह नहीं था,
उन पर आज लाखो-करोडो के चढ़ावा चढ़ते है,
सोने-चांदी के छत्र चढ़ाये जाते है,
क्या  ईश्वर को संपत्ति से प्यार है?

साईं ईश्वर है या नहीं,
यह तो नहीं कह सकते पर एक सर्वधर्म और समभाव की स्थापना करने वाले फकीर अवश्य है.
अतः साईं को इन विवादों के घेरे में मत डालो।