Saturday, 29 April 2023

जीवन का सार

यह संसार कागद की पूडिया 
बूँद पडे गल जाना है
यह संसार झाड और झाखर 
आग लगे बरि जाना है
यह विचार है कबीर के

अरे रहने दो  हे देव
मेरा मिटने का अधिकार 
नहीं चाहिए स्वर्ग सुख

संसार माया जाल है
यह हम सुनते हैं 
जानते भी हैं 
फिर भी इस मायाजाल में  जकड़े रहना हमें भाता है
हम मुक्त नहीं होना चाहते 
अच्छा लगता है
हम विदुर जैसे महात्मा नहीं 
धृतराष्ट्र जैसा बनना चाहते हैं 
हम दशरथ जैसा बनना चाहते हैं 
पुत्र वियोग में जान देना 
वह चलेगा 
हम उद्धव नहीं बनना चाहते 
साकार प्रभु को चाहते हैं 
प्रेम में पागल राधा महान लगती है 
न जाने कितनों से हम बंधे हैं 
माता - पिता , भाई-बहन 
पति-पत्नी,  पुत्र- पुत्री 
इनके अलावा और बहुत से रिश्ते 
इसी मायाजाल में जकड़ 
हम कभी हंसते हैं 
कभी रोते हैं 
कभी-कभी उदास और निराश होते हैं 
अवसाद में भी चले जाते हैं 
दुख- सुख को अनुभव करते हैं 
कुछ भी हो जिंदगी से बहुत प्यार करते हैं 
न भी करें तो अपनों से बहुत प्यार करते हैं 
सोचते हैं 
हम न होंगे तो इनका क्या होगा
हम खुदा नहीं है 
होनी को रोक भी नहीं सकते 
फिक्र तो होगी ही 
और यह कोई दबाव में नहीं 
हमारी अपनी इच्छा 
जीवन का सार ही यही है ।

Thursday, 27 April 2023

गहराई

मैं बहुत गहरा हूँ 
तभी अकेला हूँ 
कोई मुझमें उतरना नहीं चाहता
डरते हैं 
कहीं डूब न जाएँ 
कहीं भंवर में फंस न जाएँ 
किनारे पर तो आते हैं 
दूर से देखते हैं 
खेलते हैं 
मैं उनके पास दौड़ कर आता हूँ 
तो पीछे हट जाते हैं 
मेरा मन बहुत विशाल है
पानी ही पानी 
वह किसी काम का नहीं 
विशालता के बावजूद 
न दे सकता हूँ 
न मदद कर सकता हूँ 
दिन भर जलता हूँ 
वाष्प बन कर उडता हूँ 
पानी बन कर बरसता हूँ 
नाम मेरा नहीं 
बरखा का होता है
नदी - तालाब का होता है
मुझे कोई महत्व नहीं देता 
ऐसी गहराई का क्या
जिसमें कोई उतरे ही नहीं। 

समाज और हम

क्या शहर है यह मुंबई 
इसकी अपनी पहचान है
फर्श से अर्श तक खडे करने का माद्दा रखती है
हाँ एक चीज खलती है अपनापन 
सब कुछ औपचारिक 
एक ही सोसायटी में रहते हुए सालों साल बीत जाते हैं 
किसी को किसी के बारे में पता नहीं 
बोलना तो दूर मुस्कान भी कभी-कभी नहीं 
यह भीड का अकेलापन खलता है
क्यों कोई किसी के नजदीक नहीं आना चाहता
दूरी बनाएं रखते हैं 
हर कोई अपने में बिजी
रात - दिन जागने और दौड़ने वाली मुंबई 
ऐसा तो नहीं भावना शून्य हो गई है
ऐसा भी हो कि प्राइवेसी चाहते हो
दखलंदाजी पसंद नहीं 
दीवाली और होली 
यहाँ भी मनती है
धूमधाम से
मन रिक्त 
उसी तरह से राष्ट्रीय त्योहार मना लेते हैं 
झंडा फडका कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं 
सामाजिक प्राणी हैं हम 
समाज बिना हमारा वजूद कहाँ 
तब थोडा सा सामाजिक बन जाया जाएं। 

मैं पुरूष हूँ

मैं पुरूष हूँ
यह बात तो सौ प्रतिशत सत्य
पर मैं और कुछ भी हूँ
एक पुत्र हूँ
एक भाई हूँ
एक पति हूँ
एक पिता हूँ
और न जाने क्या - क्या हूँ
मेरे पास भी दिल है
मैं कठोर पाषाण नहीं
जो टूट नहीं सकता
मैं बार बार टूटता हूँ
बिखरता हूँ
संभलता हूँ
गिरकर फिर उठ खडा होता हूँ
सारी दुनिया की जलालत सहता हूँ
बाॅस की बातें सुनता हूँ
ट्रेन के धक्के खाता हूँ
सुबह से रात तक पीसता रहता हूँ
तब जाकर रोटी का इंतजाम कर पाता हूँ
घर को घर बना पाता हूँ
किसी की ऑखों में ऑसू न आए
इसलिए अपने ऑसू छिपा लेता हूँ
सबके चेहरे पर मुस्कान आए
इसलिए अपनी पीड़ा छुपा लेता हूँ
पल पल टूटता हूँ
पर एहसास नहीं होने देता
मैं ही श्रवण कुमार हूँ
जो अंधे माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला था
मैं ही राजा दशरथ हूँ
जो पुत्र का विरह नहीं सह सकता
जान दे देता हूँ
माँ ही नहीं पिता भी पुत्र को उतना ही प्यार करता है
मैं राम भी हूँ
जो पत्नी के लिए वन वन भटक रहे थे
पूछ रहे थे पेड और लताओ से
तुम देखी सीता मृगनयनी
मैं रावण भी हूँ 
जो बहन शूपर्णखा के अपमान का बदला लेने के लिए साक्षात नारायण से बैर कर बैठा
मैं कंडव  त्रृषि हूँ जो शकुंतला के लिए गृहस्थ  बन गया
उसको बिदा करते समय फूट फूट कर रोया था
मेनका छोड़ गई 
मैं माॅ और पिता बन गया
मैं सखा हूँ 
जिसने अपनी सखी की भरे दरबार में चीर देकर लाज बचाई
मैं एक जीता जागता इंसान हूँ
जिसका दिल भी प्रेम के हिलोरे मारता है
द्रवित होता है
पिघलता है
मैं पाषाण नहीं पुरुष हूँ

Tuesday, 25 April 2023

भीष्म और वासुदेव

आज मैं हरिहौ शस्त्र गहाऊ 
यह प्रतिज्ञा महामहिम भीष्म ने की थी
वे वासुदेव जो प्रतिज्ञा में बंधे थे
महाभारत में शस्त्र नहीं उठाऊगा 
उन्होंने उठाया 
कारण अपने भक्त का मान रखना था
वे ईश्वर थे 
सुदर्शन चक्रधारी थे 
फिर भी 
वही भीष्म थे 
जो आजीवन प्रतिज्ञा में बंधे रहें 
अन्याय करते रहें 
देखते भी रहें 
काशी नरेश की कन्याओं के साथ वह अन्याय ही था 
द्रौपदी चीर-हरण में मुक दर्शक बने रहना 
अंधे धृतराष्ट्र का साथ देना 
हस्तिनापुर के प्रति कर्तव्य निभाते निभाते वे भूल गए 
उस भीष्म प्रतिज्ञा का क्या फायदा 
जो अधर्म का साथ दे रहा था 
प्रतिज्ञा में तो केशव भी बंधे थे
भीष्म भी बंधे थे 
लेकिन एक ने तोड़ा 
एक तोड ही नहीं पाया
शरशैय्या पर लेट कर देखते रहें 
शायद यह भी सोच रहे होंगे 
कहीं यह मेरे ही कर्मों का फल तो नहीं 
महाभारत के युद्ध का कारण मैं ही तो नहीं 
प्रतिज्ञा ऐसी भी न हो
जो विनाश का कारण हो ।

जननी - जन्मभूमि

जननी , 
जन्मभूमि स्वर्ग  से बढकर है
आज इन दोनों माता की उपेक्षा हो रही है
उनका शोषण हो रहा है
भावनिक , मानसिक  
दोहन हो रहा है पृथ्वी का
हम अपना लाभ देख रहे हैं 
Take for granted 
ले रहे हैं 
माता तो ममता से भरपूर है
सब न्योछावर कर रही है
 यह सोचने को जरूरत है
वह कितना देंगी 
वह भी तो खत्म हो रही है देते देते
हमारी लालसा समाप्त नहीं हो रही
माता का फर्ज है
हमारा नहीं है क्या??
यह हम क्यों भूल रहे हैं 
माता रौद्र रूप धारण कर ले
हमको छोड़ दे
तब कभी सोचा है
हर चीज सीमा में ठीक है
सीमा से बाहर नहीं 
यह बात इस पीढी के हर व्यक्ति को समझनी पडेगी
तभी जीवन कल्याणकारी और सुखद होगा ।

भविष्य कैसा ???

आज वह ताकत नहीं रही
शरीर में वह चुस्ती फुर्ती नहीं रही
भविष्य में क्या होगा
यह अनिश्चित है
उम्र बढती जा रही है
वैसे वैसे शक्ति भी क्षीण होती जा रही है
अब भी मन ने हिम्मत नहीं हारी है
अभी भी किसी पर निर्भर नहीं हूँ 
आज भी अपने मन का करती हूँ 
हर इच्छा पूरी कर सकती हूँ 
कोई बंधन नहीं 
जो खाना है 
जो पहनना है 
बंदिशे नहीं 
पर यह समय हमेशा नहीं रहेगा
यह विदित है
यह तब तक जब तक वे
वे नहीं तब सब कुछ होते हुए लाचार 
दूसरों से उम्मीद होती है
उन पर अधिकार नहीं 
बात मानना पडता है मनवाना नहीं 
पिता  की राजकुमारी 
पति की रानी
बस यही दो लोग है
जहाँ और जिस पर चलती है मनमानी 
और तो बस कहने के हैं 
कहाने के हैं 
एक जन्म देता है
दूसरा जन्मों का रिश्ता निभाता है ।

रक्षा का धागा

भाई क्या बहन क्या
कौन सा नाता- रिश्ता 
सब अपने-अपने में मगन
वह अधिकार नहीं रहा 
लडने - झगड़ने की वजह नहीं रही
सब औपचारिक रह गया 
उस हक से न किसी के यहाँ जाया जाता
पूछना पडता है
कोई फ्री है क्या 
आ  सकते हैं क्या
आवभगत की जरूरत नहीं होती 
प्रेम ही काफी है
पर जब चेहरा गवाही देता हो
वह खुशी नहीं झलकती आवाज में 
वह उत्साह नहीं दिखता
तब लगता है 
जबरदस्ती आ गए 
रिश्ता मन से निभे दिमाग से नहीं 
दिमाग तो हिसाब किताब करता है
मन नहीं 
मन पर भावुकता का साम्राज्य रहता है
जब भावना न बची हो
तब वह मिठास कहाँ 
रक्षाबंधन एक औपचारिकता मात्र रह गई है
एक धागा जो जोडता था
वह कमजोर हो रहा है
टूट रहा है
टूटन को सब महसूस भी कर रहे हैं 
प्रयास तो सबका हो
टूटने और कमजोर होने से
घिसने से बचाना 
अभी बहुत कुछ बाकी है 
खत्म नहीं हुआ है 
तब कस कर पकड़ लो 
ऐसा न हो कि बाद में जुड ही न पाए 
यह पावन त्योहार दिखावा न रह जाएं 
इंतजार जिसका सदियों से रहता हो
वह इस रिसोर्ट और  माॅल संस्कृति में खो न जाएँ 
मोबाइल और लैपटॉप में कैद न हो जाएं 
व्हट्सप और फेसबुक की शोभा न बन कर रह जाएं 
फोटों नहीं दिल के धडकन में हो 
एक नाल से एक माँ से जुड़ा यह खून का रिश्ता 
इस जन्म में तो खत्म नहीं होगा
तब फिर उसकी कदर भी करें। 

रिश्ता

अभी रिश्ता मरा नहीं है
पूरा सूखा नहीं है
अभी भी कुछ गीलापन बाकी है
हरियाली बाकी है
जडे अभी उखड़ी नहीं है
पकडे हुए है
तब समय रहते उसकी सिंचाई कर ली जाएं 
थोड़ा खाद - पानी डाल दी जाएं 
प्रेम  , स्नेह , समझदारी , समझौता 
ऐसे कुछ टिप्स अपना लिया जाएं 
पेड सूखने के पहले ही उसे बचा लिया जाएं 
रिश्ते मुरझा कर गिर जाएं 
उससे पहले उसे संभाल लिया जाएं 
तब जीवन में रंगों की बहार आ जाएंगी। 

Monday, 24 April 2023

मम्मी की आवाज

मम्मी,  मम्मी,  मम्मी 
कानों में हर दम यही आवाज गूंजती है 
किसी ने अपनी माँ को पुकारा
लगता मुझे पुकार रहा है 
देखती हूँ तो 
मुस्कराकर रह जाती हूँ 
बच्चों की आवाज रच बस गई है
बरसों बीत गए 
बच्चे बडे हो गए 
उनके बच्चे भी हो गए
जिस आवाज को सुनकर कभी-कभी गुस्सा आ जाता था
क्या हर वक्त मम्मी मम्मी लगा कर रखा है
आज वह सुनने को तरस जाती हूँ 
गलती किसी की नहीं है
समय का तकाजा है 
सब काम में व्यस्त हैं 
बेवजह कभी भी फोन नहीं लगा सकते
जो आवाज चारों ओर इर्द-गिर्द होती थी
वह कभी - कभार सुनने को मिलती है
क्या है 
क्या बार - बार फोन करती हो
इस डांट को सुनकर भी मन को सुकून मिलता है
अभी तुम नहीं समझोगे 
यह तो बाद में समझ आता है
माँ- बाप का प्यार क्या होता है 
उनकी चिंता 
उनकी टोका टोकी 
शायद इसके लिए तरस भी जाओगे 
बहुत भाग्यशाली होते हैं 
जिनकी खोज खबर लेने वाला कोई होता है
पिता का सर पर हाथ
माँ का दुलार 
वह ताकत और हिम्मत है
जो बहुमूल्य है
वह किसी और कीमत पर हासिल नहीं होती
बच्चे भी उनके लिए वरदान है 
जीने का अर्थ देते हैं 
अपने लिए क्या करना
बच्चों के लिए करना
यह तो वही जानता है
जो माता-पिता हो ।

किताब की कहानी

किताबें तो हमने बहुत पढी है
उन किताबों में जो जिंदगी है उनको भी समझा है
फिर भी ऐसा लगता है
हम लोगों को पढने में नाकामयाब रहें 
समझ नहीं पाते 
कौन सही कौन गलत
कब कौन किस करवट बदलेगा 
यह भी तो नहीं पता
पता नहीं किस किताब में लिखा होगा
लोगों को कैसे पढे 
कौन अपना कौन पराया 
ऐसा महसूस होता है 
कहानी से लोग नहीं 
लोग से कहानी बनती है ।

माँ बिना सब बेमानी

माँ होती तो ये होता 
माँ होती तो वो होता 
मैं यह कहती
मैं वह कहती 
जब मन होता रूठ जाती
जब मन होता झगड़ लेती
जब मन होता बच्ची बन जाती 
जब मन होता बडी बन डांट लगाती 
अपनी बात मनवाती 
ढेरों शिकवा शिकायत करती
नाज नखरे करती
मनुहार करवाती 
यह अच्छा नहीं वह अच्छा नहीं 
उनके खाने में नुक्स निकालती
पर दूसरे के खाने में स्वाद भी नहीं मिलता
वह अच्छी नहीं है 
मुझे यह नहीं करने देती 
वह नहीं करने देती 
पर उसके सिवा दुनिया में कोई अच्छा ही नहीं 
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं 
उसकी जगह तो भगवान को भी न दूं
उसी से जन्नत है
उसी से रौनक है
जिंदगी में मिठास है 
हक भी उसका ज्यादा है
नौ महीने तो उसके गर्भ में ही दुनिया है
सब से परिचय तो बाद में 
क्या नहीं कर सकती वह 
यह सोच बच्चों की
सुपर वुमेन है वह 
जब वह ही नहीं तब कुछ नहीं 
मान करने वाली ही नहीं रही 
तब मान कोई मायने नहीं 
मान तो माँ वाला हो
निस्वार्थ हो
प्रेम और स्नेह से लबरेज हो
दिखावटी न हो
ऐसा तो माँ से ही संभव है
जब वह ही नहीं 
तब सब बेमानी ।

Sunday, 23 April 2023

परिवर्तन अवश्यभांवी है

बच्चे चले गए 
हम अकेले रह गए 
किसी दूसरे शहर में 
किसी दूसरे देश में 
किसी दूसरे राज्य में 
हमें क्यों लगता है 
यह गलत है
क्या हम भी तो यही नहीं चाह रहे थे
बच्चे आगे बढे
सर्वागीण विकास करें 
कहीं न कहीं हमारे मन में भी
उनके बच्चे विदेश में 
हमारे क्यों नहीं??
बुरा क्या है
वक्त की मांग है
कब तक सीने से चिपटाकर रखेंगे 
जन्म दिया है 
कोई कर्जा नहीं 
जिसकी वे भरपाई करें 
पंख हमने दिया है उडान उनकी हो
हम देखे उडते हुए 
मजबूरी हमारी है 
मजबूरी उनकी भी है
यह समझना पडेगा 
संज्ञान सबको लेना पडेगा
प्यार की जंजीरों में जकड 
इमोशनल ब्लेक मेल कर
समाज की चिंता कर
राह में रोड़े  बने
यह तो न्यायोचित नहीं 
हमने भी तो कभी अपना गाँव- घर छोडा था
तभी तो आज इस मुकाम पर हैं
किसी भी चीज से बंधे रहना
वह घर हो शहर हो गाँव हो राज्य हो देश हो
परिवार हो दोस्त हो पडोसी हो
भाई- बहन हो माँ- बाप हो , बच्चे हो
कब तक पकड़ कर रहेंगे 
सृष्टि का नियम है
परिवर्तन अवश्यभांवी है 
बस प्रेम और विश्वास हो
अपनों की जिम्मेदारी का एहसास हो
तब भी ठीक है
एक छत के नीचे न सही
दिलों में दूरी न हो
सुख - दुख में उपस्थिति हो
क्या इस नये विकास के युग में इतना ही पर्याप्त नहीं  ।

Friday, 14 April 2023

मैं कैसी हूँ

मुझे सलीका नहीं 
शौक नहीं अच्छे गहनों- कपडों का 
शौक नहीं ब्रांडेड वस्तुओं का 
शौक नहीं  साज - श्रृंगार का
बिंदी , चूडियां,  बिछिया 
यह सब मायने नहीं रखती 
सुहाग की निशानी ये हैं 
ऐसा मैं नहीं मानती 
आवाज मेरी कोयल जैसी मीठी नहीं 
बनावटी बात मुझे पसंद नहीं 
दिखावा करना मुझे भाता नहीं 
चुगली - निंदा से मैं कोसों दूर 
चापलूसी - मिन्नते मेरी फितरत में नहीं 
कपट - छल करना आदत में शुमार नहीं 
फिर भी मैं जो हूँ जैसी भी हूँ 
वैसे ही ठीक हूँ 
एक साफ - सुथरा मन है
धोखेबाजी - फरेबी  नहीं है मुझमें 
ताना और व्यंग नहीं मारती
सबसे प्रेम से पेश आती हूँ 
किसी को कम नहीं आंकती 
छोटा हो या बडा 
गरीब हो या अमीर 
कदर करना जानती हूँ 
शब्द दिल से निकलते हैं 
जलन नहीं है किसी से 
जो है उसी में संतुष्ट 
ईश्वर की भक्ति भी साधारण रूप से ही
कोई ताम झाम नहीं 
शेखी नहीं बघारती 
घमंड तो मुझे छू भी नहीं गया
हाँ ऐसे में भरपाई भी करना पडता है
कोई मुझे ना समझ तो कोई मुझे बेवकूफ समझता है
मुख पर भी कुछ भी बोल देते हैं 
ऐसा नहीं जवाब देना नहीं आता
लिहाज करती हूँ 
किसी का दिल नहीं दुखाना चाहती हूँ 
अपने से कोई गिला - शिकवा नहीं 
अपने बाबूजी की बात याद है
मैंने जिंदगी में धोखा खाया है पर किसी को धोखा दिया नहीं 
सामान्य,  सीधा और सच्चा यह कमजोरी नहीं होती ।

वृक्ष बनना इतना आसान नहीं

पेड़ों की भी अपनी भाषा होती है 
संवेदना होती है
गम और खुशी का माहौल उन्हें भी एहसास होता है
वो भी झूमते हैं 
उन पर भी समय का असर होता है
कभी पतझड़ तो कभी वसंत
बालपन से वृद्धावस्था का सफर उनका भी होता है
उन्हें भी संरक्षण,  देखरेख की जरूरत होती है
अगर सब उचित मिला तो वे भी विकास करते हैं 
ऊचाईयां नापते हैं
नहीं तो वे भी बौने रह जाते हैं 
सूख जाते हैं 
खाद - पानी मिलता रहें उचित मात्रा में 
सूर्य का प्रकाश मिले 
शुद्ध हवा मिले 
तब देखो उनका निखार 
ऐसा नहीं कि उन पर परेशानी नहीं 
तपन , ठंड , तूफान  , अंधड का सामना उन्हें भी करना पडता है
उनके ऊपर भी कुछ लोगों की दृष्टि रहती है काटने के लिए 
फिर भी वृक्ष अपना सब कुछ देता रहता है 
बांटने में कोई कोताही नहीं करता 
वृक्ष बनना भी आसान नहीं 

सर्वे सुखांत भवं

सब सुखी तो हम भी सुखी
ईष्या और जलन यह तो मानव स्वभाव
कोई भी इससे अछूता नहीं
प्रतिस्पर्धा यह हमारी फितरत
उसको सब कुछ तो हमें क्यों नहीं
हमारा क्या अपराध
हमारा ही भाग्य ऐसा क्यों
ईश्वर को भी दोष देते
किसी की भी उन्नति हमें खटकती
हम ऊपर से भले बधाई दे
मन में तो वह बात नहीं रहती
ऐसा इस कारण कि
हम कहीं न कहीं कम हैं

पर जरा सोचकर देखे
अगर हमारा पडोसी सुखी रहेगा
तभी हम भी चैन से रह पाएंगे
अगर रिश्तेदार संपन्न हो तो
सारी परेशानी से छुटकारा
न मांगने की झंझट
न लेनदारी न देनदारी
पडोसी बीमारी मुक्त तो हम भी निश्चिंत
वह खुश तो हमें भी खुश रखेगा
नहीं तो रोज झगड़ा - झंटा

आज इस महामारी में हम प्रार्थना कर रहे हैं
यह हमारे पडोसी क्या 
हमारे मोहल्ले में भी न आए
मोहल्ले क्या 
प्रान्त क्या
देश में भी न आए
देश क्या वर्ल्ड में भी न आए
जहाँ है वहाँ से रफा दफा हो जाए
कहा गया है न

ऊ सर्वे  भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

हिन्दी भावार्थ:
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।

जनरेशन का रवैया

हमारी सोसायटी में बगीचा है 
वहाँ बच्चों के खेलने के लिए झूले , घुसरगंडी इत्यादि भी है
सीनियर सीटिजन और बडों के लिए भी कुछ झूले हैं 
वाकया कल का ही है
मैं और मेरे पति झूले पर बैठे हुए थे
तभी दो बच्चियाँ आई और पूछने लगी 
आप लोग कितनी देर बैठोगे 
हमने कहा कि कुछ समय 
फिर सोचा जाने दो बच्चे हैं 
पतिदेव उठ गए 
बाहर से कुछ लाना था कहा तुम लोग बैठो 
उनके जाने के बाद उन लडकियों ने मुझे पूछा 
आप कब उठेंगी 
मैंने कहा अंकल आ जाएंगे पांच दस मिनट में तब
तो आप वहाँ बेंच पर जाकर बैठो न 
हम लोग को प्राइवेसी चाहिए 
मैं हक्का-बक्का देखती रह गई 
आखिर उठ गई 
पर मन में यह खयाल जरूर आया 
भलाई का तो जमाना ही नहीं है
और फिर बच्चों को प्राइवेसी 
क्या कहा जाए 
इस जनरेशन को 

Tuesday, 11 April 2023

माफ और माफी

माफी मांग लो न 
माफ कर दो न
यह कहना जितना आसान है
उतना है भी नहीं 
साॅरी  केवल लब्जों से नहीं 
मन से मांगा हो 
तभी क्रियाशील भी 
शब्द नहीं है साॅरी 
मन की भावना है 
अपना स्वाभिमान ताक पर रख
मन को बडा कर 
तब वह माफ और माफी होती है
सही भी है
छोटे मन से कोई बडा नहीं होता 
टूटे मन से कोई खडा नहीं होता
खुलकर , भूलाकर,  भूलकर 
तब सही मायनों में वह माफी होगी
प्यार तो होता है पर अहम् आडे आता है
दोनों मसोसकर रहते हैं 
उम्र गुजर जाती है 
तब उसके पहले ही 
छोड दो यह सब
मिल लो 
बतियाय  लो 
पता नहीं कल हो या न हो
ऑखें जिन्हें देखने को तरसती हो
मन बात करने को चाहता हो 
तब देर किस बात की ।

Sunday, 9 April 2023

जिंदगी की रेस

समय भागता है 
दौड़ता है
जिंदगी नहीं 
वह अपनी गति से ही चलती है
जब जो होना होगा
तब वह होगा
सोचने से नहीं 
सबका समय होता है 
जिंदगी रेस नहीं है कि झट से गंतव्य पर पहुंच जाएं 
या वह पहले तो मैं क्यों नहीं 
हर रंग को जीया जाएं 
पहुँच ही गए तब उसके बाद क्या ?
मजा भागने - दौड़ने में नहीं 
जीने में हैं 
अनुभव करने में हैं 
पल - पल का लुत्फ उठाने में है