Tuesday, 30 June 2020

करोना काल की शादी

अब तो शादी का जैसा होगा माहौल
वह भी होगा लाजवाब
सबके मुख पर मास्क
नहीं मिलाना हाथ
गले मिलना तो दूर की बात
दो मीटर की दूरी बना कर है रखना

बस पचास घराती और बराती
कम खर्चे में निपटे काम
नहीं शो बाजी
नहीं मनुहार
नहीं बैंड बाजा की आवाज
चुपचाप रचाओ शादी
करो प्रस्थान

अब तो उपहार में देंगे
सेनेटाइजर की बोतलें
सबके लिए डिजाईनर मास्क
परिवार वालों के लिए पी पी कीट
पंडित जी को भी अब धोती कुर्ता नहीं
यही सब तो उनको भी
गंगाजल की जगह सेनेटाइजर का छिड़काव

अब हनीमून का खर्चा भी जाएंगा बच
घर में ही मनाओ हनीमून
बाहर जाना मना है
घर में ही रहो
कोरोन्टाइन का नियम पालन करों

शादी में नहीं कोई धमाल
यह है करोना का प्रताप
सात जन्मों का बंधन निभाना है
तब इस समय सब नियमों का पालन करना है
लोग रहेंगे सलामत
तब शादी भी चलेंगी लंबी
दूल्हा दुल्हन को मिलेगा आशीर्वाद
डेटाल से नहाओ
सेनेटाइजर को लगाओ
चेहरे पर से मास्क मत हटाओ
जोड़ी सलामत रखो

यह सन्नाटा मुझे नहीं भाता

सडकों पर सन्नाटा
पहले जैसा चहल-पहल नहीं
बस इक्के-दुक्के लोग
वह भी मुख ढक कर
यह हो क्या रहा है

समझ नहीं पा रहा
इंसान की यह आदत तो नहीं
वह तो ऐसा नहीं है
कितनों को देखा
पान की पीक से लाल करते हुए
सडक पर पीच पीच थूकते हुए
जहाँ बैठे वहीं थूका
चलते-चलते नाक साफ किया
कहीं भी पोछ दिया

आज तो मुख पर लगाम
नहीं लगा तो भुगतेगा
भयंकर परिणाम
ऐसे ही रहे
यहाँ वहाँ न थूके
बीमारी को निमंत्रण न दे
स्वयं भी स्वच्छ रहें
मुझे भी रहने दे
कल वह पल भी आएगा
मुख भले न ढके
पर थूकना भूल जाए
वह भी मुस्कराए
मुझे भी अपने साथ मुस्कराने दे

उसका और मेरा तो साथ
हर वक्त का
बंदिशो में न रहें
स्वेच्छा से अपना और मेरा ख्याल रखें
मैं तो हमेशा साथ चली हूँ
चलती रही हूँ
बस अब मास्क हटे
खुल कर बतियाओ
चहलकदमी करों
दौड़ लगाओ
मुस्कराओ
तब मैं भी अपने मुसाफिर को देख देख कर हर्षित
यह सन्नाटा तो मुझे नहीं भाता

जिंदगी जन्नत है

जिंदगी जन्नत है
जब खुशगवार हो
हंसना , मुस्कुराना , खिलखिलाना
कितना अच्छा लगता है
पर उसकी भी तो माकूल वजह हो
आप गमगीन हो
तब भी चेहरे पर मुस्कान हो
यह तो संभव नहीं
है तब भी वह असली नहीं
दिल रोता है
तब वह मुख पर भी दिखता है
ऑखे भी उदास होती है
क्योंकि ऑखे भी तो हंसती है
सब भागीदार होते हैं
चेहरा तो दर्पण है मन का
वह दर्द कैसे छुपाए
मजबूरी उसकी
वह होठों पर जबरदस्ती मुस्कान ले आए
कोशिश तो करता है
असफल हो जाता है
दर्द कहीं न कहीं झलक ही जाता है
हंसते हंसते रो देता है
काबू करने का भरसक प्रयत्न
पर सफल नहीं हो पाता
ऑसू सब कुछ कह देते हैं
मन की पीडा बयां कर देते हैं
जन्नत तो उनके लिए
जिन्हें दर्द का पता नहीं
मन मारकर रह जाना
ऑसू पी जाना
तब भी बनावटी जामा ओढे रहना
उसका अंजाम भी तो वैसा
जिससे सब अंजान
मुस्कान दिखता है
दर्द नहीं दिखता
जिस दिन दर्द दिखेगा
कोई उसका हमदर्द बन जाएगा
तब शायद उसको भी एहसास हो
कि कोई अपना है
उसके लिए तो जीना है
जीने का मजा तो तभी
जब साथ साथ चलने वाला हो
तब लगेंगा
जिंदगी जन्नत है

Monday, 29 June 2020

वह एक उधार याद रहा

कभी मैंने किसी से उधार मांगा था
ज्यादा नहीं बस दो सौ
कहीं जाना था
बहुत अजीज था
बहुत विश्वास था
फिर भी नकार दिया
अजीब सा लगा
पर वह वाकया जिंदगी का सबक सिखा गया
पैसा बचाना है
आने वाले दिनों के लिए
भविष्य के लिए
हारी बीमारी के लिए
जरूरतो के लिए
केवल खाना कमाना ही नहीं
साथ में बचाना भी
संकट में कोई मदद नहीं करता
किसी के आगे हाथ फैलाना
कितनी बडी मजबूरी
अपने स्वाभिमान को ताक पर रख देना
ना सुनने पर शर्मदिंगी महसूस करना
मानों कितना बडा अपराध
बहुत पैसा कमा लिया
पर वह एक उधार याद रहा
वह जिंदगी का सबक सिखा गया
पैसा सब कुछ तो नहीं
पर बहुत कुछ है
उसके बिना कोई पूछ नहीं

दोस्ती तो होती थी

तब पैसे नहीं होते थे
इसलिए एक एक पैसे का हिसाब रखा जाता था
कल मैंने खिलाया था
आज तू खिला
कल मैंने तुझे पांच रूपये दिए थे
आज फिटूस कर
इतना ही पैसा है
चल आधा आधा खाते हैं
ऐसा कर एक आइटम तू ले
एक मैं
दोनों ही चख लेंगे
इतना ही जेब खर्च मिलता है
उसी में चलाना है
आज मैं नहीं आता
मन नहीं है
मन नहीं पैसे नहीं होते थे
तब भी खुश रहते थे
वह कटिंग की कटिंग चाय भी लाजवाब होती थी
वह थियेटर की सबसे आगे की रो भी भाती थी
पैसे बचाने के लिए चल लेते थे
फिर उसका ही बडा पाव टेस्ट ले लेकर खाते थे
सैंडविच वगैरह तो जेब पर भारी
वैसे भी सूखा सूखा
उसका क्या मजा
समोसा के अंदर का मसाला
फिर बाद में थोड़ा बचा हुआ कडक कोना
भेलपुरी और शेवपुरी के बाद बची हुई चटनी
चाट चाट कर खाना
पेप्सी की प्लास्टिक को भी चबा डालना
च्यूगम से फुग्गे फुलाना
घंटो इधर-उधर भटक कर घर आना
कभी-कभी चोरी से बंक मारना
फिर घर में नजरें चुराते हुए दाखिल होना
यह सब में एक अपना मजा
जिंदगी जीने का अपना अंदाज
दोस्ती तो होती थी
पर वह पैसे से नहीं
आज पैसा तो है
पर वह वाली बात कहाँ

वह पंगत वाली बात कहाँ

शादी थी रिश्तेदारी में
बडे लोग थे
तब बडा ताम झाम भी था
खाने के स्टाल लगे थे
न जाने कितने
सब पर अलग-अलग व्यंजन
समझ नहीं आ रहा था
कहाँ से शुरू करूँ
स्टार्टर से हुई शुरूवात
मजे ले लेकर पानी पुरी और चाट खाई
बस पेट भर गया
अब क्या खाए
सभी व्यंजन आकर्षक
सब अपनी तरफ बुला रहे थे
लालच का तो कोई अंत नहीं
प्लेट लिया
सब दो दो चम्मच डाला
जगह ही नहीं बची थी और लूं
अब बैठने की जगह तलाश
वह सब भरा हुआ
चलो खडे होकर खाना शुरू किया
सब एक दूसरे  में मिल गए थे
गाजर का हलवा सब्जी में
पनीर भिंडी में
करेला रसगुल्ले में
अब क्या करें
पेट तो पहले से ही फुल्ल
सब गया डस्टबिन में
याद आई वह पंगत
जब सब बैठते थे साथ में
खाना परोसने वाला परोसता था
मांग मांग कर खाते थे
अपनी बारी का इंतजार करते थे
रबडी आने के पहले ही वह चट कर जाते थे
ताकि फिर मिले
जितना खाना होता उतना ही लेते
पत्तल चट कर जाते
पेट पर हाथ फेरते हुए उठते
प्लेट हाथ में लेकर लाईन में नहीं खडा रहना पडता
पूछ पूछ कर खिलाया जाता
भले व्यंजन थोड़े होते
पर स्वाद सबका मिलता
कितना भी बूफे हो जाय
पर वह पंगत वाली बात कहाँ

Sunday, 28 June 2020

चाय और पकौड़ा

चाय और पकौड़ा
क्या तालमेल है इनका
मिल जाएं एक दूसरे से
तो हो जाय
सोने पर सुहागा
घनघोर बरसात में
आती है इनकी याद बडी
जब लगती सावन की झडी
तब मनभावन लगती बडी
गरमागरम पकौडे
उस पर कडक चाय की चुस्कियां
दिन बन जाए शानदार

वैसे तो ये हमेशा से जाने पहचाने
लेकिन आजकल राजनीतिक हलकों में भी जोरो से चर्चा
चाय बेचने वाले का भी रूतबा है बढा
वह भी नेता बनने का ख्वाब देख रहा
वैसे भी उसकी दुकान
पहले से ही है राजनीति का अड्डा
यही से चर्चा शुरू
खत्म होती संसद के द्वार पर

पकौडा भी कम नहीं इतरा रहा
अब कम पढे लिखे क्यों
पढे लिखे बेरोजगार भी बेचे पकौडा
उसका तो भाव बढ गया
वह भी तो एक व्यापार है अच्छा खासा
आजकल हिंदूस्तान की पहचान में
यह दोनों भी शामिल
नाम है उनका
   चाय और पकौड़ा

यही तो है मोबाइल का कमाल

माँ कहो न कहानी
मुझे नींद नहीं आती
कहानी सुनते सुनते तू सो जाता
कहीं सपनों में खो जाता
मेरी कहानी अधूरी ही रह जाती
फिर दूसरे दिन वही जिद
यह सिलसिला न जाने कितने बरसों चलता रहा

आज मै भी वही हूँ
तू भी वही है
कहानी भी बहुत है
पर सुनने वाला कोई नहीं
कहानी सुनना क्या बातें करने का भी समय नहीं
तब कहानी अधूरी रह जाती थी
आज बातें अधूरी रह जाती है
आधा सुना कि मोबाइल बजा
तू उसी में रम गया
मेरी बात भी वैसे ही रह गई
तब अंजाने में होता था
अपनेआप नींद आ जाती थी
आज मजबूरी में

मोबाइल ही सब कुछ
जिंदगी का अभिन्न
गुलाम बना दिया उसने
खाना पीना
उठना बैठना
सोना जागना
नहाना धोना
सब उसके साथ
बिस्तर से लेकर बाथरूम तक
नहीं छूटता उसका साथ
कहानी नींद लाती थी
यह नींद उडाता है
फिर भी है यह सबसे खास
सबसे दूरी बना दी
घर में ही रहकर अंजान
यही तो है मोबाइल का कमाल

Saturday, 27 June 2020

अभाव में भी भाव

अभावों में भी भावों से भरे थे
आज सब भरा है
तब भावों का अभाव है
भावनाएं सिमट गई है
मशीन से हो गए हैं
अब कोई बात का असर नहीं
कौन क्या बोलता है
वह मेरी बला से

जिंदगी हमारी है चाहे जैसे जीए
तब जिंदगी हमारी छोड़ सबकी होती थी
घर में माँ का पीटना
स्कूल में टीचर द्वारा पिटाई
पिता को तो देखते ही सिट्टी पिट्टी गुम
बडे भाई बहन हुए तब तो खैर नहीं
पडोसी और रिश्तेदारो का भी प्रवचन

आज मारना पीटना डांटना अपराध
कोई भी दिल पर कब ले ले
कौन सा कदम उठा ले
तभी तो दिल इतना कमजोर है
कुछ सह नहीं पाते
हमारे तो शरीर पर भी कोडे
दिल पर भी घाव
फिर भी हममें थी सहनशक्ति
आदत हो गई थी इन सबकी
इसलिए अब भी कोई असर नहीं होता
मजबूत बन गए
मार खा खाकर
चोट खा खाकर

क्या उसमें प्रेम नहीं था
माँ मारती थी तो चोट हमसे ज्यादा उसे लगती थी
पिता भविष्य को देखते थे तभी कठोर बने रहते थे
बडा भाई बहन अपनी इच्छा को मार हमारे लिए अनुशासित रहते थे
अडोसी पडोसी और रिश्तेदार भी हमारी कामयाबी से खुश
रिजल्ट हमारा आता था खुश वे होते थे

सब जरूरत पूरी न होती तब भी मलाल न होता
जो मिलता उसी में खुश हो लेते
अंधेरा हो या उजाला
सबमें एक ही समान
बत्ती गुल हो जाती तब भी सब बाहर आ आवाज करते
चिंघाडते
गैलरी में झुंड बना बतियाते
जैसे ही आती
फिर घर में हंसते हुए
दौडते हुए घुसते
सब सामान्य लगता
कुछ तलाशनी नहीं पडती
एंटीना हिलाकर टीवी
बार बार व्यवधान
फिर भी इन्जाय करते
कारण कि तब अभाव तो था
फिर भी भावों से भरे थे

किसी की मुस्कान पर मत जाओ

किसी की मुस्कान पर मत जाओ
जिनसे जान पहचान है
उनका कभी-कभी हाल चाल भी पूछ लिया करो
उनके दिल के अंदर झांक कर देख लिया करो
उनकी ऑखों की नमी को महसूस कर लिया करो
पूछ लिया करो
तुम ठीक तो हो न भाई
कुछ परेशानी तो नहीं है
कुछ कहना चाहते हो
दिल खोलकर कहो
मुझे अपना ही समझो
पराया नहीं
केवल हंसी - खुशी के ही साथी नहीं हम
कभी गम भी बाँट लिया करो
क्या पता तुम्हारी
कौन सी बात उसके लिए मरहम का काम कर जाएं
तुम्हारे सामने अपना दिल खोलकर रख दे
वह सब बता दें
जो छुपाकर सीने में रखा है
उस पर बनावटी नकाब ओढ रखा है
किसी की मुस्कान पर मत जाओ
हर अपने की खैरियत पूछो
उसका हाल-चाल लो
उसके जीवन में क्या चल रहा है
इस पर नजर रखों
केवल खैरियत ही मत पूछो
उसकी हर बात को ध्यान से सुनो
समझने की समझाने की कोशिश करों
इतना तो कर ही सकते हो
अपनों के लिए
दोस्तों और यारों के लिए
कुछ वक्त तो निकाल ही सकते हो

Friday, 26 June 2020

चांद पर जमीन

वह धरती से चांद को देखता था
चांद तारों से बडा प्यार था
रात को झिलमिलाते तारों को निहारा करता था
अपनी दूरबीन लिए घंटों बैठा रहता था
उनके खेल देखता था
अपने आप मुस्कराता और खिलखिलाता था
बहुत प्यारा लगता था
तभी तो चांद पर जमीन ले रखी थी
जाने की तमन्ना
रहने की तमन्ना
सब धरा का धरा रह गया
धरती को ही छोड़ चला
चांद तो अमावस्या को ही छिप जाता है
तुम तो हमेशा के लिए छिप गए
सबको अंधकार में भर गए
अब तो पूर्णिमा कभी नहीं आएगी
ऐसी रिक्तता छोड गए
अपने परिजनों को जीवन को अंधकार कर गए
अब हमारे लिए सब दिन एक समान
चांद देखकर क्या करेंगे
जब तुमको न देख पाएंगे
हमारा तो चांद भी तुम
सूरज भी तुम
हमारा चिराग तुम
तुमसे ही जीवन में थी रोशनी
अब क्या करें
कैसे जीए
किससे व्यथा कहें
बुढापे की लाठी तो चला गया
पंचतत्व में विलीन हो गया
बस याद छोड़ गया
हमको अकेला कर गया

मैं बेचारा सबका मारा

मैं बेचारा सबका मारा
दिन भर भटकता
सबके लिए जुगाड़ करता
मालिक की बातें सुनता
खून पसीना बहाता
शाम को थक कर घर आता
घर आने पर भी हर कोई बात सुनाता
पत्नी की अलग किच-किच
बच्चों की अलग फरमाइश
घर का किराया
बिजली का बिल
मकान मालिक का तगादा
उसमें हर रोज पीसता मैं बेचारा
किसी को दया नहीं
घर पर भी सुकून नहीं
मैं अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाता
फिर भी सब कुछ पूरा न कर पाता
रात दिन चिंता में रहता
कैसे चलेगा ऐसे गुजारा
सबका दोषी मैं
सब सही तो मेरा दोषी कौन ??
किस कारण यह हालात हुए निर्माण
सबकी जड है यह मंहगाई
यह मुझे मार रही है
मेरी ऐसी गत बना रही है
मैं बेचारा सबका मारा
और सबसे कस कर मुझे
मंहगाई ने मारा
हाय मंहगाई । हाय मंहगाई
तूने तो कहीं का न छोड़ा
न घर में शांति न बाहर
मैं बेचारा सबका मारा

रोटी है तो गोल

रोटी बनाना कोई खेल नहीं
रोटी कमाना भी आसान नहीं
घर हो या बाहर
इसी के इर्द-गिर्द घूमती है दुनिया

बनाने में जो मेहनत
वह तो गृहिणी ही जाने
सबको चाहिए रोटी
आटा गूंथने से लेकर सेंकने तक लम्बा प्रोसीजर
वह भी कभी फूली
कभी जली
कभी अधकची
कभी टेढ़ी मेढी
ध्यान न दो हाथ ही जल जाय
यह सब करने के बाद मिलती है खाने को रोटी

रोटी कमाना यह खाने का काम नहीं
पसीना बहाना पडता है
दिन रात मेहनत करनी पडती है
बातें सुननी पडती है
झुकना पड़ता है
कभी-कभी तो स्वाभिमान को ताक पर रख देना पडता है
तब जाकर नसीब होती है रोटी

रोटी है तो गोल
लोगों को भी गोल गोल घुमाती है
घर हो या बाहर
हजार चक्कर लगवाती है

चलो चांद पर घर बसाए

मुझे आसमान छूना है
चांद पर घर बसाना है
तारों के साथ अठखेलियां करना है
बूढी माँ के साथ चरखा कातना है
कभी-कभी चंदा मामा को अपने साथ धरती पर भी लाना है। बच्चों के लिए
वे भी तो मिले अपने प्यारे मामा से
धरती पर तो मामा कम हो रहे हैं
एक या दो का नारा
तब मामा क्या होता है
उसका प्यार कैसा होता है
यह कैसे जानेंगे
अंकल में सब सिमट रहे हैं
मामा , मौसा , बुआ , चाचा
धरती पर रिश्ते कम हो रहे
तब तो चांद ही सही
सैकड़ों तारें
जिनकी गिनती नहीं
चलते हैं साथ साथ
दूर से भी अपने
तब क्यों न पाले ये सपने
चांद पर घर बसाए
दूर से सबको ललचाएं

Thursday, 25 June 2020

कामवाली बाई

आज मेरी सहायिका सबसे बडी
हमारी कामवाली बाई याद आ रही है
अब वह क्यों ??
कोई समझे न समझे
वह बराबर समझती
कोई काम करें या न करें
वह बराबर करेंगी
एक दिन छुट्टी ले लेती
तो लगता मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा
दूसरे दिन आतुरता से उसकी प्रतीक्षा
देर से आने पर कुछ सुना भी देना
पर उसका अपना काम करना
कभी जवाब देना
कभी अनसुनी करना
ज्यादा कभी काम हो जाय
मेहमान आ जाएं
तब भी ना नुकुर नहीं करना
कभी कुछ पुराने कपडे दे दिये
खुशी से फूला न समा एक्स्ट्रा काम कर देना
खाने को दे दो
तब चेहरे पर देखो रौनक
उसका भी अपना घर परिवार
उसके भी बाल बच्चे
वह अपना घर तो संभालती
हमारा भी घर संभालती
एक अजीब सा नाता बन गया उससे
वह अपनी लगती है
तभी तो आज भी हर रोज याद आती है
लाकडाऊन न होता तो दौड़ी चली आती
अब तो प्रतिबंध लगा है
हमारे मन में भी डर समाया है
कहने को तो कामवाली बाई है
पर कामकाजी हो या गृहिणी
सबकी सहायिका है

असली नायक कौन ???

सरहद पर लडते लडते जवान शहीद
कुछ को पता कुछ को नहीं पता
चीनियों को खदेड़ते जान गंवाई
राजनीति हल्कों में हलचल
फिर शांत
श्रंद्धांजलि का दौर चला

एक एक्टर की मौत
किसी से लडते हुए नहीं
अपने आप से अंदरूनी वजह
क्या हुआ क्या नहीं
कारण का लग रहा अनुमान
सबके अपने-अपने तर्क
कर ली खुदखुशी

दोनों घटना कमोबेश एक ही समय
एक्टर की घटना से
पूरा समाज है बौखलाया
सोशल मीडिया पर विचारो की भरमार
मन थोड़ा उलझा हुआ
समझ नहीं आता
असली हीरो कौन ???

वह जिसने अपना जीवन अपने ही हाथों खत्म किया
सबको रोता छोड़ गया
समाज पर एक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया
        या
वह जो सीमा पर शहीद हुआ
देश को सुरक्षित कर गया
अपने लिए नहीं
देश के लिए बलिदान दे दिया

नायक तो दोनों ही
एक परदे पर
एक असल जिंदगी में
कौन किस पर भारी
यही सोचना बाकी

डर लग रहा है

आज मन व्यथित है
मुझे कुछ तकलीफ है
ऐसी बात नहीं है
किसी दूसरे की तकलीफ पीडा दे रही है
आज मेरी मालकिन को वृद्धाश्रम ले जाया जा रहा है
जाते समय मुझ पर हाथ फेरा
ऑखों में ऑसू भर बिदा ली
मैं मूक खडी दर्शक थी
सब खुश थे
गाडी में बैठा ले गए
अब मुझे भी डर लग रहा है
अभी तो मैं फायदेमंद हूँ
दूध , गोबर सब देती हूँ
एक समय ऐसा आएगा
ये मुझे भी कहीं छोड़ आएंगे
किसी कसाई के हाथ बेच देंगे
गौ रक्षा सुना है
पर अब विश्वास नहीं है
वह भी माता
मैं भी गौ माता
जब जन्मदायी माँ का यह हाल
तब मेरी क्या बिसात
जब तक दुधारू
तब तक ही कीमत
अन्यथा बेकार द्वार पर खडी
मुझे हटाया जाएंगा
कहीं छोड़ा जाएंगा
यही मानव स्वभाव है
जब तक लाभ तब तक पूछ
अन्यथा तू कौन और मैं कौन

Wednesday, 24 June 2020

सब्जी बेचता शिक्षक

पहले पढाता था
आज सब्जी बेचता हूँ
तब ब्लेक बोर्ड पर गुणा भाग सिखाता था
आज सब्जी का हिसाब किताब करता हूँ
पहले बच्चों के सवाल सुलझाता था
आज ग्राहकों से माथा पच्ची करता हूँ
पहले बडी बडी बातें करता था
जीवन दर्शन समझाता था
आज सबकी बातें सुन लेता हूँ
सही बोले तब भी
गलत बोले तब भी
व्यापार करना है
तब सुनना है
बच्चे नहीं जो चार बात सुना दी
लेक्चर झाड दिया
पहले कुर्सी पर बैठता था शान से
अब गली गली भटकता हूँ
पहले बच्चे आते थे
अब मैं जाता हूँ
सारा ज्ञान धरा रह गया
जब पेट भरने का सवाल आया
परिवार चलाने का प्रश्न उठा
तब जो कर सको वही करों
सब्जी बेचो
ठेला लगाओ
असली जीवनदर्शन अब समझ आ रहा है
करोना के कारण कुछ भी करना है
नहीं तो आजीविका कैसे चलेगी
पढाना हो या सब्जी बेचना
सबका कारण एक ही
पैसा कमाना

वक्त का इम्तिहान

हम सब्र करते रहे
वक्त इम्तिहान लेता रहा
अपनी ही रौ में बहता रहा
न उसने हमारी फिक्र की
न हम उसको बदल पाए
कभी उसने हमारी न सुनी
वही करी जो उसे करना था
हम न झुके
हम न थमे
बस चुपचाप चलते रहे
अपने आप से लडते रहे
इम्तहान देते रहे
कभी पास कभी फेल
यह सिलसिला चलता रहा
दामन में फूल कम
कांटे ही ज्यादा दिया
तब भी हम हारे नहीं
उसके साथ चलते रहे
आज भी चल रहे हैं
आज भी वह नित नए इम्तिहान ले रहा है
हम बस परीक्षा पर परीक्षा दिए जा रहे हैं
पर इसकी परीक्षा खत्म हो ही नहीं रही
कितना सब्र करें

बेखबर रहना मे अपना मजा

बेखबर रहना
इसमें भी अपना मजा
सब खबर लेकर क्या करना
इसकी उसकी
फालतू के दिमाग की माथाफोडी
हम अखबार थोडे ही है
सारी खबर की जानकारी जरूरी हो
हमारा अपना काम चलता है न
हम सुकून से है न
बस और क्या करना है
इसमें - उसमें क्या रखा है
पहले पहल लगता था
हर चीज से बेखबर रहे
जो हो रहा होने दिए
सब ईश्वर की मर्जी
हम क्या कर सकते थे
अब लग रहा है
ठीक ही किया
जैसा चल रहा है
चलने दो
न भूत हाथ में
न भविष्य हाथ में
तब सोचकर
सचेत कर
दुख के सिवा कुछ नहीं
तब बेखबर ही रहे
जिंदगी स्वयं ही बिना खबर दिए
नित नए खेल दिखाती है
हर दिन आजमाती है
हम तो मूक दर्शक
कभी ध्यान रहा
कभी नहीं रहा
कभी दाद दी
कभी उदास हो लिए
बस वह अपना काम करती रही
हम बेखबर बने रहे

समय खेल रहा है खेल

20 - 20 का खेल शुरू है
आधा साल गया आधा बाकी है
अब तो समय है इंटरवल का
अब तक की जो पिक्चर है
वह जैसी भी चली हो
उसका अंत तो सुखद हो
आधे तक तो तकलीफ और परेशानी
आशा है अब धीरे-धीरे कम होती जाएंगी
फिर बाहर निकलेगे
पहले जैसे घूमेंगे
सब काम काज व्यवस्थित होगा
जीवन पटरी पर आ जाएंगा
सकारात्मक दृष्टिकोण
अंत भला तो सब भला
सबको इंतजार है
ट्वंटी ट्वंटी का खेल
समय रहा है खेल
यह भी गुजर जाएंगा

उसे डिग्री नहीं जिंदगी कहते हैं

तुमने किताबें पढी है
डिग्री हासिल की है
मैं ज्यादा पढाई नहीं की
बडी बडी डिग्री नहीं हासिल की
पर तुमसे कहीं बेहतर हूँ
हार नहीं मानता
दुनिया की रेलपेल में शामिल हूँ
हर चीज से लडना है
यह भी मालूम है
यहाँ सब कुछ ऐसे ही हासिल नहीं होता
चट्टानो को काटकर अपने लिए रास्ता बनाना पडता है
तमाम उबडखाबड को पाटना पडता है
तब भी कब कौन सी दुर्घटना घट जाय
उसका सामना करने के लिए तैयार रहना पडता है
यहाँ कोई राह में फूल नहीं बिछाता
हाँ कांटे चुभोने वाले मिल जाएंगे
जिंदगी एक जंग है
वह लडना पडता है
बिना हथियार के
अपनी ढाल खुद बनना पडता है
अपनी रक्षा खुद करनी है
चक्रव्यूह को अकेले ही भेदना है
अंदर जाना भी है
बाहर भी सफलतापूर्वक निकलना है
अब किस तरह निकले
यह तो आप पर है
डर कर अंदर ही रहें
अंदर जाए ही नहीं
सबको हटाकर मजबूती से बाहर आए
वह तो करना पडता है
यह सब किताबों में नहीं
न वह सीखा सकती है
बिना किताबों के जो सीखा जाता है
उसे डिग्री नहीं
जिंदगी कहते हैं

Tuesday, 23 June 2020

बस यादों में रह जाएंगी

माँ बहुत बूढी हो गई है
तब भी मेरी चिंता उन्हें कम नहीं हुई है
मैं ठहरी बचपन से ही आराम पसंद
पागल सनकी सी
न चालाकी न होशियारी
क्या हुआ कैसे हुआ
पर जीवन कट ही गया
आसानी से आराम से
हर परेशानी को हर ली
मेरे भाग्य को लिख दिया
अपनी मेहनत से मुझे संवार दिया

जीवन भर दूसरों के लिए किया
कभी अपने बारे में न सोचा
आज वह थक गई है
तब भी उत्साह कम नहीं हुआ है
बहुत कुछ अभी करना है
पर जीवन की भी एक सीमा है
कितना चलेगा
चलते चलते तो वह भी थक जाता है
ममता की मूर्ति
कर्मठता की जीती जागती मिसाल
है मेरी माँ
माँ बहुत बूढी हो गई है

अब उन्हें आराम चाहिए
सुकून चाहिए
पर वह जीते जी कहाँ नसीब
देखा ध्यान से बहुत दिनों के बाद
अब बहुत कमजोर
न जाने कितने दिन की मेहमान
ऑखों में ऑसू भर आए
जिसने हर पल साथ निभाया
कभी मंझधार में नहीं छोड़ा
वह भी एक दिन चली जाएंगी
चुपके चुपके दबे कदमों से
कोई आएगा उन्हें ले जाएंगा
वह बस यादों में रह जाएंगी

मैं दौड़ी दौड़ी चली आती

मैं यहाँ तू वहाँ
बीच में सारा जहां
किस किसको जवाब दूं
किस किसको समझाऊँ
मेरा दिल अब भी है
तेरे लिए धडकता
तू तो चला गया
मुझे पीछे छोड़ गया
कुछ जज्बातो के साथ
कुछ यादों के साथ
जो जेहन में अभी भी है
तुम खो गए
रूपहली दुनिया में
एक कदम आगे बढ गए
मेरा साथ छोड़
तुमको नए साथी
नए हमदर्द मिले
तुम खो गए अपनी दुनिया में
किसको बताती
किससे गिले शिकवा करती
जब समझने वाला ही समझ न पाया
मुझे बीच राह में अकेला छोड़ दिया
मैं भी क्या करती
अपने को संभाला
जो इतना आसान नहीं था
नई राह तलाश कर ली
पुराने को भूला आगे बढ ली
पर सोचा न था
तुम इतना बडा कदम उठाओगे
दुनिया ही छोड़ जाओगे
एक आवाज तो दी होती
दिल से पुकारा तो होता
मैं दौड़ी दौड़ी चली आती